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ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਜੋ ਜੀਵਨੁ ਬਲਨਾ ਸਰਪ ਜੈਸੇ ਅਰਜਾਰੀ ॥
भगवान् के सिमरन के बिना जीना वासनाओं की अग्नि में जलने की भांति है, जिस तरह एक सांप अपने आंतरिक जहर को पालता हुआ लम्बी उम्र तक जहर की जलन में जलता रहता है।
ਨਵ ਖੰਡਨ ਕੋ ਰਾਜੁ ਕਮਾਵੈ ਅੰਤਿ ਚਲੈਗੋ ਹਾਰੀ ॥੧॥
चाहे मनुष्य समूचे विश्व को जीतकर शासन कर ले परन्तु सिमरन के बिना अंत में वह जीवन की बाजी हार कर चला जाएगा ॥ १॥
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਗੁਣ ਤਿਨ ਹੀ ਗਾਏ ਜਾ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥
हे नानक ! जिस पर उसने अपनी कृपा-दृष्टि की है, उसने ही गुणों के भण्डार परमात्मा का गुणगान किया है।
ਸੋ ਸੁਖੀਆ ਧੰਨੁ ਉਸੁ ਜਨਮਾ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥੨॥੨॥
वास्तव में वही सुखी है और उसका ही जीवन धन्य है तथा मैं उस पर ही न्यौछावर होता हूँ॥ २॥ २॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਚਉਪਦੇ
राग तोड़ी, पंचम गुरु, दूसरी ताल, चार-पद :
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਧਾਇਓ ਰੇ ਮਨ ਦਹ ਦਿਸ ਧਾਇਓ ॥
यह चंचल मन माया के मोह में दसों दिशाओं की तरफ भटकता फिरता है।
ਮਾਇਆ ਮਗਨ ਸੁਆਦਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿਓ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਇਓ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जो व्यक्ति सांसारिक धन-संपत्ति में लिप्त रहता है और लोभ के मोह में फँस जाता है, उसे ईश्वर स्वयं उस जीव को भटकने देते हैं। ॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਕਥਾ ਹਰਿ ਜਸ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸਿਉ ਇਕੁ ਮੁਹਤੁ ਨ ਇਹੁ ਮਨੁ ਲਾਇਓ ॥
एक पल के लिए भी कोई अपना मन ईश्वर के संदेश, उनकी स्तुति या संतों की संगति में केंद्रित नहीं कर पाता।
ਬਿਗਸਿਓ ਪੇਖਿ ਰੰਗੁ ਕਸੁੰਭ ਕੋ ਪਰ ਗ੍ਰਿਹ ਜੋਹਨਿ ਜਾਇਓ ॥੧॥
जैसे कुसुम का रंग शीघ्र ही मुरझा जाता है, वैसे ही वह दूसरों की संपत्ति देखकर क्षणिक मोह में पड़ जाता है। ॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਭਾਉ ਨ ਕੀਨੋ ਨਹ ਸਤ ਪੁਰਖੁ ਮਨਾਇਓ ॥
इस चंचल मन ने भगवान् के चरण-कमलों पर श्रद्धा धारण नहीं की और न ही सद्पुरुष को प्रसन्न किया है।
ਧਾਵਤ ਕਉ ਧਾਵਹਿ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ਜਿਉ ਤੇਲੀ ਬਲਦੁ ਭ੍ਰਮਾਇਓ ॥੨॥
इसके विपरीत, वह तेली के बैल की भाँति इधर-उधर भटकता रहता है और क्षणिक सांसारिक धन की लालसा में लगा रहता है। ॥ २॥
ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਇਸਨਾਨੁ ਨ ਕੀਓ ਇਕ ਨਿਮਖ ਨ ਕੀਰਤਿ ਗਾਇਓ ॥
इसके अतिरिक्त, वह न तो भगवान् को स्मरण करता है, न दान-पुण्य में संलग्न होता है, और न कभी भगवान् की स्तुति करता है।
ਨਾਨਾ ਝੂਠਿ ਲਾਇ ਮਨੁ ਤੋਖਿਓ ਨਹ ਬੂਝਿਓ ਅਪਨਾਇਓ ॥੩॥
यह विभिन्न प्रकार के झूठ अपनाकर अपने चित्त को प्रसन्न करने में लगा रहता है परन्तु अपने स्वरूप को बिल्कुल नहीं समझा ॥ ३॥
ਪਰਉਪਕਾਰ ਨ ਕਬਹੂ ਕੀਏ ਨਹੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਧਿਆਇਓ ॥
इसने कोई परोपकार भी नहीं किया, न ही गुरु की सेवा एवं ध्यान किया है।
ਪੰਚ ਦੂਤ ਰਚਿ ਸੰਗਤਿ ਗੋਸਟਿ ਮਤਵਾਰੋ ਮਦ ਮਾਇਓ ॥੪॥
यह तो केवल कामादिक विकारों की संगति एवं गोष्ठी में मग्न होकर माया के नशे में ही मतवाला बना रहता है।॥ ४॥
ਕਰਉ ਬੇਨਤੀ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਸੁਣਿ ਆਇਓ ॥
हे हरि ! मैं विनती करता हूँ कि मुझे साध-संगत में मिला दो, आपको भक्तवत्सल जानकर ही मैं आपकी शरण में आया हूँ।
ਨਾਨਕ ਭਾਗਿ ਪਰਿਓ ਹਰਿ ਪਾਛੈ ਰਾਖੁ ਲਾਜ ਅਪੁਨਾਇਓ ॥੫॥੧॥੩॥
हे भगवान्! दास नानक आपके चरणों की ओर दौड़ता हुआ आया है, कृपा कर मुझे अपनाकर मेरी लाज बचा लें।॥ ५ ॥ १ ॥ ३ ॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਾਨੁਖੁ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਬਿਰਥਾ ਆਇਆ ॥
जो मनुष्य जीवन के उच्चतम उद्देश्य को नहीं समझता, उसका संसार में आगमन व्यर्थ माना जाता है।
ਅਨਿਕ ਸਾਜ ਸੀਗਾਰ ਬਹੁ ਕਰਤਾ ਜਿਉ ਮਿਰਤਕੁ ਓਢਾਇਆ ॥ ਰਹਾਉ ॥
वह अनेक प्रकार की सजावट एवं बहुत प्रकार के श्रृंगार करता है परन्तु यह तो मृतक को सुन्दर वस्त्र पहनाने की भांति ही समझो।॥ रहाउ ॥
ਧਾਇ ਧਾਇ ਕ੍ਰਿਪਨ ਸ੍ਰਮੁ ਕੀਨੋ ਇਕਤ੍ਰ ਕਰੀ ਹੈ ਮਾਇਆ ॥
जैसे कोई कंजूस इधर-उधर भाग दौड़ करके बड़े परिश्रम से धन एकत्रित करता है।
ਦਾਨੁ ਪੁੰਨੁ ਨਹੀ ਸੰਤਨ ਸੇਵਾ ਕਿਤ ਹੀ ਕਾਜਿ ਨ ਆਇਆ ॥੧॥
यदि वह कोई दान-पुण्य एवं संतों की सेवा में नहीं जुटता तो वह धन उसके किसी काम में नहीं आता ॥ १॥
ਕਰਿ ਆਭਰਣ ਸਵਾਰੀ ਸੇਜਾ ਕਾਮਨਿ ਥਾਟੁ ਬਨਾਇਆ ॥
जीवन के उद्देश्य को समझे बिना जीना, उस स्त्री के समान है जो स्वयं को असंख्य आभूषणों, शृंगार और विविध प्रकार की सजावटी वस्तुओं से तो अलंकृत करती है,
ਸੰਗੁ ਨ ਪਾਇਓ ਅਪੁਨੇ ਭਰਤੇ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
यदि उसे अपने प्रियतम का संयोग प्राप्त नहीं होता तो वह अपने श्रृंगारों को देख-देखकर बहुत दुःखी होती है।॥ २॥
ਸਾਰੋ ਦਿਨਸੁ ਮਜੂਰੀ ਕਰਤਾ ਤੁਹੁ ਮੂਸਲਹਿ ਛਰਾਇਆ ॥
मनुष्य सारा दिन मजदूरी करता रहा किन्तु वह तो व्यर्थ ही छिलके को मूसल से पीटता रहा।
ਖੇਦੁ ਭਇਓ ਬੇਗਾਰੀ ਨਿਆਈ ਘਰ ਕੈ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਆ ॥੩॥
दूसरे की बेगार करने वाले मनुष्य की तरह उसे दुःख ही मिला है क्योंकि उसने अपने घर का कोई भी कार्य नहीं संवारा ॥ ३॥
ਭਇਓ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਕੋ ਤਿਸੁ ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਸਾਇਆ ॥
जिस पर प्रभु की कृपा हो गई है, उसके हृदय में नाम का निवास हो गया है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਪਾਛੈ ਪਰਿਅਉ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੨॥੪॥
हे नानक ! जिसने साधुओं की संगति का अनुसरण किया है, उसे हरि-रस की उपलब्धि हो गई है॥ ४॥ २॥ ४॥
ਟੋਡੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग तोडी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਿ ਬਸਹੁ ਰਿਦੈ ਹਰਿ ਨੀਤ ॥
हे कृपानिधान परमात्मा ! सदैव मेरे हृदय में बसे रहो।
ਤੈਸੀ ਬੁਧਿ ਕਰਹੁ ਪਰਗਾਸਾ ਲਾਗੈ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे हृदय में ऐसी बुद्धि का प्रकाश करो कि मेरी आप से प्रीति लग जाए॥ रहाउ ॥
ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ਕੀ ਪਾਵਉ ਧੂਰਾ ਮਸਤਕਿ ਲੇ ਲੇ ਲਾਵਉ ॥
मैं आपके दास की चरण-धूलि प्राप्त करूँ और उसे लेकर अपने माथे पर लगाऊँ।
ਮਹਾ ਪਤਿਤ ਤੇ ਹੋਤ ਪੁਨੀਤਾ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨ ਗੁਨ ਗਾਵਉ ॥੧॥
हरि का भजन एवं गुणगान करने से मैं महापतित से पवित्र हो गया हूँ॥ १॥