Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 915

Page 915

ਤੁਮਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ तुमरी क्रिपा ते लागी प्रीति ॥ हे भगवान! आपकी कृपा से ही आपसे मेरी प्रीति लगी है।
ਦਇਆਲ ਭਏ ਤਾ ਆਏ ਚੀਤਿ ॥ दइआल भए ता आए चीति ॥ जब आप दयालु हुए तो ही आपका स्मरण आया है।
ਦਇਆ ਧਾਰੀ ਤਿਨਿ ਧਾਰਣਹਾਰ ॥ दइआ धारी तिनि धारणहार ॥ सर्वसमर्थ दयालु प्रभु ने जब कृपा की तो
ਬੰਧਨ ਤੇ ਹੋਈ ਛੁਟਕਾਰ ॥੭॥ बंधन ते होई छुटकार ॥७॥ मेरा माया और सांसारिक बन्धनों से छुटकारा हो गया ॥ ७ ॥
ਸਭਿ ਥਾਨ ਦੇਖੇ ਨੈਣ ਅਲੋਇ ॥ सभि थान देखे नैण अलोइ ॥ मैंने आंखें खोलकर सब स्थान देख लिए हैं,
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥ तिसु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥ उस परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई दिखाई नहीं देता।
ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਛੂਟੇ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦ ॥ भ्रम भै छूटे गुर परसाद ॥ गुरु की कृपा से सब भ्रम एवं भय दूर हो गए हैं।
ਨਾਨਕ ਪੇਖਿਓ ਸਭੁ ਬਿਸਮਾਦ ॥੮॥੪॥ नानक पेखिओ सभु बिसमाद ॥८॥४॥ हे नानक ! वह सर्वत्र अद्भुत ईश्वर की अनुभूति करते हैं।॥ ८ ॥ ४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥ राग रामकली, पंचम गुरु: ५ ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਪੇਖੀਅਹਿ ਪ੍ਰਭ ਸਗਲ ਤੁਮਾਰੀ ਧਾਰਨਾ ॥੧॥ जीअ जंत सभि पेखीअहि प्रभ सगल तुमारी धारना ॥१॥ हे प्रभु! जो भी जीव-जंतु इस संसार में दृष्टिगोचर होते हैं, वे सभी आपके आश्रय पर आश्रित हैं।॥ १॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਉਧਾਰਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इहु मनु हरि कै नामि उधारना ॥१॥ रहाउ ॥ श्रद्धा के साथ भगवान् के नाम का स्मरण ही मन को पापों और विकारों से बचा सकता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ਕੁਦਰਤਿ ਸਭਿ ਕਰਤੇ ਕੇ ਕਾਰਨਾ ॥੨॥ खिन महि थापि उथापे कुदरति सभि करते के कारना ॥२॥ ईश्वर क्षण मात्र में सृष्टि की रचना और संहार करने में समर्थ हैं; यह सब उनकी दिव्य लीला है।॥ २॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਝੂਠੁ ਨਿੰਦਾ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਬਿਦਾਰਨਾ ॥੩॥ कामु क्रोधु लोभु झूठु निंदा साधू संगि बिदारना ॥३॥ साधुओं की संगति द्वारा काम, क्रोध, लोभ, झूठ एवं निंदा को नष्ट किया जा सकता है॥ ३॥
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲ ਹੋਵੈ ਸੂਖੇ ਸੂਖਿ ਗੁਦਾਰਨਾ ॥੪॥ नामु जपत मनु निरमल होवै सूखे सूखि गुदारना ॥४॥ प्रभु का नाम जपने से मन निर्मल हो जाता है और सारा जीवन सुख में ही गुजरता है॥ ४॥
ਭਗਤ ਸਰਣਿ ਜੋ ਆਵੈ ਪ੍ਰਾਣੀ ਤਿਸੁ ਈਹਾ ਊਹਾ ਨ ਹਾਰਨਾ ॥੫॥ भगत सरणि जो आवै प्राणी तिसु ईहा ऊहा न हारना ॥५॥ जो व्यक्ति भगवान् के भक्तों की शरण ग्रहण करता है, वह न इस लोक में पराजित होता है, और न ही परलोक में। ५॥
ਸੂਖ ਦੂਖ ਇਸੁ ਮਨ ਕੀ ਬਿਰਥਾ ਤੁਮ ਹੀ ਆਗੈ ਸਾਰਨਾ ॥੬॥ सूख दूख इसु मन की बिरथा तुम ही आगै सारना ॥६॥ हे परमेश्वर ! सुख हो या दुःख, हमारे हृदय की पुकार अंततः केवल आप तक ही पहुँचती है।॥६॥
ਤੂ ਦਾਤਾ ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਕਾ ਆਪਨ ਕੀਆ ਪਾਲਨਾ ॥੭॥ तू दाता सभना जीआ का आपन कीआ पालना ॥७॥ आप सब जीवों के दाता है और स्वयं ही पालन-पोषण करता करते हैं है॥ ७ ॥
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਕੋਟਿ ਜਨ ਊਪਰਿ ਨਾਨਕੁ ਵੰਞੈ ਵਾਰਨਾ ॥੮॥੫॥ अनिक बार कोटि जन ऊपरि नानकु वंञै वारना ॥८॥५॥ हे प्रभु! नानक, आपके भक्तजनों पर करोड़ों बार न्यौछावर ं॥ ८ ॥ ५ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀ रामकली महला ५ असटपदी राग रामकली, पंचम गुरु, अष्टपदी (आठवां छंद):
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਤ ਪਾਪ ਸਭਿ ਨਾਸਹਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਦੇਇ ਮਿਲਾਈ ॥੧॥ दरसनु भेटत पाप सभि नासहि हरि सिउ देइ मिलाई ॥१॥ गुरु के दर्शन एवं साक्षात्कार से सभी पाप दूर हो जाते हैं और वह ईश्वर से मिला देते हैं॥ १ ॥
ਮੇਰਾ ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਸੁਖਦਾਈ ॥ मेरा गुरु परमेसरु सुखदाई ॥ मेरा गुरु-परमेश्वर सुख देने वाले हैं,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕਾ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਅੰਤੇ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पारब्रहम का नामु द्रिड़ाए अंते होइ सखाई ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु हमारे हृदय में परमेश्वर के नाम को दृढ़ता से स्थापित करते हैं तथा अन्ततः हमारे सच्चे मित्र बन जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਦੂਖ ਕਾ ਡੇਰਾ ਭੰਨਾ ਸੰਤ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਲਾਈ ॥੨॥ सगल दूख का डेरा भंना संत धूरि मुखि लाई ॥२॥ जिसने गुरु की शिक्षाओं का श्रद्धापूर्वक पालन किया,, उसके सब दुःखों का पहाड़ नष्ट हो गया है॥ २।
ਪਤਿਤ ਪੁਨੀਤ ਕੀਏ ਖਿਨ ਭੀਤਰਿ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰੁ ਵੰਞਾਈ ॥੩॥ पतित पुनीत कीए खिन भीतरि अगिआनु अंधेरु वंञाई ॥३॥ सतगुरु ने क्षण में ही पतितों को पावन कर दिया है और उनका आध्यात्मिक अज्ञानता का अंधेरा मिटा दिया है।॥ ३॥
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਸੁਆਮੀ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਸਰਣਾਈ ॥੪॥ करण कारण समरथु सुआमी नानक तिसु सरणाई ॥४॥ हे नानक ! सर्वशक्तिमान ईश्वर कारणों के कारण हैं, अर्थात् सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सार हैं, और केवल गुरु की कृपा से ही कोई उनकी शरण प्राप्त कर सकता है। ॥ ४॥
ਬੰਧਨ ਤੋੜਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਏਕ ਸਬਦਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੫॥ बंधन तोड़ि चरन कमल द्रिड़ाए एक सबदि लिव लाई ॥५॥ सतगुरु ने सब बन्धन तोड़कर प्रभु के चरण-कमल मन में बसा दिए हैं और एक शब्द में अविच्छिन्न लगन लगा दी है॥ ५॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਬਿਖਿਆ ਤੇ ਕਾਢਿਓ ਸਾਚ ਸਬਦਿ ਬਣਿ ਆਈ ॥੬॥ अंध कूप बिखिआ ते काढिओ साच सबदि बणि आई ॥६॥ गुरु ने माया के विष रूपी अंधकूप से निकाल दिया है और अब सच्चे शब्द से प्रीति पैदा हो गई है। ६॥
ਜਨਮ ਮਰਣ ਕਾ ਸਹਸਾ ਚੂਕਾ ਬਾਹੁੜਿ ਕਤਹੁ ਨ ਧਾਈ ॥੭॥ जनम मरण का सहसा चूका बाहुड़ि कतहु न धाई ॥७॥ मेरा जन्म-मरण का संशय दूर हो गया है और मैं फिर कभी नहीं भटकूँगा। ॥ ७॥
ਨਾਮ ਰਸਾਇਣਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਈ ॥੮॥ नाम रसाइणि इहु मनु राता अम्रितु पी त्रिपताई ॥८॥ जब यह मन नाम के अमृत से ओत-प्रोत हो जाता है, तो वह उस अमृत को ग्रहण कर माया की लालसाओं से मुक्त हो जाता है।॥ ८॥
ਸੰਤਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਇਆ ਨਿਹਚਲ ਵਸਿਆ ਜਾਈ ॥੯॥ संतसंगि मिलि कीरतनु गाइआ निहचल वसिआ जाई ॥९॥ संतों के संग मिलकर परमात्मा का कीर्तिगान किया है और निश्चल स्थान में वास हो गया है॥ ६ ॥
ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਪੂਰੀ ਮਤਿ ਦੀਨੀ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਆਨ ਨ ਭਾਈ ॥੧੦॥ पूरै गुरि पूरी मति दीनी हरि बिनु आन न भाई ॥१०॥ जिसे पूर्ण गुरु ने धर्मपूर्ण जीवन का श्रेष्ठ मार्गदर्शन दिया, वह ईश्वर के अतिरिक्त किसी और वस्तु से प्रसन्न नहीं होता। ॥ १० ॥
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਪਾਇਆ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਨਰਕਿ ਨ ਜਾਈ ॥੧੧॥ नामु निधानु पाइआ वडभागी नानक नरकि न जाई ॥११॥ हे नानक ! जिस भाग्यशाली ने नाम रूपी भण्डार प्राप्त किया है, वह नरक में नहीं जाता॥ ११॥
ਘਾਲ ਸਿਆਣਪ ਉਕਤਿ ਨ ਮੇਰੀ ਪੂਰੈ ਗੁਰੂ ਕਮਾਈ ॥੧੨॥ घाल सिआणप उकति न मेरी पूरै गुरू कमाई ॥१२॥ मेरे पास कोई साधना, बुद्धिमानी एवं चतुराई नहीं है, केवल पूर्ण गुरु की दी हुई नाम की कमाई है॥ १२॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਸੁਚਿ ਹੈ ਸੋਈ ਆਪੇ ਕਰੇ ਕਰਾਈ ॥੧੩॥ जप तप संजम सुचि है सोई आपे करे कराई ॥१३॥ मेरे लिए गुरु की शिक्षाओं का पालन ही पूजा, तप, तपस्या तथा देह की पवित्रता है; गुरु स्वयं कृपा कर मुझे आशीर्वाद प्रदान करते हैं और प्रभु-भक्ति में लीन कर देते हैं। ॥ १३॥
ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਗੁਰਿ ਸਾਚੈ ਲਾਇ ਤਰਾਈ ॥੧੪॥ पुत्र कलत्र महा बिखिआ महि गुरि साचै लाइ तराई ॥१४॥ पुत्र, पत्नी इत्यादि महाविकारों के मध्य में भी सच्चे गुरु ने संसार-सागर से पार करवा दिया है॥ १४॥


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