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ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਚੋਰਾ ਜਾਰਾ ਰੰਡੀਆ ਕੁਟਣੀਆ ਦੀਬਾਣੁ ॥
चोरों, व्यभिचारियों, वेश्याओं तथा दलालों के इतने गहरे रिश्ते होते हैं कि उनकी महफिल लगी ही रहती है।
ਵੇਦੀਨਾ ਕੀ ਦੋਸਤੀ ਵੇਦੀਨਾ ਕਾ ਖਾਣੁ ॥
दुष्टों की दुष्ट लोगों से दोस्ती होती है और उनका परस्पर खाना-पीना एवं मेलजोल बना रहता है।
ਸਿਫਤੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਸਦਾ ਵਸੈ ਸੈਤਾਨੁ ॥
ऐसे पापी लोग भगवान् की महिमा के महत्व को बिल्कुल नहीं जानते और उनके मन में हमेशा शैतान वास करता है।
ਗਦਹੁ ਚੰਦਨਿ ਖਉਲੀਐ ਭੀ ਸਾਹੂ ਸਿਉ ਪਾਣੁ ॥
यदि गधे को चन्दन का लेप कर दिया जाए तो भी वह धूल में ही लेटता है।
ਨਾਨਕ ਕੂੜੈ ਕਤਿਐ ਕੂੜਾ ਤਣੀਐ ਤਾਣੁ ॥
हे नानक ! झूठ का सूत कातने से झूठ का ही ताना तना जाता है और
ਕੂੜਾ ਕਪੜੁ ਕਛੀਐ ਕੂੜਾ ਪੈਨਣੁ ਮਾਣੁ ॥੧॥
झूठा कपड़ा नाप दिया जाता है। झूठ उनका वस्त्र है और झूठ ही उनका आहार है॥ १ ॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਬਾਂਗਾ ਬੁਰਗੂ ਸਿੰਙੀਆ ਨਾਲੇ ਮਿਲੀ ਕਲਾਣ ॥
नमाज की बांग देने वाला मौलवी, तूती बजाने वाला फकीर, सिंगी बजाने वाला योगी तथा नकल करने वाले मिरासी भी लोगों से माँगते फिरते हैं।
ਇਕਿ ਦਾਤੇ ਇਕਿ ਮੰਗਤੇ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਪਰਵਾਣੁ ॥
हे प्रभु! दुनिया में कोई दानी है और कोई भिखारी है, मगर सत्य के दरबार में तेरा नाम ही मंजूर होता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਸੁਣਿ ਕੈ ਮੰਨਿਆ ਹਉ ਤਿਨਾ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੨॥
हे नानक ! मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ जिन्होंने नाम सुनकर उसका मनन किया है। २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਕੂੜੁ ਹੈ ਕੂੜੋ ਹੋਇ ਗਇਆ ॥
माया का मोह सब झूठ है और यह अंत में झूठा ही सिद्ध हुआ।
ਹਉਮੈ ਝਗੜਾ ਪਾਇਓਨੁ ਝਗੜੈ ਜਗੁ ਮੁਇਆ ॥
इन्सान के अभिमान ने ही झगड़ा उत्पन्न किया है और सारी दुनिया झगड़े में पड़कर नष्ट हो गई है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਝਗੜੁ ਚੁਕਾਇਓਨੁ ਇਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥
गुरुमुख ने झगड़ा समाप्त कर दिया है और उसे एक ईश्वर ही सबमें नजर आता है।
ਸਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਭਉਜਲੁ ਤਰਿ ਗਇਆ ॥
उसने आत्मा में ही परमात्मा को पहचान लिया है, जिससे वह भवसागर से पार हो गया है।
ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਜੋਤਿ ਵਿਚਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਇਆ ॥੧੪॥
उसकी ज्योति परम ज्योति में विलीन हो गयी है और वह हरी नाम मै ही समां गया है। ॥१४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਭੀਖਿਆ ਦੇਹਿ ਮੈ ਤੂੰ ਸੰਮ੍ਰਥੁ ਦਾਤਾਰੁ ॥
हे सतगुरु ! तू समर्थ एवं दानशील है, मुझे नाम रूपी भिक्षा दे दो।
ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰੀਐ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥
मेरा अभिमान एवं घमण्ड दूर कर दो और काम, क्रोध एवं अहंकार को पूर्णतया नष्ट कर दो।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਪਰਜਾਲੀਐ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਆਧਾਰੁ ॥
मेरे लालच एवं लोभ को जला दीजिए ताकि मुझे मेरे जीवन का आधार नाम मिल जाए।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਵਤਨ ਨਿਰਮਲਾ ਮੈਲਾ ਕਬਹੂੰ ਨ ਹੋਇ ॥
यह नाम दिन-रात नवनूतन एवं निर्मल रहता है और कभी मैला नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਇਹ ਬਿਧਿ ਛੁਟੀਐ ਨਦਰਿ ਤੇਰੀ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੧॥
नानक प्रार्थना करते हैं कि हे मेरे सतगुरु ! इस विधि द्वारा मैं बन्धनों से छूट सकता हूँ और तेरी कृपा-दृष्टि से ही सुख उपलब्ध हो सकता है| ५ ॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਇਕੋ ਕੰਤੁ ਸਬਾਈਆ ਜਿਤੀ ਦਰਿ ਖੜੀਆਹ ॥
जितनी भी जीव स्त्रियां द्वार पर खड़ी हैं, एक ईश्वर ही उन सब का पति है।
ਨਾਨਕ ਕੰਤੈ ਰਤੀਆ ਪੁਛਹਿ ਬਾਤੜੀਆਹ ॥੨॥
हे नानक ! पति-प्रभु के प्रेम में लीन हुई, वे एक दूसरे से उसकी बातें पूछती हैं। २॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਸਭੇ ਕੰਤੈ ਰਤੀਆ ਮੈ ਦੋਹਾਗਣਿ ਕਿਤੁ ॥
सब जीव-स्त्रियाँ प्रभु-पति के प्रेम में लीन हैं, परन्तु मैं दुहागिन कौन-सी गिनती में हूँ?
ਮੈ ਤਨਿ ਅਵਗਣ ਏਤੜੇ ਖਸਮੁ ਨ ਫੇਰੇ ਚਿਤੁ ॥੩॥
मेरे तन में इतने अवगुण हैं कि मेरा मालिक मेरी तरफ अपना चित्त भी नहीं करता ॥ ३॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਸਿਫਤਿ ਜਿਨਾ ਦੈ ਵਾਤਿ ॥
जिनके मुँह पर परमात्मा की स्तुति है, मैं उन पर कुर्बान जाती हूँ।
ਸਭਿ ਰਾਤੀ ਸੋਹਾਗਣੀ ਇਕ ਮੈ ਦੋਹਾਗਣਿ ਰਾਤਿ ॥੪॥
हे प्रभु! तू सभी रातें सुहागिनों को दे रहा है, किन्तु मुझ दुहागिन को एक रात ही दे दो ॥ ४॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी।
ਦਰਿ ਮੰਗਤੁ ਜਾਚੈ ਦਾਨੁ ਹਰਿ ਦੀਜੈ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ॥
हे हरि ! मैं भिखारी तुझ से एक दान माँगता हूँ, अपनी कृपा करके मुझे यह दान दीजिए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਲੇਹੁ ਮਿਲਾਇ ਜਨੁ ਪਾਵੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ॥
गुरु के माध्यम से मुझे अपने साथ मिला लो, ताकि मैं तेरा हरि-नाम पा लूँ।
ਅਨਹਦ ਸਬਦੁ ਵਜਾਇ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਧਰਿ ॥
मैं अपने मन में अनहद शब्द बजाऊँ और अपनी ज्योति परमज्योति में मिला दूँ।
ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਜੈ ਜੈ ਸਬਦੁ ਹਰਿ ॥
मैं अपने हृदय में हरि का गुणगान करूं, हरिनाम की जय-जयकार करता रहूँ।
ਜਗ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਆਪਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ॥੧੫॥
हरि से ही प्रेम करो, क्योंकि वह समूचे जगत् में व्यापक है।१५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਜਿਨੀ ਨ ਪਾਇਓ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਕੰਤ ਨ ਪਾਇਓ ਸਾਉ ॥
जिन्होंने प्रेम रस नहीं पाया और अपने पति-प्रभु से रमण नहीं किया,
ਸੁੰਞੇ ਘਰ ਕਾ ਪਾਹੁਣਾ ਜਿਉ ਆਇਆ ਤਿਉ ਜਾਉ ॥੧॥
वे सूने घर में उस अतिथि की तरह हैं जो जैसे आया है, वैसे ही लौट जाता हैं॥१॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਸਉ ਓਲਾਮ੍ਹ੍ਹੇ ਦਿਨੈ ਕੇ ਰਾਤੀ ਮਿਲਨ੍ਹ੍ਹਿ ਸਹੰਸ ॥
पाप कर्म मे लीन रहने वाला दिन रात सेकड़ो हजारो शिकायतों का हक़दार बन जाता है।
ਸਿਫਤਿ ਸਲਾਹਣੁ ਛਡਿ ਕੈ ਕਰੰਗੀ ਲਗਾ ਹੰਸੁ ॥
यह जीव रूपी हंस, परमात्मा की स्तुति को छोड़कर मृत पशुओं की हड्डियों को ढूँढने लग गया है अर्थात् विकार भोगने लग गया है।
ਫਿਟੁ ਇਵੇਹਾ ਜੀਵਿਆ ਜਿਤੁ ਖਾਇ ਵਧਾਇਆ ਪੇਟੁ ॥
उसका ऐसा जीना धिक्कार योग्य है, जिसमें स्वादिष्ट पदार्थ खा-खाकर उसने अपना पेट बड़ा लिया है।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਣੁ ਸਭੋ ਦੁਸਮਨੁ ਹੇਤੁ ॥੨॥
हे नानक सत्य नाम के बिना ये सारे मोह जीव के दुश्मन अर्थात् हानिकारक बन जाते हैं।२।
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी।
ਢਾਢੀ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥
ढाढी ने नित्य परमात्मा का गुणगान करके अपना जन्म सफल कर लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਿ ਸਲਾਹਿ ਸਚਾ ਉਰ ਧਾਰਿਆ ॥
गुरु के माध्यम से भक्ति एवं स्तुतिगान करके उसने सत्य को अपने हृदय में बसा लिया है।