Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 736

Page 736

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਛੂਟੈ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੩॥ कोई विरला पुरुष ही इससे छूटता है और मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ॥ ३॥
ਜਿਨਿ ਸਿਸਟਿ ਸਾਜੀ ਸੋਈ ਹਰਿ ਜਾਣੈ ਤਾ ਕਾ ਰੂਪੁ ਅਪਾਰੋ ॥ जिसने यह सृष्टि-रचना की है, वह हरि स्वयं ही इस तथ्य को जानता है और उस का रूप अपार है।
ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਵੇਖਿ ਹਰਿ ਬਿਗਸੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੋ ॥੪॥੩॥੧੪॥ हे नानक ! ईश्वर अपनी सृष्टि को देखकर स्वयं प्रसन्न होता है, यह ब्रह्म ज्ञान गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है॥ ४ ॥ ३ ॥ १४ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सूही महला ४ ॥
ਕੀਤਾ ਕਰਣਾ ਸਰਬ ਰਜਾਈ ਕਿਛੁ ਕੀਚੈ ਜੇ ਕਰਿ ਸਕੀਐ ॥ जो यह सारा विश्व पैदा किया हुआ है, यह सब ईश्वर ने अपनी इच्छा से पैदा किया है। उसकी इच्छा से ही सबकुछ हो रहा है। हम तो ही कुछ कर सकते हैं यदि कुछ करने की समर्था हो।
ਆਪਣਾ ਕੀਤਾ ਕਿਛੂ ਨ ਹੋਵੈ ਜਿਉ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਖੀਐ ॥੧॥ हमारा अपना किया कुछ भी नहीं होता। जैसे ईश्वर को उपयुक्त लगता है, वैसे ही हमें वह रखता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰੈ ਵਸਿ ॥ हे मेरे श्री हरि ! सबकुछ तेरे ही वश में है।
ਅਸਾ ਜੋਰੁ ਨਾਹੀ ਜੇ ਕਿਛੁ ਕਰਿ ਹਮ ਸਾਕਹ ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਬਖਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हम में कोई जोर ही नहीं है कि हम कुछ कर सकें। जैसे तुझे ठीक लगता है, वैसे ही हम पर कृपा करो।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਭੁ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਦੀਆ ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਤੁਧੁ ਆਪੇ ਕਾਰੈ ਲਾਇਆ ॥ प्राण एवं शरीर यह सबकुछ तूने स्वयं ही दिया है और तूने ही जगत् के कार्य में लगाया है।
ਜੇਹਾ ਤੂੰ ਹੁਕਮੁ ਕਰਹਿ ਤੇਹੇ ਕੋ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ਜੇਹਾ ਤੁਧੁ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥੨॥ हे मालिक ! जैसा तू हुक्म करता है, वैसा ही कोई जीव कर्म करता है। जैसा तूने किसी की तकदीर में लिख दिया है, वह वैसा ही पाता है ॥ २॥
ਪੰਚ ਤਤੁ ਕਰਿ ਤੁਧੁ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਸਾਜੀ ਕੋਈ ਛੇਵਾ ਕਰਿਉ ਜੇ ਕਿਛੁ ਕੀਤਾ ਹੋਵੈ ॥ हे परमपिता ! आकाश, पवन, अग्नि, जल एवं पृथ्वी-यह पाँच तत्व उत्पन्न करके तूने सृष्टि का निर्माण किया है। कोई छठा तत्व उत्पन्न करके बताए, यदि उसका किया कुछ हो सकता है।
ਇਕਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਤੂੰ ਬੁਝਾਵਹਿ ਇਕਿ ਮਨਮੁਖਿ ਕਰਹਿ ਸਿ ਰੋਵੈ ॥੩॥ हे स्वामी ! तू किसी को गुरु से मिलाकर सूझ प्रदान कर देता है और किसी को तू मनमुख बना देता है, जो दुखी होकर रोता रहता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਹਉ ਆਖਿ ਨ ਸਾਕਾ ਹਉ ਮੂਰਖੁ ਮੁਗਧੁ ਨੀਚਾਣੁ ॥ मैं भगवान् की महिमा कथन नहीं कर सकता, क्योंकि मैं तो मूर्ख, मुग्ध एवं नाचीज हूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਬਖਸਿ ਲੈ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਸਰਣਾਗਤਿ ਪਇਆ ਅਜਾਣੁ ॥੪॥੪॥੧੫॥੨੪॥ हे मेरे स्वामी ! अपने सेवक नानक को क्षमा कर दो, मैं अनजान तेरी शरण में आ गया हूँ॥ ४॥ ४॥ १५ ॥ २४॥
ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧ रागु सूही महला ५ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਬਾਜੀਗਰਿ ਜੈਸੇ ਬਾਜੀ ਪਾਈ ॥ जैसे बाजीगर ने बाजी डाली और
ਨਾਨਾ ਰੂਪ ਭੇਖ ਦਿਖਲਾਈ ॥ उसने तमाशा देखने वालों को अपने विभिन्न रूप एवं वेष दिखाए।
ਸਾਂਗੁ ਉਤਾਰਿ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਿਓ ਪਾਸਾਰਾ ॥ जब उसने स्वांग उतार कर अपनी खेल का विस्तार बंद कर दिया तो
ਤਬ ਏਕੋ ਏਕੰਕਾਰਾ ॥੧॥ वह केवल एक आप ही रह गया।वैसे ही परमात्मा सृष्टि का खेल दिखाकर जब बंद कर देता है तो वह एक स्वयं ही रह जाता है।॥ १॥
ਕਵਨ ਰੂਪ ਦ੍ਰਿਸਟਿਓ ਬਿਨਸਾਇਓ ॥ उसके जो रूप दिखाई देते थे, वे सब लुप्त हो गए।
ਕਤਹਿ ਗਇਓ ਉਹੁ ਕਤ ਤੇ ਆਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह कहाँ चला गया है और कहाँ से आया था ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਲ ਤੇ ਊਠਹਿ ਅਨਿਕ ਤਰੰਗਾ ॥ जल में से अनेक तरंगें उत्पन्न होती हैं।
ਕਨਿਕ ਭੂਖਨ ਕੀਨੇ ਬਹੁ ਰੰਗਾ ॥ सुनार ने अनेक प्रकार के स्वर्ण के आभूषण बनाए होते हैं।
ਬੀਜੁ ਬੀਜਿ ਦੇਖਿਓ ਬਹੁ ਪਰਕਾਰਾ ॥ पेड़ का एक बीज बो कर देखा है कि वही बीज जड़ों, शाखाओं एवं पते इत्यादि अनेक प्रकार का बन जाता है परन्तु
ਫਲ ਪਾਕੇ ਤੇ ਏਕੰਕਾਰਾ ॥੨॥ फल पकने पर वह पुनः बोया हुआ बीज ही बन जाता है। इस तरह ही सृष्टि का मूल एक ईश्वर ही है॥ २॥
ਸਹਸ ਘਟਾ ਮਹਿ ਏਕੁ ਆਕਾਸੁ ॥ जल से भरे हुए हजारों घड़ों में एक ही सूर्य का अक्स दिखाई देता है।
ਘਟ ਫੂਟੇ ਤੇ ਓਹੀ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥ लेकिन घड़े फूटने पर सूर्य का वही एक प्रकाश नजर आता है।
ਭਰਮ ਲੋਭ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਵਿਕਾਰ ॥ ਭ੍ਰਮ ਛੂਟੇ ਤੇ ਏਕੰਕਾਰ ॥੩॥ भ्रमवश जीवात्मा में लोभ, मोह रूपी माया के विकार पैदा हो जाते हैं लेकिन भ्रम का नाश होने से उसे एक परमात्मा ही नजर आता है॥ ३॥
ਓਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਬਿਨਸਤ ਨਾਹੀ ॥ ईश्वर अविनाशी है और वह कभी नाश नहीं होता।
ਨਾ ਕੋ ਆਵੈ ਨਾ ਕੋ ਜਾਹੀ ॥ न ही वह जन्म लेता है और न ही उसकी मृत्यु होती है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਧੋਈ ॥ पूर्ण गुरु ने मेरी अहंत्व रूपी मैल शुद्ध कर दी है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰੀ ਪਰਮ ਗਤਿ ਹੋਈ ॥੪॥੧॥ हे नानक ! मेरी परमगति हो गई है॥ ४॥ १॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ सूही महला ५ ॥
ਕੀਤਾ ਲੋੜਹਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭ ਹੋਇ ॥ हे प्रभु ! दुनिया में वही कुछ होता है, जो तू चाहता है।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ तेरे बिना दूसरा कोई समर्थ नहीं।
ਜੋ ਜਨੁ ਸੇਵੇ ਤਿਸੁ ਪੂਰਨ ਕਾਜ ॥ जो व्यक्ति तेरी उपासना करता है, उसके सब कार्य संवर जाते हैं।
ਦਾਸ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਰਾਖਹੁ ਲਾਜ ॥੧॥ अतः अपने दास की भी लाज रखो॥ १॥
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਪੂਰਨ ਦਇਆਲਾ ॥ हे पूर्ण दयालु ! मैं तेरी शरण में आया हूँ,
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਕਵਨੁ ਕਰੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तेरे बिना मेरी कौन देखभाल करेगा ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥ तू जल, धरती एवं गगन में हर जगह मौजूद है।
ਨਿਕਟਿ ਵਸੈ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਦੂਰਿ ॥ हे प्रभु ! तू कहीं दूर नहीं, तू तो सबके निकट ही रहता है।
ਲੋਕ ਪਤੀਆਰੈ ਕਛੂ ਨ ਪਾਈਐ ॥ लोगों को खुश करने से कुछ भी हासिल नहीं होता।
ਸਾਚਿ ਲਗੈ ਤਾ ਹਉਮੈ ਜਾਈਐ ॥੨॥ यदि इन्सान सत्य के साथ लग जाए तो उसका अहंत्व समाप्त हो जाता है। २॥


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