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ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧੇ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੈ ॥੨॥
भक्तजन उस दीनदयाल एवं कृपानिधि को श्वास-श्वास से स्मरण करते रहते हैं।॥ २॥
ਕਰਣਹਾਰੁ ਜੋ ਕਰਿ ਰਹਿਆ ਸਾਈ ਵਡਿਆਈ ॥
सब करने वाला परमात्मा जो कुछ कर रहा है, यही उसका बड़प्पन है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਉਪਦੇਸਿਆ ਸੁਖੁ ਖਸਮ ਰਜਾਈ ॥੩॥
पूर्ण गुरु ने यही उपदेश दिया है कि मालिक की इच्छानुसार रहने से ही परम सुख हासिल होता है ॥३॥
ਚਿੰਤ ਅੰਦੇਸਾ ਗਣਤ ਤਜਿ ਜਨਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਤਾ ॥
दास ने चिंता, सन्देह एवं वृत्तियों को त्यागकर उसके हुक्म को पहचान लिया है।
ਨਹ ਬਿਨਸੈ ਨਹ ਛੋਡਿ ਜਾਇ ਨਾਨਕ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ॥੪॥੧੮॥੪੮॥
हे नानक ! दास तो प्रभु के रंग में लीन रहता है, जो न कभी नाश होता है और न ही उसे छोड़कर जाता है ॥४॥१८॥४८॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮਹਾ ਤਪਤਿ ਤੇ ਭਈ ਸਾਂਤਿ ਪਰਸਤ ਪਾਪ ਨਾਠੇ ॥
संतों के चरण स्पर्श करने से सारे पाप भाग गए हैं और तृष्णा रूपी जलन से मन को शान्ति मिल गई है।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਗਲਤ ਥੇ ਕਾਢੇ ਦੇ ਹਾਥੇ ॥੧॥
हम जगत् रूपी अंधकूप में लीन थे किन्तु संतों ने हाथ देकर हमें निकाल लिया है॥ १॥
ਓਇ ਹਮਾਰੇ ਸਾਜਨਾ ਹਮ ਉਨ ਕੀ ਰੇਨ ॥
वही हमारे साजन हैं और हम उनकी चरण धूलि हैं।
ਜਿਨ ਭੇਟਤ ਹੋਵਤ ਸੁਖੀ ਜੀਅ ਦਾਨੁ ਦੇਨ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिनको मिलने से मैं सुखी होता हूँ, उन्होंने मुझे जीवनदान दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਪਰਾ ਪੂਰਬਲਾ ਲੀਖਿਆ ਮਿਲਿਆ ਅਬ ਆਇ ॥
पूर्ण जन्म के कर्मों के कारण जो भाग्य में लिखा हुआ था, वह मुझे अब मिल गया है।
ਬਸਤ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਸਾਧ ਕੈ ਪੂਰਨ ਆਸਾਇ ॥੨॥
संतों की संगति में रहने से मेरी कामनाएँ पूरी हो गई हैं ॥२॥
ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਤਿਹੁ ਲੋਕ ਕੇ ਪਾਏ ਸੁਖ ਥਾਨ ॥
मेरे तीनों लोकों के भय नाश हो गए हैं और सुख का स्थान मिल गया है।
ਦਇਆ ਕਰੀ ਸਮਰਥ ਗੁਰਿ ਬਸਿਆ ਮਨਿ ਨਾਮ ॥੩॥
समर्थ गुरु ने दया की है, जिससे मेरे मन में नाम स्थित हो गया है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਕੀ ਤੂ ਟੇਕ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰ ॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! तू ही मेरी टेक है और मुझे तेरा ही सहारा है।
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥੪॥੧੯॥੪੯॥
अगम्य अपार प्रभु ही करने-करवाने में समर्थ है।४॥ १६ ॥ ४६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਸੋਈ ਮਲੀਨੁ ਦੀਨੁ ਹੀਨੁ ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਬਿਸਰਾਨਾ ॥
जिसने प्रभु को भुला दिया है, वही मलिन, गरीब एवं नीच है।
ਕਰਨੈਹਾਰੁ ਨ ਬੂਝਈ ਆਪੁ ਗਨੈ ਬਿਗਾਨਾ ॥੧॥
यह सृजनहार को नहीं बूझता, नासमझ स्वयं को बड़ा समझता है॥ १॥
ਦੂਖੁ ਤਦੇ ਜਦਿ ਵੀਸਰੈ ਸੁਖੁ ਪ੍ਰਭ ਚਿਤਿ ਆਏ ॥
जीवन में इन्सान तभी दुखी होता है, जब वह उसे भुला देता है। लेकिन प्रभु को याद करने से वह सुखी हो जाता है।
ਸੰਤਨ ਕੈ ਆਨੰਦੁ ਏਹੁ ਨਿਤ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संतों के मन में सदैव आनंद बना रहता है, क्योंकि ये नित्य भगवान् का गुणगान करते रहते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਊਚੇ ਤੇ ਨੀਚਾ ਕਰੈ ਨੀਚ ਖਿਨ ਮਹਿ ਥਾਪੈ ॥
ईश्वर किसी को ऊँचे (राजा) से निम्न (भिखारी) बना देता है, यदि उसकी मर्जी हो तो वह क्षण में ही निम्न (रंक) को ऊँचा (राजा) स्थापित कर देता है।
ਕੀਮਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈਐ ਠਾਕੁਰ ਪਰਤਾਪੈ ॥੨॥
ठाकुर जी के प्रताप का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥ २॥
ਪੇਖਤ ਲੀਲਾ ਰੰਗ ਰੂਪ ਚਲਨੈ ਦਿਨੁ ਆਇਆ ॥
खेल-तमाशे एवं रंग-रूप देखते ही जीव का दुनिया से विदा होने का दिन आ गया है।
ਸੁਪਨੇ ਕਾ ਸੁਪਨਾ ਭਇਆ ਸੰਗਿ ਚਲਿਆ ਕਮਾਇਆ ॥੩॥
यह जीवन एक सपना है और यह सपना ही बन गया है तथा जीव का कमाया हुआ पुण्य एवं पाप ही उसके साथ गया है॥ ३॥
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
हे प्रभु! तू करने एवं करवाने में समर्थ है, इसलिए मैं तेरी शरण में आया हूँ।
ਹਰਿ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਨਾਨਕੁ ਜਪੈ ਸਦ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈ ॥੪॥੨੦॥੫੦॥
नानक दिन-रात परमात्मा को ही जपता रहता है और उस पर सदैव बलिहारी जाता है। ॥ ४ ॥ २० ॥ ५० ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਜਲੁ ਢੋਵਉ ਇਹ ਸੀਸ ਕਰਿ ਕਰ ਪਗ ਪਖਲਾਵਉ ॥
में अपने इस सिर से संतो के लिए पानी ढोता हूँ और हाथों से उनके चरण धोता हूँ।
ਬਾਰਿ ਜਾਉ ਲਖ ਬੇਰੀਆ ਦਰਸੁ ਪੇਖਿ ਜੀਵਾਵਉ ॥੧॥
में लाख बार उन पर कुर्बान जाता हूँ और उनके दर्शन करने से ही जीवन मिल रहा है॥ १॥
ਕਰਉ ਮਨੋਰਥ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਅਪਨੇ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਪਾਵਉ ॥
मैं जो मनोरथ मन में करता हूँ, वह प्रभु से पा लेता हूँ।
ਦੇਉ ਸੂਹਨੀ ਸਾਧ ਕੈ ਬੀਜਨੁ ਢੋਲਾਵਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं संतों के निवास पर झाड़ू देता हूँ और उन्हें पंखा करता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਗੁਣ ਸੰਤ ਬੋਲਤੇ ਸੁਣਿ ਮਨਹਿ ਪੀਲਾਵਉ ॥
संत जो भी अमृत गुण बोलते हैं, मैं उन्हें सुनकर अपने मन को पिलाता हूँ।
ਉਆ ਰਸ ਮਹਿ ਸਾਂਤਿ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਹੋਇ ਬਿਖੈ ਜਲਨਿ ਬੁਝਾਵਉ ॥੨॥
उस अमृत रस से मैं शान्ति प्राप्त करता हूँ, तृप्त हो जाता हूँ और विष रूपी तृष्णा की जलन को बुझाता हूँ॥ २ ॥
ਜਬ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਸੰਤ ਮੰਡਲੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਗਾਵਉ ॥
जब संतों की मण्डली भक्ति करती है तो मैं भी उनके साथ मिलकर भगवान् के गुण गाता हूँ।
ਕਰਉ ਨਮਸਕਾਰ ਭਗਤ ਜਨ ਧੂਰਿ ਮੁਖਿ ਲਾਵਉ ॥੩॥
मैं भक्तजनों को प्रणाम करता हूँ और उनकी चरण-धूलि अपने मुँह पर लगाता हूँ॥ ३॥
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਜਪਉ ਨਾਮੁ ਇਹੁ ਕਰਮੁ ਕਮਾਵਉ ॥
मैं यही कर्म करता हूँ कि उठते-बैठते परमात्मा का नाम जपता रहता हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਪ੍ਰਭ ਬੇਨਤੀ ਹਰਿ ਸਰਨਿ ਸਮਾਵਉ ॥੪॥੨੧॥੫੧॥
नानक की प्रभु से यह विनती है कि मैं तेरी शरण में विलीन रहूँ॥ ४॥ २१॥ ५१॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਇਹੁ ਸਾਗਰੁ ਸੋਈ ਤਰੈ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥
इस संसार-सागर में से वही पार होता है, जो भगवान् के गुण गाता है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਸੰਗਿ ਵਸੈ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਏ ॥੧॥
संतों की संगति में रहकर कोई भाग्यशाली ही ईश्वर को पाता है॥ १॥