Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 888

Page 888

ਮਨੁ ਕੀਨੋ ਦਹ ਦਿਸ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥ किन्तु तेरा मन दसों दिशाओं में भटकता रहता है।
ਤਿਲਕੁ ਚਰਾਵੈ ਪਾਈ ਪਾਇ ॥ तू शालिग्राम को तिलक लगाता है और उसके चरण छूता है।
ਲੋਕ ਪਚਾਰਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਇ ॥੨॥ यह तू लोगों को प्रसन्न करने का अन्धा कार्य करता है॥ २॥
ਖਟੁ ਕਰਮਾ ਅਰੁ ਆਸਣੁ ਧੋਤੀ ॥ तू षट्-कर्म भी करता रहता है, आसन लगाता है और निउली-धोती क्रिया भी करता है।
ਭਾਗਠਿ ਗ੍ਰਿਹਿ ਪੜੈ ਨਿਤ ਪੋਥੀ ॥ तू धनवानों के घरों में जाकर नित्य पोथी पढ़ता रहता है,
ਮਾਲਾ ਫੇਰੈ ਮੰਗੈ ਬਿਭੂਤ ॥ माला फेरता है और उनसे धन मांगता है।
ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋਇ ਨ ਤਰਿਓ ਮੀਤ ॥੩॥ हे मित्र ! इस विधि द्वारा कोई भी संसार-सागर में से पार नहीं हुआ॥ ३॥
ਸੋ ਪੰਡਿਤੁ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇ ॥ पण्डित वही है, जो गुरु-शब्द की कमाई करता है,
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਕੀ ਓਸੁ ਉਤਰੀ ਮਾਇ ॥ त्रिगुणात्मक माया उसके मन से दूर हो गई है।
ਚਤੁਰ ਬੇਦ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਨਾਇ ॥ हे नानक ! हरि नाम का जाप करने से ही चारों वेदों के पाठ का फल मिल जाता है और
ਨਾਨਕ ਤਿਸ ਕੀ ਸਰਣੀ ਪਾਇ ॥੪॥੬॥੧੭॥ हम तो नाम की शरण में ही पड़े हैं ॥४॥६॥१७॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਕੋਟਿ ਬਿਘਨ ਨਹੀ ਆਵਹਿ ਨੇਰਿ ॥ करोड़ों विघ्न भी उसके निकट नहीं आते,"
ਅਨਿਕ ਮਾਇਆ ਹੈ ਤਾ ਕੀ ਚੇਰਿ ॥ अनेक प्रकार की माया उसकी दासी बन जाती है तथा
ਅਨਿਕ ਪਾਪ ਤਾ ਕੇ ਪਾਨੀਹਾਰ ॥ अनेक पाप भी उसके पानी भरने वाले बन जाते हैं
ਜਾ ਕਉ ਮਇਆ ਭਈ ਕਰਤਾਰ ॥੧॥ जिस पर ईश्वर की कृपा हो गई है।॥ १॥
ਜਿਸਹਿ ਸਹਾਈ ਹੋਇ ਭਗਵਾਨ ॥ भगवान जिसका सहायक बन जाता है,
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਉਆ ਕੈ ਸਰੰਜਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ उसके अनेक यत्न कामयाब हो जाते हैं॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਤਾ ਰਾਖੈ ਕੀਤਾ ਕਉਨੁ ॥ जिसकी रक्षा परमेश्वर करता है तो कोई अन्य जीव उसका क्या बिगाड सकता है?
ਕੀਰੀ ਜੀਤੋ ਸਗਲਾ ਭਵਨੁ ॥ उसकी कृपा से तो चींटी ने भी समूचा जगत् जीत लिया है।
ਬੇਅੰਤ ਮਹਿਮਾ ਤਾ ਕੀ ਕੇਤਕ ਬਰਨ ॥ उसकी महिमा बेअंत है, उसे कितना बयान किया जाए ?
ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈਐ ਤਾ ਕੇ ਚਰਨ ॥੨॥ मैं तो उसके सुन्दर चरणों पर बलिहारी जाता हूँ॥ २॥
ਤਿਨ ਹੀ ਕੀਆ ਜਪੁ ਤਪੁ ਧਿਆਨੁ ॥ उसने ही जप, तप एवं ध्यान किया है,
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਦਾਨੁ ॥ उसने ही अनेक प्रकार का दान किया है,
ਭਗਤੁ ਸੋਈ ਕਲਿ ਮਹਿ ਪਰਵਾਨੁ ॥ वही भक्त कलियुग में स्वीकार हुआ है,
ਜਾ ਕਉ ਠਾਕੁਰਿ ਦੀਆ ਮਾਨੁ ॥੩॥ जिसे ठाकुर जी ने सम्मान दिया है॥ ३॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਭਏ ਪ੍ਰਗਾਸ ॥ संतों की संगति में मिलकर मन में ज्ञान का प्रकाश हो गया है,
ਸਹਜ ਸੂਖ ਆਸ ਨਿਵਾਸ ॥ सहज सुख प्राप्त हो गया है, सब कामनाएँ पूरी हो गई हैं।
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬਿਸਾਸ ॥ हे नानक ! जिसे पूर्ण सतगुरु ने विश्वास दिलवाया है,
ਨਾਨਕ ਹੋਏ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ॥੪॥੭॥੧੮॥ वह दासों का दास बन गया है॥ ४॥ ७ ॥ १८ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਦੋਸੁ ਨ ਦੀਜੈ ਕਾਹੂ ਲੋਗ ॥ हे जीव ! किसी को दोष नहीं देना चाहिए,
ਜੋ ਕਮਾਵਨੁ ਸੋਈ ਭੋਗ ॥ वास्तव में जो शुभाशुभ कमाना है, यही तुमने भोगना है।
ਆਪਨ ਕਰਮ ਆਪੇ ਹੀ ਬੰਧ ॥ अपने कर्म स्वयं ही तुम्हारे बंधन हैं और
ਆਵਨੁ ਜਾਵਨੁ ਮਾਇਆ ਧੰਧ ॥੧॥ जन्म-मरण केवल माया का ही खेल है॥ १॥
ਐਸੀ ਜਾਨੀ ਸੰਤ ਜਨੀ ॥ संतजनों से यह सत्य जान लिया है,
ਪਰਗਾਸੁ ਭਇਆ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पूर्ण गुरु के वचन से मन में ज्ञान का प्रकाश हो गया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਕਲਤੁ ਮਿਥਿਆ ਬਿਸਥਾਰ ॥ तन, धन एवं नारी यह सभी मिथ्या प्रसार हैं।
ਹੈਵਰ ਗੈਵਰ ਚਾਲਨਹਾਰ ॥ कुशल घोड़े एवं हाथी नाशवान् हैं।
ਰਾਜ ਰੰਗ ਰੂਪ ਸਭਿ ਕੂਰ ॥ राज, रंग-तमाशे एवं सौन्दर्य सब झूठे हैं।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਹੋਇ ਜਾਸੀ ਧੂਰ ॥੨॥ नाम के बिना ये सभी मिट्टी हो जाएँगे॥ २॥
ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਬਾਦਿ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥ अहंकारी इन्सान व्यर्थ ही भ्रम में भूला हुआ है।
ਸੰਗਿ ਨਾਹੀ ਰੇ ਸਗਲ ਪਸਾਰੀ ॥ ये सभी प्रसार किसी के साथ नहीं जाते।
ਸੋਗ ਹਰਖ ਮਹਿ ਦੇਹ ਬਿਰਧਾਨੀ ॥ गम एवं खुशी में मानव शरीर बूढ़ा हो जाता है।
ਸਾਕਤ ਇਵ ਹੀ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀ ॥੩॥ ऐसा करते ही शाक्त ने अपनी आयु व्यतीत कर ली है॥ ३॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਕਲਿ ਮਾਹਿ ॥ कलियुग में हरि का नाम ही अमृत है और
ਏਹੁ ਨਿਧਾਨਾ ਸਾਧੂ ਪਾਹਿ ॥ यह सुख का कोष साधु-महात्मा के ही पास है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਗੋਵਿਦੁ ਜਿਸੁ ਤੂਠਾ ॥ हे नानक ! गोविन्द गुरु जिस पर प्रसन्न हुआ है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਤਿਨ ਹੀ ਡੀਠਾ ॥੪॥੮॥੧੯॥ उसने ही घट-घट में परमात्मा को देखा है॥ ४॥ ८॥१९॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रामकली महला ५ ॥
ਪੰਚ ਸਬਦ ਤਹ ਪੂਰਨ ਨਾਦ ॥ सत्संग में पंच प्रकार का शब्द गूंजता रहता है,
ਅਨਹਦ ਬਾਜੇ ਅਚਰਜ ਬਿਸਮਾਦ ॥ वहाँ बड़ी ही विचित्र एवं अद्भुत अनहद ध्वनि वाला वाद्य बजता रहता है।
ਕੇਲ ਕਰਹਿ ਸੰਤ ਹਰਿ ਲੋਗ ॥ हरि के संतजन क्रीड़ा करते हैं,
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਨਿਰਜੋਗ ॥੧॥ वहाँ पर पूर्ण निर्लिप्त परब्रह्म का निवास होता है॥ १॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਭਵਨ ॥ सत्संग सहज सुख एवं आनंद का घर है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਬੈਸਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਤਹ ਰੋਗ ਸੋਗ ਨਹੀ ਜਨਮ ਮਰਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वहाँ पर साधु-संत बैठकर भगवान का गुणगान करते हैं और वहाँ पर कोई रोग, शोक नहीं होता एवं जन्म-मरण से छुटकारा हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਊਹਾ ਸਿਮਰਹਿ ਕੇਵਲ ਨਾਮੁ ॥ वहाँ केवल नाम-स्मरण ही होता है और
ਬਿਰਲੇ ਪਾਵਹਿ ਓਹੁ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥ कोई विरला ही यह सुख-शान्ति का स्थान प्राप्त करता है।
ਭੋਜਨੁ ਭਾਉ ਕੀਰਤਨ ਆਧਾਰੁ ॥ वहाँ भक्तजनों का भक्तिभाव ही भोजन होता है और हरि-कीर्तन ही उनका आधार होता है।


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