Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 912

Page 912

ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਪੂਰੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ एकु नामु वसिआ घट अंतरि पूरे की वडिआई ॥१॥ रहाउ ॥ प्रभु का नाम हृदय में वास कर गया है, यह पूर्ण गुरु का बड़प्पन है॥ १॥ रहाउ ॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਭੁਗਤਾ ਦੇਦਾ ਰਿਜਕੁ ਸਬਾਈ ॥੨॥ आपे करता आपे भुगता देदा रिजकु सबाई ॥२॥ परमेश्वर स्वयं ही कर्ता, स्वयं ही भोगने वाले हैं और वह सब जीवों को भोजन देते हैं। २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਣਾ ਸੋ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਣਾ ਜਾਈ ॥੩॥ जो किछु करणा सो करि रहिआ अवरु न करणा जाई ॥३॥ जो कुछ वह करना चाहते हैं, वही कर रहे हैं, उसके अतिरिक्त अन्य कोई भी करने वाला नहीं।॥ ३॥
ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਏ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਧੰਧੈ ਲਾਈ ॥੪॥ आपे साजे स्रिसटि उपाए सिरि सिरि धंधै लाई ॥४॥ वह स्वयं ही सृष्टि के उत्पत्ति कर्ता है और स्वयं ही जीवों को जगत् के कार्यों में लगाते हैं।॥ ४॥
ਤਿਸਹਿ ਸਰੇਵਹੁ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥੫॥ तिसहि सरेवहु ता सुखु पावहु सतिगुरि मेलि मिलाई ॥५॥ भक्तिपूर्वक भगवान् का स्मरण करने से दिव्य शांति प्राप्त होती है; परंतु वही भगवान् को स्मरण करता है जिसे सच्चे गुरु ने अपने चरणों में स्वीकार किया हो।॥ ५॥
ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਆਪਿ ਉਪਾਏ ਅਲਖੁ ਨ ਲਖਣਾ ਜਾਈ ॥੬॥ आपणा आपु आपि उपाए अलखु न लखणा जाई ॥६॥ ईश्वर स्वयंभू है और उस अदृष्ट को देखा नहीं जा सकता ॥ ६॥
ਆਪੇ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲੇ ਆਪੇ ਤਿਸ ਨੋ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਈ ॥੭॥ आपे मारि जीवाले आपे तिस नो तिलु न तमाई ॥७॥ वह स्वयं ही मृत्युदाता, स्वयं ही जीवनदाता है और उसे तिल मात्र भी कोई लोभ नहीं ॥ ७ ॥
ਇਕਿ ਦਾਤੇ ਇਕਿ ਮੰਗਤੇ ਕੀਤੇ ਆਪੇ ਭਗਤਿ ਕਰਾਈ ॥੮॥ इकि दाते इकि मंगते कीते आपे भगति कराई ॥८॥ यह सब उसकी ही लीला है कि कोई दानी बना हुआ है, कोई भिखारी है और वह स्वयं ही भक्ति करवाते हैं॥ ८ ॥
ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨੀ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ਸਚੇ ਰਹੇ ਸਮਾਈ ॥੯॥ से वडभागी जिनी एको जाता सचे रहे समाई ॥९॥ जिन्होंने परमात्मा को जान लिया है, वे अत्यंत भाग्यशाली हैं और वे सत्य में ही विलीन रहते हैं। ६॥
ਆਪਿ ਸਰੂਪੁ ਸਿਆਣਾ ਆਪੇ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧੦॥ आपि सरूपु सिआणा आपे कीमति कहणु न जाई ॥१०॥ वह स्वयं ही सुन्दर रूप वाले एवं बड़े बुद्धिमान है और उनकी महत्ता का वर्णन नहीं किया जा सकता।॥ १०॥
ਆਪੇ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਅੰਤਰਿ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈ ॥੧੧॥ आपे दुखु सुखु पाए अंतरि आपे भरमि भुलाई ॥११॥ स्वयं ही जीवों को दुःख-सुख प्रदान किया है और स्वयं ही उन्हें भ्रम में भुलाया हुआ है॥ ११॥
ਵਡਾ ਦਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਨਿਗੁਰੀ ਅੰਧ ਫਿਰੈ ਲੋਕਾਈ ॥੧੨॥ वडा दाता गुरमुखि जाता निगुरी अंध फिरै लोकाई ॥१२॥ जिसने गुरु की शिक्षाओं का पालन किया, उसे महान ईश्वर का अनुभव हुआ; गुरु के बिना शेष संसार अज्ञान के अंधकार में भटक रहा है।॥ १२॥
ਜਿਨੀ ਚਾਖਿਆ ਤਿਨਾ ਸਾਦੁ ਆਇਆ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੧੩॥ जिनी चाखिआ तिना सादु आइआ सतिगुरि बूझ बुझाई ॥१३॥ जिन लोगों ने नाम के अमृत का स्वाद चखा, उन्होंने उसका दिव्य आनंद प्राप्त किया; यह समझ उन्हें सच्चे गुरु ने ही प्रदान की।॥ १३॥
ਇਕਨਾ ਨਾਵਹੁ ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ਇਕਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਇ ਬੁਝਾਈ ॥੧੪॥ इकना नावहु आपि भुलाए इकना गुरमुखि देइ बुझाई ॥१४॥ किसी को परमात्मा ने स्वयं ही नाम से विमुख किया हुआ है और किसी को गुरु के माध्यम से नाम ज्ञान प्रदान किया है॥ १४॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਾਲਾਹਿਹੁ ਸੰਤਹੁ ਤਿਸ ਦੀ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧੫॥ सदा सदा सालाहिहु संतहु तिस दी वडी वडिआई ॥१५॥ हे सज्जनो ! सदैव परमात्मा का स्तुतिगान करो; उसकी कीर्ति बहुत महान है॥ १५॥
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਰਾਜਾ ਕਰਿ ਤਪਾਵਸੁ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥੧੬॥ तिसु बिनु अवरु न कोई राजा करि तपावसु बणत बणाई ॥१६॥ उसके अतिरिक्त अन्य कोई संसार का राजा नहीं है, उसी ने इस ब्रह्मांड की रचना की है और वही सच्चा न्याय कर्ता है।॥ १६ ॥
ਨਿਆਉ ਤਿਸੈ ਕਾ ਹੈ ਸਦ ਸਾਚਾ ਵਿਰਲੇ ਹੁਕਮੁ ਮਨਾਈ ॥੧੭॥ निआउ तिसै का है सद साचा विरले हुकमु मनाई ॥१७॥ ईश्वर का न्याय ही शाश्वत है; वह किसी विरले जीव से ही अपना आदेश मनवाते हैं।॥ १७॥
ਤਿਸ ਨੋ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸਦਾ ਧਿਆਵਹੁ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥੧੮॥ तिस नो प्राणी सदा धिआवहु जिनि गुरमुखि बणत बणाई ॥१८॥ हे प्राणी ! सदा प्रेमपूर्वक उस भगवान् का स्मरण करो, जिन्होंने गुरु की शिक्षाओं का पालन करने की परंपरा स्थापित की।॥ १८॥
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੈ ਸੋ ਜਨੁ ਸੀਝੈ ਜਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਈ ॥੧੯॥ सतिगुर भेटै सो जनु सीझै जिसु हिरदै नामु वसाई ॥१९॥ जो व्यक्ति सच्चे गुरु से मिलता है, उनकी शिक्षाओं का पालन करता है और भगवान् के नाम को अपने हृदय में बसाता है, वह जीवन के इस खेल में सफल होता है। ॥१९॥
ਸਚਾ ਆਪਿ ਸਦਾ ਹੈ ਸਾਚਾ ਬਾਣੀ ਸਬਦਿ ਸੁਣਾਈ ॥੨੦॥ सचा आपि सदा है साचा बाणी सबदि सुणाई ॥२०॥ वह सदैव सत्य एवं शाश्वत है, उसकी वाणी सत्य है; वह अपनी वाणी एवं अपने शब्द के माध्यम से वचन प्रकट करते हैं।॥ २०॥
ਨਾਨਕ ਸੁਣਿ ਵੇਖਿ ਰਹਿਆ ਵਿਸਮਾਦੁ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਰਵਿਆ ਸ੍ਰਬ ਥਾਈ ॥੨੧॥੫॥੧੪॥ नानक सुणि वेखि रहिआ विसमादु मेरा प्रभु रविआ स्रब थाई ॥२१॥५॥१४॥ गुरु नानक प्रभु के दिव्य स्वरूप को सुनकर और देखकर विस्मित हो उठते हैं, क्योंकि उनका ईश्वर सर्वव्यापक है। ॥ २१॥ ५ ॥ १४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ रामकली महला ५ असटपदीआ राग रामकली, पाँचवें गुरु, अष्टपदी (आठ छंद):
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਕਿਨਹੀ ਕੀਆ ਪਰਵਿਰਤਿ ਪਸਾਰਾ ॥ किनही कीआ परविरति पसारा ॥ कुछ लोग केवल भौतिक जीवन के प्रदर्शन में उलझे रहते हैं।
ਕਿਨਹੀ ਕੀਆ ਪੂਜਾ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥ किनही कीआ पूजा बिसथारा ॥ किसी ने पूजा-अर्चना का विस्तार किया हुआ है,
ਕਿਨਹੀ ਨਿਵਲ ਭੁਇਅੰਗਮ ਸਾਧੇ ॥ किनही निवल भुइअंगम साधे ॥ किसी ने निउली कर्म का अभ्यास एवं कुण्डलिनी की साधना की हुई है,
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧੇ ॥੧॥. मोहि दीन हरि हरि आराधे ॥१॥ परन्तु मुझ दीन ने परमेश्वर की ही आराधना की है॥ १॥
ਤੇਰਾ ਭਰੋਸਾ ਪਿਆਰੇ ॥ तेरा भरोसा पिआरे ॥ हे प्यारे प्रभु ! मुझे आपका ही भरोसा है और
ਆਨ ਨ ਜਾਨਾ ਵੇਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ आन न जाना वेसा ॥१॥ रहाउ ॥ मैं किसी अन्य अनुष्ठान या पूजा-पद्धति को नहीं जानता। ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਨਹੀ ਗ੍ਰਿਹੁ ਤਜਿ ਵਣ ਖੰਡਿ ਪਾਇਆ ॥ किनही ग्रिहु तजि वण खंडि पाइआ ॥ किसी ने अपना घर-परिवार छोड़कर जंगल में निवास कर लिया है।
ਕਿਨਹੀ ਮੋਨਿ ਅਉਧੂਤੁ ਸਦਾਇਆ ॥ किनही मोनि अउधूतु सदाइआ ॥ कोई मौनी एवं अवधूत कहला रहा है।
ਕੋਈ ਕਹਤਉ ਅਨੰਨਿ ਭਗਉਤੀ ॥ कोई कहतउ अनंनि भगउती ॥ कोई कहता है कि मैं भगवती देवी का अनन्य उपासक हूँ,
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਓਟ ਲੀਤੀ ॥੨॥ मोहि दीन हरि हरि ओट लीती ॥२॥ परन्तु मुझ दीन ने तो परमात्मा का ही सहारा लिया है॥ २॥
ਕਿਨਹੀ ਕਹਿਆ ਹਉ ਤੀਰਥ ਵਾਸੀ ॥ किनही कहिआ हउ तीरथ वासी ॥ किसी ने कहा है कि मैं तीर्थ का वासी हूँ।
ਕੋਈ ਅੰਨੁ ਤਜਿ ਭਇਆ ਉਦਾਸੀ ॥ कोई अंनु तजि भइआ उदासी ॥ कोई अन्न त्यागकर उदासी साधु बन गया है।
ਕਿਨਹੀ ਭਵਨੁ ਸਭ ਧਰਤੀ ਕਰਿਆ ॥ किनही भवनु सभ धरती करिआ ॥ किसी ने सारी धरती का भ्रमण कर लिया है,
ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਰਿ ਪਰਿਆ ॥੩॥ मोहि दीन हरि हरि दरि परिआ ॥३॥ परन्तु मैं गरीब भगवान् के द्वार पर ही आ पड़ा हूँ॥ ३॥
ਕਿਨਹੀ ਕਹਿਆ ਮੈ ਕੁਲਹਿ ਵਡਿਆਈ ॥ किनही कहिआ मै कुलहि वडिआई ॥ किसी ने कहा है कि उच्च कुल के कारण मेरी बड़ी शोभा है,


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