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ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਹੋਰਤੁ ਬਿਧਿ ਲਇਆ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥
गुर किरपा ते हरि मनि वसै होरतु बिधि लइआ न जाई ॥१॥
लेकिन गुरु की कृपा से ही प्रभु मन में आ बसता है तथा किसी अन्य विधि से उसे पाया नहीं जा सकता ॥१॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੰਚੀਐ ਭਾਈ ॥
हरि धनु संचीऐ भाई ॥
हे भाई ! हरि-नाम रूपी धन संचित करना चाहिए,
ਜਿ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਹਰਿ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जि हलति पलति हरि होइ सखाई ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि लोक-परलोक में वह सहायक बना रहे॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਤਸੰਗਤੀ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਧਨੁ ਖਟੀਐ ਹੋਰ ਥੈ ਹੋਰਤੁ ਉਪਾਇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਕਿਤੈ ਨ ਪਾਈ ॥
सतसंगती संगि हरि धनु खटीऐ होर थै होरतु उपाइ हरि धनु कितै न पाई ॥
हरि नाम रूपी धन सत्संगियों के साथ मिलकर ही प्राप्त किया जाता है। किसी अन्य स्थान पर एवं किसी अन्य उपाय से हरि-धन कहीं भी पाया नहीं जा सकता।
ਹਰਿ ਰਤਨੈ ਕਾ ਵਾਪਾਰੀਆ ਹਰਿ ਰਤਨ ਧਨੁ ਵਿਹਾਝੇ ਕਚੈ ਕੇ ਵਾਪਾਰੀਏ ਵਾਕਿ ਹਰਿ ਧਨੁ ਲਇਆ ਨ ਜਾਈ ॥੨॥
हरि रतनै का वापारीआ हरि रतन धनु विहाझे कचै के वापारीए वाकि हरि धनु लइआ न जाई ॥२॥
केवल रत्न-रूप भगवान् के नाम का सच्चा व्यापारी ही इस रत्न-समान बहुमूल्य धन को प्राप्त कर सकता है; क्योंकि भगवान् के नाम का धन सांसारिक व्यापारियों की शिक्षाओं से प्राप्त नहीं किया जा सकता। ॥ २॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਤਨੁ ਜਵੇਹਰੁ ਮਾਣਕੁ ਹਰਿ ਧਨੈ ਨਾਲਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲੈ ਵਤੈ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
हरि धनु रतनु जवेहरु माणकु हरि धनै नालि अम्रित वेलै वतै हरि भगती हरि लिव लाई ॥
हरि धन अमूल्य रत्न, जवाहर एवं माणिक्य है। हरि के भक्तों ने हरि-धन के लिए आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अनुकूल समय ब्रह्म मुहूर्त में जागकर हरि में अपनी सुरति लगाई होती है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਵੇਲੈ ਵਤੈ ਕਾ ਬੀਜਿਆ ਭਗਤ ਖਾਇ ਖਰਚਿ ਰਹੇ ਨਿਖੁਟੈ ਨਾਹੀ ॥
हरि धनु अम्रित वेलै वतै का बीजिआ भगत खाइ खरचि रहे निखुटै नाही ॥
महामुहूर्त में बोया हुआ भगवान् के नाम का बीज प्रातःकाल बोया जाता है; यह इतनी अधिक मात्रा में बढ़ता है कि भक्त इसका आत्मिक भोजन करते हैं, दूसरों को बाँटते हैं, फिर भी यह कभी घटता नहीं।
ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਹਰਿ ਧਨੈ ਕੀ ਭਗਤਾ ਕਉ ਮਿਲੀ ਵਡਿਆਈ ॥੩॥
हलति पलति हरि धनै की भगता कउ मिली वडिआई ॥३॥
भगवान् के नाम के धन के कारण, भक्तों को इस लोक और परलोक दोनों में सम्मान मिलता है। ३ ।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਨਿਰਭਉ ਸਦਾ ਸਦਾ ਅਸਥਿਰੁ ਹੈ ਸਾਚਾ ਇਹੁ ਹਰਿ ਧਨੁ ਅਗਨੀ ਤਸਕਰੈ ਪਾਣੀਐ ਜਮਦੂਤੈ ਕਿਸੈ ਕਾ ਗਵਾਇਆ ਨ ਜਾਈ ॥
हरि धनु निरभउ सदा सदा असथिरु है साचा इहु हरि धनु अगनी तसकरै पाणीऐ जमदूतै किसै का गवाइआ न जाई ॥
हरि नाम रूपी धन निर्भय एवं सदा सर्वदा स्थिर है। यह सदैव शाश्वत है और यह अग्नि, चोर, पानी एवं यमदूत इत्यादि से प्रभावित नहीं होता।
ਹਰਿ ਧਨ ਕਉ ਉਚਕਾ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਜਮੁ ਜਾਗਾਤੀ ਡੰਡੁ ਨ ਲਗਾਈ ॥੪॥
हरि धन कउ उचका नेड़ि न आवई जमु जागाती डंडु न लगाई ॥४॥
हरि धन को लूटने के लिए कोई भी लुटेरा निकट नहीं आता तथा यमराज भी उसके गुणों को नष्ट नहीं कर सकता। ४
ਸਾਕਤੀ ਪਾਪ ਕਰਿ ਕੈ ਬਿਖਿਆ ਧਨੁ ਸੰਚਿਆ ਤਿਨਾ ਇਕ ਵਿਖ ਨਾਲਿ ਨ ਜਾਈ ॥
साकती पाप करि कै बिखिआ धनु संचिआ तिना इक विख नालि न जाई ॥
मायावी जीवों ने पाप कर करके जो विष रूपी धन इकठ्ठा किया है, ये धन एक कदम भी उनके साथ नहीं जाता।
ਹਲਤੈ ਵਿਚਿ ਸਾਕਤ ਦੁਹੇਲੇ ਭਏ ਹਥਹੁ ਛੁੜਕਿ ਗਇਆ ਅਗੈ ਪਲਤਿ ਸਾਕਤੁ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਢੋਈ ਨ ਪਾਈ ॥੫॥
हलतै विचि साकत दुहेले भए हथहु छुड़कि गइआ अगै पलति साकतु हरि दरगह ढोई न पाई ॥५॥
मायावी इहलोक में बड़े दुःखी हुए हैं, जब यह धन उनके हाथ से निकल गया। आगे परलोक में परमात्मा के दरबार में उन्हें कोई सहारा नहीं मिला ॥ ५ ॥
ਇਸੁ ਹਰਿ ਧਨ ਕਾ ਸਾਹੁ ਹਰਿ ਆਪਿ ਹੈ ਸੰਤਹੁ ਜਿਸ ਨੋ ਦੇਇ ਸੁ ਹਰਿ ਧਨੁ ਲਦਿ ਚਲਾਈ ॥
इसु हरि धन का साहु हरि आपि है संतहु जिस नो देइ सु हरि धनु लदि चलाई ॥
हे संतजनो ! इस हरि-धन का साहूकार हरि आप ही है। जिसे वह यह धन देते है, वही इस को लेकर अपने साथ ले जाता है।
ਇਸੁ ਹਰਿ ਧਨੈ ਕਾ ਤੋਟਾ ਕਦੇ ਨ ਆਵਈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਗੁਰਿ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥੬॥੩॥੧੦॥
इसु हरि धनै का तोटा कदे न आवई जन नानक कउ गुरि सोझी पाई ॥६॥३॥१०॥
हे नानक ! गुरु ने यही सूझ दी है कि इस हरि-धन में कभी कोई कमी नहीं आती ॥ ६ ॥ ३॥ १० ॥
ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
सूही महला ४ ॥
राग सूही, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਜਿਸ ਨੋ ਹਰਿ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੁ ਹੋਇ ਸੋ ਹਰਿ ਗੁਣਾ ਰਵੈ ਸੋ ਭਗਤੁ ਸੋ ਪਰਵਾਨੁ ॥
जिस नो हरि सुप्रसंनु होइ सो हरि गुणा रवै सो भगतु सो परवानु ॥
जिस व्यक्ति पर भगवान् सुप्रसन्न होते है, वही उसका गुणगान करता है, वही उसका सच्चा भक्त होता है एवं उन्हें स्वीकृत होता है।
ਤਿਸ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਕਿਆ ਵਰਨੀਐ ਜਿਸ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਭਗਵਾਨੁ ॥੧॥
तिस की महिमा किआ वरनीऐ जिस कै हिरदै वसिआ हरि पुरखु भगवानु ॥१॥
जिसके हृदय में भगवान् बस गए है, उसकी महिमा क्या वर्णन की जाए॥ १॥
ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ਜੀਉ ਲਾਇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਨਾਲਿ ਧਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गोविंद गुण गाईऐ जीउ लाइ सतिगुरू नालि धिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु के वचन पर ध्यान केंद्रित कर मन लगाकर गोविन्द का गुणगान करना चाहिए। ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੂ ਸਾ ਸੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਸਫਲ ਹੈ ਜਿਸ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨੁ ॥
सो सतिगुरू सा सेवा सतिगुर की सफल है जिस ते पाईऐ परम निधानु ॥
वही सतगुरु है और उस सतगुरु की सेवा सफल है, जिससे नाम रूपी परम खजाना मिलता है।
ਜੋ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਸਾਕਤ ਕਾਮਨਾ ਅਰਥਿ ਦੁਰਗੰਧ ਸਰੇਵਦੇ ਸੋ ਨਿਹਫਲ ਸਭੁ ਅਗਿਆਨੁ ॥੨॥
जो दूजै भाइ साकत कामना अरथि दुरगंध सरेवदे सो निहफल सभु अगिआनु ॥२॥
जो अविश्वासी और निंदक लोग माया के मोह में पड़कर बुरी इच्छाओं और विकारों में लिप्त हो जाते हैं, उनका जीवन व्यर्थ चला जाता है और वे अज्ञान में ही जीते हैं। ॥ २॥
ਜਿਸ ਨੋ ਪਰਤੀਤਿ ਹੋਵੈ ਤਿਸ ਕਾ ਗਾਵਿਆ ਥਾਇ ਪਵੈ ਸੋ ਪਾਵੈ ਦਰਗਹ ਮਾਨੁ ॥
जिस नो परतीति होवै तिस का गाविआ थाइ पवै सो पावै दरगह मानु ॥
जिसे भगवान् पर श्रद्धा होती है, उसका ही स्तुतिगान स्वीकार होता है और वह प्रभु के दरबार में सत्कार पाते है।
ਜੋ ਬਿਨੁ ਪਰਤੀਤੀ ਕਪਟੀ ਕੂੜੀ ਕੂੜੀ ਅਖੀ ਮੀਟਦੇ ਉਨ ਕਾ ਉਤਰਿ ਜਾਇਗਾ ਝੂਠੁ ਗੁਮਾਨੁ ॥੩॥
जो बिनु परतीती कपटी कूड़ी कूड़ी अखी मीटदे उन का उतरि जाइगा झूठु गुमानु ॥३॥
जो पाखंडी गुरु पर विश्वास नहीं रखते, वे भक्ति का ढोंग कर सकते हैं और आँखें बंद कर सकते हैं, लेकिन उनका झूठ और अहंकार अंत में मिट जाएगा। ॥ ३॥
ਜੇਤਾ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪੁਰਖੁ ਭਗਵਾਨੁ ॥
जेता जीउ पिंडु सभु तेरा तूं अंतरजामी पुरखु भगवानु ॥
हे भगवान् ! आप अंतर्यामी है, यह प्राण एवं शरीर इत्यादि जितना भी है, यह सब आपका ही दिया हुआ है।
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਕਹੈ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਜੇਹਾ ਤੂੰ ਕਰਾਇਹਿ ਤੇਹਾ ਹਉ ਕਰੀ ਵਖਿਆਨੁ ॥੪॥੪॥੧੧॥
दासनि दासु कहै जनु नानकु जेहा तूं कराइहि तेहा हउ करी वखिआनु ॥४॥४॥११॥
नानक कहते हैं कि हे ईश्वर ! मैं तेरे दासों का दास हूँ, जो आप मुझ से कहलवाते है, मैं वही वर्णन करता हूँ॥ ४ ॥ ४॥ ११॥