Page 885
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਓਅੰਕਾਰਿ ਏਕ ਧੁਨਿ ਏਕੈ ਏਕੈ ਰਾਗੁ ਅਲਾਪੈ ॥
सच्चा कीर्तनियां वही है, जो ओंकार की ध्वनि में ध्यान लगाता हुआ उसी का राग गाता हो,
ਏਕਾ ਦੇਸੀ ਏਕੁ ਦਿਖਾਵੈ ਏਕੋ ਰਹਿਆ ਬਿਆਪੈ ॥
उस एक प्रभु के देश का निवासी हो, उस एक सर्वव्यापी के दर्शन करवाता हो,
ਏਕਾ ਸੁਰਤਿ ਏਕਾ ਹੀ ਸੇਵਾ ਏਕੋ ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਪੈ ॥੧॥
उस एक में ध्यान लगाता हो, एक की ही सेवा करता हो, जिसे गुरु द्वारा जाना जाता है॥ १ ॥
ਭਲੋ ਭਲੋ ਰੇ ਕੀਰਤਨੀਆ ॥
ऐसा कीर्तनियां उत्तम है,
ਰਾਮ ਰਮਾ ਰਾਮਾ ਗੁਨ ਗਾਉ ॥
जो राम का गुणगान करता रहता है
ਛੋਡਿ ਮਾਇਆ ਕੇ ਧੰਧ ਸੁਆਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
और जो माया के धंधों एवं स्वार्थ को छोड़ देता है ॥ १॥ रहाउ ॥
ਪੰਚ ਬਜਿਤ੍ਰ ਕਰੇ ਸੰਤੋਖਾ ਸਾਤ ਸੁਰਾ ਲੈ ਚਾਲੈ ॥
सत्य, संतोष, दया,धर्म एवं पुण्य-इन पाँच शुभ गुणों को अपना साज बनाता हो और सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी-इन सात स्वरों को प्रभु-प्रेम में चलने की चाल बनाता हो।
ਬਾਜਾ ਮਾਣੁ ਤਾਣੁ ਤਜਿ ਤਾਨਾ ਪਾਉ ਨ ਬੀਗਾ ਘਾਲੈ ॥
मान-अभिमान के त्याग को अपना बाजा बनाता हो और कुमार्ग की तरफ पैर न रखने को बाजे का स्वर बनाता हो।
ਫੇਰੀ ਫੇਰੁ ਨ ਹੋਵੈ ਕਬ ਹੀ ਏਕੁ ਸਬਦੁ ਬੰਧਿ ਪਾਲੈ ॥੨॥
यदि वह शब्द को अपने आँचल में बांध लेता हो तो जन्म-मरण के चक्र से छूट जाए॥ २॥
ਨਾਰਦੀ ਨਰਹਰ ਜਾਣਿ ਹਦੂਰੇ ॥
वह नारद जैसी भक्ति करता हुआ भगवान् को अपने समीप समझता हो तथा
ਘੂੰਘਰ ਖੜਕੁ ਤਿਆਗਿ ਵਿਸੂਰੇ ॥
अपनी परेशानियों को त्याग कर नाच-नाचकर धुंघरुओं की छन-छन करता हो।
ਸਹਜ ਅਨੰਦ ਦਿਖਾਵੈ ਭਾਵੈ ॥
वह अपने नखरे दिखाने की बजाय सहज आनंद प्राप्त करता हो।
ਏਹੁ ਨਿਰਤਿਕਾਰੀ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵੈ ॥੩॥
ऐसा नर्तक जन्म-मरण के चक्र में नहीं आता ॥ ३॥
ਜੇ ਕੋ ਅਪਨੇ ਠਾਕੁਰ ਭਾਵੈ ॥
यदि कोई अपने ठाकुर जी को भाता है तो
ਕੋਟਿ ਮਧਿ ਏਹੁ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵੈ ॥
करोड़ों में से कोई विरला ही यह कीर्तन गाता है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੀ ਜਾਵਉ ਟੇਕ ॥
हे नानक ! संतों की शरण में जाओ,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਕੀਰਤਨੁ ਏਕ ॥੪॥੮॥
जहाँ एक परमेश्वर का ही कीर्तन होता रहता है॥ ४॥ ८ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕੋਈ ਬੋਲੈ ਰਾਮ ਰਾਮ ਕੋਈ ਖੁਦਾਇ ॥
ईश्वर तो एक ही है, पर कोई उसे राम-राम बोल रहा है और कोई खुदा कह रहा है।
ਕੋਈ ਸੇਵੈ ਗੁਸਈਆ ਕੋਈ ਅਲਾਹਿ ॥੧॥
कोई गुसाँई की उपासना करता है और कोई अल्लाह की बंदगी कर रहा है॥ १॥
ਕਾਰਣ ਕਰਣ ਕਰੀਮ ॥
सबकी रचना करने वाला वह परमपिता बड़ा दयालु,
ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਰਹੀਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
कृपा का घर एवं रहमदिल है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕੋਈ ਨਾਵੈ ਤੀਰਥਿ ਕੋਈ ਹਜ ਜਾਇ ॥
कोई तीर्थों पर स्नान करता है तो कोई हज करने के लिए मक्का जाता है।
ਕੋਈ ਕਰੈ ਪੂਜਾ ਕੋਈ ਸਿਰੁ ਨਿਵਾਇ ॥੨॥
कोई पूजा-अर्चना करता है तो कोई सिर झुका कर सिजदा करता है॥ २॥
ਕੋਈ ਪੜੈ ਬੇਦ ਕੋਈ ਕਤੇਬ ॥
कोई वेद पढ़ता है तो कोई कुरान पढ़ता है।
ਕੋਈ ਓਢੈ ਨੀਲ ਕੋਈ ਸੁਪੇਦ ॥੩॥
कोई नीले वस्त्र पहनता है, कोई सफेद वस्त्र धारण करता है॥ ३॥
ਕੋਈ ਕਹੈ ਤੁਰਕੁ ਕੋਈ ਕਹੈ ਹਿੰਦੂ ॥
कोई स्वयं को मुसलमान कहता है और कोई हिन्दू कहता है।
ਕੋਈ ਬਾਛੈ ਭਿਸਤੁ ਕੋਈ ਸੁਰਗਿੰਦੂ ॥੪॥
कोई बिहिश्त की तमन्ना करता है, तो कोई स्वर्ग की कामना करता है॥ ४॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਨਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥
हे नानक ! जिसने ईश्वर के हुक्म को पहचान लिया है,
ਪ੍ਰਭ ਸਾਹਿਬ ਕਾ ਤਿਨਿ ਭੇਦੁ ਜਾਤਾ ॥੫॥੯॥
उसने मालिक-प्रभु का भेद जान लिया है॥ ५ ॥ ९ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਪਵਨੈ ਮਹਿ ਪਵਨੁ ਸਮਾਇਆ ॥
मनुष्य की मृत्यु हो जाने पर उसकी प्राण रूपी वायु मूल वायु में ही विलीन हो गई है।
ਜੋਤੀ ਮਹਿ ਜੋਤਿ ਰਲਿ ਜਾਇਆ ॥
आत्म ज्योति परमज्योति में ही मिल गई है।
ਮਾਟੀ ਮਾਟੀ ਹੋਈ ਏਕ ॥
उसकी शरीर रूपी मिट्टी धरती की मिट्टी में मिल कर एक हो गई है।
ਰੋਵਨਹਾਰੇ ਕੀ ਕਵਨ ਟੇਕ ॥੧॥
फिर रोने वाले संबंधियों का रोने-चिल्लाने का क्या आधार रह गया है॥ १॥
ਕਉਨੁ ਮੂਆ ਰੇ ਕਉਨੁ ਮੂਆ ॥
हे भाई ! कौन मरा है ? कौन मृत्यु को प्राप्त हुआ है।
ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਮਿਲਿ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰਾ ਇਹੁ ਤਉ ਚਲਤੁ ਭਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ब्रह्मज्ञानियों के साथ मिल कर विचार करो, यह तो ईश्वर की लीला है॥ १॥ रहाउ॥
ਅਗਲੀ ਕਿਛੁ ਖਬਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥
जहाँ जीवन छोड़कर जाना है, आगे की तो किसी को कोई खबर नहीं होती
ਰੋਵਨਹਾਰੁ ਭਿ ਊਠਿ ਸਿਧਾਈ ॥
आखिरकार रोने वाला भी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
ਭਰਮ ਮੋਹ ਕੇ ਬਾਂਧੇ ਬੰਧ ॥
जीव तो भ्रम एवं मोह के बन्धनों में बंधे हुए हैं।
ਸੁਪਨੁ ਭਇਆ ਭਖਲਾਏ ਅੰਧ ॥੨॥
मरने वाले का यह जीवन एक सपना होकर बीत गया है, लेकिन रोने वाले ज्ञानहीन व्यर्थ विलाप करते हैं।॥ २॥
ਇਹੁ ਤਉ ਰਚਨੁ ਰਚਿਆ ਕਰਤਾਰਿ ॥
ईश्वर ने यह रचना तो अपनी एक लीला रची है।
ਆਵਤ ਜਾਵਤ ਹੁਕਮਿ ਅਪਾਰਿ ॥
उसके अपार हुक्म से जीव का जन्म-मरण होता है।
ਨਹ ਕੋ ਮੂਆ ਨ ਮਰਣੈ ਜੋਗੁ ॥
न कोई मरा है और न ही मरणशील है।
ਨਹ ਬਿਨਸੈ ਅਬਿਨਾਸੀ ਹੋਗੁ ॥੩॥
आत्मा का कभी बिनाश नहीं होता, अपितु यह तो अमर है॥ ३॥
ਜੋ ਇਹੁ ਜਾਣਹੁ ਸੋ ਇਹੁ ਨਾਹਿ ॥
जो इसे समझते हो, यह वैसा नहीं है।
ਜਾਨਣਹਾਰੇ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
जो इस भेद को जानता है, मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
हे नानक ! गुरु ने भ्रम दूर कर दिया है कि
ਨਾ ਕੋਈ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਇਆ ॥੪॥੧੦॥
आत्मा न मरता है और न ही आता-जाता है॥ ४॥ १० ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਜਪਿ ਗੋਬਿੰਦੁ ਗੋਪਾਲ ਲਾਲੁ ॥
हे भाई ! प्यारे गोविन्द गोपाल का जाप करो।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਸਿਮਰਿ ਤੂ ਜੀਵਹਿ ਫਿਰਿ ਨ ਖਾਈ ਮਹਾ ਕਾਲੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम का भजन करने से तू जीवन पाता रहेगा और फिर महाकाल भी तुझे ग्रास नहीं बनाएगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਓ ॥
करोड़ों जन्म भटक-भटक तू मानव-योनि में आया है तथा