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ਧੰਨਿ ਸੁ ਥਾਨੁ ਧੰਨਿ ਓਇ ਭਵਨਾ ਜਾ ਮਹਿ ਸੰਤ ਬਸਾਰੇ ॥
धंनि सु थानु धंनि ओइ भवना जा महि संत बसारे ॥
वह स्थान बड़ा धन्य है और वह भवन भी धन्य है, जहाँ संतजन रहते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਸਰਧਾ ਪੂਰਹੁ ਠਾਕੁਰ ਭਗਤ ਤੇਰੇ ਨਮਸਕਾਰੇ ॥੨॥੯॥੪੦॥
जन नानक की सरधा पूरहु ठाकुर भगत तेरे नमसकारे ॥२॥९॥४०॥
हे मेरे ठाकुर जी ! नानक की यह आकांक्षा पूरी करो, ताकि वह सदा आपके भक्तों के चरणों में श्रद्धा से झुका रहे। ॥ २॥ ६ ॥ ४० ॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਛਡਾਇ ਲੀਓ ਮਹਾ ਬਲੀ ਤੇ ਅਪਨੇ ਚਰਨ ਪਰਾਤਿ ॥
छडाइ लीओ महा बली ते अपने चरन पराति ॥
गुरु ने अपने चरणों में लगाकर मुझे महाबली माया से बचा लिया है।
ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਮਨ ਮੰਤਾ ਬਿਨਸਿ ਨ ਕਤਹੂ ਜਾਤਿ ॥੧॥
एकु नामु दीओ मन मंता बिनसि न कतहू जाति ॥१॥
उसने सिमरन करने के लिए मेरे मन को एक नाम रूपी मंत्र प्रदान किया है, जो न कभी नाश होता है और न ही कहीं जाता है॥१॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਕੀਨੀ ਦਾਤਿ ॥
सतिगुरि पूरै कीनी दाति ॥
पूर्ण सतगुरु ने मुझे नाम की देन प्रदान की है और
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦੀਓ ਕੀਰਤਨ ਕਉ ਭਈ ਹਮਾਰੀ ਗਾਤਿ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु दीओ कीरतन कउ भई हमारी गाति ॥ रहाउ ॥
कीर्तन करने के लिए मुझे परमात्मा का नाम प्रदान किया है और कीर्तन करने से मैं बंधनों से मुक्त हो गया हूँ॥ रहाउ॥
ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਓ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਭਗਤਨ ਕੀ ਰਾਖੀ ਪਾਤਿ ॥
अंगीकारु कीओ प्रभि अपुनै भगतन की राखी पाति ॥
प्रभु ने हमेशा ही अपने भक्तों का पक्ष लिया है और उनकी लाज रखी है।
ਨਾਨਕ ਚਰਨ ਗਹੇ ਪ੍ਰਭ ਅਪਨੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਓ ਦਿਨ ਰਾਤਿ ॥੨॥੧੦॥੪੧॥
नानक चरन गहे प्रभ अपने सुखु पाइओ दिन राति ॥२॥१०॥४१॥
हे नानक ! मैंने अपने प्रभु के चरण पकड़ लिए हैं और अब दिन-रात सुख प्राप्त कर रहा हूँ ॥२॥१०॥४१॥
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਪਰ ਹਰਨਾ ਲੋਭੁ ਝੂਠ ਨਿੰਦ ਇਵ ਹੀ ਕਰਤ ਗੁਦਾਰੀ ॥
पर हरना लोभु झूठ निंद इव ही करत गुदारी ॥
पराया धन चोरी करना, लालच करना, झूठ बोलना एवं निन्दा करना - इस तरह करते ही शाक्त आदमी ने अपना जीवन व्यतीत कर दिया है।
ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਆਸ ਮਿਥਿਆ ਮੀਠੀ ਇਹ ਟੇਕ ਮਨਹਿ ਸਾਧਾਰੀ ॥੧॥
म्रिग त्रिसना आस मिथिआ मीठी इह टेक मनहि साधारी ॥१॥
जिस तरह प्यासे मृग को मृगतृष्णा का जल बड़ा मीठा लगता है, वैसे ही शाक्त झूठी आशाओं को बड़ा मीठा समझता है और उसने इन झूठी आशाओं के सहारे को अपने मन में भलीभांति बसा लिया है॥१॥
ਸਾਕਤ ਕੀ ਆਵਰਦਾ ਜਾਇ ਬ੍ਰਿਥਾਰੀ ॥
साकत की आवरदा जाइ ब्रिथारी ॥
शाक्त व्यक्ति का जीवन व्यर्थ ही बीत जाता है,
ਜੈਸੇ ਕਾਗਦ ਕੇ ਭਾਰ ਮੂਸਾ ਟੂਕਿ ਗਵਾਵਤ ਕਾਮਿ ਨਹੀ ਗਾਵਾਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसे कागद के भार मूसा टूकि गवावत कामि नही गावारी ॥ रहाउ ॥
जैसे काग़ज़ के ढेर को चूहा कुतर-कुतर कर गंवा देता है परन्तु वह कुतरे हुए काग़ज़ उस मूर्ख के कोई काम नहीं आते ॥ रहाउ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਸੁਆਮੀ ਇਹ ਬੰਧਨ ਛੁਟਕਾਰੀ ॥
करि किरपा पारब्रहम सुआमी इह बंधन छुटकारी ॥
हे मेरे स्वामी पारब्रह्म ! अपनी कृपा करके मुझे माया के इन बधनों से मुक्त कर दीजिए।
ਬੂਡਤ ਅੰਧ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕਾਢਤ ਸਾਧ ਜਨਾ ਸੰਗਾਰੀ ॥੨॥੧੧॥੪੨॥
बूडत अंध नानक प्रभ काढत साध जना संगारी ॥२॥११॥४२॥
हे नानक ! प्रभु डूब रहे ज्ञानहीन मनुष्यों को साधुजनों की संगति में मिलाकर भवसागर में
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
से बाहर निकाल लेते हैं॥ २ ॥ ११॥ ४२ ॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਸੀਤਲ ਤਨੁ ਮਨੁ ਛਾਤੀ ॥
सिमरि सिमरि सुआमी प्रभु अपना सीतल तनु मनु छाती ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰੂਪ ਰੰਗ ਸੂਖ ਧਨੁ ਜੀਅ ਕਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮੋਰੈ ਜਾਤੀ ॥੧॥
रूप रंग सूख धनु जीअ का पारब्रहम मोरै जाती ॥१॥
अपने स्वामी प्रभु का सिमरन करने से मेरा तन, मन एवं छाती शीतल हो गए हैं।
ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਰਸਾਇਨਿ ਮਾਤੀ ॥
रसना राम रसाइनि माती ॥
मेरे प्राणों का स्वामी पारब्रह्म ही मेरी जाति, रूप, रंग, सुख एवं धन है ॥१॥
ਰੰਗ ਰੰਗੀ ਰਾਮ ਅਪਨੇ ਕੈ ਚਰਨ ਕਮਲ ਨਿਧਿ ਥਾਤੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
रंग रंगी राम अपने कै चरन कमल निधि थाती ॥ रहाउ ॥
मेरी जिह्वा रसों के घर राम-नाम में मस्त रहती है और
ਜਿਸ ਕਾ ਸਾ ਤਿਨ ਹੀ ਰਖਿ ਲੀਆ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਭਾਤੀ ॥
जिस का सा तिन ही रखि लीआ पूरन प्रभ की भाती ॥
राम के प्रेम-रंग में रंग गई है, भगवान् के सुन्दर चरण-कमल नवनिधियों का भण्डार हैं॥ रहाउ॥
ਮੇਲਿ ਲੀਓ ਆਪੇ ਸੁਖਦਾਤੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰਾਖੀ ਪਾਤੀ ॥੨॥੧੨॥੪੩॥
मेलि लीओ आपे सुखदातै नानक हरि राखी पाती ॥२॥१२॥४३॥
जिसका मैं सेवक था, उसने मुझे भवसागर में डूबने से बचा लिया है। पूर्ण प्रभु का अपने सेवकों को बचाने का ढंग निराला ही है।
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
सुखों के दाता ने मुझे स्वयं ही अपने साथ मिला लिया है। हे नानक ! भगवान् ने मेरी लाज-प्रतिष्ठा रख ली है ॥२॥१२॥४३॥
ਦੂਤ ਦੁਸਮਨ ਸਭਿ ਤੁਝ ਤੇ ਨਿਵਰਹਿ ਪ੍ਰਗਟ ਪ੍ਰਤਾਪੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥
दूत दुसमन सभि तुझ ते निवरहि प्रगट प्रतापु तुमारा ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜੋ ਜੋ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਦੁਖਾਏ ਓਹੁ ਤਤਕਾਲ ਤੁਮ ਮਾਰਾ ॥੧॥
जो जो तेरे भगत दुखाए ओहु ततकाल तुम मारा ॥१॥
हे ईश्वर ! आपका तेज-प्रताप समूचे जगत् में प्रगट है; कामादिक पाँच शत्रु आपकी कृपा से ही दूर होते हैं।
ਨਿਰਖਉ ਤੁਮਰੀ ਓਰਿ ਹਰਿ ਨੀਤ ॥
निरखउ तुमरी ओरि हरि नीत ॥
जो कोई भी आपके भक्तों को दुःखी करता था, उसका आपने तुरंत ही वध कर दिया है॥१॥
ਮੁਰਾਰਿ ਸਹਾਇ ਹੋਹੁ ਦਾਸ ਕਉ ਕਰੁ ਗਹਿ ਉਧਰਹੁ ਮੀਤ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मुरारि सहाइ होहु दास कउ करु गहि उधरहु मीत ॥ रहाउ ॥
हे हरि ! मैं तो नित्य ही आपकी ओर सहायता के लिए देखता रहता हूँ।
ਸੁਣੀ ਬੇਨਤੀ ਠਾਕੁਰਿ ਮੇਰੈ ਖਸਮਾਨਾ ਕਰਿ ਆਪਿ ॥
सुणी बेनती ठाकुरि मेरै खसमाना करि आपि ॥
हे मुरारि ! अपने दास के सहायक बन जाओ। हे मेरे मित्र प्रभु! मेरा हाथ पकड़ कर मेरा उद्धार कर दो॥ रहाउ ॥
ਨਾਨਕ ਅਨਦ ਭਏ ਦੁਖ ਭਾਗੇ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥੨॥੧੩॥੪੪॥
नानक अनद भए दुख भागे सदा सदा हरि जापि ॥२॥१३॥४४॥
मेरे ठाकुर जी ने मेरी प्रार्थना सुन ली है और उसने मुझे अपना सेवक बना कर मालिक वाला कर्त्तव्य पूरा किया है।
ਧਨਾਸਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
धनासरी महला ५ ॥
हे नानक ! हमेशा ही हरि का जाप करने से आनंद बना रहता है और मेरे समस्त दु:ख दूर हो गए है ॥ २॥ १३॥ ४४॥
ਚਤੁਰ ਦਿਸਾ ਕੀਨੋ ਬਲੁ ਅਪਨਾ ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਕਰੁ ਧਾਰਿਓ ॥
चतुर दिसा कीनो बलु अपना सिर ऊपरि करु धारिओ ॥
राग धनश्री, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਟਾਖ੍ਯ੍ਯ ਅਵਲੋਕਨੁ ਕੀਨੋ ਦਾਸ ਕਾ ਦੂਖੁ ਬਿਦਾਰਿਓ ॥੧॥
क्रिपा कटाख्य अवलोकनु कीनो दास का दूखु बिदारिओ ॥१॥
जिस परमात्मा ने चारों दिशाओं में अपने बल का प्रसार किया हुआ है, उसने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा हुआ है।
ਹਰਿ ਜਨ ਰਾਖੇ ਗੁਰ ਗੋਵਿੰਦ ॥
हरि जन राखे गुर गोविंद ॥
उसने अपनी कृपा-दृष्टि से देखा है और अपने दास का दुःख नाश कर दिया है॥१॥
ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਅਵਗੁਣ ਸਭਿ ਮੇਟੇ ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਬਖਸੰਦ ॥ ਰਹਾਉ ॥
कंठि लाइ अवगुण सभि मेटे दइआल पुरख बखसंद ॥ रहाउ ॥
गोविन्द गुरु ने दास को संसार-सागर में डूबने से बचा लिया है।
ਜੋ ਮਾਗਹਿ ਠਾਕੁਰ ਅਪੁਨੇ ਤੇ ਸੋਈ ਸੋਈ ਦੇਵੈ ॥
जो मागहि ठाकुर अपुने ते सोई सोई देवै ॥
क्षमाशील एवं दयालु परमपुरुष ने अपने गले से लगा लिया है और सभी अवगुण मिटा दिए हैं ॥ रहाउ ॥
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਮੁਖ ਤੇ ਜੋ ਬੋਲੈ ਈਹਾ ਊਹਾ ਸਚੁ ਹੋਵੈ ॥੨॥੧੪॥੪੫॥
नानक दासु मुख ते जो बोलै ईहा ऊहा सचु होवै ॥२॥१४॥४५॥
वह अपने ठाकुर जी से जो कुछ भी माँगता है, वह वही कुछ दे देता है।