Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 634

Page 634

ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥ सोरठि महला ९ ॥ राग सोरठ, नौवें गुरु: ९ ॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਜਾਨਿ ਲੇਹੁ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥ प्रीतम जानि लेहु मन माही ॥ हे प्रियतम ! अपने मन में इस तथ्य को भलीभांति समझ ले कि
ਅਪਨੇ ਸੁਖ ਸਿਉ ਹੀ ਜਗੁ ਫਾਂਧਿਓ ਕੋ ਕਾਹੂ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अपने सुख सिउ ही जगु फांधिओ को काहू को नाही ॥१॥ रहाउ ॥ इस दुनिया में हर कोई अपनी ही शांति और आराम के पीछे भागता है, और सच्चाई ये है कि कोई भी सदा साथ निभाने वाला नहीं होता। ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੁਖ ਮੈ ਆਨਿ ਬਹੁਤੁ ਮਿਲਿ ਬੈਠਤ ਰਹਤ ਚਹੂ ਦਿਸਿ ਘੇਰੈ ॥ सुख मै आनि बहुतु मिलि बैठत रहत चहू दिसि घेरै ॥ जीवन में सुख-समृद्धि के समय में तो बहुत सारे सगे-संबंधी मिलकर बैठते हैं तथा चहुँ दिशाओं से घेर कर रखते हैं लेकिन
ਬਿਪਤਿ ਪਰੀ ਸਭ ਹੀ ਸੰਗੁ ਛਾਡਿਤ ਕੋਊ ਨ ਆਵਤ ਨੇਰੈ ॥੧॥ बिपति परी सभ ही संगु छाडित कोऊ न आवत नेरै ॥१॥ जब कोई विपत्ति आती है तो सभी साथ छोड़ देते हैं और कोई भी निकट तक नहीं आता ॥ १॥
ਘਰ ਕੀ ਨਾਰਿ ਬਹੁਤੁ ਹਿਤੁ ਜਾ ਸਿਉ ਸਦਾ ਰਹਤ ਸੰਗ ਲਾਗੀ ॥ घर की नारि बहुतु हितु जा सिउ सदा रहत संग लागी ॥ जिस गृहिणी (धर्मपत्नी) के संग पति बहुत स्नेह करता है और जो हमेशा ही अपने जीवनसाथी के संग रहती है,
ਜਬ ਹੀ ਹੰਸ ਤਜੀ ਇਹ ਕਾਂਇਆ ਪ੍ਰੇਤ ਪ੍ਰੇਤ ਕਰਿ ਭਾਗੀ ॥੨॥ जब ही हंस तजी इह कांइआ प्रेत प्रेत करि भागी ॥२॥ जब हंस रूपी आत्मा इस शरीर को त्याग देती है तो वह जीवनसंगिनी भी मृत शरीर को प्रेत-प्रेत कहती हुई भाग जाती है।॥ २॥
ਇਹ ਬਿਧਿ ਕੋ ਬਿਉਹਾਰੁ ਬਨਿਓ ਹੈ ਜਾ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ਲਗਾਇਓ ॥ इह बिधि को बिउहारु बनिओ है जा सिउ नेहु लगाइओ ॥ इस संसार में लोगों का इस तरीके का ही व्यवहार बना हुआ है, जिनके साथ हम भरपूर प्रेम करते हैं।
ਅੰਤ ਬਾਰ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਜੀ ਕੋਊ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਓ ॥੩॥੧੨॥੧੩੯॥ अंत बार नानक बिनु हरि जी कोऊ कामि न आइओ ॥३॥१२॥१३९॥ नानक कहते हैं कि जीवन के अन्तिम क्षणों में ईश्वर के अतिरिक्त कोई भी काम नहीं आता ॥३॥१२॥१३९॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਅਸਟਪਦੀਆ ਚਉਤੁਕੀ सोरठि महला १ घरु १ असटपदीआ चउतुकी राग सोरठ, प्रथम गुरु, प्रथम ताल, अष्टपदी, चार पंक्तियाँ:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੁਬਿਧਾ ਨ ਪੜਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਹੋਰੁ ਨ ਪੂਜਉ ਮੜੈ ਮਸਾਣਿ ਨ ਜਾਈ ॥ दुबिधा न पड़उ हरि बिनु होरु न पूजउ मड़ै मसाणि न जाई ॥ मैं किसी दुविधा में नहीं पड़ता; भगवान् के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं करता और किसी समाधि एवं श्मशानघाट में भी नहीं जाता।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਰਾਚਿ ਨ ਪਰ ਘਰਿ ਜਾਵਾ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਨਾਮਿ ਬੁਝਾਈ ॥ त्रिसना राचि न पर घरि जावा त्रिसना नामि बुझाई ॥ किसी प्रकार की तृष्णा में प्रवृत्त होकर किसी पराए घर में भी नहीं जाता, चूंकि नाम ने मेरी तृष्णा मिटा दी है।
ਘਰ ਭੀਤਰਿ ਘਰੁ ਗੁਰੂ ਦਿਖਾਇਆ ਸਹਜਿ ਰਤੇ ਮਨ ਭਾਈ ॥ घर भीतरि घरु गुरू दिखाइआ सहजि रते मन भाई ॥ हे भाई ! मेरे हृदय-घर में ही गुरु ने प्रभु के दर्शन करवा दिए हैं और मेरा मन सहज अवस्था में लीन हो गया है।
ਤੂ ਆਪੇ ਦਾਨਾ ਆਪੇ ਬੀਨਾ ਤੂ ਦੇਵਹਿ ਮਤਿ ਸਾਈ ॥੧॥ तू आपे दाना आपे बीना तू देवहि मति साई ॥१॥ हे ईश्वर ! आप स्वयं ही चतुर है; स्वयं ही सर्वज्ञ है और स्वयं ही सुमति प्रदान करते हैं॥ १॥
ਮਨੁ ਬੈਰਾਗਿ ਰਤਉ ਬੈਰਾਗੀ ਸਬਦਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥ मनु बैरागि रतउ बैरागी सबदि मनु बेधिआ मेरी माई ॥ हे मेरी माता ! मेरा मन वैराग्य में मग्न होकर वैरागी बन गया है और गुरु शब्द ने मेरा मन भेद दिया है।
ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਨਿਰੰਤਰਿ ਬਾਣੀ ਸਾਚੇ ਸਾਹਿਬ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥ ਰਹਾਉ ॥ अंतरि जोति निरंतरि बाणी साचे साहिब सिउ लिव लाई ॥ रहाउ ॥ मैंने सच्चे परमेश्वर के साथ लगन लगाई है, निरन्तर वाणी पढ़ने से अन्तर्मन में परम-ज्योति का निवास हो गया है॥ रहाउ॥
ਅਸੰਖ ਬੈਰਾਗੀ ਕਹਹਿ ਬੈਰਾਗ ਸੋ ਬੈਰਾਗੀ ਜਿ ਖਸਮੈ ਭਾਵੈ ॥ असंख बैरागी कहहि बैराग सो बैरागी जि खसमै भावै ॥ असंख्य वैरागी वैराग्य की बातें कहते हैं परन्तु सच्चा वैरागी तो वही है, जो परमात्मा को भला लगता है।
ਹਿਰਦੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਭੈ ਰਚਿਆ ਗੁਰ ਕੀ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ॥ हिरदै सबदि सदा भै रचिआ गुर की कार कमावै ॥ वह शब्द को अपने हृदय में बसाता है और हमेशा प्रभु-भय में लीन रहकर गुरु की सेवा करता है।
ਏਕੋ ਚੇਤੈ ਮਨੂਆ ਨ ਡੋਲੈ ਧਾਵਤੁ ਵਰਜਿ ਰਹਾਵੈ ॥ एको चेतै मनूआ न डोलै धावतु वरजि रहावै ॥ वह एक ईश्वर को ही स्मरण करता है, उसका मन डगमगाता नहीं और मोह-माया की तरफ दौड़ रहे मन पर अंकुश लगाता है।
ਸਹਜੇ ਮਾਤਾ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਸਾਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥੨॥ सहजे माता सदा रंगि राता साचे के गुण गावै ॥२॥ वह सहज अवस्था में मतवाला होकर प्रभु के रंग में हमेशा ही मग्न रहता है और सच्चे परमेश्वर का गुणगान करता है ॥२॥
ਮਨੂਆ ਪਉਣੁ ਬਿੰਦੁ ਸੁਖਵਾਸੀ ਨਾਮਿ ਵਸੈ ਸੁਖ ਭਾਈ ॥ मनूआ पउणु बिंदु सुखवासी नामि वसै सुख भाई ॥ यदि पवन जैसा मन एक क्षण भर के लिए भी सुखवासी हो जाए तो वह नाम में निवास करके सुखी रहेगा।
ਜਿਹਬਾ ਨੇਤ੍ਰ ਸੋਤ੍ਰ ਸਚਿ ਰਾਤੇ ਜਲਿ ਬੂਝੀ ਤੁਝਹਿ ਬੁਝਾਈ ॥ जिहबा नेत्र सोत्र सचि राते जलि बूझी तुझहि बुझाई ॥ मेरी जिह्वा, नेत्र एवं कान सत्य के साथ मग्न हो गए हैं और नाम-जल से तृष्णा बुझ गई है। हे परमेश्वर ! आपने ही तृष्णा को बुझाया है।
ਆਸ ਨਿਰਾਸ ਰਹੈ ਬੈਰਾਗੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਤਾੜੀ ਲਾਈ ॥ आस निरास रहै बैरागी निज घरि ताड़ी लाई ॥ यह वैरागी मन इच्छाओं से विरक्त रहकर परमात्मा में ही ध्यान लगाता है।
ਭਿਖਿਆ ਨਾਮਿ ਰਜੇ ਸੰਤੋਖੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਹਜਿ ਪੀਆਈ ॥੩॥ भिखिआ नामि रजे संतोखी अम्रितु सहजि पीआई ॥३॥ संतोषी मन नाम की भिक्षा से ही तृप्त रहता है और सहज ही प्रभु के नामामृत का पान करता है॥ ३॥
ਦੁਬਿਧਾ ਵਿਚਿ ਬੈਰਾਗੁ ਨ ਹੋਵੀ ਜਬ ਲਗੁ ਦੂਜੀ ਰਾਈ ॥ दुबिधा विचि बैरागु न होवी जब लगु दूजी राई ॥ दुविधा में और जब तक अल्पमात्र भी द्वैतभाव है, तब तक कोई वैरागी नहीं हो सकता।
ਸਭੁ ਜਗੁ ਤੇਰਾ ਤੂ ਏਕੋ ਦਾਤਾ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਭਾਈ ॥ सभु जगु तेरा तू एको दाता अवरु न दूजा भाई ॥ हे भगवान् ! यह समूचा जगत आपका है और एक आप ही दाता है, हे भाई ! भगवान् के अतिरिक्त अन्य कोई महान नहीं।
ਮਨਮੁਖਿ ਜੰਤ ਦੁਖਿ ਸਦਾ ਨਿਵਾਸੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥ मनमुखि जंत दुखि सदा निवासी गुरमुखि दे वडिआई ॥ स्वेच्छाचारी व्यक्ति हमेशा ही दु:खी रहता है लेकिन गुरुमुख को तो भगवान् प्रतिष्ठा प्रदान करता है।
ਅਪਰ ਅਪਾਰ ਅਗੰਮ ਅਗੋਚਰ ਕਹਣੈ ਕੀਮ ਨ ਪਾਈ ॥੪॥ अपर अपार अगम अगोचर कहणै कीम न पाई ॥४॥ अपरंपार, अगम्य एवं अगोचर ईश्वर का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता ॥४॥
ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਮਹਾ ਪਰਮਾਰਥੁ ਤੀਨਿ ਭਵਣ ਪਤਿ ਨਾਮੰ ॥ सुंन समाधि महा परमारथु तीनि भवण पति नामं ॥ हे परमेश्वर ! आप शून्य समाधि धारण करने वाले, महा परमार्थ एवं तीनों लोकों का स्वामी आपका ही नाम है।
ਮਸਤਕਿ ਲੇਖੁ ਜੀਆ ਜਗਿ ਜੋਨੀ ਸਿਰਿ ਸਿਰਿ ਲੇਖੁ ਸਹਾਮੰ ॥ मसतकि लेखु जीआ जगि जोनी सिरि सिरि लेखु सहामं ॥ इस दुनिया में पैदा हुए लोगों के मस्तक पर विधाता द्वारा भाग्य लिखा हुआ है और जो कर्मानुसार भाग्य लिखा होता है, लोग उसके अनुसार ही सुख-दुःख भोगते हैं।
ਕਰਮ ਸੁਕਰਮ ਕਰਾਏ ਆਪੇ ਆਪੇ ਭਗਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਮੰ ॥ करम सुकरम कराए आपे आपे भगति द्रिड़ामं ॥ परमात्मा स्वयं ही लोगों से कर्म एवं सुकर्म करवाते हैं और स्वयं ही अपनी भक्ति में दृढ़ करते हैं।
ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਜੂਠਿ ਲਹੈ ਭੈ ਮਾਨੰ ਆਪੇ ਗਿਆਨੁ ਅਗਾਮੰ ॥੫॥ मनि मुखि जूठि लहै भै मानं आपे गिआनु अगामं ॥५॥ जो व्यक्ति भगवान् के भय में आचरण करता है, उसके मन एवं मुँह की झूठन उतर जाती है और वह स्वयं ही ज्ञान देता है ॥५॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top