Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 713

Page 713

ਆਗਿਆ ਤੁਮਰੀ ਮੀਠੀ ਲਾਗਉ ਕੀਓ ਤੁਹਾਰੋ ਭਾਵਉ ॥ आगिआ तुमरी मीठी लागउ कीओ तुहारो भावउ ॥ आपकी आज्ञा मुझे बड़ी मीठी लगती है एवं आप जो भी करते हो, वह सब मुझे अच्छा लगता है।
ਜੋ ਤੂ ਦੇਹਿ ਤਹੀ ਇਹੁ ਤ੍ਰਿਪਤੈ ਆਨ ਨ ਕਤਹੂ ਧਾਵਉ ॥੨॥ जो तू देहि तही इहु त्रिपतै आन न कतहू धावउ ॥२॥ आप जो कुछ भी मुझे देते हो, उससे ही मेरा मन प्रसन्न हो जाता है और मैं किसी अन्य के पीछे नहीं दौड़ता ॥२॥
ਸਦ ਹੀ ਨਿਕਟਿ ਜਾਨਉ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ਸਗਲ ਰੇਣ ਹੋਇ ਰਹੀਐ ॥ सद ही निकटि जानउ प्रभ सुआमी सगल रेण होइ रहीऐ ॥ उस प्रभु को मैं हमेशा ही अपने निकट समझता हूँ और उसकी चरण-धूलि बना रहता हूँ।
ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਹੋਇ ਪਰਾਪਤਿ ਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਲਹੀਐ ॥੩॥ साधू संगति होइ परापति ता प्रभु अपुना लहीऐ ॥३॥ यदि संतों की संगति प्राप्त हो जाए तो सहज ही प्रभु को प्राप्त किया जा सकता है ॥३॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਮ ਛੋਹਰੇ ਤੁਮਰੇ ਤੂ ਪ੍ਰਭ ਹਮਰੋ ਮੀਰਾ ॥ सदा सदा हम छोहरे तुमरे तू प्रभ हमरो मीरा ॥ हे प्रभु ! आप हमारे स्वामी है और हम प्राणी हमेशा ही आपकी सन्तान है।
ਨਾਨਕ ਬਾਰਿਕ ਤੁਮ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਤੁਮਾਰੋ ਖੀਰਾ ॥੪॥੩॥੫॥ नानक बारिक तुम मात पिता मुखि नामु तुमारो खीरा ॥४॥३॥५॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं आपका बालक हूँ और आप मेरे माता-पिता हो। आप नाम रूपी दूध हमेशा ही मेरे मुख में पीने के लिए है ॥ ४॥ ३॥ ५॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਦੁਪਦੇ टोडी महला ५ घरु २ दुपदे राग तोड़ी, पाँचवें गुरु, दूसरी ताल, दोहे:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮਾਗਉ ਦਾਨੁ ਠਾਕੁਰ ਨਾਮ ॥ मागउ दानु ठाकुर नाम ॥ हे परमेश्वर ! मैं तो आपसे नाम का दान ही माँगता हूँ,
ਅਵਰੁ ਕਛੂ ਮੇਰੈ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲੈ ਮਿਲੈ ਕ੍ਰਿਪਾ ਗੁਣ ਗਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अवरु कछू मेरै संगि न चालै मिलै क्रिपा गुण गाम ॥१॥ रहाउ ॥ चूंकि इस दुनिया से नाम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मेरे साथ नहीं जाना। यदि आप कृपा करें, तो मैं आपके दिव्य गुणों का कीर्तन कर धन्य हो जाऊँ।॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਜੁ ਮਾਲੁ ਅਨੇਕ ਭੋਗ ਰਸ ਸਗਲ ਤਰਵਰ ਕੀ ਛਾਮ ॥ राजु मालु अनेक भोग रस सगल तरवर की छाम ॥ सभी राजसुख, धन-दौलत, अनेक प्रकार के भोग रस सभी पेड़ की छाया के समान लुप्त होने वाले हैं।
ਧਾਇ ਧਾਇ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਕਉ ਧਾਵੈ ਸਗਲ ਨਿਰਾਰਥ ਕਾਮ ॥੧॥ धाइ धाइ बहु बिधि कउ धावै सगल निरारथ काम ॥१॥ मनुष्य अपने जीवन में सांसारिक सुखों की उपलब्धि हेतु अनेक विधियों द्वारा चारों ओर भागदौड़ करता है परन्तु ये सभी कार्य निष्फल हैं॥ १॥
ਬਿਨੁ ਗੋਵਿੰਦ ਅਵਰੁ ਜੇ ਚਾਹਉ ਦੀਸੈ ਸਗਲ ਬਾਤ ਹੈ ਖਾਮ ॥ बिनु गोविंद अवरु जे चाहउ दीसै सगल बात है खाम ॥ गोविन्द के अतिरिक्त किसी अन्य पदार्थ की लालसा करना निरर्थक बात ही नजर आती है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਰੇਨ ਮਾਗਉ ਮੇਰੋ ਮਨੁ ਪਾਵੈ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥੨॥੧॥੬॥ कहु नानक संत रेन मागउ मेरो मनु पावै बिस्राम ॥२॥१॥६॥ हे नानक ! मैं तो संत-महापुरुषों की चरण-धूलि की ही कामना करता हूँ, जिससे मेरे मन को सुख की उपलब्धि हो जाए॥ २॥ १॥ ६॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥ राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਕੋ ਨਾਮੁ ਮਨਹਿ ਸਾਧਾਰੈ ॥ प्रभ जी को नामु मनहि साधारै ॥ प्रभु का नाम ही मेरे मन का एकमात्र सहारा है।
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਸੂਖ ਇਸੁ ਮਨ ਕਉ ਬਰਤਨਿ ਏਹ ਹਮਾਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जीअ प्रान सूख इसु मन कउ बरतनि एह हमारै ॥१॥ रहाउ ॥ यह मेरे हृदय का आधार, जीवन की श्वास और आत्मा की शांति है; मेरे लिए यह प्रतिदिन उपयोग में आने वाली सबसे अमूल्य वस्तु के समान है।॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਜਾਤਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੀ ਪਤਿ ਹੈ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਪਰਵਾਰੈ ॥ नामु जाति नामु मेरी पति है नामु मेरै परवारै ॥ प्रभु का नाम ही मेरी जाति, मेरा मान-सम्मान एवं मेरा परिवार है।
ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ਸਦਾ ਮੇਰੈ ਸੰਗਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੋ ਕਉ ਨਿਸਤਾਰੈ ॥੧॥ नामु सखाई सदा मेरै संगि हरि नामु मो कउ निसतारै ॥१॥ नाम मेरा सखा बनकर सदैव ही मेरे साथ है और परमेश्वर का नाम ही मेरा भवसागर से उद्धार करता है॥ १॥
ਬਿਖੈ ਬਿਲਾਸ ਕਹੀਅਤ ਬਹੁਤੇਰੇ ਚਲਤ ਨ ਕਛੂ ਸੰਗਾਰੈ ॥ बिखै बिलास कहीअत बहुतेरे चलत न कछू संगारै ॥ जीवन में बहुत सारे विषय-विलास कहे जाते हैं परन्तु अन्तिम समय कुछ भी साथ नहीं चलता।
ਇਸਟੁ ਮੀਤੁ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਕੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੇਰੈ ਭੰਡਾਰੈ ॥੨॥੨॥੭॥ इसटु मीतु नामु नानक को हरि नामु मेरै भंडारै ॥२॥२॥७॥ हे नानक ! नाम ही मेरा इष्ट-मित्र है और परमेश्वर का नाम ही मेरा अक्षय भण्डार है॥ २॥ २॥ ७॥ l
ਟੋਡੀ ਮਃ ੫ ॥ टोडी मः ५ ॥ राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨੀਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ਮਿਟਹੀ ਰੋਗ ॥ नीके गुण गाउ मिटही रोग ॥ हे मित्र! प्रभु की श्रेष्ठ महिमा का कीर्तन करो; ऐसा करने से समस्त कष्ट, क्लेश और विकार स्वतः दूर हो जाते हैं
ਮੁਖ ਊਜਲ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲ ਹੋਈ ਹੈ ਤੇਰੋ ਰਹੈ ਈਹਾ ਊਹਾ ਲੋਗੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मुख ऊजल मनु निरमल होई है तेरो रहै ईहा ऊहा लोगु ॥१॥ रहाउ ॥ आपको सम्मान प्राप्त होगा, आपका चित्त निर्मल हो जाएगा, और आप इस लोक तथा परलोक में शांति का अनुभव करेंगे।॥ १॥ रहाउ॥
ਚਰਨ ਪਖਾਰਿ ਕਰਉ ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਮਨਹਿ ਚਰਾਵਉ ਭੋਗ ॥ चरन पखारि करउ गुर सेवा मनहि चरावउ भोग ॥ मैं तो बड़ी श्रद्धा से अपने गुरु के चरण धोकर उनकी निष्काम सेवा करता हूँ और अपने मन को प्रसाद रूप में गुरु के समक्ष अर्पण करता हूँ।
ਛੋਡਿ ਆਪਤੁ ਬਾਦੁ ਅਹੰਕਾਰਾ ਮਾਨੁ ਸੋਈ ਜੋ ਹੋਗੁ ॥੧॥ छोडि आपतु बादु अहंकारा मानु सोई जो होगु ॥१॥ हे सज्जनो ! अपने वाद-विवाद एवं अहंकार को त्याग कर जो कुछ भी घटित होता है, उसे परमात्मा की इच्छा मानकर आनंदपूर्वक स्वीकार करो। ॥ १॥
ਸੰਤ ਟਹਲ ਸੋਈ ਹੈ ਲਾਗਾ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਲਿਖਿਆ ਲਿਖੋਗੁ ॥ संत टहल सोई है लागा जिसु मसतकि लिखिआ लिखोगु ॥ संतों-महापुरुषों की सेवा में वही व्यक्ति लगता है, जिसके मस्तक पर ऐसा भाग्य लिखा होता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਏਕ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕਰਣੈ ਜੋਗੁ ॥੨॥੩॥੮॥ कहु नानक एक बिनु दूजा अवरु न करणै जोगु ॥२॥३॥८॥ हे नानक ! एक परमात्मा के अतिरिक्त कोई अन्य कुछ भी करने योग्य नहीं है॥ २ ॥ ३ ॥ ८ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥ राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਆਇਓ ਸਰਣਿ ਤੁਹਾਰੀ ॥ सतिगुर आइओ सरणि तुहारी ॥ हे मेरे सतगुरु ! मैं तो आपकी शरण में ही आया हूँ।
ਮਿਲੈ ਸੂਖੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸੋਭਾ ਚਿੰਤਾ ਲਾਹਿ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मिलै सूखु नामु हरि सोभा चिंता लाहि हमारी ॥१॥ रहाउ ॥ आपकी दया से ही मुझे हरि-नाम का सुख एवं शोभा मिलेगी और हमारी चिन्ता दूर हो जाएगी॥ १॥ रहाउ॥
ਅਵਰ ਨ ਸੂਝੈ ਦੂਜੀ ਠਾਹਰ ਹਾਰਿ ਪਰਿਓ ਤਉ ਦੁਆਰੀ ॥ अवर न सूझै दूजी ठाहर हारि परिओ तउ दुआरी ॥ मुझे अन्य कोई शरणस्थल नज़र नहीं आता, इसलिए मायूस होकर आपके द्वार पर आ गया हूँ।
ਲੇਖਾ ਛੋਡਿ ਅਲੇਖੈ ਛੂਟਹ ਹਮ ਨਿਰਗੁਨ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੀ ॥੧॥ लेखा छोडि अलेखै छूटह हम निरगुन लेहु उबारी ॥१॥ आप हमारे कर्मों का लेखा-जोखा छोड़कर यदि कर्मों के लेखे को नजर-अंदाज कर दोगे तो हमारा कल्याण हो जाएगा। मुझ निर्गुण को भवसागर से बचा लो॥ १॥
ਸਦ ਬਖਸਿੰਦੁ ਸਦਾ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ਸਭਨਾ ਦੇਇ ਅਧਾਰੀ ॥ सद बखसिंदु सदा मिहरवाना सभना देइ अधारी ॥ परमेश्वर सदा क्षमा देने वाला, करुणा से परिपूर्ण और सम्पूर्ण जीव सृष्टि को जीवन व आजीविका प्रदान करने वाला है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸੰਤ ਪਾਛੈ ਪਰਿਓ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਇਹ ਬਾਰੀ ॥੨॥੪॥੯॥ नानक दास संत पाछै परिओ राखि लेहु इह बारी ॥२॥४॥९॥ भक्त नानक विनती करते हैं कि हे प्रभु! मैं गुरु की शरण में आया हूँ; कृपा कर इस जीवनकाल में मुझे विकारों से बचा ले।॥ २॥ ४॥ ६॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ टोडी महला ५ ॥ राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰਸਨਾ ਗੁਣ ਗੋਪਾਲ ਨਿਧਿ ਗਾਇਣ ॥ रसना गुण गोपाल निधि गाइण ॥ यदि रसना से गुणों के भण्डार परमेश्वर का गुणानुवाद किया जाए तो
ਸਾਂਤਿ ਸਹਜੁ ਰਹਸੁ ਮਨਿ ਉਪਜਿਓ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਪਲਾਇਣ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सांति सहजु रहसु मनि उपजिओ सगले दूख पलाइण ॥१॥ रहाउ ॥ मन को बड़ी शांति, आत्मिक स्थिरता एवं आनंद प्राप्त होता है और सभी दुःख निवृत्त हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥


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