Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 735

Page 735

ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੭ सूही महला ४ घरु ७ राग सूही, चतुर्थ गुरु, सातवीं ताल: ७
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਤੇਰੇ ਕਵਨ ਕਵਨ ਗੁਣ ਕਹਿ ਕਹਿ ਗਾਵਾ ਤੂ ਸਾਹਿਬ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨਾ ॥ तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा तू साहिब गुणी निधाना ॥ हे ईश्वर! आप हम सबके स्वामी है, गुणों के भण्डार हैं, फिर मैं आपके कौन-कौन से गुण कह-कहकर आपका गुणानुवाद करूँं ?
ਤੁਮਰੀ ਮਹਿਮਾ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਤੂੰ ਠਾਕੁਰ ਊਚ ਭਗਵਾਨਾ ॥੧॥ तुमरी महिमा बरनि न साकउ तूं ठाकुर ऊच भगवाना ॥१॥ आप हमारे ठाकुर है, सर्वोच्च भगवान् और मैं आपकी महिमा वर्णन नहीं कर सकता ॥ १ ॥
ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਰ ਸੋਈ ॥ मै हरि हरि नामु धर सोई ॥ मैं तो हरि-हरि नाम जपता रहता हूँ और वही मेरे जीवन का आधार है।
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬ ਮੈ ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिउ भावै तिउ राखु मेरे साहिब मै तुझ बिनु अवरु न कोई ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे साहिब ! जैसे आपको अच्छा लगता है, वैसे ही मुझे रखो, क्योंकि आपकेे बिना मेरा कोई आश्रय नहीं है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੈ ਤਾਣੁ ਦੀਬਾਣੁ ਤੂਹੈ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਮੈ ਤੁਧੁ ਆਗੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥ मै ताणु दीबाणु तूहै मेरे सुआमी मै तुधु आगै अरदासि ॥ हे मेरे स्वामी ! आप ही मेरा बल और सहारा है। मेरी आपके समक्ष प्रार्थना है।
ਮੈ ਹੋਰੁ ਥਾਉ ਨਾਹੀ ਜਿਸੁ ਪਹਿ ਕਰਉ ਬੇਨੰਤੀ ਮੇਰਾ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਤੁਝ ਹੀ ਪਾਸਿ ॥੨॥ मै होरु थाउ नाही जिसु पहि करउ बेनंती मेरा दुखु सुखु तुझ ही पासि ॥२॥ मेरे लिए अन्य कोई स्थान नहीं है, जिसके पास जाकर विनती करूँ, मेरा दुःख एवं सुख आपके पास ही बताया जा सकता है। २॥
ਵਿਚੇ ਧਰਤੀ ਵਿਚੇ ਪਾਣੀ ਵਿਚਿ ਕਾਸਟ ਅਗਨਿ ਧਰੀਜੈ ॥ विचे धरती विचे पाणी विचि कासट अगनि धरीजै ॥ परमात्मा ने एक ही स्थान में धरती एवं पानी रखे हुए हैं और लकड़ी में अग्नि रखी हुई है।
ਬਕਰੀ ਸਿੰਘੁ ਇਕਤੈ ਥਾਇ ਰਾਖੇ ਮਨ ਹਰਿ ਜਪਿ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਦੂਰਿ ਕੀਜੈ ॥੩॥ बकरी सिंघु इकतै थाइ राखे मन हरि जपि भ्रमु भउ दूरि कीजै ॥३॥ उसने बकरी एवं शेर को भी इकठ्ठा एक ही स्थान पर रखा हुआ है। हे मेरे मन! उस भगवान् को जप कर भ्रम एवं भय दूर कर ले ॥ ३॥
ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਦੇਖਹੁ ਸੰਤਹੁ ਹਰਿ ਨਿਮਾਣਿਆ ਮਾਣੁ ਦੇਵਾਏ ॥ हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥ हे संतजनो ! हरि का बड़प्पन देखो। यह मानहीनों को भी सम्मान दिलवाता है।
ਜਿਉ ਧਰਤੀ ਚਰਣ ਤਲੇ ਤੇ ਊਪਰਿ ਆਵੈ ਤਿਉ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਜਨਾ ਜਗਤੁ ਆਣਿ ਸਭੁ ਪੈਰੀ ਪਾਏ ॥੪॥੧॥੧੨॥ जिउ धरती चरण तले ते ऊपरि आवै तिउ नानक साध जना जगतु आणि सभु पैरी पाए ॥४॥१॥१२॥ हे नानक, जैसे धरती जीवन भर पैरों के नीचे रहती है, पर मृत्यु के बाद हमारे ऊपर डाल दी जाती है, वैसे ही भगवान् संतों के आगे सारी दुनिया को झुका देते हैं। ॥ ४ ॥ १॥ १२ ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सूही महला ४ ॥ राग सूही, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਤੂੰ ਕਰਤਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪੇ ਜਾਣਹਿ ਕਿਆ ਤੁਧੁ ਪਹਿ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ॥ तूं करता सभु किछु आपे जाणहि किआ तुधु पहि आखि सुणाईऐ ॥ हे ईश्वर ! आप जगत् के रचयिता है और सब कुछ स्वयं ही जानते है। फिर मैं आपको क्या ही बता सकता हूंँ?
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਤੁਧੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ਜੇਹਾ ਕੋ ਕਰੇ ਤੇਹਾ ਕੋ ਪਾਈਐ ॥੧॥ बुरा भला तुधु सभु किछु सूझै जेहा को करे तेहा को पाईऐ ॥१॥ जीवों के किए हुए बुरे एवं भले कर्मों का तुझे सबकुछ पता लग जाता है। जैसा कर्म कोई करता है, वैसा ही फल वह पा लेता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਸਾਹਿਬ ਤੂੰ ਅੰਤਰ ਕੀ ਬਿਧਿ ਜਾਣਹਿ ॥ मेरे साहिब तूं अंतर की बिधि जाणहि ॥ हे मेरे प्रभु ! आप सबके मन की भावना को जानते है।
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਤੁਧੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਬੁਲਾਵਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बुरा भला तुधु सभु किछु सूझै तुधु भावै तिवै बुलावहि ॥१॥ रहाउ ॥ आपको जीवों के बुरे एवं भले कर्मों का सब पता लग जाता है। जैसे आपको भाता है, वैसे ही आप जीवों को कहकर बुलाते हैं। १॥ रहाउ ॥
ਸਭੁ ਮੋਹੁ ਮਾਇਆ ਸਰੀਰੁ ਹਰਿ ਕੀਆ ਵਿਚਿ ਦੇਹੀ ਮਾਨੁਖ ਭਗਤਿ ਕਰਾਈ ॥ सभु मोहु माइआ सरीरु हरि कीआ विचि देही मानुख भगति कराई ॥ माया का मोह एवं मनुष्य का शरीर यह सबकुछ भगवान् ने ही बनाया है। आप स्वयं उन्हें अपनी भक्तिपूर्वक पूजा करने में सक्षम बनाते हैं।
ਇਕਨਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਸੁਖੁ ਦੇਵਹਿ ਇਕਿ ਮਨਮੁਖਿ ਧੰਧੁ ਪਿਟਾਈ ॥੨॥ इकना सतिगुरु मेलि सुखु देवहि इकि मनमुखि धंधु पिटाई ॥२॥ किसी को वह सतगुरु से मिलाकर सुख देता है और किसी स्वेच्छाचारी को जगत् के धंधों में फँसाकर रखता है॥ २॥
ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕਾ ਮੇਰੇ ਕਰਤੇ ਤੁਧੁ ਸਭਨਾ ਸਿਰਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ॥ सभु को तेरा तूं सभना का मेरे करते तुधु सभना सिरि लिखिआ लेखु ॥ हे सृष्टिकर्ता ! यह सारे जीव आपके ही पैदा किए हुए हैं और आप ही सबके स्वामी है। आपने ही सब जीवों के माथे पर उनका भाग्य लिखा है।
ਜੇਹੀ ਤੂੰ ਨਦਰਿ ਕਰਹਿ ਤੇਹਾ ਕੋ ਹੋਵੈ ਬਿਨੁ ਨਦਰੀ ਨਾਹੀ ਕੋ ਭੇਖੁ ॥੩॥ जेही तूं नदरि करहि तेहा को होवै बिनु नदरी नाही को भेखु ॥३॥ जैसी दृष्टि आप किसी जीव पर करते है, वह वैसा ही बन जाता है। आपकी दृष्टि के बिना कोई भी अच्छा या बुरा नहीं बना ॥ ३ ॥
ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਤੂੰਹੈ ਜਾਣਹਿ ਸਭ ਤੁਧਨੋ ਨਿਤ ਧਿਆਏ ॥ तेरी वडिआई तूंहै जाणहि सभ तुधनो नित धिआए ॥ आपकी महिमा को आप स्वयं ही जानते है और सब जीव नित्य आपका ही ध्यान करते रहते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸ ਨੋ ਤੂੰ ਮੇਲਹਿ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੋ ਥਾਇ ਪਾਏ ॥੪॥੨॥੧੩॥ जिस नो तुधु भावै तिस नो तूं मेलहि जन नानक सो थाइ पाए ॥४॥२॥१३॥ नानक प्रार्थना करते है कि हे प्रभु ! जिसे आप चाहते है, उसे अपने साथ मिला लेते है और वही आपको स्वीकार हो जाता है ॥४॥२॥१३॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ सूही महला ४ ॥ राग सूही, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਜਿਨ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਵਸਿਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਨ ਕੇ ਸਭਿ ਰੋਗ ਗਵਾਏ ॥ जिन कै अंतरि वसिआ मेरा हरि हरि तिन के सभि रोग गवाए ॥ जिनके मन में मेरे प्रभु बस गए है, उनके सब रोग दूर हो गए हैं।
ਤੇ ਮੁਕਤ ਭਏ ਜਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਪਵਿਤੁ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਏ ॥੧॥ ते मुकत भए जिन हरि नामु धिआइआ तिन पवितु परम पदु पाए ॥१॥ जिन्होंने हरि-नाम का ध्यान किया है, वे मुक्त हो गए हैं और उन्होंने पवित्र परमपद पा लिया है॥१॥
ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਹਰਿ ਜਨ ਆਰੋਗ ਭਏ ॥ मेरे राम हरि जन आरोग भए ॥ हे मेरे राम ! भक्तजन अहंकार एवं दुःखों से आरोग्य हो गए हैं।
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਜਿਨਾ ਜਪਿਆ ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਨ ਕੇ ਹਉਮੈ ਰੋਗ ਗਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर बचनी जिना जपिआ मेरा हरि हरि तिन के हउमै रोग गए ॥१॥ रहाउ ॥ जिन्होंने गुरु के वचन द्वारा परमात्मा का नाम जपा है, उनके अहंकार का रोग दूर हो गया हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹਾਦੇਉ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਰੋਗੀ ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਕਾਰ ਕਮਾਈ ॥ ब्रहमा बिसनु महादेउ त्रै गुण रोगी विचि हउमै कार कमाई ॥ माया के तीन गुणों - पाप, शक्ति और गुण के प्रभाव से ब्रह्मा, विष्णु और महादेव जैसे देवता भी पीड़ित हुए, क्योंकि उन्होंने भी अहंकार में आकर कर्म किए थे।
ਜਿਨਿ ਕੀਏ ਤਿਸਹਿ ਨ ਚੇਤਹਿ ਬਪੁੜੇ ਹਰਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥੨॥ जिनि कीए तिसहि न चेतहि बपुड़े हरि गुरमुखि सोझी पाई ॥२॥ जिस परमात्मा ने उन्हें पैदा किया है, वे उसे याद ही नहीं करते। परमात्मा की सूझ गुरु द्वारा ही मिलती है ॥२॥
ਹਉਮੈ ਰੋਗਿ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਬਿਆਪਿਆ ਤਿਨ ਕਉ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਭਾਰੀ ॥ हउमै रोगि सभु जगतु बिआपिआ तिन कउ जनम मरण दुखु भारी ॥ समूचा जगत् अहंकार के रोग में फँसा हुआ है और उन्हें जन्म-मरण का भारी दुःख लगा रहता है।


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