Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 682

Page 682

ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਉਖੀ ਘੜੀ ਨ ਦੇਖਣ ਦੇਈ ਅਪਨਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮਾਲੇ ॥ अउखी घड़ी न देखण देई अपना बिरदु समाले ॥ भगवान् अपने भक्तों को किसी भी कठिन घड़ी में व्याकुल नहीं होने देते; वे उनकी रक्षा करना अपना सहज और अटल स्वभाव मानते हैं।
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੈ ਅਪਨੇ ਕਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ॥੧॥ हाथ देइ राखै अपने कउ सासि सासि प्रतिपाले ॥१॥ वह अपना हाथ देकर अपने दास की रक्षा करता है और श्वास -श्वास उसका पालन-पोषण करता है ॥१॥
ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲਾਗਿ ਰਹਿਓ ਮੇਰਾ ਚੀਤੁ ॥ प्रभ सिउ लागि रहिओ मेरा चीतु ॥ मेरा चित्त प्रभु से ही लगा रहता है।
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਧੰਨੁ ਹਮਾਰਾ ਮੀਤੁ ॥ ਰਹਾਉ ॥ आदि अंति प्रभु सदा सहाई धंनु हमारा मीतु ॥ रहाउ ॥ मेरा मित्र प्रभु धन्य है, वह तो आदि से अंत तक सदैव ही मेरा सहायक बना रहता है ॥ रहाउ ॥
ਮਨਿ ਬਿਲਾਸ ਭਏ ਸਾਹਿਬ ਕੇ ਅਚਰਜ ਦੇਖਿ ਬਡਾਈ ॥ मनि बिलास भए साहिब के अचरज देखि बडाई ॥ प्रभु की आश्चर्यजनक लीला एवं बड़ाई को देख कर मेरे मन में हर्षोल्लास उत्पन्न हो गया है।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਆਨਦ ਕਰਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਪੂਰਨ ਪੈਜ ਰਖਾਈ ॥੨॥੧੫॥੪੬॥ हरि सिमरि सिमरि आनद करि नानक प्रभि पूरन पैज रखाई ॥२॥१५॥४६॥ हे नानक ! प्रभु ने मेरी पूरी लाज-प्रतिष्ठा रख ली है, इसलिए परमेश्वर का नाम-स्मरण करके आनंद प्राप्त करो ॥ २॥ १५॥४६॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਿਸ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਾਨਪਤਿ ਦਾਤਾ ਸੋਈ ਗਨਹੁ ਅਭਾਗਾ ॥ जिस कउ बिसरै प्रानपति दाता सोई गनहु अभागा ॥ जो परोपकारी ईश्वर को भूल जाता है, जान ले कि वह परम अभागा है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਰਾਗਿਓ ਅਮਿਅ ਸਰੋਵਰ ਪਾਗਾ ॥੧॥ चरन कमल जा का मनु रागिओ अमिअ सरोवर पागा ॥१॥ जिसका मन प्रभु चरणों के प्रेम में लग गया है, उसने अमृत का सरोवर प्राप्त कर लिया है॥१॥
ਤੇਰਾ ਜਨੁ ਰਾਮ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਜਾਗਾ ॥ तेरा जनु राम नाम रंगि जागा ॥ हे ईश्वर ! आपका सेवक राम नाम के प्रेम में मग्न होकर अज्ञान की निद्रा में से जाग्रत हो गया है।
ਆਲਸੁ ਛੀਜਿ ਗਇਆ ਸਭੁ ਤਨ ਤੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥ ਰਹਾਉ ॥ आलसु छीजि गइआ सभु तन ते प्रीतम सिउ मनु लागा ॥ रहाउ ॥ मेरे शरीर में से सारा आलस्य दूर हो गया है तथा मेरा मन अपने प्रियतम के साथ लग गया है॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਜਹ ਪੇਖਉ ਤਹ ਨਾਰਾਇਣ ਸਗਲ ਘਟਾ ਮਹਿ ਤਾਗਾ ॥ जह जह पेखउ तह नाराइण सगल घटा महि तागा ॥ मैं जहाँ कहीं भी देखता हूँ, उधर ही नारायण को माला के मोतियों के धागे की भांति समस्त शरीरों में निवास करता हुआ देखता हूँ।
ਨਾਮ ਉਦਕੁ ਪੀਵਤ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਆਗੇ ਸਭਿ ਅਨੁਰਾਗਾ ॥੨॥੧੬॥੪੭॥ नाम उदकु पीवत जन नानक तिआगे सभि अनुरागा ॥२॥१६॥४७॥ हरिनामामृत रूपी जल को पान करते ही नानक ने अन्य सभी अनुराग त्याग दिए हैं।॥ २ ॥ १६ ॥ ४७ ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਨ ਕੇ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਕਾਮ ॥ जन के पूरन होए काम ॥ दास के सभी काम सम्पूर्ण हो गए हैं।
ਕਲੀ ਕਾਲ ਮਹਾ ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਲਜਾ ਰਾਖੀ ਰਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कली काल महा बिखिआ महि लजा राखी राम ॥१॥ रहाउ ॥ कली काल महा बिखिआ महि लजा राखी राम ॥१॥ रहाउ ॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵੈ ਜਾਮ ॥ सिमरि सिमरि सुआमी प्रभु अपुना निकटि न आवै जाम ॥ इस कलियुग के समय में महा विषैली माया के जाल में प्रभु राम ने मेरी लाज-प्रतिष्ठा रख ली है ॥१॥ रहाउ॥
ਮੁਕਤਿ ਬੈਕੁੰਠ ਸਾਧ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਜਨ ਪਾਇਓ ਹਰਿ ਕਾ ਧਾਮ ॥੧॥ मुकति बैकुंठ साध की संगति जन पाइओ हरि का धाम ॥१॥ अपने स्वामी प्रभु का बार-बार सिमरन करने से यम मेरे निकट नहीं आता।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਥਾਤੀ ਕੋਟਿ ਸੂਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ॥ चरन कमल हरि जन की थाती कोटि सूख बिस्राम ॥ दास ने भगवान् का धाम पा लिया है और उसके लिए साधु की संगति ही मुक्ति एवं वैकुंठ है॥१॥
ਗੋਬਿੰਦੁ ਦਮੋਦਰ ਸਿਮਰਉ ਦਿਨ ਰੈਨਿ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਨ ॥੨॥੧੭॥੪੮॥ गोबिंदु दमोदर सिमरउ दिन रैनि नानक सद कुरबान ॥२॥१७॥४८॥ भगवान् के चरण कमल ही दास के लिए अक्षय धन की थैली है और करोड़ों सुखों का निवास है।
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ हे नानक ! मैं दिन-रात गोविन्द की आराधना करता रहता हूँ और सदैव ही उस पर बलिहारी जाता हूँ ॥२॥१७॥४८॥
ਮਾਂਗਉ ਰਾਮ ਤੇ ਇਕੁ ਦਾਨੁ ॥ मांगउ राम ते इकु दानु ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਹੋਵਹਿ ਸਿਮਰਉ ਤੁਮਰਾ ਨਾਮੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सगल मनोरथ पूरन होवहि सिमरउ तुमरा नामु ॥१॥ रहाउ ॥ मैं अपने प्रभु राम से एक यही दान माँगता हूँ कि
ਚਰਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਹਿਰਦੈ ਵਾਸਹਿ ਸੰਤਨ ਕਾ ਸੰਗੁ ਪਾਵਉ ॥ चरन तुम्हारे हिरदै वासहि संतन का संगु पावउ ॥ मैं आपका नाम-सिमरन करता रहूँ, जिसके फलस्वरूप सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਸੋਗ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਮਨੁ ਨ ਵਿਆਪੈ ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਵਉ ॥੧॥ सोग अगनि महि मनु न विआपै आठ पहर गुण गावउ ॥१॥ आपके चरण कमल मेरे हृदय में बस जाएँ और मैं संतजनों की संगति प्राप्त करूँ।
ਸ੍ਵਸਤਿ ਬਿਵਸਥਾ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਮਧ੍ਯ੍ਯੰਤ ਪ੍ਰਭ ਜਾਪਣ ॥ स्वसति बिवसथा हरि की सेवा मध्यंत प्रभ जापण ॥ मेरा मन चिंता की अग्नि में न जले और आठ प्रहर आपके गुण गाता रहूँ ॥१॥
ਨਾਨਕ ਰੰਗੁ ਲਗਾ ਪਰਮੇਸਰ ਬਾਹੁੜਿ ਜਨਮ ਨ ਛਾਪਣ ॥੨॥੧੮॥੪੯॥ नानक रंगु लगा परमेसर बाहुड़ि जनम न छापण ॥२॥१८॥४९॥ मैं सुख-कल्याण की अवस्था में भगवान् की भक्ति करता रहूँ और जीवन भर प्रभु का जाप करता रहूँ।
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ हे नानक ! मेरा परमेश्वर से अटूट प्रेम-रंग लग गया है, अब पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं पडूंगा ॥२॥१८॥४६॥
ਮਾਂਗਉ ਰਾਮ ਤੇ ਸਭਿ ਥੋਕ ॥ मांगउ राम ते सभि थोक ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਾਨੁਖ ਕਉ ਜਾਚਤ ਸ੍ਰਮੁ ਪਾਈਐ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਮੋਖ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ मानुख कउ जाचत स्रमु पाईऐ प्रभ कै सिमरनि मोख ॥१॥ रहाउ ॥ मैं तो राम से ही सभी पदार्थ माँगता हूँ।
ਘੋਖੇ ਮੁਨਿ ਜਨ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪੁਰਾਨਾਂ ਬੇਦ ਪੁਕਾਰਹਿ ਘੋਖ ॥ घोखे मुनि जन सिम्रिति पुरानां बेद पुकारहि घोख ॥ मनुष्य से याचना करना लज्जाजनक प्रतीत होता है; किन्तु प्रभु के सिमरन से ही परंतु जब ईश्वर का स्मरण किया जाता है, तो न केवल आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, मोक्ष भी मिल जाता है।॥१॥ रहाउ॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਿੰਧੁ ਸੇਵਿ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ਦੋਵੈ ਸੁਹੇਲੇ ਲੋਕ ॥੧॥ क्रिपा सिंधु सेवि सचु पाईऐ दोवै सुहेले लोक ॥१॥ ऋषियों-मुनियों ने स्मृतियों एवं पुराणों का ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया है और वे वेदों का अध्ययन करके उच्च स्वर में पढ़कर दूसरों को सुनाते रहते हैं।
ਆਨ ਅਚਾਰ ਬਿਉਹਾਰ ਹੈ ਜੇਤੇ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਫੋਕ ॥ आन अचार बिउहार है जेते बिनु हरि सिमरन फोक ॥ कृपा के सागर भगवान् की भक्ति करने से ही उस परम-सत्य को पाया जाता है और यह लोक एवं परलोक दोनों ही सुखद हो जाते हैं।॥१॥
ਨਾਨਕ ਜਨਮ ਮਰਣ ਭੈ ਕਾਟੇ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਬਿਨਸੇ ਸੋਕ ॥੨॥੧੯॥੫੦॥ नानक जनम मरण भै काटे मिलि साधू बिनसे सोक ॥२॥१९॥५०॥ भगवान् के सिमरन के अतिरिक्त अन्य जितने भी आचार-व्यवहार हैं, वे सभी निष्फल हैं।
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ धनासरी महला ५ ॥ हे नानक ! संत गुरुदेव को मिलने से चिन्ता मिट जाती है और जन्म-मरण का भय नाश हो जाता है।॥२॥१६॥५०॥
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ॥ त्रिसना बुझै हरि कै नामि ॥ राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਹਾ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਲਾਗੈ ਪੂਰਨ ਧਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ महा संतोखु होवै गुर बचनी प्रभ सिउ लागै पूरन धिआनु ॥१॥ रहाउ ॥ भगवान् के नाम-सिमरन से सारी तृष्णा बुझ जाती है।


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