Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 893

Page 893

ਨਾਮੁ ਸੁਨਤ ਜਨੁ ਬਿਛੂਅ ਡਸਾਨਾ ॥੨॥ परमात्मा का नाम सुनकर ऐसे हो जाता है, जैसे बिच्छु ने डंक मार दिया है॥ २॥
ਮਾਇਆ ਕਾਰਣਿ ਸਦ ਹੀ ਝੂਰੈ ॥ वह माया के कारण सदा ही चिंतित रहता है किन्तु
ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਕਬਹਿ ਨ ਉਸਤਤਿ ਕਰੈ ॥ अपने मन एवं मुँह से कभी भगवान की स्तुति नहीं करता।
ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰ ਦਾਤਾਰੁ ॥ जो निर्भय, निरंकार एवं सबका दाता है,
ਤਿਸੁ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਕਰੈ ਗਵਾਰੁ ॥੩॥ वह गंवार उससे कभी प्रेम नहीं करता ॥ ३ ॥
ਸਭ ਸਾਹਾ ਸਿਰਿ ਸਾਚਾ ਸਾਹੁ ॥ परमात्मा सब राजाओं में सच्चा राजा है और
ਵੇਮੁਹਤਾਜੁ ਪੂਰਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ॥ वह पूर्ण बादशाह एवं बेपरवाह है।
ਮੋਹ ਮਗਨ ਲਪਟਿਓ ਭ੍ਰਮ ਗਿਰਹ ॥ जीव माया के मोह में लिपटा रहता है और सूर्य के इर्द-गिर्द घूमने वाले ग्रहों की तरह भटकता रहता है।
ਨਾਨਕ ਤਰੀਐ ਤੇਰੀ ਮਿਹਰ ॥੪॥੨੧॥੩੨॥ नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! तेरी मेहर से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है॥ ४॥ २१॥ ३२॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਜਪਉ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥. रात-दिन हरि-नाम का जाप करो,
ਆਗੈ ਦਰਗਹ ਪਾਵਉ ਥਾਉ ॥ इस तरह आगे प्रभु-दरबार में स्थान प्राप्त हो जाएगा।
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਨ ਹੋਵੀ ਸੋਗੁ ॥ फिर सदैव आनंद बना रहेगा और कभी कोई शोक-चिंता नहीं लगेगी।
ਕਬਹੂ ਨ ਬਿਆਪੈ ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ॥੧॥ अहंकार का रोग भी कभी प्रभावित नहीं करेगा ॥ १॥
ਖੋਜਹੁ ਸੰਤਹੁ ਹਰਿ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ॥ हे भक्तजनों, किसी ब्रह्मज्ञानी की खोज करो।
ਬਿਸਮਨ ਬਿਸਮ ਭਏ ਬਿਸਮਾਦਾ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि की महिमा को देखकर बड़ी हैरानी होती है। हे प्राणी ! हरि का स्मरण करने से परमगति प्राप्त हो जाती है॥ १॥ रहाउ ॥
ਗਨਿ ਮਿਨਿ ਦੇਖਹੁ ਸਗਲ ਬੀਚਾਰਿ ॥ चाहे इस संदर्भ में सोच-समझ कर विचार करके देख लो,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੋ ਸਕੈ ਨ ਤਾਰਿ ॥ नाम के बिना कोई भी संसार-सागर से पार नहीं हो सकता ।
ਸਗਲ ਉਪਾਵ ਨ ਚਾਲਹਿ ਸੰਗਿ ॥ अनेक प्रकार के सब उपाय भी साथ नहीं देने वाले,
ਭਵਜਲੁ ਤਰੀਐ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੨॥ अपितु प्रभु के रंग में लीन होने से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है॥ २॥
ਦੇਹੀ ਧੋਇ ਨ ਉਤਰੈ ਮੈਲੁ ॥ शरीर को धोने से मन की मैल साफ नहीं होती,
ਹਉਮੈ ਬਿਆਪੈ ਦੁਬਿਧਾ ਫੈਲੁ ॥ अपितु अहंकार में और वृद्धि हो जाती है और दुविधा भी फैल जाती है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅਉਖਧੁ ਜੋ ਜਨੁ ਖਾਇ ॥ जो व्यक्ति हरि-नाम रूपी औषधि को सेवन करता है,
ਤਾ ਕਾ ਰੋਗੁ ਸਗਲ ਮਿਟਿ ਜਾਇ ॥੩॥ उसका सब प्रकार का रोग मिट जाता है॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਦਇਆਲ ॥ हे दयालु परब्रह्म ! ऐसी कृपा करो कि
ਮਨ ਤੇ ਕਬਹੁ ਨ ਬਿਸਰੁ ਗੋੁਪਾਲ ॥ मन में कभी भी तुम विस्मृत न हो पाओ।
ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਕੀ ਹੋਵਾ ਧੂਰਿ ॥ ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਸਰਧਾ ਪੂਰਿ ॥੪॥੨੨॥੩੩॥ हे प्रभु ! तेरे दास की चरण-धूलि बन जाऊँ, नानक की यह श्रद्धा पूरी करो ॥ ४॥ २२ ॥ ३३ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਪੂਰੇ ਗੁਰਦੇਵ ॥ हे पूर्ण गुरुदेव ! मैं तेरी शरण में आया हूँ, क्योंकि
ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ तेरे बिना मेरा अन्य कोई अवलम्ब नहीं।
ਤੂ ਸਮਰਥੁ ਪੂਰਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥ हे पूर्ण परब्रह्म ! तू सर्वकला समर्थ है,
ਸੋ ਧਿਆਏ ਪੂਰਾ ਜਿਸੁ ਕਰਮੁ ॥੧॥ वही तेरा ध्यान-मनन करता है, जिसका पूर्ण भाग्य होता है॥ १ ॥
ਤਰਣ ਤਾਰਣ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੋ ਨਾਉ ॥ हे प्रभु ! तेरा नाम संसार के बंधनों से मुक्त करवाने वाला है,
ਏਕਾ ਸਰਣਿ ਗਹੀ ਮਨ ਮੇਰੈ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਠਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इसलिए मेरे मन ने एक तेरी ही शरण ग्रहण की है और तेरे अतिरिक्त अन्य कोई ठोर -ठिकाना नहीं ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਾ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥ मैं तेरा नाम जप-जप कर ही जी रहा हूँ, और
ਆਗੈ ਦਰਗਹ ਪਾਵਉ ਠਾਉ ॥ आगे तेरे दरबार में स्थान प्राप्त कर लूंगा।
ਦੂਖੁ ਅੰਧੇਰਾ ਮਨ ਤੇ ਜਾਇ ॥ ਦੁਰਮਤਿ ਬਿਨਸੈ ਰਾਚੈ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥੨॥ मन से दुख का अंधेरा दूर हो जाता है और प्रभु का नाम-स्मरण करने से दुर्मति नाश हो जाती है॥ २॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ प्रभु के सुन्दर चरण-कमलों से प्रीति लग गई है।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥ पूर्ण गुरु की निर्मल मर्यादा है।
ਭਉ ਭਾਗਾ ਨਿਰਭਉ ਮਨਿ ਬਸੈ ॥ निर्भय प्रभु का मन में निवास हो जाने से यम का भय भाग गया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਸਨਾ ਨਿਤ ਜਪੈ ॥੩॥ अब रसना नित्य नामामृत को जपती रहती है॥ ३॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਕਾਟੇ ਫਾਹੇ ॥ मैंने करोड़ों जन्मों के बन्धन काट दिए हैं और
ਪਾਇਆ ਲਾਭੁ ਸਚਾ ਧਨੁ ਲਾਹੇ ॥ नाम-धन का सच्चा लाभ प्राप्त कर लिया है।
ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਅਖੁਟ ਭੰਡਾਰ ॥ इस अक्षय भण्डार के कारण कोई कमी नहीं आती।
ਨਾਨਕ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਹਰਿ ਦੁਆਰ ॥੪॥੨੩॥੩੪॥ हे नानक ! भक्तजन हमेशा भगवान के द्वार में ही शोभा के पात्र बनते हैं ॥४॥२३॥३४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਰਤਨ ਜਵੇਹਰ ਨਾਮ ॥. हरि का नाम अमूल्य रत्न एवं जवाहर के समान है।
ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਗਿਆਨ ॥ यह सत्य, संतोष, ज्ञान,
ਸੂਖ ਸਹਜ ਦਇਆ ਕਾ ਪੋਤਾ ॥ सहज सुख एवं दया का कोष है।
ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਹਵਾਲੈ ਹੋਤਾ ॥੧॥ यह कोष हरि ने अपने भक्तों को ही सौंपा हुआ है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਕੋ ਭੰਡਾਰੁ ॥ मेरे राम का भण्डार बेअन्त है,
ਖਾਤ ਖਰਚਿ ਕਛੁ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵੈ ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਹਰਿ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसे खाने-खर्च करने से कोई कमी नहीं आती, उसका कोई अंत नहीं और न ही उसका आर-पार पाया जा सकता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕੀਰਤਨੁ ਨਿਰਮੋਲਕ ਹੀਰਾ ॥ भगवान का कीर्तन अमूल्य हीरे जैसा है,
ਆਨੰਦ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰਾ ॥ यह आनंददायक एवं गुणों का गहरा सागर है।
ਅਨਹਦ ਬਾਣੀ ਪੂੰਜੀ ॥ अनहद वाणी अमूल्य पूंजी है,
ਸੰਤਨ ਹਥਿ ਰਾਖੀ ਕੂੰਜੀ ॥੨॥ जिसकी कुंजी भगवान् ने संतों के हाथ में रखी हुई है॥ २॥


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