Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 793

Page 793

ਸੂਹੀ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ਲਲਿਤ ॥ सूही कबीर जीउ ललित ॥ राग सूही, कबीर जी, ललित ॥
ਥਾਕੇ ਨੈਨ ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਨਿ ਥਾਕੇ ਥਾਕੀ ਸੁੰਦਰਿ ਕਾਇਆ ॥ थाके नैन स्रवन सुनि थाके थाकी सुंदरि काइआ ॥ हे जीव ! वृद्धावस्था के कारण देख-देख कर तेरे नयन थक चुके हैं, सुन-सुनकर तेरे कान भी थक चुके हैं और तेरी सुन्दर काया भी थक चुकी है।
ਜਰਾ ਹਾਕ ਦੀ ਸਭ ਮਤਿ ਥਾਕੀ ਏਕ ਨ ਥਾਕਸਿ ਮਾਇਆ ॥੧॥ जरा हाक दी सभ मति थाकी एक न थाकसि माइआ ॥१॥ बुढापा आने से तेरी बुद्धि भी थक गई है परन्तु एक माया का ही मोह नहीं थकता ॥ १॥
ਬਾਵਰੇ ਤੈ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ बावरे तै गिआन बीचारु न पाइआ ॥ हे बावरे ! तूने ज्ञान की सूझ प्राप्त नहीं की और
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बिरथा जनमु गवाइआ ॥१॥ रहाउ ॥ अपना जन्म व्यर्थ गंवा दिया है। १॥ रहाउ॥
ਤਬ ਲਗੁ ਪ੍ਰਾਨੀ ਤਿਸੈ ਸਰੇਵਹੁ ਜਬ ਲਗੁ ਘਟ ਮਹਿ ਸਾਸਾ ॥ तब लगु प्रानी तिसै सरेवहु जब लगु घट महि सासा ॥ हे प्राणी ! जब तक शरीर में जीवन-सांसे चल रही हैं, तब तक भगवान् का सिमरन करते रहो ।
ਜੇ ਘਟੁ ਜਾਇ ਤ ਭਾਉ ਨ ਜਾਸੀ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ਨਿਵਾਸਾ ॥੨॥ जे घटु जाइ त भाउ न जासी हरि के चरन निवासा ॥२॥ यदि तेरा शरीर नाश भी हो जाए तो भी परमात्मा का प्रेम खत्म नहीं होगा और हरि के चरणों में तेरा निवास हो जाएगा ॥ २ ॥
ਜਿਸ ਕਉ ਸਬਦੁ ਬਸਾਵੈ ਅੰਤਰਿ ਚੂਕੈ ਤਿਸਹਿ ਪਿਆਸਾ ॥ जिस कउ सबदु बसावै अंतरि चूकै तिसहि पिआसा ॥ परमात्मा जिसके हृदय में अपना शब्द बसा देता है, उसकी तृष्णा मिट जाती है।
ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੈ ਚਉਪੜਿ ਖੇਲੈ ਮਨੁ ਜਿਣਿ ਢਾਲੇ ਪਾਸਾ ॥੩॥ हुकमै बूझै चउपड़ि खेलै मनु जिणि ढाले पासा ॥३॥ वह उसके आदेश को समझकर अपनी जीवन रूपी चौपड़ का खेल खेलता है। वह अपना मन जीतकर पासा फेंकता है॥ ३ ॥
ਜੋ ਜਨ ਜਾਨਿ ਭਜਹਿ ਅਬਿਗਤ ਕਉ ਤਿਨ ਕਾ ਕਛੂ ਨ ਨਾਸਾ ॥ जो जन जानि भजहि अबिगत कउ तिन का कछू न नासा ॥ जो व्यक्ति इस विधि को समझकर भगवान् का भजन करते रहते हैं, उनका कुछ भी नाश नहीं होता।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਤੇ ਜਨ ਕਬਹੁ ਨ ਹਾਰਹਿ ਢਾਲਿ ਜੁ ਜਾਨਹਿ ਪਾਸਾ ॥੪॥੪॥ कहु कबीर ते जन कबहु न हारहि ढालि जु जानहि पासा ॥४॥४॥ कबीर जी कहते हैं कि वे मनुष्य कदापि अपनी जीवन बाजी नहीं हारते जो यह पासा फेंकना जानते हैं।॥ ४॥ ४॥
ਸੂਹੀ ਲਲਿਤ ਕਬੀਰ ਜੀਉ ॥ सूही ललित कबीर जीउ ॥ राग सूही, ललित, कबीर जी: ॥
ਏਕੁ ਕੋਟੁ ਪੰਚ ਸਿਕਦਾਰਾ ਪੰਚੇ ਮਾਗਹਿ ਹਾਲਾ ॥ एकु कोटु पंच सिकदारा पंचे मागहि हाला ॥ मानव शरीर एक दुर्ग है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार-यह पाँचों विकार इस दुर्ग के अधिकारी हैं और यह पांचों ही मुझसे कर मांगते हैं।
ਜਿਮੀ ਨਾਹੀ ਮੈ ਕਿਸੀ ਕੀ ਬੋਈ ਐਸਾ ਦੇਨੁ ਦੁਖਾਲਾ ॥੧॥ जिमी नाही मै किसी की बोई ऐसा देनु दुखाला ॥१॥ चूँकि मैं उनके वश में नहीं हुआ हूँ इसलिए उनकी बात मानना कठिन है। वे मुझे ऐसा दुःख दे रहे हैं, जैसे मैंने उनकी जमीन बोई हुई है॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਲੋਗਾ ਮੋ ਕਉ ਨੀਤਿ ਡਸੈ ਪਟਵਾਰੀ ॥ हरि के लोगा मो कउ नीति डसै पटवारी ॥ हे भगवान् के भक्तों ! मृत्यु रूपी पटवारी का डंक डंसता रहता है अर्थात् दुःखी करता है।
ਊਪਰਿ ਭੁਜਾ ਕਰਿ ਮੈ ਗੁਰ ਪਹਿ ਪੁਕਾਰਿਆ ਤਿਨਿ ਹਉ ਲੀਆ ਉਬਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ऊपरि भुजा करि मै गुर पहि पुकारिआ तिनि हउ लीआ उबारी ॥१॥ रहाउ ॥ जब मैंने बांहें ऊँची कर गुरु से पुकार की तो उसने मुझे इन से बचा लिया।॥ १॥ रहाउ॥
ਨਉ ਡਾਡੀ ਦਸ ਮੁੰਸਫ ਧਾਵਹਿ ਰਈਅਤਿ ਬਸਨ ਨ ਦੇਹੀ ॥ नउ डाडी दस मुंसफ धावहि रईअति बसन न देही ॥ शरीर के नौ द्वार रूपी एवं दस न्यायाधीश-पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व पाँच कर्मेंन्द्रियाँ दोड़ती रहती हैं और वे सत्य, संतोष, दया, धर्म इत्यादि प्रजा को बसने नहीं देते।
ਡੋਰੀ ਪੂਰੀ ਮਾਪਹਿ ਨਾਹੀ ਬਹੁ ਬਿਸਟਾਲਾ ਲੇਹੀ ॥੨॥ डोरी पूरी मापहि नाही बहु बिसटाला लेही ॥२॥ वे व्यक्ति के कार्यों का सटीक मूल्यांकन नहीं करते हैं और बहुत अधिक रिश्वत मांगते हैं (किसी व्यक्ति को कई पापी प्रवृत्तियों में गुमराह करते हैं)। ॥ २॥
ਬਹਤਰਿ ਘਰ ਇਕੁ ਪੁਰਖੁ ਸਮਾਇਆ ਉਨਿ ਦੀਆ ਨਾਮੁ ਲਿਖਾਈ ॥ बहतरि घर इकु पुरखु समाइआ उनि दीआ नामु लिखाई ॥ गुरु ने मेरे लिए परमात्मा के नाम से वह प्रवेश-पत्र लिख दिया, जो इस शरीर रूपी गृह में लागू होता है, इस गृह में बहत्तर कक्ष विद्यमान हैं।
ਧਰਮ ਰਾਇ ਕਾ ਦਫਤਰੁ ਸੋਧਿਆ ਬਾਕੀ ਰਿਜਮ ਨ ਕਾਈ ॥੩॥ धरम राइ का दफतरु सोधिआ बाकी रिजम न काई ॥३॥ जब यमराज के कार्यालय में मेरे कर्मों के लेखे की जाँच पड़ताल हुई तो मेरी तरफ से थोड़ा-सा ऋण नहीं निकला।॥ ३॥
ਸੰਤਾ ਕਉ ਮਤਿ ਕੋਈ ਨਿੰਦਹੁ ਸੰਤ ਰਾਮੁ ਹੈ ਏਕੋੁ ॥ संता कउ मति कोई निंदहु संत रामु है एको ॥ कोई भी संतों की निन्दा मत करे, क्योंकि संत एवं राम एक ही रूप हैं।
ਕਹੁ ਕਬੀਰ ਮੈ ਸੋ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਜਾ ਕਾ ਨਾਉ ਬਿਬੇਕੋੁ ॥੪॥੫॥ कहु कबीर मै सो गुरु पाइआ जा का नाउ बिबेको ॥४॥५॥ कबीर जी कहते हैं कि मैंने वह गुरु पा लिया है, जिसका नाम विवेक है॥ ४॥ ५॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਬਾਣੀ ਸ੍ਰੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ ਕੀ रागु सूही बाणी स्री रविदास जीउ की राग सूही, श्री रवि दास जी के भजन:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਸਹ ਕੀ ਸਾਰ ਸੁਹਾਗਨਿ ਜਾਨੈ ॥ सह की सार सुहागनि जानै ॥ सुहागिन ही अपने मालिक-प्रभु का महत्व जानती है।
ਤਜਿ ਅਭਿਮਾਨੁ ਸੁਖ ਰਲੀਆ ਮਾਨੈ ॥ तजि अभिमानु सुख रलीआ मानै ॥ वह अपने अभिमान को त्याग कर सुख एवं रंगरलियां मनाती है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਦੇਇ ਨ ਅੰਤਰੁ ਰਾਖੈ ॥ तनु मनु देइ न अंतरु राखै ॥ वह तन-मन अपने परमेश्वर को अर्पण कर देती है और उससे कोई अंतर नहीं रखती।
ਅਵਰਾ ਦੇਖਿ ਨ ਸੁਨੈ ਅਭਾਖੈ ॥੧॥ अवरा देखि न सुनै अभाखै ॥१॥ वह दूसरों की ओर देखती नहीं, न उनकी बात सुनती है और न ही अशुभ वचन बोलती है। १॥
ਸੋ ਕਤ ਜਾਨੈ ਪੀਰ ਪਰਾਈ ॥ सो कत जानै पीर पराई ॥ वह पराया दर्द कैसे समझ सकती है,
ਜਾ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਦਰਦੁ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जा कै अंतरि दरदु न पाई ॥१॥ रहाउ ॥ जिसके अन्तर्मन में प्रेम की पीड़ा कभी आई ही न हो ॥ १॥ रहाउ॥
ਦੁਖੀ ਦੁਹਾਗਨਿ ਦੁਇ ਪਖ ਹੀਨੀ ॥ दुखी दुहागनि दुइ पख हीनी ॥ वह दुहागिन दुःखी ही रहती है और लोक-परलोक से भी वंचित हो जाती है,
ਜਿਨਿ ਨਾਹ ਨਿਰੰਤਰਿ ਭਗਤਿ ਨ ਕੀਨੀ ॥ जिनि नाह निरंतरि भगति न कीनी ॥ जिसने अपने परमात्मा की निरंतर भक्ति नहीं की।
ਪੁਰ ਸਲਾਤ ਕਾ ਪੰਥੁ ਦੁਹੇਲਾ ॥ पुर सलात का पंथु दुहेला ॥ मृत्यु का मार्ग बड़ा दुःखदायक है,
ਸੰਗਿ ਨ ਸਾਥੀ ਗਵਨੁ ਇਕੇਲਾ ॥੨॥ संगि न साथी गवनु इकेला ॥२॥ जीव के साथ उसका कोई संगी एवं साथी नहीं होता और उसे अकेले ही जाना पड़ता है॥ २॥
ਦੁਖੀਆ ਦਰਦਵੰਦੁ ਦਰਿ ਆਇਆ ॥ दुखीआ दरदवंदु दरि आइआ ॥ हे परमात्मा ! मैं दुखिया एवं दर्दमंद तेरे द्वार पर आया हूँ।
ਬਹੁਤੁ ਪਿਆਸ ਜਬਾਬੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ बहुतु पिआस जबाबु न पाइआ ॥ मुझे आपके दर्शनों की तीव्र लालसा है, किंतु आपकी ओर से मुझे कोई जवाब नहीं मिला।
ਕਹਿ ਰਵਿਦਾਸ ਸਰਨਿ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ॥ कहि रविदास सरनि प्रभ तेरी ॥ रविदास जी प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु! मैं आपकी शरण में आया हूँ,
ਜਿਉ ਜਾਨਹੁ ਤਿਉ ਕਰੁ ਗਤਿ ਮੇਰੀ ॥੩॥੧॥ जिउ जानहु तिउ करु गति मेरी ॥३॥१॥ आप जैसे भी हों, कृपया मुझे विकारों से बचायें।॥ ३॥ १॥
ਸੂਹੀ ॥ सूही ॥ राग सूही ॥
ਜੋ ਦਿਨ ਆਵਹਿ ਸੋ ਦਿਨ ਜਾਹੀ ॥ जो दिन आवहि सो दिन जाही ॥ जीवन का जो दिन आता है, वह बीत जाता है।
ਕਰਨਾ ਕੂਚੁ ਰਹਨੁ ਥਿਰੁ ਨਾਹੀ ॥ करना कूचु रहनु थिरु नाही ॥ प्रत्येक व्यक्ति ने एक न एक दिन यहाँ से चले जाना है और किसी ने भी यहां स्थिर नहीं रहना है।
ਸੰਗੁ ਚਲਤ ਹੈ ਹਮ ਭੀ ਚਲਨਾ ॥ संगु चलत है हम भी चलना ॥ हमारे साथी इस जग से चले जा रहे हैं और हमने भी यहाँ से चले जाना है।
ਦੂਰਿ ਗਵਨੁ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਮਰਨਾ ॥੧॥ दूरि गवनु सिर ऊपरि मरना ॥१॥ मृत्यु हमारे सिर पर खड़ी है और बहुत दूर गमन करना है॥ १॥


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