Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 838

Page 838

ਕਰਿ ਦਇਆ ਲੇਹੁ ਲੜਿ ਲਾਇ ॥ नानक विनती करता है कि हे प्रभु ! दया करके मुझे अपने साथ मिला लो,
ਨਾਨਕਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੧॥ मैं तो नाम का ही ध्यान करता रहता हूँ॥ १॥
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦਇਆਲ ॥ हे मेरे स्वामी ! तू दीनानाथ एवं बड़ा दयालु है और
ਜਾਚਉ ਸੰਤ ਰਵਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं संतों की चरण-धूलि की ही कामना करता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਸਾਰੁ ਬਿਖਿਆ ਕੂਪ ॥ यह संसार माया रूपी विष का कुआं है,
ਤਮ ਅਗਿਆਨ ਮੋਹਤ ਘੂਪ ॥ जिसमें अज्ञान एवं मोह का घोर अंधेरा है।
ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਲੇਹੁ ॥ हे प्रभु जी ! मेरी बाँह पकड़ कर मुझे बचा लो और
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਪੁਨਾ ਦੇਹੁ ॥ अपना नाम दे दीजिए।
ਪ੍ਰਭ ਤੁਝ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਠਾਉ ॥ तेरे अतिरिक्त मेरा कोई ठिकाना नहीं।
ਨਾਨਕਾ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥੨॥ नानक तुझ पर बारंबार कुर्बान जाता है॥ २॥
ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਬਾਧੀ ਦੇਹ ॥ लोभ मोह ने मेरे शरीर को बांध लिया है और
ਬਿਨੁ ਭਜਨ ਹੋਵਤ ਖੇਹ ॥ प्रभु-भजन बिना यह मिट्टी हो जाता है।
ਜਮਦੂਤ ਮਹਾ ਭਇਆਨ ॥ यमदूत बहुत भयानक हैं और
ਚਿਤ ਗੁਪਤ ਕਰਮਹਿ ਜਾਨ ॥ चित्रगुप्त मेरे किए कर्मों को जानता है और
ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਸਾਖਿ ਸੁਨਾਇ ॥ वह साक्षी बनकर दिन-रात मेरे किए कर्मों को यमराज की कचहरी में सुनाता है।
ਨਾਨਕਾ ਹਰਿ ਸਰਨਾਇ ॥੩॥ हे नानक ! मैं हरि की शरण में आ गया हूँ॥ ३॥
ਭੈ ਭੰਜਨਾ ਮੁਰਾਰਿ ॥ हे भयभंजन मुरारि !
ਕਰਿ ਦਇਆ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਿ ॥ दया करके मुझ पतित का उद्धार कर दो।
ਮੇਰੇ ਦੋਖ ਗਨੇ ਨ ਜਾਹਿ ॥ मेरे दोष गिने नहीं जा सकते,
ਹਰਿ ਬਿਨਾ ਕਤਹਿ ਸਮਾਹਿ ॥ तेरे बिना यह पाप अन्य कहाँ समा सकते हैं।
ਗਹਿ ਓਟ ਚਿਤਵੀ ਨਾਥ ॥ नानक की प्रार्थना है कि हे नाथ ! मैंने तेरा सहारा लेने के बारे में सोचा है,
ਨਾਨਕਾ ਦੇ ਰਖੁ ਹਾਥ ॥੪॥ अतः अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो।॥ ४॥
ਹਰਿ ਗੁਣ ਨਿਧੇ ਗੋਪਾਲ ॥ हे गुणनिधि प्रभु !
ਸਰਬ ਘਟ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥ तू सारे जगत् का प्रतिपालक है।
ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਦਰਸਨ ਪਿਆਸ ॥ मेरे मन में तेरा ही प्रेम बना हुआ है और तेरे दर्शन की तीव्र लालसा है।
ਗੋਬਿੰਦ ਪੂਰਨ ਆਸ ॥ हे गोविंद ! मेरी अभिलाषा पूरी करो,
ਇਕ ਨਿਮਖ ਰਹਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥ तेरे बिना मुझसे एक क्षण भर भी रहा नहीं जाता।
ਵਡ ਭਾਗਿ ਨਾਨਕ ਪਾਇ ॥੫॥ हे नानक ! भाग्यशाली को ही उसकी प्राप्ति होती है।॥ ५॥
ਪ੍ਰਭ ਤੁਝ ਬਿਨਾ ਨਹੀ ਹੋਰ ॥ हे प्रभु ! तेरे बिना मेरा अन्य कोई नहीं है,
ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚੰਦ ਚਕੋਰ ॥ मेरे मन में तेरे लिए ऐसा प्रेम बना हुआ है, जैसे चाँद के साथ चकोर का है,
ਜਿਉ ਮੀਨ ਜਲ ਸਿਉ ਹੇਤੁ ॥ जैसे मछली को जल से है,
ਅਲਿ ਕਮਲ ਭਿੰਨੁ ਨ ਭੇਤੁ ॥ जैसे भंवरे का कमल के साथ कोई अन्तर नहीं है और
ਜਿਉ ਚਕਵੀ ਸੂਰਜ ਆਸ ॥ जैसे चकवी को सूर्योदय की उम्मीद लगी रहती है,
ਨਾਨਕ ਚਰਨ ਪਿਆਸ ॥੬॥ वैसे ही नानक को तेरे चरणों की प्यास लगी रहती है।॥ ६॥!
ਜਿਉ ਤਰੁਨਿ ਭਰਤ ਪਰਾਨ ॥ जैसे नवयुवती का पति उसके प्राण है,
ਜਿਉ ਲੋਭੀਐ ਧਨੁ ਦਾਨੁ ॥ जैसे लालची आदमी को धन लेकर बड़ी खुशी होती है,
ਜਿਉ ਦੂਧ ਜਲਹਿ ਸੰਜੋਗੁ ॥ जैसे दूध का जल से संयोग होता है,
ਜਿਉ ਮਹਾ ਖੁਧਿਆਰਥ ਭੋਗੁ ॥ जैसे भूखे व्यक्ति को भोजन प्रिय होता है,
ਜਿਉ ਮਾਤ ਪੂਤਹਿ ਹੇਤੁ ॥ जैसे माता का अपने पुत्र से स्नेह होता है,
ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਨੇਤ ॥੭॥ हे नानक ! वैसे ही नित्य भगवान् का सिमरन करना चाहिए॥ ७ ॥
ਜਿਉ ਦੀਪ ਪਤਨ ਪਤੰਗ ॥ जैसे पतंगा दीए पर गिरता है,
ਜਿਉ ਚੋਰੁ ਹਿਰਤ ਨਿਸੰਗ ॥ जैसे चोर निस्संकोच होकर चोरी करता है,
ਮੈਗਲਹਿ ਕਾਮੈ ਬੰਧੁ ॥ जैसे हाथी का कामवासना से संबंध है,
ਜਿਉ ਗ੍ਰਸਤ ਬਿਖਈ ਧੰਧੁ ॥ जैसे विकारों का धंधा विकारी आदमी को वश में किए रखता है,
ਜਿਉ ਜੂਆਰ ਬਿਸਨੁ ਨ ਜਾਇ ॥ जैसे जुआरी की जुआ खेलने की बुरी आदत नहीं जाती
ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਇ ॥੮॥ वैसे ही तू अपना मन परमात्मा के साथ लगाकर रख ॥८॥
ਕੁਰੰਕ ਨਾਦੈ ਨੇਹੁ ॥ जैसे हिरण का नाद से प्यार होता है,
ਚਾਤ੍ਰਿਕੁ ਚਾਹਤ ਮੇਹੁ ॥ जैसे पपीहा वर्षा की अभिलाषा करता है,
ਜਨ ਜੀਵਨਾ ਸਤਸੰਗਿ ॥ वैसे ही भक्तजनों का जीवन सत्संग से बना होता है और
ਗੋਬਿਦੁ ਭਜਨਾ ਰੰਗਿ ॥ वे प्रेमपूर्वक गोविंद का भजन करते रहते हैं।
ਰਸਨਾ ਬਖਾਨੈ ਨਾਮੁ ॥ ਨਾਨਕ ਦਰਸਨ ਦਾਨੁ ॥੯॥ वे अपनी जीभ से प्रभु नाम का ही बखान करते हैं। हे नानक ! वे तो भगवान् के दर्शनों का ही दान मांगते हैं।॥९॥
ਗੁਨ ਗਾਇ ਸੁਨਿ ਲਿਖਿ ਦੇਇ ॥ जो व्यक्ति भगवान् का गुणगान करता, सुनता, लिखता एवं दूसरों को भी यह गुण देता है,
ਸੋ ਸਰਬ ਫਲ ਹਰਿ ਲੇਇ ॥ उसे सभी फल प्राप्त हो जाते हैं।
ਕੁਲ ਸਮੂਹ ਕਰਤ ਉਧਾਰੁ ॥ ਸੰਸਾਰੁ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਿ ॥ वह अपने समूचे वंश का उद्धार कर देता है और स्वयं भी संसार-सागर से पार हो जाता है।
ਹਰਿ ਚਰਨ ਬੋਹਿਥ ਤਾਹਿ ॥ ਮਿਲਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਸੁ ਗਾਹਿ ॥ हरि के चरण उसका जहाज है और संतों के साथ मिलकर परमेश्वर का यश गाता रहता है।
ਹਰਿ ਪੈਜ ਰਖੈ ਮੁਰਾਰਿ ॥ ਹਰਿ ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਦੁਆਰਿ ॥੧੦॥੨॥ ईश्वर उसकी लाज रखता है, इसलिए नानक भी हरि के द्वार पर उसकी शरण में आ गया है॥ १० ॥ २ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ਥਿਤੀ ਘਰੁ ੧੦ ਜਤਿ बिलावलु महला १ थिती घरु १० जति
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਏਕਮ ਏਕੰਕਾਰੁ ਨਿਰਾਲਾ ॥ प्रतिपदा तिथि (द्वारा बताया है कि) ईश्वर एक ही है, वह सबसे निराला है,
ਅਮਰੁ ਅਜੋਨੀ ਜਾਤਿ ਨ ਜਾਲਾ ॥ वह अमर, अयोनि एवं जाति बन्धन से रहित है।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ॥ वह मन वाणी से परे, इन्द्रियातीत है और उसका कोई रूप एवं चिन्ह नहीं है।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਘਟਿ ਘਟਿ ਦੇਖਿਆ ॥ खोजते-खोजते मैंने उसे घट-घट देखा है।


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