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ਜਬ ਉਸ ਕਉ ਕੋਈ ਦੇਵੈ ਮਾਨੁ ॥
जब कोई मनुष्य माया को आदर देता है तो
ਤਬ ਆਪਸ ਊਪਰਿ ਰਖੈ ਗੁਮਾਨੁ ॥
वह अपने ऊपर बड़ा घमण्ड करती है।
ਜਬ ਉਸ ਕਉ ਕੋਈ ਮਨਿ ਪਰਹਰੈ ॥
जब कोई उसे अपने मन में से निकाल देता है,
ਤਬ ਓਹ ਸੇਵਕਿ ਸੇਵਾ ਕਰੈ ॥੨॥
तब वह दासी बनकर उसकी सेवा करती है ॥२॥
ਮੁਖਿ ਬੇਰਾਵੈ ਅੰਤਿ ਠਗਾਵੈ ॥
वह मीठे वचन बोलकर मनुष्य को मोहित करती हैं, लेकिन अन्त में धोखा ही देती है।
ਇਕਤੁ ਠਉਰ ਓਹ ਕਹੀ ਨ ਸਮਾਵੈ ॥
वह एक स्थान पर कहीं भी नहीं टिकती,
ਉਨਿ ਮੋਹੇ ਬਹੁਤੇ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ॥
उसने ब्रह्माण्ड के अनेक जीवों को मोहित किया हुआ है।
ਰਾਮ ਜਨੀ ਕੀਨੀ ਖੰਡ ਖੰਡ ॥੩॥
लेकिन राम के भक्तों ने उसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया है॥ ३॥
ਜੋ ਮਾਗੈ ਸੋ ਭੂਖਾ ਰਹੈ ॥
जो माया माँगता है, वह भूखा ही रहता है।
ਇਸੁ ਸੰਗਿ ਰਾਚੈ ਸੁ ਕਛੂ ਨ ਲਹੈ ॥
जो इसके साथ लीन रहता है, उसे कुछ भी हासिल नहीं होता।
ਇਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਕਰੈ ॥
हे नानक ! जो इसे त्याग कर सत्संगति करता है,
ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਓਹੁ ਤਰੈ ॥੪॥੧੮॥੨੯॥
वह खुशनसीब मुक्त हो जाता है।॥ ४॥ १८॥ २९ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਸਰਬ ਮਹਿ ਪੇਖੁ ॥
सब जीवों में राम का रूप देखो;
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭ ਏਕੁ ॥
एक प्रभु ही सबमें व्याप्त है।
ਰਤਨੁ ਅਮੋਲੁ ਰਿਦੇ ਮਹਿ ਜਾਨੁ ॥
उस अमूल्य-रत्न को अपने हृदय में ही समझो और
ਅਪਨੀ ਵਸਤੁ ਤੂ ਆਪਿ ਪਛਾਨੁ ॥੧॥
अपनी वस्तु को अपने हृदय में ही पहचानो ॥ १॥
ਪੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸੰਤਨ ਪਰਸਾਦਿ ॥
संतों की कृपा से नामामृत का पान करो।
ਵਡੇ ਭਾਗ ਹੋਵਹਿ ਤਉ ਪਾਈਐ ਬਿਨੁ ਜਿਹਵਾ ਕਿਆ ਜਾਣੈ ਸੁਆਦੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उत्तम भाग्य हो तो ही इसे पाया जा सकता है और जीभ से चखे बिना इसके स्वाद को कैसे जाना जा सकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਠ ਦਸ ਬੇਦ ਸੁਨੇ ਕਹ ਡੋਰਾ ॥
अठारह पुराणों एवं चार वेदों को सुनकर भी मनुष्य बहरा ही बना हुआ है।
ਕੋਟਿ ਪ੍ਰਗਾਸ ਨ ਦਿਸੈ ਅੰਧੇਰਾ ॥
करोड़ों सूर्यो का प्रकाश हो तो भी अंधे को अंधेरा ही नजर आता है।
ਪਸੂ ਪਰੀਤਿ ਘਾਸ ਸੰਗਿ ਰਚੈ ॥
पशु का प्रेम घास से होता है और वह उसी में लीन रहता है।
ਜਿਸੁ ਨਹੀ ਬੁਝਾਵੈ ਸੋ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਬੁਝੈ ॥੨॥
जिस व्यक्ति को ज्ञान नहीं होता, वह किस विधि द्वारा समझ सकता है॥ २॥
ਜਾਨਣਹਾਰੁ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਨਿ ॥
जानने वाला प्रभु सब कुछ जानता है तथा
ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਭਗਤਨ ਸੰਗਾਨਿ ॥
ताने-बाने की तरह पूणर्तया भक्तों के संग रहता है।
ਬਿਗਸਿ ਬਿਗਸਿ ਅਪੁਨਾ ਪ੍ਰਭੁ ਗਾਵਹਿ ॥
हे नानक ! जो खुशी-खुशी अपने प्रभु का स्तुतिगान करता है,
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਜਮ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਹਿ ॥੩॥੧੯॥੩੦॥
यमदूत भी उसके निकट नहीं आता ॥ ३॥ १९ ॥ ३० ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਦੀਨੋ ਨਾਮੁ ਕੀਓ ਪਵਿਤੁ ॥
सतगुरु ने मुझे नाम देकर पवित्र कर दिया है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ਨਿਰਾਸ ਇਹ ਬਿਤੁ ॥
हरि-नाम रूपी धन ही मेरी राशि है और माया की ओर से निराश रहता हूँ।
ਕਾਟੀ ਬੰਧਿ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥
उसने मेरे बंधन काटकर हरि की सेवा में लगा दिया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਰਾਮ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥
अब मैं हरि की भक्ति एवं उसके ही गुण गाता रहता हूँ॥ १॥
ਬਾਜੇ ਅਨਹਦ ਬਾਜਾ ॥
मन में अनहद ध्वनि का वाद्य बज रहा है।
ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਹਰਿ ਜਨ ਅਪਨੈ ਗੁਰਦੇਵਿ ਨਿਵਾਜਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि के भक्त बड़े आनंद से उसका स्तुतिगान कर रहे हैं और गुरुदेव ने इन्हें बड़ाई प्रदान की है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਇ ਬਨਿਓ ਪੂਰਬਲਾ ਭਾਗੁ ॥
पूर्व भाग्य उदय हो गया है और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਸੋਇਆ ਜਾਗੁ ॥
जन्म-जन्मांतर का सोया हुआ मन जाग गया है।
ਗਈ ਗਿਲਾਨਿ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
साधुओं की संगति में दूसरों के प्रति घृणा दूर हो गई है।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਾਤੋ ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੨॥
अब मन-तन हरि के रंग में ही लीन रहता है।॥२॥
ਰਾਖੇ ਰਾਖਨਹਾਰ ਦਇਆਲ ॥
रखवाले परमेश्वर ने दया करके रक्षा की है,
ਨਾ ਕਿਛੁ ਸੇਵਾ ਨਾ ਕਿਛੁ ਘਾਲ ॥
न कोई सेवा की और न ही कोई साधना की है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨੀ ਦਇਆ ॥
अपनी कृपा करके प्रभु ने मुझ पर दया की है और
ਬੂਡਤ ਦੁਖ ਮਹਿ ਕਾਢਿ ਲਇਆ ॥੩॥
दुखों के सागर में मुझ डूब रहे को निकाल लिया है॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਉਪਜਿਓ ਮਨ ਮਹਿ ਚਾਉ ॥
परमात्मा की महिमा सुन-सुनकर मेरे मन में चाव पैदा हो गया है,
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
इसलिए आठ प्रहर हरि के गुण गाता रहता हूँ।
ਗਾਵਤ ਗਾਵਤ ਪਰਮ ਗਤਿ ਪਾਈ ॥
उसकी स्तुति गाते-गाते हमने परमगति पा ली है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਨਾਨਕ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੪॥੨੦॥੩੧॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से भगवान में ही लगन लगाई है॥ ४॥ २०॥ ३१॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕਉਡੀ ਬਦਲੈ ਤਿਆਗੈ ਰਤਨੁ ॥
नासमझ जीव कौड़ियों के बदले अमूल्य नाम-रत्न को त्याग देता है।
ਛੋਡਿ ਜਾਇ ਤਾਹੂ ਕਾ ਜਤਨੁ ॥
जो माया उसका साथ छोड़ जाती है, वह उसे ही हासिल करने का यत्न करता है।
ਸੋ ਸੰਚੈ ਜੋ ਹੋਛੀ ਬਾਤ ॥
वह उसे संचित करता है जो एक तुच्छ वस्तु है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿਆ ਟੇਢਉ ਜਾਤ ॥੧॥
माया के मोह में जीव टेढ़े राह ही चलता है॥ १॥
ਅਭਾਗੇ ਤੈ ਲਾਜ ਨਾਹੀ ॥
हे बदनसीब ! क्या तुझे शर्म नहीं आती कि
ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸਰੁ ਹਰਿ ਨ ਚੇਤਿਓ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो पूर्ण परमेश्वर सुखों का सागर है, तूने उसे मन में कभी याद ही नहीं किया ॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਕਉਰਾ ਬਿਖਿਆ ਮੀਠੀ ॥
उसे नामामृत कड़वा लगता है और माया रूपी विष मीठा लगता है।
ਸਾਕਤ ਕੀ ਬਿਧਿ ਨੈਨਹੁ ਡੀਠੀ ॥
शाक्त की यही हालत मैंने अपने नयनों से देखी है।
ਕੂੜਿ ਕਪਟਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਰੀਝਾਨਾ ॥
वह झूठ, कपट एवं अहंकार में ही मस्त रहता है लेकिन