Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 790

Page 790

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: १॥
ਚੋਰਾ ਜਾਰਾ ਰੰਡੀਆ ਕੁਟਣੀਆ ਦੀਬਾਣੁ ॥ चोरा जारा रंडीआ कुटणीआ दीबाणु ॥ चोरों, व्यभिचारियों, वेश्याओं तथा दलालों के इतने गहरे रिश्ते होते हैं कि उनकी महफिल लगी ही रहती है।
ਵੇਦੀਨਾ ਕੀ ਦੋਸਤੀ ਵੇਦੀਨਾ ਕਾ ਖਾਣੁ ॥ वेदीना की दोसती वेदीना का खाणु ॥ दुष्टों की दुष्ट लोगों से दोस्ती होती है और उनका परस्पर खाना-पीना एवं मेलजोल बना रहता है।
ਸਿਫਤੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਸਦਾ ਵਸੈ ਸੈਤਾਨੁ ॥ सिफती सार न जाणनी सदा वसै सैतानु ॥ ऐसे पापी लोग भगवान् की महिमा के महत्व को बिल्कुल नहीं जानते और उनके मन में हमेशा शैतान वास करता है।
ਗਦਹੁ ਚੰਦਨਿ ਖਉਲੀਐ ਭੀ ਸਾਹੂ ਸਿਉ ਪਾਣੁ ॥ गदहु चंदनि खउलीऐ भी साहू सिउ पाणु ॥ यदि गधे को चन्दन का लेप कर दिया जाए तो भी वह धूल में ही लेटता है।
ਨਾਨਕ ਕੂੜੈ ਕਤਿਐ ਕੂੜਾ ਤਣੀਐ ਤਾਣੁ ॥ नानक कूड़ै कतिऐ कूड़ा तणीऐ ताणु ॥ हे नानक ! झूठ का सूत कातने से झूठ का ही ताना तना जाता है और
ਕੂੜਾ ਕਪੜੁ ਕਛੀਐ ਕੂੜਾ ਪੈਨਣੁ ਮਾਣੁ ॥੧॥ कूड़ा कपड़ु कछीऐ कूड़ा पैनणु माणु ॥१॥ अगर गलत माप लेकर कपड़े सिल दिए जाएं तो इन्हें पहनने पर व्यक्ति अच्छे नहीं लगेंगे; उसी प्रकार झूठे कर्म झूठे अभिमान को जन्म देंगे।॥ १ ॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਬਾਂਗਾ ਬੁਰਗੂ ਸਿੰਙੀਆ ਨਾਲੇ ਮਿਲੀ ਕਲਾਣ ॥ बांगा बुरगू सिंङीआ नाले मिली कलाण ॥ नमाज की बांग देने वाला मौलवी, तूती बजाने वाला फकीर, सिंगी बजाने वाला योगी तथा नकल करने वाले मिरासी भी लोगों से माँगते फिरते हैं।
ਇਕਿ ਦਾਤੇ ਇਕਿ ਮੰਗਤੇ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਪਰਵਾਣੁ ॥ इकि दाते इकि मंगते नामु तेरा परवाणु ॥ हे प्रभु! दुनिया में कोई दानी है और कोई भिखारी है, मगर सत्य के दरबार में आपका ही नाम स्वीकृत होता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਸੁਣਿ ਕੈ ਮੰਨਿਆ ਹਉ ਤਿਨਾ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੨॥ नानक जिन्ही सुणि कै मंनिआ हउ तिना विटहु कुरबाणु ॥२॥ हे नानक ! मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ जिन्होंने नाम सुनकर उसका मनन किया है। २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਸਭੁ ਕੂੜੁ ਹੈ ਕੂੜੋ ਹੋਇ ਗਇਆ ॥ माइआ मोहु सभु कूड़ु है कूड़ो होइ गइआ ॥ माया का मोह सब झूठ है और यह अंत में झूठा ही सिद्ध हुआ।
ਹਉਮੈ ਝਗੜਾ ਪਾਇਓਨੁ ਝਗੜੈ ਜਗੁ ਮੁਇਆ ॥ हउमै झगड़ा पाइओनु झगड़ै जगु मुइआ ॥ जीव के अभिमान ने ही झगड़ा उत्पन्न किया है और सारी दुनिया झगड़े में पड़कर नष्ट हो गई है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਝਗੜੁ ਚੁਕਾਇਓਨੁ ਇਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ॥ गुरमुखि झगड़ु चुकाइओनु इको रवि रहिआ ॥ गुरुमुख ने झगड़ा समाप्त कर दिया है और उसे एक ईश्वर ही सबमें नज़र आता है।
ਸਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਭਉਜਲੁ ਤਰਿ ਗਇਆ ॥ सभु आतम रामु पछाणिआ भउजलु तरि गइआ ॥ उसने आत्मा में ही परमात्मा को पहचान लिया है, जिससे वह भवसागर से पार हो गया है।
ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ਜੋਤਿ ਵਿਚਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਇਆ ॥੧੪॥ जोति समाणी जोति विचि हरि नामि समइआ ॥१४॥ उसकी ज्योति परम ज्योति में विलीन हो गयी है और वह हरी नाम में ही समा गया है। ॥१४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक: प्रथम गुरु: १ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਭੀਖਿਆ ਦੇਹਿ ਮੈ ਤੂੰ ਸੰਮ੍ਰਥੁ ਦਾਤਾਰੁ ॥ सतिगुर भीखिआ देहि मै तूं सम्रथु दातारु ॥ हे सतगुरु ! आप समर्थशाली एवं दानशील है, मुझे नाम रूपी भिक्षा दे दो।
ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰੀਐ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥ हउमै गरबु निवारीऐ कामु क्रोधु अहंकारु ॥ मेरा अभिमान एवं घमण्ड दूर कर दो और काम, क्रोध एवं अहंकार को पूर्णतया नष्ट कर दो।
ਲਬੁ ਲੋਭੁ ਪਰਜਾਲੀਐ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਆਧਾਰੁ ॥ लबु लोभु परजालीऐ नामु मिलै आधारु ॥ मेरे लालच एवं लोभ को जला दीजिए ताकि मुझे मेरे जीवन का आधार नाम मिल जाए।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਨਵਤਨ ਨਿਰਮਲਾ ਮੈਲਾ ਕਬਹੂੰ ਨ ਹੋਇ ॥ अहिनिसि नवतन निरमला मैला कबहूं न होइ ॥ यह नाम दिन-रात नवनूतन एवं निर्मल रहता है और कभी मैला नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਇਹ ਬਿਧਿ ਛੁਟੀਐ ਨਦਰਿ ਤੇਰੀ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੧॥ नानक इह बिधि छुटीऐ नदरि तेरी सुखु होइ ॥१॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे मेरे सतगुरु ! इस विधि द्वारा मैं बन्धनों से छूट सकता हूँ और तेरी कृपा-दृष्टि से ही सुख उपलब्ध हो सकता है| ५ ॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਇਕੋ ਕੰਤੁ ਸਬਾਈਆ ਜਿਤੀ ਦਰਿ ਖੜੀਆਹ ॥ इको कंतु सबाईआ जिती दरि खड़ीआह ॥ जितनी भी जीव स्त्रियां द्वार पर खड़ी हैं, एक ईश्वर ही उन सब का पति है।
ਨਾਨਕ ਕੰਤੈ ਰਤੀਆ ਪੁਛਹਿ ਬਾਤੜੀਆਹ ॥੨॥ नानक कंतै रतीआ पुछहि बातड़ीआह ॥२॥ हे नानक ! पति-प्रभु के प्रेम में लीन हुई, वे एक दूसरे से उसकी बातें पूछती हैं। २॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਸਭੇ ਕੰਤੈ ਰਤੀਆ ਮੈ ਦੋਹਾਗਣਿ ਕਿਤੁ ॥ सभे कंतै रतीआ मै दोहागणि कितु ॥ सब जीव-स्त्रियाँ प्रभु-पति के प्रेम में लीन हैं, परन्तु मैं दुहागिन कौन-सी गिनती में हूँ?
ਮੈ ਤਨਿ ਅਵਗਣ ਏਤੜੇ ਖਸਮੁ ਨ ਫੇਰੇ ਚਿਤੁ ॥੩॥ मै तनि अवगण एतड़े खसमु न फेरे चितु ॥३॥ मेरे तन में इतने अवगुण हैं कि मेरे प्रभु मेरी ओर अपना चित्त भी नहीं करते। ॥ ३॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਸਿਫਤਿ ਜਿਨਾ ਦੈ ਵਾਤਿ ॥ हउ बलिहारी तिन कउ सिफति जिना दै वाति ॥ जिनके मुँह पर परमात्मा की स्तुति है, मैं उन पर बलिहारी जाती हूँ।
ਸਭਿ ਰਾਤੀ ਸੋਹਾਗਣੀ ਇਕ ਮੈ ਦੋਹਾਗਣਿ ਰਾਤਿ ॥੪॥ सभि राती सोहागणी इक मै दोहागणि राति ॥४॥ हे प्रभु! ये सभी भाग्यशाली आत्म-दुल्हनें जीवन भर आपकी संगति का आनंद लेती हैं; कृपया मुझ अभागिन को थोड़ी देर के लिए अपना सान्निध्य प्रदान करें।॥ ४॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਦਰਿ ਮੰਗਤੁ ਜਾਚੈ ਦਾਨੁ ਹਰਿ ਦੀਜੈ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ॥ दरि मंगतु जाचै दानु हरि दीजै क्रिपा करि ॥ हे हरि ! मैं भिखारी आप से एक दान माँगता हूँ, अपनी कृपा करके मुझे यह दान दीजिए।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਲੇਹੁ ਮਿਲਾਇ ਜਨੁ ਪਾਵੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ॥ गुरमुखि लेहु मिलाइ जनु पावै नामु हरि ॥ गुरु के माध्यम से मुझे अपने साथ मिला लो, ताकि मैं आपका हरि-नाम पा लूँ।
ਅਨਹਦ ਸਬਦੁ ਵਜਾਇ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਧਰਿ ॥ अनहद सबदु वजाइ जोती जोति धरि ॥ मैं अपने मन में अनहद शब्द बजाऊँ और अपनी ज्योति परमज्योति में मिला दूँ।
ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਜੈ ਜੈ ਸਬਦੁ ਹਰਿ ॥ हिरदै हरि गुण गाइ जै जै सबदु हरि ॥ मैं अपने हृदय में हरि का गुणगान करूं, हरिनाम की जय-जयकार करता रहूँ।
ਜਗ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਆਪਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ॥੧੫॥ जग महि वरतै आपि हरि सेती प्रीति करि ॥१५॥ हरि से ही प्रेम करो, क्योंकि वह समूचे जगत् में व्यापक है।१५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु:
ਜਿਨੀ ਨ ਪਾਇਓ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਕੰਤ ਨ ਪਾਇਓ ਸਾਉ ॥ जिनी न पाइओ प्रेम रसु कंत न पाइओ साउ ॥ जिन्होंने प्रेम रस नहीं पाया और अपने पति-प्रभु से रमण नहीं किया,
ਸੁੰਞੇ ਘਰ ਕਾ ਪਾਹੁਣਾ ਜਿਉ ਆਇਆ ਤਿਉ ਜਾਉ ॥੧॥ सुंञे घर का पाहुणा जिउ आइआ तिउ जाउ ॥१॥ वे सूने घर में उस अतिथि की तरह हैं जो जैसे आया है, वैसे ही लौट जाता हैं॥१॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਸਉ ਓਲਾਮ੍ਹ੍ਹੇ ਦਿਨੈ ਕੇ ਰਾਤੀ ਮਿਲਨ੍ਹ੍ਹਿ ਸਹੰਸ ॥ सउ ओलाम्हे दिनै के राती मिलन्हि सहंस ॥ पाप कर्म मे लीन रहने वाला दिन रात सैंकड़ो हजारो शिकायतों का अधिकारी बन जाता है।
ਸਿਫਤਿ ਸਲਾਹਣੁ ਛਡਿ ਕੈ ਕਰੰਗੀ ਲਗਾ ਹੰਸੁ ॥ सिफति सलाहणु छडि कै करंगी लगा हंसु ॥ यह जीव रूपी हंस, परमात्मा की स्तुति को छोड़कर मृत पशुओं की हड्डियों को ढूँढने लग गया है अर्थात् विकार भोगने लग गया है।
ਫਿਟੁ ਇਵੇਹਾ ਜੀਵਿਆ ਜਿਤੁ ਖਾਇ ਵਧਾਇਆ ਪੇਟੁ ॥ फिटु इवेहा जीविआ जितु खाइ वधाइआ पेटु ॥ उसका ऐसा जीना धिक्कार योग्य है, जिसमें स्वादिष्ट पदार्थ खा-खाकर उसने अपना पेट बड़ा लिया है।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਣੁ ਸਭੋ ਦੁਸਮਨੁ ਹੇਤੁ ॥੨॥ नानक सचे नाम विणु सभो दुसमनु हेतु ॥२॥ हे नानक सत्य नाम के बिना ये सारे मोह जीव के दुश्मन अर्थात् हानिकारक बन जाते हैं।२।
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਢਾਢੀ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥ ढाढी गुण गावै नित जनमु सवारिआ ॥ ढाढी ने नित्य परमात्मा का गुणगान करके अपना जन्म सफल कर लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਿ ਸਲਾਹਿ ਸਚਾ ਉਰ ਧਾਰਿਆ ॥ गुरमुखि सेवि सलाहि सचा उर धारिआ ॥ गुरु के माध्यम से भक्ति एवं स्तुतिगान करके उसने सत्य को अपने हृदय में बसा लिया है।


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