Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 791

Page 791

ਘਰੁ ਦਰੁ ਪਾਵੈ ਮਹਲੁ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਿਆ ॥ उसने नाम से प्रेम करके प्रभु का द्वार-घर पा लिया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਹਉ ਗੁਰ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ॥ उसने गुरु के माध्यम से नाम को प्राप्त किया है, मैं उस गुरु पर न्यौछावर हूँ।
ਤੂ ਆਪਿ ਸਵਾਰਹਿ ਆਪਿ ਸਿਰਜਨਹਾਰਿਆ ॥੧੬॥ हे सिरजनहार! तू स्वयं सबको संवारने वाला है| १६ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १ ॥
ਦੀਵਾ ਬਲੈ ਅੰਧੇਰਾ ਜਾਇ ॥ जैसे दीया जलाने से अँधेरा दूर हो जाता है,
ਬੇਦ ਪਾਠ ਮਤਿ ਪਾਪਾ ਖਾਇ ॥ वैसे ही वेद इत्यादि ग्रंथों का पाठ पापों वाली मति को नाश कर देता है।
ਉਗਵੈ ਸੂਰੁ ਨ ਜਾਪੈ ਚੰਦੁ ॥ जैसे सूर्योदय होने से चाँद नजर नहीं आता,
ਜਹ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ਅਗਿਆਨੁ ਮਿਟੰਤੁ ॥ वैसे ही ज्ञान का प्रकाश होने से अज्ञान मिट जाता है।
ਬੇਦ ਪਾਠ ਸੰਸਾਰ ਕੀ ਕਾਰ ॥ वेदों का पाठ संसार का एक व्यवसाय बन गया है।
ਪੜ੍ਹ੍ਹਿ ਪੜ੍ਹ੍ਹਿ ਪੰਡਿਤ ਕਰਹਿ ਬੀਚਾਰ ॥ पण्डित वेदों को पढ़-पढ़कर विचार करते हैं
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਸਭ ਹੋਇ ਖੁਆਰ ॥ किन्तु सूझ के बिना वे सभी ख्वार होते हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਿ ॥੧॥ हे नानक ! गुरु के माध्यम से ही इन्सान भवसागर से पार हो सकता है| १॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਸਬਦੈ ਸਾਦੁ ਨ ਆਇਓ ਨਾਮਿ ਨ ਲਗੋ ਪਿਆਰੁ ॥ जिस व्यक्ति को ब्रह्म-शब्द का आनंद नहीं आया और नाम से भी प्यार नहीं लगा,
ਰਸਨਾ ਫਿਕਾ ਬੋਲਣਾ ਨਿਤ ਨਿਤ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥ वह जुबान द्वारा फीका बोलने से नित्य ख्वार होता रहता है।
ਨਾਨਕ ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਵਣਾ ਕੋਇ ਨ ਮੇਟਣਹਾਰੁ ॥੨॥ हे नानक ! व्यक्ति को अपनी किस्मत में लिखा हुआ कर्म ही करना पड़ता है, जिसे कोई भी टालने वाला नहीं है। ॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी।
ਜਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਲਾਹੇ ਆਪਣਾ ਸੋ ਸੋਭਾ ਪਾਏ ॥ जो अपने प्रभु की स्तुति करता है, उसे दुनिया में बड़ी शोभा प्राप्त होती है।
ਹਉਮੈ ਵਿਚਹੁ ਦੂਰਿ ਕਰਿ ਸਚੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ वह अपने अभिमान को दूर करके मन में सत्य को बसा लेता है।
ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਗੁਣ ਉਚਰੈ ਸਚਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥ वह सच्ची वाणी द्वारा परमात्मा का गुणगान करता है और सच्चा सुख हासिल करता है।
ਮੇਲੁ ਭਇਆ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ਗੁਰ ਪੁਰਖਿ ਮਿਲਾਏ ॥ चिरकाल से बिछुड़े हुए जीव का मिलन हो गया है, गुरु ने उसे परमात्मा से मिला दिया है।
ਮਨੁ ਮੈਲਾ ਇਵ ਸੁਧੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥੧੭॥ इस तरह हरि-नाम का ध्यान करने से जीव का मैला मन शुद्ध हो जाता है। १७ ॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १ ॥
ਕਾਇਆ ਕੂਮਲ ਫੁਲ ਗੁਣ ਨਾਨਕ ਗੁਪਸਿ ਮਾਲ ॥ हे नानक ! यह मानव-शरीर कोंपलों एवं गुण फूलों की मानिंद हैं।
ਏਨੀ ਫੁਲੀ ਰਉ ਕਰੇ ਅਵਰ ਕਿ ਚੁਣੀਅਹਿ ਡਾਲ ॥੧॥ अत: इन गुण रूपी फूलों की माला बनाकर भगवान् के समक्ष अर्पण करनी चाहिए। इन फूलों का हार बनाने के बाद अन्य डालियां चुनने की कोई जरूरत नहीं रहती। १॥
ਮਹਲਾ ੨ ॥ महला २ ॥
ਨਾਨਕ ਤਿਨਾ ਬਸੰਤੁ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਕੰਤੁ ॥ हे नानक ! उन स्त्रियों के लिए सदैव वसंत है जिनका पति-प्रभु उनके घर में ही स्थित है।
ਜਿਨ ਕੇ ਕੰਤ ਦਿਸਾਪੁਰੀ ਸੇ ਅਹਿਨਿਸਿ ਫਿਰਹਿ ਜਲੰਤ ॥੨॥ लेकिन जिन स्त्रियों के पति परदेस गए हैं, वे दिन-रात वियोग में जलती रहती हैं। २ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी।
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਦਇਆ ਕਰਿ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਬਚਨੀ ॥ गुरु के वचन द्वारा प्रभु दया करके स्वयं ही बख्शिश कर देता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਸੇਵੀ ਗੁਣ ਰਵਾ ਮਨੁ ਸਚੈ ਰਚਨੀ ॥ मैं दिन-रात परमात्मा की उपासना एवं उसका गुणगान करता रहता हूँ। मेरा मन परम-सत्य में ही लीन रहता है।
ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਬੇਅੰਤੁ ਹੈ ਅੰਤੁ ਕਿਨੈ ਨ ਲਖਨੀ ॥ मेरा प्रभु बेअंत है और किसी ने भी उसका रहस्य नहीं समझा।
ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣੀ ਲਗਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਜਪਨੀ ॥ गुरु के चरणों में लगकर नित्य हरि-नाम का जाप करना चाहिए।
ਜੋ ਇਛੈ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਇਸੀ ਸਭਿ ਘਰੈ ਵਿਚਿ ਜਚਨੀ ॥੧੮॥ इस प्रकार मनोवांछित फल प्राप्त होता है और सभी मुरादें घर में पूरी हो जाती हैं।॥१८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਪਹਿਲ ਬਸੰਤੈ ਆਗਮਨਿ ਪਹਿਲਾ ਮਉਲਿਓ ਸੋਇ ॥ सर्वप्रथम बसंत ऋतु का आगमन होता है परन्तु उससे भी पहले परमात्मा था, जो सबसे पहले विकसित हुआ है।
ਜਿਤੁ ਮਉਲਿਐ ਸਭ ਮਉਲੀਐ ਤਿਸਹਿ ਨ ਮਉਲਿਹੁ ਕੋਇ ॥੧॥ उसके विकसित होने से सबका विकास होता है। मगर परमात्मा किसी के द्वारा विकसित नहीं होता, वह स्वयंभू है। १॥
ਮਃ ੨ ॥ महला २॥
ਪਹਿਲ ਬਸੰਤੈ ਆਗਮਨਿ ਤਿਸ ਕਾ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥ उसका चिंतन करो, जो वसंत ऋतु के आगमन से पहले भी मौजूद था।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿ ਸਭਸੈ ਦੇ ਆਧਾਰੁ ॥੨॥ हे नानक उस परमात्मा की प्रशंसा करनी चाहिए जो सबको सहारा देता है। ॥ २ ॥
ਮਃ ੨ ॥ महला २
ਮਿਲਿਐ ਮਿਲਿਆ ਨਾ ਮਿਲੈ ਮਿਲੈ ਮਿਲਿਆ ਜੇ ਹੋਇ ॥ सिर्फ कहने से ही मिलाप नहीं होता, सच्चा मिलन तो ही होता है, अगर सचमुच मिलाप हो जाए।
ਅੰਤਰ ਆਤਮੈ ਜੋ ਮਿਲੈ ਮਿਲਿਆ ਕਹੀਐ ਸੋਇ ॥੩॥ जो अपनी अन्तरात्मा में मिल गया है, उसे ही मिलन कहना चाहिए ॥३॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹੀਐ ਸਚੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥ प्रभु-नाम का स्तुतिगान करो, वास्तव में यही सत्कर्म करना चाहिए।
ਦੂਜੀ ਕਾਰੈ ਲਗਿਆ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਪਾਵੈ ॥ संसार के अन्य कार्यों में संलग्न रहने वाला पुन: योनि प्राप्त करता है।
ਨਾਮਿ ਰਤਿਆ ਨਾਮੁ ਪਾਈਐ ਨਾਮੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥ नाम में लीन रहने से नाम ही प्राप्त होता है और प्रभु-नाम का ही करना चाहिए,
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀਐ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥ गुरु के उपदेश द्वारा परमात्मा की प्रशंसा करने वाला नाम में ही विलीन जाता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਸਫਲ ਹੈ ਸੇਵਿਐ ਫਲ ਪਾਵੈ ॥੧੯॥ सतगुरु की सेवा ही सफल है,सेवा करने से फल की प्राप्ति होती है|॥१९॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੨ ॥ श्लोक महला २ ॥
ਕਿਸ ਹੀ ਕੋਈ ਕੋਇ ਮੰਞੁ ਨਿਮਾਣੀ ਇਕੁ ਤੂ ॥ हे परमात्मा ! हर किसी का कोई न कोई सहारा है, पर मुझ विनीत का एक तू ही सहारा है।


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