Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 738

Page 738

ਖਿਨੁ ਰਹਨੁ ਨ ਪਾਵਉ ਬਿਨੁ ਪਗ ਪਾਗੇ ॥ खिनु रहनु न पावउ बिनु पग पागे ॥ मैं आध्यात्मिक रूप से अपने पति परमेश्वर के दर्शन किए बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती।
ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਹ ਸਭਾਗੇ ॥੩॥ होइ क्रिपालु प्रभ मिलह सभागे ॥३॥ हाँ, हे मेरे मित्र, यदि वे स्वयं कृपा करें, तो सौभाग्यशाली पुण्यात्माएँ भगवान से साक्षात्कार कर सकती हैं।॥ ३॥
ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਸਤਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥ भइओ क्रिपालु सतसंगि मिलाइआ ॥ प्रभु ने कृपालु होकर मुझे सत्संग में मिला दिया है।
ਬੂਝੀ ਤਪਤਿ ਘਰਹਿ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ॥ बूझी तपति घरहि पिरु पाइआ ॥ मेरी विरह की जलन बुझ गई है, चूंकि मैंने हृदय-घर में ही पति-प्रभु को पा लिया है।
ਸਗਲ ਸੀਗਾਰ ਹੁਣਿ ਮੁਝਹਿ ਸੁਹਾਇਆ ॥ सगल सीगार हुणि मुझहि सुहाइआ ॥ अब मुझे सारा शृंगार सुन्दर लगता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੪॥ कहु नानक गुरि भरमु चुकाइआ ॥४॥ हे नानक ! सतगुरु ने मेरा भ्रम मिटा दिया है॥ ४॥
ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਪਿਰੁ ਹੈ ਭਾਈ ॥ जह देखा तह पिरु है भाई ॥ हे सखी ! अब मैं जिधर भी देखती हूँ, उधर ही मुझे पति-प्रभु नज़र आते हैं।
ਖੋਲਿ੍ਹ੍ਹਓ ਕਪਾਟੁ ਤਾ ਮਨੁ ਠਹਰਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੫॥ खोल्हिओ कपाटु ता मनु ठहराई ॥१॥ रहाउ दूजा ॥५॥ गुरु ने मेरे संशय दूर कर दिए तो मेरा मन भटकने से हट गया। ॥ १ ॥ रहाउ दूसरा ॥ ५ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਸਾਰਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੀ ਮੋਹਿ ਨਿਰਗੁਨ ਕੇ ਦਾਤਾਰੇ ॥ किआ गुण तेरे सारि सम्हाली मोहि निरगुन के दातारे ॥ हे मुझ गुणविहीन के दाता ! मैं आपके कौन-कौन से गुण याद करके आपकी आराधना करूं?
ਬੈ ਖਰੀਦੁ ਕਿਆ ਕਰੇ ਚਤੁਰਾਈ ਇਹੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਥਾਰੇ ॥੧॥ बै खरीदु किआ करे चतुराई इहु जीउ पिंडु सभु थारे ॥१॥ मेरे ये प्राण एवं शरीर सब आपका ही दिए हुए है, फिर मैं आपका खरीदा हुआ सेवक आपके आगे क्या चतुराई कर सकता हूँ। ॥१॥
ਲਾਲ ਰੰਗੀਲੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਮਨਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਹਮ ਬਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ लाल रंगीले प्रीतम मनमोहन तेरे दरसन कउ हम बारे ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे प्रियतम प्यारे, रंगीले मनमोहन ! मैं आपके दर्शन पर बलिहारी जाता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਦਾਤਾ ਮੋਹਿ ਦੀਨੁ ਭੇਖਾਰੀ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸਦਾ ਸਦਾ ਉਪਕਾਰੇ ॥ प्रभु दाता मोहि दीनु भेखारी तुम्ह सदा सदा उपकारे ॥ हे प्रभु ! आप मेरे दाता है परन्तु मैं आपके द्वार का दीन भिखारी हूँ। आप सदा-सर्वदा मुझ पर उपकार करता रहता है।
ਸੋ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਜਿ ਮੈ ਤੇ ਹੋਵੈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥੨॥ सो किछु नाही जि मै ते होवै मेरे ठाकुर अगम अपारे ॥२॥ हे मेरे ठाकुर ! आप अगम्य एवं अपरंपार है। कोई ऐसा कार्य नहीं है, जो मुझ से हो सके॥ २॥
ਕਿਆ ਸੇਵ ਕਮਾਵਉ ਕਿਆ ਕਹਿ ਰੀਝਾਵਉ ਬਿਧਿ ਕਿਤੁ ਪਾਵਉ ਦਰਸਾਰੇ ॥ किआ सेव कमावउ किआ कहि रीझावउ बिधि कितु पावउ दरसारे ॥ मैं आपकी कौन-सी सेवा करूं और क्या कहकर तुझे प्रसन्न करूं? मैं किस विधि द्वारा तेरे दर्शन करूँ।
ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ਅੰਤੁ ਨ ਲਹੀਐ ਮਨੁ ਤਰਸੈ ਚਰਨਾਰੇ ॥੩॥ मिति नही पाईऐ अंतु न लहीऐ मनु तरसै चरनारे ॥३॥ आपका विस्तार नहीं पाया जा सकता और आपका अंत नहीं मिल सकता। आपके चरणों में रहने के लिए मेरा मन तरसता रहता है ॥ ३॥
ਪਾਵਉ ਦਾਨੁ ਢੀਠੁ ਹੋਇ ਮਾਗਉ ਮੁਖਿ ਲਾਗੈ ਸੰਤ ਰੇਨਾਰੇ ॥ पावउ दानु ढीठु होइ मागउ मुखि लागै संत रेनारे ॥ मैं ढीठ होकर तुझसे यही दान माँगता हूँ कि आपके संतों की चरण-धूलि मेरे मुंह को लगे।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਪ੍ਰਭਿ ਹਾਥ ਦੇਇ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੪॥੬॥ जन नानक कउ गुरि किरपा धारी प्रभि हाथ देइ निसतारे ॥४॥६॥ हे नानक, जिस भक्त पर गुरु की कृपा हुई, उसे ईश्वर का सहारा मिला और वह संसार रूपी विकारों के सागर से पार हो गया। ॥ ४॥ ६॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ सूही महला ५ घरु ३ राग सूही, पांचवें गुरु, तीसरी ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਸੇਵਾ ਥੋਰੀ ਮਾਗਨੁ ਬਹੁਤਾ ॥ सेवा थोरी मागनु बहुता ॥ आदमी सेवा तो थोड़ी करता है परन्तु उसकी मांग बहुत ज्यादा है।
ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ਕਹਤੋ ਪਹੁਤਾ ॥੧॥ महलु न पावै कहतो पहुता ॥१॥ वह भगवान् को समझ नहीं पाता परन्तु झूठी घोषणा करते है कि वह उसके साथ जुड़े है॥ १॥
ਜੋ ਪ੍ਰਿਅ ਮਾਨੇ ਤਿਨ ਕੀ ਰੀਸਾ ॥ जो प्रिअ माने तिन की रीसा ॥ व्यक्ति अपनी तुलना उन लोगों से करता है जिन्हें भगवान् ने अपना लिया है।
ਕੂੜੇ ਮੂਰਖ ਕੀ ਹਾਠੀਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कूड़े मूरख की हाठीसा ॥१॥ रहाउ ॥ यह केवल झूठे एवं मूर्ख आदमी का केवल हठ ही है॥ १॥ रहाउ॥
ਭੇਖ ਦਿਖਾਵੈ ਸਚੁ ਨ ਕਮਾਵੈ ॥ भेख दिखावै सचु न कमावै ॥ झूठा आदमी धर्मी होने का पाखण्ड ही दिखाता है और सत्य की साधना नहीं करता।
ਕਹਤੋ ਮਹਲੀ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ॥੨॥ कहतो महली निकटि न आवै ॥२॥ वह कहता है कि वह भगवान् के साथ है, लेकिन वास्तव में वह उनके पास भी नहीं पहुंचा है। ॥ २।
ਅਤੀਤੁ ਸਦਾਏ ਮਾਇਆ ਕਾ ਮਾਤਾ ॥ अतीतु सदाए माइआ का माता ॥ वह माया में ही मस्त रहता है लेकिन स्वयं को विरक्त कहलाता है।
ਮਨਿ ਨਹੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਹੈ ਮੁਖਿ ਰਾਤਾ ॥੩॥ मनि नही प्रीति कहै मुखि राता ॥३॥ उसके मन में प्रभु से प्रेम नहीं है लेकिन व्यर्थ ही मुँह से कहलाता रहता है कि वह प्रभु के प्रेम में मग्न है॥ ३॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨਉ ਸੁਨੀਜੈ ॥ कहु नानक प्रभ बिनउ सुनीजै ॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! मेरी एक विनती सुन लो,
ਕੁਚਲੁ ਕਠੋਰੁ ਕਾਮੀ ਮੁਕਤੁ ਕੀਜੈ ॥੪॥ कुचलु कठोरु कामी मुकतु कीजै ॥४॥ मुझ कुकर्मी, निर्दयी एवं कामी आदमी को मुक्त कर दीजिए॥ ४॥
ਦਰਸਨ ਦੇਖੇ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥ दरसन देखे की वडिआई ॥ हे प्रभु ! हमें अपने पवित्र दर्शनों को अनुभव करने का आशीर्वाद दें।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਸੁਖਦਾਤੇ ਪੁਰਖ ਸੁਭਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥੭॥ तुम्ह सुखदाते पुरख सुभाई ॥१॥ रहाउ दूजा ॥१॥७॥ हे सुखदाता प्रभु! आप मेरे शुभचिंतक है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥ ७॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥ राग सूही, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬੁਰੇ ਕਾਮ ਕਉ ਊਠਿ ਖਲੋਇਆ ॥ बुरे काम कउ ऊठि खलोइआ ॥ बुरे काम के लिए तो आदमी शीघ्र ही उठकर खड़ा हो गया,
ਨਾਮ ਕੀ ਬੇਲਾ ਪੈ ਪੈ ਸੋਇਆ ॥੧॥ नाम की बेला पै पै सोइआ ॥१॥ परन्तु परमात्मा का नाम जपने के शुभ समय पर बेफिक्र होकर सोया रहा ॥ १॥
ਅਉਸਰੁ ਅਪਨਾ ਬੂਝੈ ਨ ਇਆਨਾ ॥ अउसरु अपना बूझै न इआना ॥ ज्ञानहीन मनुष्य नहीं जानता कि यह मानव जीवन भगवान् को याद करने का सुअवसर है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਰੰਗਿ ਲਪਟਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ माइआ मोह रंगि लपटाना ॥१॥ रहाउ ॥ वह माया-मोह के रंग से ही लिपटा हुआ है॥ १॥ रहाउ॥
ਲੋਭ ਲਹਰਿ ਕਉ ਬਿਗਸਿ ਫੂਲਿ ਬੈਠਾ ॥ लोभ लहरि कउ बिगसि फूलि बैठा ॥ वह लोभ की लहरों में खुश होकर गर्व में बैठा हुआ है।
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕਾ ਦਰਸੁ ਨ ਡੀਠਾ ॥੨॥ साध जना का दरसु न डीठा ॥२॥ वह साधुजनों के कभी दर्शन नहीं करता॥ २॥
ਕਬਹੂ ਨ ਸਮਝੈ ਅਗਿਆਨੁ ਗਵਾਰਾ ॥ कबहू न समझै अगिआनु गवारा ॥ वह अज्ञानी एवं गंवार कभी भी नहीं समझता और
ਬਹੁਰਿ ਬਹੁਰਿ ਲਪਟਿਓ ਜੰਜਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बहुरि बहुरि लपटिओ जंजारा ॥१॥ रहाउ ॥ बार-बार दुनिया के जंजाल में फँसा रहता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਬਿਖੈ ਨਾਦ ਕਰਨ ਸੁਣਿ ਭੀਨਾ ॥ बिखै नाद करन सुणि भीना ॥ वह अपने कानों से विषय-विकारों के गीत सुनकर बड़ा खुश होता रहा।
ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੁਨਤ ਆਲਸੁ ਮਨਿ ਕੀਨਾ ॥੩॥ हरि जसु सुनत आलसु मनि कीना ॥३॥ लेकिन हरि-यश सुनने में मन में आलस्य करता रहा।॥ ३॥
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨਾਹੀ ਰੇ ਪੇਖਤ ਅੰਧੇ ॥ द्रिसटि नाही रे पेखत अंधे ॥ हे आत्मिक रूप से अज्ञानी ! तू अपनी आंखों से क्यों नहीं देखता कि
ਛੋਡਿ ਜਾਹਿ ਝੂਠੇ ਸਭਿ ਧੰਧੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ छोडि जाहि झूठे सभि धंधे ॥१॥ रहाउ ॥ एक दिन तू भी दुनिया के सारे झूठे धंधे छोड़कर यहाँ से चला जाएगा।॥ १॥ रहाउ॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਬਖਸ ਕਰੀਜੈ ॥ कहु नानक प्रभ बखस करीजै ॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! मुझे क्षमा कर दीजिए और


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