Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 890

Page 890

ਤ੍ਰਿਤੀਅ ਬਿਵਸਥਾ ਸਿੰਚੇ ਮਾਇ ॥ अपनी उम्र की तीसरी अवस्था में वह धन-दौलत संचित करता रहता है और
ਬਿਰਧਿ ਭਇਆ ਛੋਡਿ ਚਲਿਓ ਪਛੁਤਾਇ ॥੨॥ जब वह बूढ़ा हो जाता है तो धन इत्यादि सबकुछ छोड़कर पछताता हुआ यहाँ से चला जाता है।॥ २॥
ਚਿਰੰਕਾਲ ਪਾਈ ਦ੍ਰੁਲਭ ਦੇਹ ॥ चिरकाल से ही जीव ने दुर्लभ मानव-देह प्राप्त की है,
ਨਾਮ ਬਿਹੂਣੀ ਹੋਈ ਖੇਹ ॥ लेकिन नामविहीन देह मिट्टी हो जाती है।
ਪਸੂ ਪਰੇਤ ਮੁਗਧ ਤੇ ਬੁਰੀ ॥ यह मूर्ख पशुओं एवं प्रेत से भी बुरी है
ਤਿਸਹਿ ਨ ਬੂਝੈ ਜਿਨਿ ਏਹ ਸਿਰੀ ॥੩॥ जिसने रचना की है, अगर उसे ही नहीं बूझती है।॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਕਰਤਾਰ ਗੋਵਿੰਦ ਗੋਪਾਲ ॥ हे स्रष्टा, हे गोविंद गोपाल ! हमारी विनती सुनो,
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲ ॥ तू दीनदयाल एवं सदा कृपा का घर है,
ਤੁਮਹਿ ਛਡਾਵਹੁ ਛੁਟਕਹਿ ਬੰਧ ॥ जब तू छुड़ाता है तो ही हमारे बंधन छूटते हैं।
ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਵਹੁ ਨਾਨਕ ਜਗ ਅੰਧ ॥੪॥੧੨॥੨੩॥ नानक कहते हैं कि हे परमेश्वर ! यह जगत् अन्धा है, क्षमा करके अपने साथ मिला लो॥४॥१२॥२३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਕਰਿ ਸੰਜੋਗੁ ਬਨਾਈ ਕਾਛਿ ॥ ईश्वर ने पंच तत्वों के संयोग से यह शरीर बनाया है,
ਤਿਸੁ ਸੰਗਿ ਰਹਿਓ ਇਆਨਾ ਰਾਚਿ ॥ लेकिन नादान जीव इसके साथ ही लीन रहता है।
ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੈ ਨਿਤ ਸਾਰਿ ਸਮਾਰੈ ॥ वह नित्य इसका पोषण एवं देखभाल करता है,
ਅੰਤ ਕੀ ਬਾਰ ਊਠਿ ਸਿਧਾਰੈ ॥੧॥ लेकिन अन्तिम समय यह शरीर छोड़कर चला जाता है॥ १॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਸਭੁ ਝੂਠੁ ਪਰਾਨੀ ॥ हे प्राणी, नाम के बिना सब झूठ ही है।
ਗੋਵਿਦ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਅਵਰ ਸੰਗਿ ਰਾਤੇ ਤੇ ਸਭਿ ਮਾਇਆ ਮੂਠੁ ਪਰਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गोविन्द के भजन के बिना जो प्राणी सांसारिक पदार्थों में ही लीन हैं, उन सब को माया ने ठग लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤੀਰਥ ਨਾਇ ਨ ਉਤਰਸਿ ਮੈਲੁ ॥ तीर्थों पर स्नान करने से भी मन की मैल नहीं उतरती और
ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਭਿ ਹਉਮੈ ਫੈਲੁ ॥ सभी धर्म-कर्म अहंत्व का प्रसार है।
ਲੋਕ ਪਚਾਰੈ ਗਤਿ ਨਹੀ ਹੋਇ ॥ लोक-दिखावा करने से गति नहीं होती और
ਨਾਮ ਬਿਹੂਣੇ ਚਲਸਹਿ ਰੋਇ ॥੨॥ नामविहीन जीव रोता हुआ यहाँ से चल देता है॥ २॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਟੂਟਸਿ ਪਟਲ ॥ हरि-नाम के बिना अहं के कपाट नहीं टूटते,"
ਸੋਧੇ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਸਗਲ ॥ सभी शास्त्रों एवं स्मृतियों का भलीभांति विश्लेषण करके देख लिया है
ਸੋ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਜਪਾਏ ॥ वही मनुष्य नाम जपता है, जिससे ईश्वर स्वयं जाप करवाता है।
ਸਗਲ ਫਲਾ ਸੇ ਸੂਖਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥ इस प्रकार जीव सभी फल पाकर सुखी रहता है॥ ३॥
ਰਾਖਨਹਾਰੇ ਰਾਖਹੁ ਆਪਿ ॥ हे दुनिया के रखवाले, हमारी रक्षा करो;
ਸਗਲ ਸੁਖਾ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੈ ਹਾਥਿ ॥ हे प्रभु! जीवन के तमाम सुख तेरे ही हाथ में हैं।
ਜਿਤੁ ਲਾਵਹਿ ਤਿਤੁ ਲਾਗਹ ਸੁਆਮੀ ॥ हे स्वामी ! तू जिधर लगाता है, हम उधर ही लग जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬੁ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੧੩॥੨੪॥ हे नानक ! मेरा मालिक अन्तर्यामी है॥ ४॥ १३॥ २४॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਜਾਨਾ ॥ परमेश्वर जो कुछ भी करता है, उसे ही सुख मान लिया है।
ਮਨੁ ਅਸਮਝੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਪਤੀਆਨਾ ॥ नासमझ मन सत्संगति में प्रसन्न हो गया है।
ਡੋਲਨ ਤੇ ਚੂਕਾ ਠਹਰਾਇਆ ॥ अब यह डोलता नहीं, अपितु स्थिर हो गया है।
ਸਤਿ ਮਾਹਿ ਲੇ ਸਤਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥ यह मन सत्य का चिंतन करके सत्य में ही विलीन हो गया है॥ १॥
ਦੂਖੁ ਗਇਆ ਸਭੁ ਰੋਗੁ ਗਇਆ ॥ मेरा दुख एवं सारा रोग दूर हो गया है,
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਆਗਿਆ ਮਨ ਮਹਿ ਮਾਨੀ ਮਹਾ ਪੁਰਖ ਕਾ ਸੰਗੁ ਭਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जब से प्रभु की आज्ञा मन में मानी है, महापुरुषों का साथ भी मिल गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਗਲ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸਰਬ ਨਿਰਮਲਾ ॥ सब कार्य पवित्र हो गए हैं और सबकुछ निर्मल हो गया है।
ਜੋ ਵਰਤਾਏ ਸੋਈ ਭਲਾ ॥ जो कुछ प्रभु करता है, वही मेरे लिए भला है।
ਜਹ ਰਾਖੈ ਸੋਈ ਮੁਕਤਿ ਥਾਨੁ ॥ वह जहाँ भी मुझे रखता है, वही मुक्ति का स्थान है।
ਜੋ ਜਪਾਏ ਸੋਈ ਨਾਮੁ ॥੨॥ जो वह जपाता है, वही उसका नाम है॥ २॥
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਜਹ ਸਾਧ ਪਗ ਧਰਹਿ ॥ जिस स्थान पर साधु अपने चरण रखते हैं, वह अड़सठ तीर्थ बन जाता है।
ਤਹ ਬੈਕੁੰਠੁ ਜਹ ਨਾਮੁ ਉਚਰਹਿ ॥ जहाँ भी वे प्रभु-नाम का उच्चारण करते हैं, वही वैकुण्ठ बन जाता है।
ਸਰਬ ਅਨੰਦ ਜਬ ਦਰਸਨੁ ਪਾਈਐ ॥ जब उनके दर्शन प्राप्त होते हैं तो बड़ा आनंद मिलता है।
ਰਾਮ ਗੁਣਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਹਰਿ ਗਾਈਐ ॥੩॥ वे तो नित्य ही प्रभु का गुणगान करते रहते हैं।॥ ३॥
ਆਪੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਬਿਆਪਿ ॥ उस दयालु सत्यपुरुष का प्रताप सारे विश्व में फैला हुआ है,"
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਪਰਗਟ ਪਰਤਾਪ ॥ जो परमात्मा सर्वव्यापक है।
ਕਪਟ ਖੁਲਾਨੇ ਭ੍ਰਮ ਨਾਠੇ ਦੂਰੇ ॥ मन के सारे कपाट खुल गए और सारे भ्रम दूर हो गए हैं
ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਪੂਰੇ ॥੪॥੧੪॥੨੫॥ जब नानक की पूर्ण गुरु से भेंट हुई है ४॥ १४॥ २५॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਜਾਪ ਤਾਪ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥ उसे करोड़ों ही जप-तप का फल मिल जाता है,
ਰਿਧਿ ਬੁਧਿ ਸਿਧਿ ਸੁਰ ਗਿਆਨ ॥ ऋद्धियाँ-सिद्धियों, बुद्धि एवं दैवीय ज्ञान की उसे प्राप्ति हो जाती है और
ਅਨਿਕ ਰੂਪ ਰੰਗ ਭੋਗ ਰਸੈ ॥ वह अनेक प्रकार के रूप-रंग एवं रसों को भोगता रहता है,
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਨਿਮਖ ਰਿਦੈ ਵਸੈ ॥੧॥ जिस गुरुमुख के हृदय में पल भर के लिए नाम स्थित हो जाता है ॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥ हरि के नाम की ऐसी कीर्ति है,
ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिसकी कीमत को आंका नहीं जा सकता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੂਰਬੀਰ ਧੀਰਜ ਮਤਿ ਪੂਰਾ ॥ वही व्यक्ति शूरवीर, धैर्यवान एवं बुद्धिमान है,


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top