Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 902

Page 902

ਅਜਾਮਲ ਕਉ ਅੰਤ ਕਾਲ ਮਹਿ ਨਾਰਾਇਨ ਸੁਧਿ ਆਈ ॥ अजामल कउ अंत काल महि नाराइन सुधि आई ॥ जब अन्तिम समय पापी अजामल को नारायण की याद आई तो
ਜਾਂ ਗਤਿ ਕਉ ਜੋਗੀਸੁਰ ਬਾਛਤ ਸੋ ਗਤਿ ਛਿਨ ਮਹਿ ਪਾਈ ॥੨॥ जां गति कउ जोगीसुर बाछत सो गति छिन महि पाई ॥२॥ उसने एक क्षण में ही ऐसी गति प्राप्त कर ली, जिस गति के बड़े-बड़े योगीश्वर भी अभिलाषी हैं।२॥
ਨਾਹਿਨ ਗੁਨੁ ਨਾਹਿਨ ਕਛੁ ਬਿਦਿਆ ਧਰਮੁ ਕਉਨੁ ਗਜਿ ਕੀਨਾ ॥ नाहिन गुनु नाहिन कछु बिदिआ धरमु कउनु गजि कीना ॥ गजेन्द्र हाथी में न कोई गुण था, न उसने कुछ विद्या पढ़ी थी, फिर उसने कौन-सा धर्म-कर्म किया था ?
ਨਾਨਕ ਬਿਰਦੁ ਰਾਮ ਕਾ ਦੇਖਹੁ ਅਭੈ ਦਾਨੁ ਤਿਹ ਦੀਨਾ ॥੩॥੧॥ नानक बिरदु राम का देखहु अभै दानु तिह दीना ॥३॥१॥ हे नानक ! राम जी का विरद देखो, उसने मगरमच्छ के मुँह से बचाकर उसे भी अभयदान दिया था।॥ ३॥१॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥ रामकली महला ९ ॥ राग रामकली, नौवें गुरु:॥
ਸਾਧੋ ਕਉਨ ਜੁਗਤਿ ਅਬ ਕੀਜੈ ॥ साधो कउन जुगति अब कीजै ॥ हे साधुजनो ! अब इस मानव जीवन में मैं कौन-सा मार्ग अपनाऊँ?
ਜਾ ਤੇ ਦੁਰਮਤਿ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੈ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जा ते दुरमति सगल बिनासै राम भगति मनु भीजै ॥१॥ रहाउ ॥ जिससे सारी दुर्मति नाश हो जाए और मन राम की भक्ति में भीग जाए॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨੁ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਉਰਝਿ ਰਹਿਓ ਹੈ ਬੂਝੈ ਨਹ ਕਛੁ ਗਿਆਨਾ ॥ मनु माइआ महि उरझि रहिओ है बूझै नह कछु गिआना ॥ यह मन तो माया में उलझा रहता है और उसे आध्यात्मिक ज्ञान का लेशमात्र भी बोध नहीं होता।
ਕਉਨੁ ਨਾਮੁ ਜਗੁ ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰੈ ਪਾਵੈ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਨਾ ॥੧॥ कउनु नामु जगु जा कै सिमरै पावै पदु निरबाना ॥१॥ जगत् में ऐसा कोन-सा निर्मल और पवित्र नाम है, जिसका सिमरन करने से मोक्षरूप निर्वाण पद प्राप्त हो जाता है॥ १ ॥
ਭਏ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੰਤ ਜਨ ਤਬ ਇਹ ਬਾਤ ਬਤਾਈ ॥ भए दइआल क्रिपाल संत जन तब इह बात बताई ॥ जब संतजन दयालु कृपालु हो गए तो उन्होंने यह ज्ञान की बात बताई है कि
ਸਰਬ ਧਰਮ ਮਾਨੋ ਤਿਹ ਕੀਏ ਜਿਹ ਪ੍ਰਭ ਕੀਰਤਿ ਗਾਈ ॥੨॥ सरब धरम मानो तिह कीए जिह प्रभ कीरति गाई ॥२॥ जिसने प्रभु का कीर्तिगान किया है, समझ लो उसने सब धर्म-कर्म कर लिए हैं।२ ।
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਰੁ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਮਹਿ ਨਿਮਖ ਏਕ ਉਰਿ ਧਾਰੈ ॥ राम नामु नरु निसि बासुर महि निमख एक उरि धारै ॥ हे नानक ! जो व्यक्ति रात-दिन एक पल भर के लिए राम नाम को अपने हृदय में धारण करता है,
ਜਮ ਕੋ ਤ੍ਰਾਸੁ ਮਿਟੈ ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਅਪੁਨੋ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰੈ ॥੩॥੨॥ जम को त्रासु मिटै नानक तिह अपुनो जनमु सवारै ॥३॥२॥ उसका मृत्यु का भय मिट जाता है और वह अपना जन्म संवार लेता है॥ ३ ॥ २ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੯ ॥ रामकली महला ९ ॥ राग रामकली, नौवें गुरु: ॥
ਪ੍ਰਾਨੀ ਨਾਰਾਇਨ ਸੁਧਿ ਲੇਹਿ ॥ प्रानी नाराइन सुधि लेहि ॥ हे प्राणी ! नारायण का ध्यान करो; चूंकि
ਛਿਨੁ ਛਿਨੁ ਅਉਧ ਘਟੈ ਨਿਸਿ ਬਾਸੁਰ ਬ੍ਰਿਥਾ ਜਾਤੁ ਹੈ ਦੇਹ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ छिनु छिनु अउध घटै निसि बासुर ब्रिथा जातु है देह ॥१॥ रहाउ ॥ क्षण-क्षण तेरी आयु कम होती जा रही है और रात-दिन तेरा शरीर व्यर्थ जा रहा है॥ १॥
ਤਰਨਾਪੋ ਬਿਖਿਅਨ ਸਿਉ ਖੋਇਓ ਬਾਲਪਨੁ ਅਗਿਆਨਾ ॥ तरनापो बिखिअन सिउ खोइओ बालपनु अगिआना ॥ तेरा बचपन अज्ञानता में बीत गया और तरुणावस्था विषय-विकारों में गंवा दी।
ਬਿਰਧਿ ਭਇਓ ਅਜਹੂ ਨਹੀ ਸਮਝੈ ਕਉਨ ਕੁਮਤਿ ਉਰਝਾਨਾ ॥੧॥ बिरधि भइओ अजहू नही समझै कउन कुमति उरझाना ॥१॥ अब तू बूढ़ा हो गया है, पर अभी भी तू नहीं समझ रहा, फिर कौन-सी खोटी बुद्धि में उलझा हुआ है।॥ १॥
ਮਾਨਸ ਜਨਮੁ ਦੀਓ ਜਿਹ ਠਾਕੁਰਿ ਸੋ ਤੈ ਕਿਉ ਬਿਸਰਾਇਓ ॥ मानस जनमु दीओ जिह ठाकुरि सो तै किउ बिसराइओ ॥ जिस ठाकुर जी ने तुझे मनुष्य-जन्म दिया है, तूने उसे क्यों भुला दिया है ?
ਮੁਕਤੁ ਹੋਤ ਨਰ ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰੈ ਨਿਮਖ ਨ ਤਾ ਕਉ ਗਾਇਓ ॥੨॥ मुकतु होत नर जा कै सिमरै निमख न ता कउ गाइओ ॥२॥ हे नश्वर, जिसकी आराधना मात्र से मनुष्य माया के बंधनों से विमुक्त हो जाता है, तुमने एक क्षण के लिए भी उस प्रभु का स्तवन क्यों नहीं किया?॥ २॥
ਮਾਇਆ ਕੋ ਮਦੁ ਕਹਾ ਕਰਤੁ ਹੈ ਸੰਗਿ ਨ ਕਾਹੂ ਜਾਈ ॥ माइआ को मदु कहा करतु है संगि न काहू जाई ॥ हे नश्वर, तू धन-दौलत का इतना अभिमान क्यों करता है ? अंतिम समय यह किसी के साथ नहीं जाती।
ਨਾਨਕੁ ਕਹਤੁ ਚੇਤਿ ਚਿੰਤਾਮਨਿ ਹੋਇ ਹੈ ਅੰਤਿ ਸਹਾਈ ॥੩॥੩॥੮੧॥ नानकु कहतु चेति चिंतामनि होइ है अंति सहाई ॥३॥३॥८१॥ नानक कहते हैं कि अरे भाई ! चिंतामणि परमेश्वर का स्मरण करो; अन्त में वही तेरे सहायक होंगे ॥३॥३॥८१॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ रामकली महला १ असटपदीआ राग रामकली, प्रथम गुरु, अष्टपदी (आठ छंद):
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਸੋਈ ਚੰਦੁ ਚੜਹਿ ਸੇ ਤਾਰੇ ਸੋਈ ਦਿਨੀਅਰੁ ਤਪਤ ਰਹੈ ॥ सोई चंदु चड़हि से तारे सोई दिनीअरु तपत रहै ॥ आसमान में वही चाँद और सितारे चमक रहे हैं तथा वही सूर्य तप रहा है।
ਸਾ ਧਰਤੀ ਸੋ ਪਉਣੁ ਝੁਲਾਰੇ ਜੁਗ ਜੀਅ ਖੇਲੇ ਥਾਵ ਕੈਸੇ ॥੧॥ सा धरती सो पउणु झुलारे जुग जीअ खेले थाव कैसे ॥१॥ वही धरती है और वही पवन झूल रही है। जीवित प्राणियों के आचरण पर प्रभाव डालने वाला तत्व युग(समय की अवधि) है, न कि स्थान।॥ १॥
ਜੀਵਨ ਤਲਬ ਨਿਵਾਰਿ ॥ जीवन तलब निवारि ॥ अपने जीवन की लालसा छोड़ दो।
ਹੋਵੈ ਪਰਵਾਣਾ ਕਰਹਿ ਧਿਙਾਣਾ ਕਲਿ ਲਖਣ ਵੀਚਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ होवै परवाणा करहि धिङाणा कलि लखण वीचारि ॥१॥ रहाउ ॥ स्वार्थ के वश में आकर लोग असहायों पर अत्याचार करते हैं, और वे इसे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं; यही कलयुग का प्रमुख चिन्ह है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਤੈ ਦੇਸਿ ਨ ਆਇਆ ਸੁਣੀਐ ਤੀਰਥ ਪਾਸਿ ਨ ਬੈਠਾ ॥ कितै देसि न आइआ सुणीऐ तीरथ पासि न बैठा ॥ किसी से ऐसा नहीं सुना कि कलियुग किसी देश में आया है और न ही यह केिसी तीर्थ के पास बैठा हुआ है।
ਦਾਤਾ ਦਾਨੁ ਕਰੇ ਤਹ ਨਾਹੀ ਮਹਲ ਉਸਾਰਿ ਨ ਬੈਠਾ ॥੨॥ दाता दानु करे तह नाही महल उसारि न बैठा ॥२॥ न तो किसी उदार हृदय वाले को दान करते हुए देखा जाता है, न ही अपनी निर्मित हवेली में विराजमान।॥ २॥
ਜੇ ਕੋ ਸਤੁ ਕਰੇ ਸੋ ਛੀਜੈ ਤਪ ਘਰਿ ਤਪੁ ਨ ਹੋਈ ॥ जे को सतु करे सो छीजै तप घरि तपु न होई ॥ यदि कोई सत्यनिष्ठ और धार्मिक जीवनचर्या अपनाता है, तो लोग उसे तुच्छ आँकते हैं; और जो तपस्या का प्रचार करता है, वह इन्द्रियों को वश में नहीं कर पाता।
ਜੇ ਕੋ ਨਾਉ ਲਏ ਬਦਨਾਵੀ ਕਲਿ ਕੇ ਲਖਣ ਏਈ ॥੩॥ जे को नाउ लए बदनावी कलि के लखण एई ॥३॥ यदि कोई परमात्मा का नाम लेता है तो लोगों में उसकी बदनामी होती है। यही कलियुग के लक्षण हैं।॥ ३॥
ਜਿਸੁ ਸਿਕਦਾਰੀ ਤਿਸਹਿ ਖੁਆਰੀ ਚਾਕਰ ਕੇਹੇ ਡਰਣਾ ॥ जिसु सिकदारी तिसहि खुआरी चाकर केहे डरणा ॥ जिस व्यक्ति को शासन मिलता है तो वह भी अपमानित होता है। सेवक क्यों घबराए?
ਜਾ ਸਿਕਦਾਰੈ ਪਵੈ ਜੰਜੀਰੀ ਤਾ ਚਾਕਰ ਹਥਹੁ ਮਰਣਾ ॥੪॥ जा सिकदारै पवै जंजीरी ता चाकर हथहु मरणा ॥४॥ जब शासक को जंजीरें पड़ती हैं तो अधीनस्थों के हाथों ही उसकी मृत्यु होती है अर्थात् नौकरों के हाथों मारा जाता है।॥ ४॥


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