Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 903

Page 903

ਆਖੁ ਗੁਣਾ ਕਲਿ ਆਈਐ ॥ कलियुग आ गया है, इसलिए ईश्वर के गुण गाओ।
ਤਿਹੁ ਜੁਗ ਕੇਰਾ ਰਹਿਆ ਤਪਾਵਸੁ ਜੇ ਗੁਣ ਦੇਹਿ ਤ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सत्य, त्रैता एवं द्वापर इन तीनों युगों का न्याय अब समाप्त हो गया है। इस युग में ईश्वर का गुणगान ही सबसे बड़ी उपलब्धि एवं मुक्ति का साधन है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਲਿ ਕਲਵਾਲੀ ਸਰਾ ਨਿਬੇੜੀ ਕਾਜੀ ਕ੍ਰਿਸਨਾ ਹੋਆ ॥ कलह-क्लेश वाले इस कलियुग में इस्लामी शरह (कानून) ही फैसले करता है और काजी नीले वस्त्र पहनकर कृष्ण बना हुआ है।
ਬਾਣੀ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬੇਦੁ ਅਥਰਬਣੁ ਕਰਣੀ ਕੀਰਤਿ ਲਹਿਆ ॥੫॥ इस कलियुग में ब्रह्मा द्वारा रचित अथर्ववेद प्रधान है और किए गए कर्मों के द्वारा कीर्ति अथवा अपकीर्ति मिलती है॥ ५ ॥
ਪਤਿ ਵਿਣੁ ਪੂਜਾ ਸਤ ਵਿਣੁ ਸੰਜਮੁ ਜਤ ਵਿਣੁ ਕਾਹੇ ਜਨੇਊ ॥ परमात्मा के बिना अन्य देवताओं की पूजा, सत्य के बिना संयम एवं यतीत्व के बिना जनेऊ धारण करना किस काम के हैं ?
ਨਾਵਹੁ ਧੋਵਹੁ ਤਿਲਕੁ ਚੜਾਵਹੁ ਸੁਚ ਵਿਣੁ ਸੋਚ ਨ ਹੋਈ ॥੬॥ आप तीर्थों में स्नान करते हो, शरीर को मल-मलकर धोते तथा माथे पर तिलक लगाते हो किन्तु मन की पवित्रता के बिना शरीर शुद्ध नहीं होता ॥ ६॥
ਕਲਿ ਪਰਵਾਣੁ ਕਤੇਬ ਕੁਰਾਣੁ ॥ अब कतेब एवं कुरान ही कलियुग में मान्य हो गए हैं और
ਪੋਥੀ ਪੰਡਿਤ ਰਹੇ ਪੁਰਾਣ ॥ पण्डितों के धार्मिक ग्रंथों एवं पुराणों का महत्व नहीं रहा।
ਨਾਨਕ ਨਾਉ ਭਇਆ ਰਹਮਾਣੁ ॥ हे नानक ! उस परमात्मा का नाम रहमान हो गया है,
ਕਰਿ ਕਰਤਾ ਤੂ ਏਕੋ ਜਾਣੁ ॥੭॥ लेकिन उस रचयिता को एक ही समझो ॥ ७ ॥
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਏਦੂ ਉਪਰਿ ਕਰਮੁ ਨਹੀ ॥ हे नानक ! जो परमात्मा का नाम जपता है, उसे ही यश मिलता है, इससे ऊपर अन्य कोई कर्म नहीं।
ਜੇ ਘਰਿ ਹੋਦੈ ਮੰਗਣਿ ਜਾਈਐ ਫਿਰਿ ਓਲਾਮਾ ਮਿਲੈ ਤਹੀ ॥੮॥੧॥ यदि किसी मनुष्य के हृदय-घर में नाम रूपी वस्तु पड़ी हो और वह इसे किसी अन्य से मांगने जाए तो उसे शिकायत ही मिलती है॥ ८ ॥ १॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ रामकली महला १ ॥
ਜਗੁ ਪਰਬੋਧਹਿ ਮੜੀ ਬਧਾਵਹਿ ॥ हे योगी ! तू जगत् को उपदेश देता है परन्तु पेट-पूजा द्वारा अपना तन रूपी मठ बढ़ा रहा है।
ਆਸਣੁ ਤਿਆਗਿ ਕਾਹੇ ਸਚੁ ਪਾਵਹਿ ॥ तू अपना आसन त्याग कर सत्य को कैसे प्राप्त कर सकता है।
ਮਮਤਾ ਮੋਹੁ ਕਾਮਣਿ ਹਿਤਕਾਰੀ ॥ तू नारी से प्रेम करने वाला है और ममता-मोह में फँसा हुआ है।
ਨਾ ਅਉਧੂਤੀ ਨਾ ਸੰਸਾਰੀ ॥੧॥ न तू अवधूत है और न ही गृहस्थी है॥ १॥
ਜੋਗੀ ਬੈਸਿ ਰਹਹੁ ਦੁਬਿਧਾ ਦੁਖੁ ਭਾਗੈ ॥ हे योगी ! अपना आसन लगाकर बैठे रहो, तेरी दुविधा एवं दुख दूर हो जाएगा।
ਘਰਿ ਘਰਿ ਮਾਗਤ ਲਾਜ ਨ ਲਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुझे घर-घर मॉगते शर्म नहीं आती॥ १॥ रहाउ॥
ਗਾਵਹਿ ਗੀਤ ਨ ਚੀਨਹਿ ਆਪੁ ॥ दिखावे के रूप में तू गीत गाता रहता है परन्तु अपने आत्मस्वरूप को नहीं पहचानता।
ਕਿਉ ਲਾਗੀ ਨਿਵਰੈ ਪਰਤਾਪੁ ॥ तेरे मन को लगी तृष्णाग्नि कैसे बुझ सकती है ?
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਰਚੈ ਮਨ ਭਾਇ ॥ यदि तेरे मन में गुरु के शब्द से प्रेम बन जाए तो
ਭਿਖਿਆ ਸਹਜ ਵੀਚਾਰੀ ਖਾਇ ॥੨॥ तुझे सिमरन द्वारा परमानंद की भिक्षा का भोजन मिलेगा ॥ २ ॥
ਭਸਮ ਚੜਾਇ ਕਰਹਿ ਪਾਖੰਡੁ ॥ तू अपने शरीर पर भस्म लगाकर पाखण्ड करता है और
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਹਹਿ ਜਮ ਡੰਡੁ ॥ मोह-माया में फँसकर यम का दण्ड भोगता है।
ਫੂਟੈ ਖਾਪਰੁ ਭੀਖ ਨ ਭਾਇ ॥ तेरा टूटा हुआ हृदय रूपी खप्पर प्रभु-नाम की भिक्षा नहीं प्राप्त करता,
ਬੰਧਨਿ ਬਾਧਿਆ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥੩॥ जिस कारण बन्धनों में बँधकर जन्मता-मरता रहता है। ३ ॥
ਬਿੰਦੁ ਨ ਰਾਖਹਿ ਜਤੀ ਕਹਾਵਹਿ ॥ तू अपने वीर्य को रोककर नहीं रखता और स्वयं को यती कहलाता है।
ਮਾਈ ਮਾਗਤ ਤ੍ਰੈ ਲੋਭਾਵਹਿ ॥ माया के तीन गुणों में मुग्ध होकर माया मांगता रहता है।
ਨਿਰਦਇਆ ਨਹੀ ਜੋਤਿ ਉਜਾਲਾ ॥ तेरा मन निर्दयी है, इसलिए प्रभु-ज्योति का उजाला नहीं हुआ और
ਬੂਡਤ ਬੂਡੇ ਸਰਬ ਜੰਜਾਲਾ ॥੪॥ जगत् के सब जंजालों में डूबता डूब गया है। ४॥
ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਖਿੰਥਾ ਬਹੁ ਥਟੂਆ ॥ अपनी कफनी पहनकर बहुत आडम्बर करके तू वेष बना लेता है।
ਝੂਠੋ ਖੇਲੁ ਖੇਲੈ ਬਹੁ ਨਟੂਆ ॥ तू नट की तरह बहुत ही झूठे खेल खेलता रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਅਗਨਿ ਚਿੰਤਾ ਬਹੁ ਜਾਰੇ ॥ चिन्ता की अग्नि तेरे अन्तर्मन को जला रही है।
ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਕੈਸੇ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰੇ ॥੫॥ शुभ कर्मो के बिना कैसे भवसागर से पार हो सकता है॥ ५ ॥
ਮੁੰਦ੍ਰਾ ਫਟਕ ਬਨਾਈ ਕਾਨਿ ॥ तूने काँच की मुद्राएँ बनाकर कानों में पहनी हुई हैं।
ਮੁਕਤਿ ਨਹੀ ਬਿਦਿਆ ਬਿਗਿਆਨਿ ॥ सत्य की विद्या से अज्ञानी बनकर मुक्ति नहीं मिलती।
ਜਿਹਵਾ ਇੰਦ੍ਰੀ ਸਾਦਿ ਲੋੁਭਾਨਾ ॥ तू जीभ एवं इन्द्रियों के स्वादों में फँसा हुआ है,
ਪਸੂ ਭਏ ਨਹੀ ਮਿਟੈ ਨੀਸਾਨਾ ॥੬॥ इसलिए तू पशु बन गया है और तेरा यह निशान नहीं मिटता॥ ६॥
ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਲੋਗਾ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਜੋਗਾ ॥ जैसे जगत् के लोग माया के तीन गुणों में फॅसे हुए हैं, वैसे ही योगी त्रिगुणों में फंसे हुए हैं।
ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੈ ਚੂਕਸਿ ਸੋਗਾ ॥ जो व्यक्ति शब्द का चिंतन करता है, उसकी चिंता मिट जाती है।
ਊਜਲੁ ਸਾਚੁ ਸੁ ਸਬਦੁ ਹੋਇ ॥ सच्चे शब्द द्वारा मन उज्ज्वल हो जाता है।
ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਵੀਚਾਰੇ ਸੋਇ ॥੭॥ वही योगी ऐसी युक्ति का विचार करता है॥ ७॥
ਤੁਝ ਪਹਿ ਨਉ ਨਿਧਿ ਤੂ ਕਰਣੈ ਜੋਗੁ ॥ हे प्रभु ! तू सबकुछ करने में समर्थ है और तेरे ही पास नवनिधियाँ हैं।
ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਗੁ ॥ तू ही जीवों को पैदा करके उन्हें नष्ट कर देता है, जो तू करता है, वही होता है।
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਸਚੁ ਸੁਚੀਤੁ ॥ जो यतीत्व, सदाचार एवं संयम को धारण करता है, सत्य उसी के हृदय में बसता है।
ਨਾਨਕ ਜੋਗੀ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਮੀਤੁ ॥੮॥੨॥ हे नानक ! ऐसा योगी तीनों लोकों का मित्र बन जाता है ॥८॥२॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ रामकली महला १ ॥
ਖਟੁ ਮਟੁ ਦੇਹੀ ਮਨੁ ਬੈਰਾਗੀ ॥ छ: चक्रों वाला शरीर एक मठ है और इसमें वैराग्यवान् मन स्थित है।
ਸੁਰਤਿ ਸਬਦੁ ਧੁਨਿ ਅੰਤਰਿ ਜਾਗੀ ॥ अनहद शब्द की ध्वनेि को सुनने वाली सोई हुई चेतना अन्तर में जाग गई है।
ਵਾਜੈ ਅਨਹਦੁ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲੀਣਾ ॥ अनहद शब्द बज रहा है और मेरा मन उसमें लीन हो गया है।
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਪਤੀਣਾ ॥੧॥ गुरु के वचनों से सत्य-नाम में मन संतुष्ट हो गया है॥ १॥
ਪ੍ਰਾਣੀ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥ हे प्राणी ! राम की भक्ति से ही सुख प्राप्त होता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੀਠਾ ਲਾਗੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरुमुख बनकर ही हरि नाम मीठा लगता है और मन हरि-नाम में ही विलीन हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥


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