Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 789

Page 789

ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਹਰਿ ਸਾਲਾਹੀ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤਨੁ ਮਨੁ ਸਉਪਿ ਸਰੀਰੁ ॥ हरि सालाही सदा सदा तनु मनु सउपि सरीरु ॥ हे नश्वर जीव ! अपना तन-मन एवं शरीर सब सौंपकर सदैव परमात्मा की स्तुति करो।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ਸਚਾ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ॥ गुर सबदी सचु पाइआ सचा गहिर ग्मभीरु ॥ गुरु के उपदेश द्वारा सत्य को पाया जा सकता है, जो गहन गंभीर एवं शाश्वत है ।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਿਰਦੈ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਹਰਿ ਹੀਰਾ ਹੀਰੁ ॥ मनि तनि हिरदै रवि रहिआ हरि हीरा हीरु ॥ परमात्मा रूपी अनमोल हीरा तन मन हृदय सब में विद्यमान है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਕਾ ਦੁਖੁ ਗਇਆ ਫਿਰਿ ਪਵੈ ਨ ਫੀਰੁ ॥ जनम मरण का दुखु गइआ फिरि पवै न फीरु ॥ मेरा जन्म-मरण का दुःख मिट गया है और अब मुझे आवागमन में पड़ना नहीं पड़ेगा।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਹਰਿ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰੁ ॥੧੦॥ नानक नामु सलाहि तू हरि गुणी गहीरु ॥१०॥ हे नानक ! परमात्मा गुणों का गहरा सागर है, तू उसके नाम का स्तुतिगान करता रह।॥१०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: १॥
ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਤਨੁ ਜਾਲਿ ਜਿਨਿ ਜਲਿਐ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥ नानक इहु तनु जालि जिनि जलिऐ नामु विसारिआ ॥ हे नानक ! यह शरीर जला दे, जिस जले हुए ने परमात्मा का नाम भुला दिया है।
ਪਉਦੀ ਜਾਇ ਪਰਾਲਿ ਪਿਛੈ ਹਥੁ ਨ ਅੰਬੜੈ ਤਿਤੁ ਨਿਵੰਧੈ ਤਾਲਿ ॥੧॥ पउदी जाइ परालि पिछै हथु न अ्मबड़ै तितु निवंधै तालि ॥१॥ तेरे हृदय रूपी तालाब में पापों की काई अर्थात् गंदगी पड़ती जा रही है, जिसे साफ करने के लिए फिर तेरा हाथ उस तक नहीं पहुँचेगा।॥१॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਨਾਨਕ ਮਨ ਕੇ ਕੰਮ ਫਿਟਿਆ ਗਣਤ ਨ ਆਵਹੀ ॥ नानक मन के कम फिटिआ गणत न आवही ॥ हे नानक ! मेरे मन के कार्य इतने धिक्कार योग्य हैं, जो गिने नहीं जा सकते।
ਕਿਤੀ ਲਹਾ ਸਹੰਮ ਜਾ ਬਖਸੇ ਤਾ ਧਕਾ ਨਹੀ ॥੨॥ किती लहा सहम जा बखसे ता धका नही ॥२॥ मैं नहीं जानता कि अपने पापों के लिए मुझे कितना दंड भोगना पड़ेगा; परंतु यदि भगवान् कृपा करके क्षमा कर दें, तो मैं उनकी उपस्थिति से वंचित नहीं रहूँगा। ।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਸਚਾ ਅਮਰੁ ਚਲਾਇਓਨੁ ਕਰਿ ਸਚੁ ਫੁਰਮਾਣੁ ॥ सचा अमरु चलाइओनु करि सचु फुरमाणु ॥ परमात्मा ने सच्चा विधान लागू करके सारी दुनिया में अपना सच्चा आदेश चलाया हुआ है।
ਸਦਾ ਨਿਹਚਲੁ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸੋ ਪੁਰਖੁ ਸੁਜਾਣੁ ॥ सदा निहचलु रवि रहिआ सो पुरखु सुजाणु ॥ वह सर्वज्ञ ईश्वर सदैव अनादि है और सर्वत्र व्याप्त है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸੇਵੀਐ ਸਚੁ ਸਬਦਿ ਨੀਸਾਣੁ ॥ गुर परसादी सेवीऐ सचु सबदि नीसाणु ॥ गुरु की कृपा से ही उसकी भक्ति होती है और उसके दरबार में पहुँचने के लिए सत्य शब्द ही स्वीकार्य है।
ਪੂਰਾ ਥਾਟੁ ਬਣਾਇਆ ਰੰਗੁ ਗੁਰਮਤਿ ਮਾਣੁ ॥ पूरा थाटु बणाइआ रंगु गुरमति माणु ॥ उसने समूचा विश्व बनाया है और गुरु उपदेशानुसार उसके रंग का आनंद प्राप्त करो।
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਅਲਖੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਜਾਣੁ ॥੧੧॥ अगम अगोचरु अलखु है गुरमुखि हरि जाणु ॥११॥ यह अगम्य, अगोचर एवं अलक्ष्य है और गुरु के माध्यम से ही उस परमात्मा को जाना जाता है। ११॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: १ ॥
ਨਾਨਕ ਬਦਰਾ ਮਾਲ ਕਾ ਭੀਤਰਿ ਧਰਿਆ ਆਣਿ ॥ नानक बदरा माल का भीतरि धरिआ आणि ॥ हे नानक ! जीव के माल की गठरी अर्थात् उसके शुभाशुभ कर्मों का लेखा जोखा लाकर भीतर रखा जाता है।
ਖੋਟੇ ਖਰੇ ਪਰਖੀਅਨਿ ਸਾਹਿਬ ਕੈ ਦੀਬਾਣਿ ॥੧॥ खोटे खरे परखीअनि साहिब कै दीबाणि ॥१॥ मालिक के दरबार में शुभ एवं अशुभ (सत्य-असत्य) कर्मों की परख की जाती है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु:१॥
ਨਾਵਣ ਚਲੇ ਤੀਰਥੀ ਮਨਿ ਖੋਟੈ ਤਨਿ ਚੋਰ ॥ नावण चले तीरथी मनि खोटै तनि चोर ॥ कुछ लोगों के मन में बड़ी खोट एवं तन में विकार रूपी चोर होते हैं। वे दिखावे के तौर पर बड़ी उमंग से तीर्थों में पापों से छूटने के लिए स्नान करने जाते हैं।
ਇਕੁ ਭਾਉ ਲਥੀ ਨਾਤਿਆ ਦੁਇ ਭਾ ਚੜੀਅਸੁ ਹੋਰ ॥ इकु भाउ लथी नातिआ दुइ भा चड़ीअसु होर ॥ फलस्वरूप तीर्थ पर स्नान करने से उनके विकारों का एक भाग तो छूट जाता है परन्तु विकारों के दो भाग और लग जाते हैं।
ਬਾਹਰਿ ਧੋਤੀ ਤੂਮੜੀ ਅੰਦਰਿ ਵਿਸੁ ਨਿਕੋਰ ॥ बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर ॥ बाहर से उनकी धोती तो धुल जाती है, मगर अन्तर्मन में झूठ रूपी विष भरा रहता ।
ਸਾਧ ਭਲੇ ਅਣਨਾਤਿਆ ਚੋਰ ਸਿ ਚੋਰਾ ਚੋਰ ॥੨॥ साध भले अणनातिआ चोर सि चोरा चोर ॥२॥ साधु धन्य है, यहां तक कि इस तरह के स्नान के बिना, जबकि एक चोर, चोर ही है, चाहे वह कितना भी स्नान करे।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਆਪੇ ਹੁਕਮੁ ਚਲਾਇਦਾ ਜਗੁ ਧੰਧੈ ਲਾਇਆ ॥ आपे हुकमु चलाइदा जगु धंधै लाइआ ॥ ईश्वर स्वयं ही सब पर अपना आदेश चलाते है और समूचे जगत् को भिन्न-भिन्न कार्यों में लगाया हुआ है।
ਇਕਿ ਆਪੇ ਹੀ ਆਪਿ ਲਾਇਅਨੁ ਗੁਰ ਤੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ इकि आपे ही आपि लाइअनु गुर ते सुखु पाइआ ॥ उसने कुछ जीवों को अपने आप नाम-सिमरन में लगाया है और उन्होंने गुरु से सुख प्राप्त किया है।
ਦਹ ਦਿਸ ਇਹੁ ਮਨੁ ਧਾਵਦਾ ਗੁਰਿ ਠਾਕਿ ਰਹਾਇਆ ॥ दह दिस इहु मनु धावदा गुरि ठाकि रहाइआ ॥ यह मन दसों दिशाओं में दौड़ता है, पर गुरु ने इस पर अंकुश लगाया है।
ਨਾਵੈ ਨੋ ਸਭ ਲੋਚਦੀ ਗੁਰਮਤੀ ਪਾਇਆ ॥ नावै नो सभ लोचदी गुरमती पाइआ ॥ सारी दुनिया ही नाम की अभिलाषा करती है परन्तु यह गुरु-मतानुसार ही मिलता है।
ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਮੇਟਿ ਨ ਸਕੀਐ ਜੋ ਹਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥੧੨॥ धुरि लिखिआ मेटि न सकीऐ जो हरि लिखि पाइआ ॥१२॥ जो ईश्वर ने भाग्य में लिख दिया है, उसे टाला नहीं जा सकता। १२ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ सलोक मः १ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु: १॥
ਦੁਇ ਦੀਵੇ ਚਉਦਹ ਹਟਨਾਲੇ ॥ दुइ दीवे चउदह हटनाले ॥ दुनिया में उजाला करने के लिए परमात्मा ने सूर्य एवं चन्द्रमा दो दीपक बनाए हैं और साथ ही चौदह लोक रूपी दुकानें बनाई हैं।
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਤੇਤੇ ਵਣਜਾਰੇ ॥ जेते जीअ तेते वणजारे ॥ दुनिया में जितने भी जीव हैं, वे सभी व्यापारी हैं।
ਖੁਲ੍ਹ੍ਹੇ ਹਟ ਹੋਆ ਵਾਪਾਰੁ ॥ खुल्हे हट होआ वापारु ॥ जब दुकानें खुल गई तो व्यापार होने लग गया।
ਜੋ ਪਹੁਚੈ ਸੋ ਚਲਣਹਾਰੁ ॥ जो पहुचै सो चलणहारु ॥ जो भी जन्म लेकर आता है, उसने यहाँ से चले जाना है।
ਧਰਮੁ ਦਲਾਲੁ ਪਾਏ ਨੀਸਾਣੁ ॥ धरमु दलालु पाए नीसाणु ॥ धार्मिक न्यायाधीश एक निष्पक्ष दलाल की भांति प्रत्येक कर्म रूपी व्यापार पर लाभ और हानि का चिह्न अंकित करता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਲਾਹਾ ਪਰਵਾਣੁ ॥ नानक नामु लाहा परवाणु ॥ हे नानक ! जीवों का अर्जित नाम रूपी लाभ ही स्वीकृत होता है।
ਘਰਿ ਆਏ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥ घरि आए वजी वाधाई ॥ जो जीव नाम रूपी लाभ अर्जित करके अपने घर आए हैं, उन्हें शुभकामनाएँ मिली हैं
ਸਚ ਨਾਮ ਕੀ ਮਿਲੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥ सच नाम की मिली वडिआई ॥१॥ और उन्हें ही सत्य-नाम की बड़ाई मिली है। १॥
ਮਃ ੧ ॥ मः १ ॥ प्रथम गुरु: १॥
ਰਾਤੀ ਹੋਵਨਿ ਕਾਲੀਆ ਸੁਪੇਦਾ ਸੇ ਵੰਨ ॥ राती होवनि कालीआ सुपेदा से वंन ॥ जब रातें काली होती हैं तो भी सफेद वस्त्रों के रंग सफेद ही रहते हैं अर्थात् दुःख में भी धैर्यवान अपना धैर्य नहीं छोड़ते।
ਦਿਹੁ ਬਗਾ ਤਪੈ ਘਣਾ ਕਾਲਿਆ ਕਾਲੇ ਵੰਨ ॥ दिहु बगा तपै घणा कालिआ काले वंन ॥ नि:संकोच दिन सफेद होता है और गर्मी भी काफी होती है तो भी काली वस्तुओं के रंग काले ही रहते हैं अर्थात् झूठे अपना झूठ नहीं छोड़ते।
ਅੰਧੇ ਅਕਲੀ ਬਾਹਰੇ ਮੂਰਖ ਅੰਧ ਗਿਆਨੁ ॥ अंधे अकली बाहरे मूरख अंध गिआनु ॥ इसी प्रकार, अज्ञानी मूर्ख आध्यात्मिक ज्ञान से पूरी तरह अंधे रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਬਾਹਰੇ ਕਬਹਿ ਨ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥੨॥ नानक नदरी बाहरे कबहि न पावहि मानु ॥२॥ हे नानक ! जिस पर परमात्मा की कृपा-दृष्टि नहीं होती, वह कभी शोभा का पात्र नहीं बनता ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी।
ਕਾਇਆ ਕੋਟੁ ਰਚਾਇਆ ਹਰਿ ਸਚੈ ਆਪੇ ॥ काइआ कोटु रचाइआ हरि सचै आपे ॥ सच्चे परमेश्वर ने स्वयं यह शरीर रूपी किला बनाया है।
ਇਕਿ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਖੁਆਇਅਨੁ ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਵਿਆਪੇ ॥ इकि दूजै भाइ खुआइअनु हउमै विचि विआपे ॥ किसी को द्वैतभाव में प्रवृत्त करके पथभ्रष्ट कर देता है, जो अहंकार की भावना में ही लीन रहता है।
ਇਹੁ ਮਾਨਸ ਜਨਮੁ ਦੁਲੰਭੁ ਸਾ ਮਨਮੁਖ ਸੰਤਾਪੇ ॥ इहु मानस जनमु दुल्मभु सा मनमुख संतापे ॥ यह मानव जन्म दुर्लभ है परन्तु स्वेच्छाचारी जीव बहुत दुःखी होते हैं।
ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋ ਬੁਝਸੀ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਥਾਪੇ ॥ जिसु आपि बुझाए सो बुझसी जिसु सतिगुरु थापे ॥ यह सूझ उसे ही होती है, जिसे परमात्मा स्वयं सूझ देता है और जिसे सतगुरु प्रेरित करता है।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਖੇਲੁ ਰਚਾਇਓਨੁ ਸਭ ਵਰਤੈ ਆਪੇ ॥੧੩॥ सभु जगु खेलु रचाइओनु सभ वरतै आपे ॥१३॥ यह समूचा जगत् परमात्मा द्वारा रचित एक खेल है जिसमें वह स्वयं ही समान रूप से व्याप्त है ॥१३॥


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