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ਜਿਸ ਨੋ ਲਾਇ ਲਏ ਸੋ ਲਾਗੈ ॥
जिस नो लाइ लए सो लागै ॥
जिसे परमात्मा स्वयं अपने साथ लगाते है, वही उससे लगता है।
ਗਿਆਨ ਰਤਨੁ ਅੰਤਰਿ ਤਿਸੁ ਜਾਗੈ ॥
गिआन रतनु अंतरि तिसु जागै ॥
रत्नों जैसा अमूल्य ज्ञान उसके मन में प्रकाशित हो जाता है।
ਦੁਰਮਤਿ ਜਾਇ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਏ ॥
दुरमति जाइ परम पदु पाए ॥
उसकी दुर्मति नाश हो जाती है और वह परमपद पा लेता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥੩॥
गुर परसादी नामु धिआए ॥३॥
गुरु की कृपा से वह परमात्मा के नाम का ध्यान करता रहता है॥ ३॥
ਦੁਇ ਕਰ ਜੋੜਿ ਕਰਉ ਅਰਦਾਸਿ ॥
दुइ कर जोड़ि करउ अरदासि ॥
हे प्रभु ! मैं अपने दोनों हाथ जोड़कर आपके समक्ष प्रार्थना करता हूँ।
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਆਣਹਿ ਰਾਸਿ ॥
तुधु भावै ता आणहि रासि ॥
जब आप प्रसन्न होते हैं, तभी प्रार्थनाएँ स्वीकार होती हैं और पूर्ण भी होती हैं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪਨੀ ਭਗਤੀ ਲਾਇ ॥
करि किरपा अपनी भगती लाइ ॥
उस पर वे दया करके ईश्वर अपनी भक्ति के मार्ग पर लगा देते हैं,
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਧਿਆਇ ॥੪॥੨॥
जन नानक प्रभु सदा धिआइ ॥४॥२॥
दास नानक तो सदैव ही प्रभु का ध्यान करता रहता है॥ ४॥ २॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पंचम गुरु: ५ ॥
ਧਨੁ ਸੋਹਾਗਨਿ ਜੋ ਪ੍ਰਭੂ ਪਛਾਨੈ ॥
धनु सोहागनि जो प्रभू पछानै ॥
वह सुहागिन धन्य है, जो अपने पति-प्रभु को प्राप्त कर लेती है।
ਮਾਨੈ ਹੁਕਮੁ ਤਜੈ ਅਭਿਮਾਨੈ ॥
मानै हुकमु तजै अभिमानै ॥
वह अपने पति-प्रभु की आज्ञा मानती है और अभिमान को त्याग देती है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸਿਉ ਰਾਤੀ ਰਲੀਆ ਮਾਨੈ ॥੧॥
प्रिअ सिउ राती रलीआ मानै ॥१॥
वह अपने प्रिय के प्रेम में मग्न रहकर आनंद प्राप्त करती है॥ १॥
ਸੁਨਿ ਸਖੀਏ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਣ ਨੀਸਾਨੀ ॥
सुनि सखीए प्रभ मिलण नीसानी ॥
हे मेरी सखी ! प्रभु से मिलन का सत्य मार्ग सुन।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਅਰਪਿ ਤਜਿ ਲਾਜ ਲੋਕਾਨੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु तनु अरपि तजि लाज लोकानी ॥१॥ रहाउ ॥
लोक-लाज छोड़कर अपना मन-तन प्रभु को अर्पण कर दे॥ १॥ रहाउ॥
ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਕਉ ਸਮਝਾਵੈ ॥
सखी सहेली कउ समझावै ॥
सखी अपनी सहेली को समझाती है कि
ਸੋਈ ਕਮਾਵੈ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ॥ ਸਾ ਸੋਹਾਗਣਿ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵੈ ॥੨॥
सोई कमावै जो प्रभ भावै ॥ सा सोहागणि अंकि समावै ॥२॥
वह वही कार्य करे जो प्रभु को अच्छा लगे। फिर वह सुहागिन प्रभु-चरणों में समा जाती है।॥२॥
ਗਰਬਿ ਗਹੇਲੀ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਵੈ ॥
गरबि गहेली महलु न पावै ॥
अहंकार में फँसी जीव-स्त्री प्रभु को नहीं पा सकती।
ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਵੈ ਜਬ ਰੈਣਿ ਬਿਹਾਵੈ ॥
फिरि पछुतावै जब रैणि बिहावै ॥
जब उसकी जीवन रूपी रात्रि बीत जाती है तो फिर वह पछतावा करती है।
ਕਰਮਹੀਣਿ ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੩॥
करमहीणि मनमुखि दुखु पावै ॥३॥
कर्महीन मनमुखी जीव-स्त्री बहुत दुःख प्राप्त करती है॥ ३॥
ਬਿਨਉ ਕਰੀ ਜੇ ਜਾਣਾ ਦੂਰਿ ॥
बिनउ करी जे जाणा दूरि ॥
मैं ईश्वर से तभी प्रार्थना करूँगी जब मुझे लगे कि वह मुझसे दूर हैं।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥
प्रभु अबिनासी रहिआ भरपूरि ॥
वह अविनाशी प्रभु तो सर्वव्यापक है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਗਾਵੈ ਦੇਖਿ ਹਦੂਰਿ ॥੪॥੩॥
जनु नानकु गावै देखि हदूरि ॥४॥३॥
दास नानक उन्हें अपने आसपास देखकर उसका ही गुणगान करते है॥ ४॥ ३॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पंचम गुरु: ५ ॥
ਗ੍ਰਿਹੁ ਵਸਿ ਗੁਰਿ ਕੀਨਾ ਹਉ ਘਰ ਕੀ ਨਾਰਿ ॥
ग्रिहु वसि गुरि कीना हउ घर की नारि ॥
हे सखी ! गुरु ने मेरा हृदय-घर मेरे वश में कर दिया है और अब मैं इस हृदय-घर की स्वामिनी बन चुकी हूँ।
ਦਸ ਦਾਸੀ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਭਤਾਰਿ ॥
दस दासी करि दीनी भतारि ॥
मेरे पति-प्रभु ने मेरी दसों इन्द्रियों को मेरी दासियाँ बना दिया है।
ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਮੈ ਘਰ ਕੀ ਜੋੜੀ ॥
सगल समग्री मै घर की जोड़ी ॥
मैंने अपने घर (शरीर और मन) के लिए सभी आवश्यक वस्तुएँ, उच्च नैतिक और दैवीय गुण एकत्र कर लिए हैं।
ਆਸ ਪਿਆਸੀ ਪਿਰ ਕਉ ਲੋੜੀ ॥੧॥
आस पिआसी पिर कउ लोड़ी ॥१॥
अब मैं मिलन की तीव्र लालसा से पति-प्रभु को पाना चाहती हूँ॥ १॥
ਕਵਨ ਕਹਾ ਗੁਨ ਕੰਤ ਪਿਆਰੇ ॥
कवन कहा गुन कंत पिआरे ॥
मैं उस प्यारे प्रभु के कौन-कौन से गुण व्यक्त करूँ ?
ਸੁਘੜ ਸਰੂਪ ਦਇਆਲ ਮੁਰਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुघड़ सरूप दइआल मुरारे ॥१॥ रहाउ ॥
वह मुरारि तो बड़े चतुर, सुन्दर रूप वाले एवं बड़े ही दयालु है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਤੁ ਸੀਗਾਰੁ ਭਉ ਅੰਜਨੁ ਪਾਇਆ ॥
सतु सीगारु भउ अंजनु पाइआ ॥
मैंने सत्य का श्रृंगार किया है और उसके प्रेम-भय का सुरमा अपनी आंखों में डाल लिया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਤੰਬੋਲੁ ਮੁਖਿ ਖਾਇਆ ॥
अम्रित नामु त्मबोलु मुखि खाइआ ॥
मैंने अमृतमयी नाम रूपी पान को अपने मुख से खाया है।
ਕੰਗਨ ਬਸਤ੍ਰ ਗਹਨੇ ਬਨੇ ਸੁਹਾਵੇ ॥
कंगन बसत्र गहने बने सुहावे ॥
अब मेरे सत्य के श्रृंगार से सुसज्जित कंगन, वस्त्र एवं आभूषण बहुत सुन्दर लगते हैं।क्योंकि आत्मा ने आध्यात्मिकता की दिशा में सफलता प्राप्त कर ली है।
ਧਨ ਸਭ ਸੁਖ ਪਾਵੈ ਜਾਂ ਪਿਰੁ ਘਰਿ ਆਵੈ ॥੨॥
धन सभ सुख पावै जां पिरु घरि आवै ॥२॥
हे सखी ! जीव-स्त्री तो ही सर्व सुख पाती है, जब उसका पति-प्रभु उसके हृदय-घर में आकर निवास करते है। २॥
ਗੁਣ ਕਾਮਣ ਕਰਿ ਕੰਤੁ ਰੀਝਾਇਆ ॥
गुण कामण करि कंतु रीझाइआ ॥
सद्गुणों के आकर्षण से आत्मवधू ने अपने पति परमेश्वर को आकृष्ट कर लिया है।
ਵਸਿ ਕਰਿ ਲੀਨਾ ਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
वसि करि लीना गुरि भरमु चुकाइआ ॥
सतगुरु ने जब मेरे भ्रम दूर किए तो मुझे अपने पति परमेश्वर पर प्रेमपूर्ण अधिकार प्राप्त हुआ है।
ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ਮੰਦਰੁ ਮੇਰਾ ॥
सभ ते ऊचा मंदरु मेरा ॥
मेरा हृदय रूपी मन्दिर सर्वोत्तम बन गया है।
ਸਭ ਕਾਮਣਿ ਤਿਆਗੀ ਪ੍ਰਿਉ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮੇਰਾ ॥੩॥
सभ कामणि तिआगी प्रिउ प्रीतमु मेरा ॥३॥
मेरे प्रियतम-प्रभु ने अन्य सब जीव-स्त्रियों को छोड़कर मुझे अपना बना लिया है॥ ३॥
ਪ੍ਰਗਟਿਆ ਸੂਰੁ ਜੋਤਿ ਉਜੀਆਰਾ ॥
प्रगटिआ सूरु जोति उजीआरा ॥
ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो ज्ञान का सूर्य उदित हो गया हो, और मेरे मन में दिव्य प्रकाश का आलोक छा गया हो।
ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ਸਰਧ ਅਪਾਰਾ ॥
सेज विछाई सरध अपारा ॥
मैंने अपने हृदय को उनके प्रति पूर्ण भक्ति से अलंकृत कर लिया है।
ਨਵ ਰੰਗ ਲਾਲੁ ਸੇਜ ਰਾਵਣ ਆਇਆ ॥
नव रंग लालु सेज रावण आइआ ॥
नवरंग प्रियतम प्रभु रमण करने के लिए मेरी हृदय रूपी सेज पर आ गया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪਿਰ ਧਨ ਮਿਲਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪॥
जन नानक पिर धन मिलि सुखु पाइआ ॥४॥४॥
हे नानक ! जीव-स्त्री ने पति-प्रभु से मिलकर सुख पा लिया है॥ ४॥ ४॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सूही महला ५ ॥
राग सूही, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਉਮਕਿਓ ਹੀਉ ਮਿਲਨ ਪ੍ਰਭ ਤਾਈ ॥
उमकिओ हीउ मिलन प्रभ ताई ॥
प्रभु-मिलन,के लिए मेरा हृदय चाव से भर गया और
ਖੋਜਤ ਚਰਿਓ ਦੇਖਉ ਪ੍ਰਿਅ ਜਾਈ ॥
खोजत चरिओ देखउ प्रिअ जाई ॥
मैं उसे खोजने के लिए चल पड़ी हूँ ताकि जाकर अपने प्रियवर को देख सकूँ।
ਸੁਨਤ ਸਦੇਸਰੋ ਪ੍ਰਿਅ ਗ੍ਰਿਹਿ ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ॥
सुनत सदेसरो प्रिअ ग्रिहि सेज विछाई ॥
अपने प्रिय-प्रभु के आगमन का संदेश सुनकर मैंने अपने हृदय रूपी घर में सेज बिछा दी।
ਭ੍ਰਮਿ ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਓ ਤਉ ਨਦਰਿ ਨ ਪਾਈ ॥੧॥
भ्रमि भ्रमि आइओ तउ नदरि न पाई ॥१॥
मैं भटक-भटक कर लौट आई हूँ परन्तु वह मुझे दिखाई नहीं दिया ॥ १॥
ਕਿਨ ਬਿਧਿ ਹੀਅਰੋ ਧੀਰੈ ਨਿਮਾਨੋ ॥
किन बिधि हीअरो धीरै निमानो ॥
किस विधि द्वारा मेरे इस असहाय हृदय को धीरज होवे ?
ਮਿਲੁ ਸਾਜਨ ਹਉ ਤੁਝੁ ਕੁਰਬਾਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलु साजन हउ तुझु कुरबानो ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे साजन ! मुझे आकर मिलो, मैं आप पर बलिहारी जाती हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਏਕਾ ਸੇਜ ਵਿਛੀ ਧਨ ਕੰਤਾ ॥
एका सेज विछी धन कंता ॥
जीव-स्त्री एवं पति-प्रभु के लिए एक सेज बिछी हुई है।
ਧਨ ਸੂਤੀ ਪਿਰੁ ਸਦ ਜਾਗੰਤਾ ॥
धन सूती पिरु सद जागंता ॥
जीव-स्त्री अज्ञानता की निद्रा में सोई रहती है मगर पति-प्रभु हमेशा ज्ञान में जागता रहता है।
ਪੀਓ ਮਦਰੋ ਧਨ ਮਤਵੰਤਾ ॥
पीओ मदरो धन मतवंता ॥
वह मोह-माया रूपी मदिरा-पान करके मतवाली हो गई है।
ਧਨ ਜਾਗੈ ਜੇ ਪਿਰੁ ਬੋਲੰਤਾ ॥੨॥
धन जागै जे पिरु बोलंता ॥२॥
यदि पति-प्रभु उसे बोलकर जगा दे तो ही वह अज्ञानता की निद्रा से जागती है॥ २॥
ਭਈ ਨਿਰਾਸੀ ਬਹੁਤੁ ਦਿਨ ਲਾਗੇ ॥
भई निरासी बहुतु दिन लागे ॥
हे सखी ! उस पति-प्रभु को खोजते हुए बहुत दिन बीत गए हैं और अब मैं निराश हो गई हूँ।
ਦੇਸ ਦਿਸੰਤਰ ਮੈ ਸਗਲੇ ਝਾਗੇ ॥
देस दिसंतर मै सगले झागे ॥
मैंने देश एवं प्रदेश खोज कर देख लिए हैं।