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ਜੋ ਦੇਖਿ ਦਿਖਾਵੈ ਤਿਸ ਕਉ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥
जो उसे देखता एवं दिखाता है, में उस पर कुर्बान जाता हूँ।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈ ॥੧॥
गुरु की कृपा से ही मोक्ष मिलता है॥ १॥
ਕਿਆ ਜਪੁ ਜਾਪਉ ਬਿਨੁ ਜਗਦੀਸੈ ॥
जगदीश के बिना अन्य क्या जप जपूँ?
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਦੀਸੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरु के शब्द द्वारा ही सच्चा घर दिखाई देता है॥ १॥ रहाउ॥
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਲਗੇ ਪਛੁਤਾਣੇ ॥
जो व्यक्ति द्वैतभाव में लगे रहते हैं, अंत में पछताते हैं।
ਜਮ ਦਰਿ ਬਾਧੇ ਆਵਣ ਜਾਣੇ ॥
वे यम के बन्धनों में बंधे रहते हैं और उनका आवागमन बना रहता है।
ਕਿਆ ਲੈ ਆਵਹਿ ਕਿਆ ਲੇ ਜਾਹਿ ॥
वे क्या लेकर जगत् में आते हैं और क्या लेकर जाते हैं ?
ਸਿਰਿ ਜਮਕਾਲੁ ਸਿ ਚੋਟਾ ਖਾਹਿ ॥
उनके सिर पर यम हर वक्त खड़ा रहता है और यम से चोट खाते रहते हैं।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਨ ਛੂਟਸਿ ਕੋਇ ॥
शब्द-गुरु के बिना कोई भी छूट नहीं सकता तथा
ਪਾਖੰਡਿ ਕੀਨ੍ਹ੍ਹੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥੨॥
पाखण्ड करने से भी मुक्ति नहीं होती।॥ २॥
ਆਪੇ ਸਚੁ ਕੀਆ ਕਰ ਜੋੜਿ ॥
ईश्वर ने स्वयं माया के तत्वों को जोड़कर यह जगत् पैदा किया है।
ਅੰਡਜ ਫੋੜਿ ਜੋੜਿ ਵਿਛੋੜਿ ॥
उसने अण्डाकार वाले गोलाकार को फोड़कर जोड़कर फिर बिछोड़ दिया।
ਧਰਤਿ ਅਕਾਸੁ ਕੀਏ ਬੈਸਣ ਕਉ ਥਾਉ ॥
उसने जीवों के रहने के लिए धरती और आकाश बनाए।
ਰਾਤਿ ਦਿਨੰਤੁ ਕੀਏ ਭਉ ਭਾਉ ॥
उसने रात-दिन, डर और प्रेम बनाए।
ਜਿਨਿ ਕੀਏ ਕਰਿ ਵੇਖਣਹਾਰਾ ॥
जिसने सारी जगत्-रचना की है, वही प्रतिपालक है
ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰਾ ॥੩॥
अन्य कोई सृजनहार नहीं ॥ ३ ॥
ਤ੍ਰਿਤੀਆ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸਾ ॥
तृतीया-ब्रह्मा, विष्णु एवं शिवशंकर सृष्टि में आए।
ਦੇਵੀ ਦੇਵ ਉਪਾਏ ਵੇਸਾ ॥
ईश्वर ने अनेक देवी-देवता एवं अनेक रूपों वाले जीवों को उत्पन्न किया।
ਜੋਤੀ ਜਾਤੀ ਗਣਤ ਨ ਆਵੈ ॥
सूर्य, चन्द्रमा तथा अनेक योनियों के जीव पैदा किए, जिनकी गिनती नहीं की जा सकती।
ਜਿਨਿ ਸਾਜੀ ਸੋ ਕੀਮਤਿ ਪਾਵੈ ॥
जिसने यह सृष्टि रचना की है, वही इसका मूल्य कर सकता है।
ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥
वह सबमें भरपूर है।
ਕਿਸੁ ਨੇੜੈ ਕਿਸੁ ਆਖਾ ਦੂਰਿ ॥੪॥
फिर मैं किसे परमात्मा के निकट एवं किसे उससे दूर कहूँ॥ ४ ॥
ਚਉਥਿ ਉਪਾਏ ਚਾਰੇ ਬੇਦਾ ॥
चतुर्थी-उसने चार वेद-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद पैदा किए,
ਖਾਣੀ ਚਾਰੇ ਬਾਣੀ ਭੇਦਾ ॥
चार स्रोत, भिन्न-भिन्न बोलियां पैदा कीं।
ਅਸਟ ਦਸਾ ਖਟੁ ਤੀਨਿ ਉਪਾਏ ॥
उसने अठारह पुराण, छः शास्त्र एवं तीन गुण उत्पन्न किए।
ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥
यह तथ्य वही समझता है, जिसे वह स्वयं ज्ञान देता है।
ਤੀਨਿ ਸਮਾਵੈ ਚਉਥੈ ਵਾਸਾ ॥
जिसका तीन गुणों का नाश कर तुरीयावस्था में वास हो गया है
ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕ ਹਮ ਤਾ ਕੇ ਦਾਸਾ ॥੫॥
नानक प्रार्थना करता है कि हम उसके दास हैं॥ ५ ॥
ਪੰਚਮੀ ਪੰਚ ਭੂਤ ਬੇਤਾਲਾ ॥
पंचमी-पंच भूतों से रचे हुए जीव बेताल हैं।
ਆਪਿ ਅਗੋਚਰੁ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਾਲਾ ॥
परमात्मा स्वयं अगोचर एवं निराला है।
ਇਕਿ ਭ੍ਰਮਿ ਭੂਖੇ ਮੋਹ ਪਿਆਸੇ ॥
कुछ जीव भ्रम में फंसे हुए हैं और माया के भूखे एवं प्यासे हैं।
ਇਕਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿ ਸਬਦਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ॥
कुछ जीव हरि रस चखकर तृप्त हो गए हैं।
ਇਕਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਇਕਿ ਮਰਿ ਧੂਰਿ ॥
कोई परमात्मा के रंग में लीन हैं और कोई मर कर मिट्टी हो गया है।
ਇਕਿ ਦਰਿ ਘਰਿ ਸਾਚੈ ਦੇਖਿ ਹਦੂਰਿ ॥੬॥
कोई सच्चे घर-द्वार तक पहुँचकर परमात्मा के दर्शन कर रहा है ॥६॥
ਝੂਠੇ ਕਉ ਨਾਹੀ ਪਤਿ ਨਾਉ ॥
झूठे आदमी का कोई मान-सम्मान नहीं होता।
ਕਬਹੁ ਨ ਸੂਚਾ ਕਾਲਾ ਕਾਉ ॥
विष्ठा खाने वाला काला कौआ कभी शुद्ध नहीं हो सकता।
ਪਿੰਜਰਿ ਪੰਖੀ ਬੰਧਿਆ ਕੋਇ ॥
यदि कोई पक्षी पिंजरे में बंद किया जाए तो वह
ਛੇਰੀਂ ਭਰਮੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥
पिंजरे की सलाखों में ही भटकता रहता है
ਤਉ ਛੂਟੈ ਜਾ ਖਸਮੁ ਛਡਾਏ ॥
परन्तु वह तभी मुक्त होता है, जब उसका मालिक उसे छोड़ता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਮੇਲੇ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ॥੭॥
गुरु का उपदेश मिलने पर जीव के हृदय में भक्ति दृढ़ हो जाती है॥ ७॥
ਖਸਟੀ ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਪ੍ਰਭ ਸਾਜੇ ॥
षष्ठी-परमात्मा ने छः दर्शन अर्थात् वेष-योगी, जंगम, सन्यासी, बौद्धी, जैन एवं वैरागी बनाए हैं।
ਅਨਹਦ ਸਬਦੁ ਨਿਰਾਲਾ ਵਾਜੇ ॥
जीव की अन्तरात्मा में अनहद शब्द बजता रहता है।
ਜੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਤਾ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਵੈ ॥
यदि कोई प्रभु को भा जाए तो वह उसे अपने साथ मिला लेता है।
ਸਬਦੇ ਭੇਦੇ ਤਉ ਪਤਿ ਪਾਵੈ ॥
यदि किसी को शब्द भेद ले तो वह सत्य के द्वार पर शोभा का पात्र बन जाता है।
ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਸ ਖਪਹਿ ਜਲਿ ਜਾਵਹਿ ॥
कुछ व्यक्ति वेष धारण कर करके जलते मर जाते हैं लेकिन
ਸਾਚੈ ਸਾਚੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵਹਿ ॥੮॥
सत्य में लीन रहने वाला परम-सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ ८ ॥
ਸਪਤਮੀ ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਸਰੀਰਿ ॥
सप्तमी-जो हृदय में सत्य का चिंतन करता रहता है
ਸਾਤ ਸਮੁੰਦ ਭਰੇ ਨਿਰਮਲ ਨੀਰਿ ॥
जिस के शरीर में समुद्र निर्मल नाम रूपी जल से भरे रहते हैं।
ਮਜਨੁ ਸੀਲੁ ਸਚੁ ਰਿਦੈ ਵੀਚਾਰਿ ॥
उसका अन्तर्मन में स्थित ज्ञान रूपी तीर्थ में स्नान हो जाता है और वह शांत-स्वभाव वाला बन जाता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਾਵੈ ਸਭਿ ਪਾਰਿ ॥
गुरु के शब्द द्वारा जीव भवसागर से पार हो जाता है।
ਮਨਿ ਸਾਚਾ ਮੁਖਿ ਸਾਚਉ ਭਾਇ ॥
जिसके मन में सत्य है और मुख पर भी सत्य-नाम बना रहता है।
ਸਚੁ ਨੀਸਾਣੈ ਠਾਕ ਨ ਪਾਇ ॥੯॥
वह सत्य का परवाना साथ लेकर जाता है और सत्य के दरबार में पहुँचने के लिए कोई विध्न नहीं आता ॥ ९ ॥
ਅਸਟਮੀ ਅਸਟ ਸਿਧਿ ਬੁਧਿ ਸਾਧੈ ॥
अष्टमी-जो व्यक्ति निष्काम भावना से सत्य की आराधना करता है,
ਸਚੁ ਨਿਹਕੇਵਲੁ ਕਰਮਿ ਅਰਾਧੈ ॥
अपनी बुद्धि को अपने वश में कर लेता है, उसे आठ सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਅਗਨੀ ਬਿਸਰਾਉ ॥
जो पवन, पानी एवं अग्नि अर्थात् रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण को भुला देता है,
ਤਹੀ ਨਿਰੰਜਨੁ ਸਾਚੋ ਨਾਉ ॥
उसके हृदय में पावन सत्य-नाम बस जाता है।
ਤਿਸੁ ਮਹਿ ਮਨੂਆ ਰਹਿਆ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਇ ॥੧੦॥
उसका मन सत्य में ही वृति लगाकर रखता है। नानक विनती करता है कि उस व्यक्ति को काल भी निगल नहीं सकता ॥ १० ॥
ਨਾਉ ਨਉਮੀ ਨਵੇ ਨਾਥ ਨਵ ਖੰਡਾ ॥
नवमी-परमेश्वर सर्वव्यापक है, महाबलवान है,
ਘਟਿ ਘਟਿ ਨਾਥੁ ਮਹਾ ਬਲਵੰਡਾ ॥
योगियों के नौ नाथ एवं नवखण्डों वाली पृथ्वी के जीव उसका ही नाम जपते हैं।