Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 794

Page 794

ਕਿਆ ਤੂ ਸੋਇਆ ਜਾਗੁ ਇਆਨਾ ॥ हे नादान इन्सान ! तू क्यों अज्ञान की नींद में सोया हुआ है जाग जा।
ਤੈ ਜੀਵਨੁ ਜਗਿ ਸਚੁ ਕਰਿ ਜਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तूने जगत् में जीवन को सत्य समझ लिया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਿਨਿ ਜੀਉ ਦੀਆ ਸੁ ਰਿਜਕੁ ਅੰਬਰਾਵੈ ॥ जिस परमात्मा ने जीवन दिया है, वही आहार देकर देखभाल भी करता है।
ਸਭ ਘਟ ਭੀਤਰਿ ਹਾਟੁ ਚਲਾਵੈ ॥ सभी शरीरों में वह अपनी दुकान चला रहा है।
ਕਰਿ ਬੰਦਿਗੀ ਛਾਡਿ ਮੈ ਮੇਰਾ ॥ हे इन्सान ! अपने अहंत्व एवं ममत्व को छोड़कर भगवान् की भक्ति करो।
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿ ਸਵੇਰਾ ॥੨॥ अभी यह तेरे जीवन का सुबह का समय है, अपने हृदय में नाम-सिमरन करो ॥ २॥
ਜਨਮੁ ਸਿਰਾਨੋ ਪੰਥੁ ਨ ਸਵਾਰਾ ॥ तेरा सारा जन्म बीत गया है, पर अभी तक तूने परलोक का मार्ग नहीं संवारा।
ਸਾਂਝ ਪਰੀ ਦਹ ਦਿਸ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥ संध्या हो चुकी है अर्थात् बुढ़ापे का प्रवेश हो चुका है और दसों दिशाओं में अज्ञान रूपी अंधेरा हो गया है।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਨਿਦਾਨਿ ਦਿਵਾਨੇ ॥ रविदास जी कहते हैं कि हे नादान एवं दीवाने !
ਚੇਤਸਿ ਨਾਹੀ ਦੁਨੀਆ ਫਨ ਖਾਨੇ ॥੩॥੨॥ अब भी परमात्मा को याद क्यों नहीं कर रहा ? यह दुनिया जीवों का नाशवान घर है॥ ३॥ २॥
ਸੂਹੀ ॥ सूही ॥
ਊਚੇ ਮੰਦਰ ਸਾਲ ਰਸੋਈ ॥ जिस व्यक्ति के पास ऊँचे महल एवं सुन्दर रसोई घर थे,
ਏਕ ਘਰੀ ਫੁਨਿ ਰਹਨੁ ਨ ਹੋਈ ॥੧॥ मरणोपरांत उसे एक घड़ी भी इनमें रहने के लिए नहीं मिला।॥ १॥
ਇਹੁ ਤਨੁ ਐਸਾ ਜੈਸੇ ਘਾਸ ਕੀ ਟਾਟੀ ॥ यह शरीर ऐसे है, जैसे घास की छपरी होती है।
ਜਲਿ ਗਇਓ ਘਾਸੁ ਰਲਿ ਗਇਓ ਮਾਟੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सारा घास जलकर मिट्टी में मिल जाता है। १॥ रहाउ॥
ਭਾਈ ਬੰਧ ਕੁਟੰਬ ਸਹੇਰਾ ॥ ਓਇ ਭੀ ਲਾਗੇ ਕਾਢੁ ਸਵੇਰਾ ॥੨॥ जब व्यक्ति की जीवनलीला समाप्त हो जाती है तो उसके भाई, रिश्तेदार, परिवार वाले एवं मित्र सभी कहने लग जाते हैं कि इस पार्थिव शरीर को शीघ्र ही घर से निकाल दो ॥ २॥
ਘਰ ਕੀ ਨਾਰਿ ਉਰਹਿ ਤਨ ਲਾਗੀ ॥ उसकी धर्मपत्नी जो उसके हृदय से लगी रहती थी,
ਉਹ ਤਉ ਭੂਤੁ ਭੂਤੁ ਕਰਿ ਭਾਗੀ ॥੩॥ वह भी ‘भूत-भूत' कहती हुई भाग गई है॥ ३॥
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਸਭੈ ਜਗੁ ਲੂਟਿਆ ॥ रविदास जी कहते हैं कि विकार रूपी चोरों ने समूचा जगत् लूट लिया है,
ਹਮ ਤਉ ਏਕ ਰਾਮੁ ਕਹਿ ਛੂਟਿਆ ॥੪॥੩॥ परन्तु हम एक राम का नाम-सिमरन करके इनसे मुक्त हो गए हैं।॥ ४॥ ३॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਬਾਣੀ ਸੇਖ ਫਰੀਦ ਜੀ ਕੀ ॥ रागु सूही बाणी सेख फरीद जी की ॥
ਤਪਿ ਤਪਿ ਲੁਹਿ ਲੁਹਿ ਹਾਥ ਮਰੋਰਉ ॥ विरह की आग में जलती मैं हाथ मरोड़ती हूँ और
ਬਾਵਲਿ ਹੋਈ ਸੋ ਸਹੁ ਲੋਰਉ ॥ बावली हुई प्रभु-मिलन की अभिलाषा करती हूँ।
ਤੈ ਸਹਿ ਮਨ ਮਹਿ ਕੀਆ ਰੋਸੁ ॥ हे प्रभु ! तूने अपने मन में मेरे साथ गुस्सा किया है।
ਮੁਝੁ ਅਵਗਨ ਸਹ ਨਾਹੀ ਦੋਸੁ ॥੧॥ तेरा कोई दोष नहीं है, अपितु मुझ में ही अनेक अवगुण हैं।॥ १॥
ਤੈ ਸਾਹਿਬ ਕੀ ਮੈ ਸਾਰ ਨ ਜਾਨੀ ॥ तू मेरा मालिक है, मगर मैंने तेरा महत्व नहीं जाना।
ਜੋਬਨੁ ਖੋਇ ਪਾਛੈ ਪਛੁਤਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मैं अपना यौवन गंवा कर अब पछता रही हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਲੀ ਕੋਇਲ ਤੂ ਕਿਤ ਗੁਨ ਕਾਲੀ ॥ हे काली कोयल ! तू किस कारण काली हो गई है ?
ਅਪਨੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਕੇ ਹਉ ਬਿਰਹੈ ਜਾਲੀ ॥ कोयल कहती है कि मुझे मेरे प्रियतम के विरह ने जला दिया है।
ਪਿਰਹਿ ਬਿਹੂਨ ਕਤਹਿ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥ अपने प्रियतम से विहीन होकर वह कैसे सुख पा सकती है।
ਜਾ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਤਾ ਪ੍ਰਭੂ ਮਿਲਾਏ ॥੨॥ जब प्रभु कृपालु होता है तो वह जीव-स्त्री को स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है॥ २॥
ਵਿਧਣ ਖੂਹੀ ਮੁੰਧ ਇਕੇਲੀ ॥ मैं जीव-स्त्री अकेली ही इस भयानक संसार रूपी कुएं में गिर गई हूँ।
ਨਾ ਕੋ ਸਾਥੀ ਨਾ ਕੋ ਬੇਲੀ ॥ यहाँ मेरा न कोई साथी है और न कोई बेली है!
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮੇਲੀ ॥ प्रभु ने कृपा करके मुझे साधु-संगत में मिला दिया है।
ਜਾ ਫਿਰਿ ਦੇਖਾ ਤਾ ਮੇਰਾ ਅਲਹੁ ਬੇਲੀ ॥੩॥ जब फेिर मैंने देखा तो वेली बनकर अल्लाह मेरे साथ खड़ा था ॥३॥
ਵਾਟ ਹਮਾਰੀ ਖਰੀ ਉਡੀਣੀ ॥ हमारा (भक्ति) मार्ग बड़ा ही उदास करने वाला अर्थात् कठिन है।
ਖੰਨਿਅਹੁ ਤਿਖੀ ਬਹੁਤੁ ਪਿਈਣੀ ॥ यह कृपाण की धार से तीक्ष्ण एवं बड़ा नुकीला है।
ਉਸੁ ਊਪਰਿ ਹੈ ਮਾਰਗੁ ਮੇਰਾ ॥ उसके ऊपर मेरा मार्ग है।
ਸੇਖ ਫਰੀਦਾ ਪੰਥੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿ ਸਵੇਰਾ ॥੪॥੧॥ हे शेख फरीद ! अपने जीवन की सुबह ही अपना पथ संवार ले ॥ ४॥ १॥
ਸੂਹੀ ਲਲਿਤ ॥ सूही ललित ॥
ਬੇੜਾ ਬੰਧਿ ਨ ਸਕਿਓ ਬੰਧਨ ਕੀ ਵੇਲਾ ॥ जब जीवन रूपी बेड़ा बांधने का वक्त था, तब तू बेड़ा बांध नहीं सका। अर्थात जब प्रभु-सिमरन का वक्त अर्थात् जवानी थी, तो तूने सिमरन नहीं किया।
ਭਰਿ ਸਰਵਰੁ ਜਬ ਊਛਲੈ ਤਬ ਤਰਣੁ ਦੁਹੇਲਾ ॥੧॥ अब जब समुद्र उछल कर लहरें मार रहा है तो उस में से पार होना मुश्किल हो गया है। अर्थात अब बुढ़ापे में जब विकार समुद्र में भर गए हैं और अपना जोर दिखा रहे हैं तो इन पर काबू पाना मुश्किल हो गया है॥ १॥
ਹਥੁ ਨ ਲਾਇ ਕਸੁੰਭੜੈ ਜਲਿ ਜਾਸੀ ਢੋਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रियवर ! कुसुंभ फूल के रंग जैसी माया रूपी आग को अपना हाथ मत लगाना, तेरा हाथ जल जाएगा ॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਇਕ ਆਪੀਨ੍ਹ੍ਹੈ ਪਤਲੀ ਸਹ ਕੇਰੇ ਬੋਲਾ ॥ हे जीव-स्त्री ! माया के मुकाबले में तू अपने आप में बहुत निर्बल हो बैठी है। तुझे मालिक की डांट पड़ेगी।
ਦੁਧਾ ਥਣੀ ਨ ਆਵਈ ਫਿਰਿ ਹੋਇ ਨ ਮੇਲਾ ॥੨॥ थन से निकला दूध जैसे थन में वापिस नहीं जाता वैसे ही तेग यौवन फिर नहीं आएगा और दोबारा उस पति-प्रभु से तेरा मिलाप नहीं होगा ॥ २॥
ਕਹੈ ਫਰੀਦੁ ਸਹੇਲੀਹੋ ਸਹੁ ਅਲਾਏਸੀ ॥ फरीद जी कहते हैं कि हे सहेलियों ! जब मालिक-प्रभु बुलाएगा तो यह शरीर मिट्टी का ढेर हो जाएगा और
ਹੰਸੁ ਚਲਸੀ ਡੁੰਮਣਾ ਅਹਿ ਤਨੁ ਢੇਰੀ ਥੀਸੀ ॥੩॥੨॥ जीवात्मा रूपी हँस उदास होकर यहाँ से चला जाएगा।॥ ३॥ २ ॥


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