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ਜਬ ਹੀ ਸਰਨਿ ਸਾਧ ਕੀ ਆਇਓ ਦੁਰਮਤਿ ਸਗਲ ਬਿਨਾਸੀ ॥
जब ही यह साधु की शरण में आया है तो उसकी तमाम दुर्मति का नाश हो गया है।
ਤਬ ਨਾਨਕ ਚੇਤਿਓ ਚਿੰਤਾਮਨਿ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸੀ ॥੩॥੭॥
हे नानक ! तब ही इसने चिंतामणि भगवान का सिमरन किया तो इसकी यम की फाँसी कट गई है ॥३॥७॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਰੇ ਨਰ ਇਹ ਸਾਚੀ ਜੀਅ ਧਾਰਿ ॥
हे मनुष्य ! अपने हृदय में इस सत्य को धारण कर लो कि
ਸਗਲ ਜਗਤੁ ਹੈ ਜੈਸੇ ਸੁਪਨਾ ਬਿਨਸਤ ਲਗਤ ਨ ਬਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यह समूचा जगत एक स्वप्न जैसा है और इसका विनाश होने में कोई देरी नहीं लगती॥१॥ रहाउ॥
ਬਾਰੂ ਭੀਤਿ ਬਨਾਈ ਰਚਿ ਪਚਿ ਰਹਤ ਨਹੀ ਦਿਨ ਚਾਰਿ ॥
जैसे बनाई गई रेत की दीवार, पोतकर चार दिन भी नहीं रहती,
ਤੈਸੇ ਹੀ ਇਹ ਸੁਖ ਮਾਇਆ ਕੇ ਉਰਝਿਓ ਕਹਾ ਗਵਾਰ ॥੧॥
वैसे ही यह माया के सुख हैं, हे गंवार मनुष्य ! तू उन में क्यों फंसा हुआ है॥ १॥
ਅਜਹੂ ਸਮਝਿ ਕਛੁ ਬਿਗਰਿਓ ਨਾਹਿਨਿ ਭਜਿ ਲੇ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥
आज ही कुछ समझ ले चूंकि अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है और भगवान के नाम का भजन कर ले।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਿਜ ਮਤੁ ਸਾਧਨ ਕਉ ਭਾਖਿਓ ਤੋਹਿ ਪੁਕਾਰਿ ॥੨॥੮॥
नानक का कथन है कि हे मनुष्य ! संतों का यही निजी उपदेश एवं युक्ति है जो तुझे पुकार कर बता दी है ॥२॥८॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਇਹ ਜਗਿ ਮੀਤੁ ਨ ਦੇਖਿਓ ਕੋਈ ॥
मैंने इस दुनिया में कोई घनिष्ठ मित्र नहीं देखा है।
ਸਗਲ ਜਗਤੁ ਅਪਨੈ ਸੁਖਿ ਲਾਗਿਓ ਦੁਖ ਮੈ ਸੰਗਿ ਨ ਹੋਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सारी दुनिया अपने सुख में ही मग्न है और दुःख में कोई किसी का साथी नहीं बनता ॥ १॥ रहाउ॥
ਦਾਰਾ ਮੀਤ ਪੂਤ ਸਨਬੰਧੀ ਸਗਰੇ ਧਨ ਸਿਉ ਲਾਗੇ ॥
पत्नी, मित्र, पुत्र एवं सभी रिश्तेदारों का केवल धन-दौलत से ही लगाव है।
ਜਬ ਹੀ ਨਿਰਧਨ ਦੇਖਿਓ ਨਰ ਕਉ ਸੰਗੁ ਛਾਡਿ ਸਭ ਭਾਗੇ ॥੧॥
जब ही वे मनुष्य को निर्धन होता देखते हैं तो सभी उसका साथ छोड़कर दौड़ जाते हैं।॥ १॥
ਕਹਂਉ ਕਹਾ ਯਿਆ ਮਨ ਬਉਰੇ ਕਉ ਇਨ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ਲਗਾਇਓ ॥
मैं इस बावले मन को क्या उपदेश दूँ ? इसने तो केवल इन सभी स्वार्थियों से ही स्नेह लगाया हुआ है।
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਸਕਲ ਭੈ ਭੰਜਨ ਜਸੁ ਤਾ ਕੋ ਬਿਸਰਾਇਓ ॥੨॥
इसने उस प्रभु का यश भुला दिया है जो दीनों का स्वामी एवं सभी भय नाश करने वाला है॥ २॥
ਸੁਆਨ ਪੂਛ ਜਿਉ ਭਇਓ ਨ ਸੂਧਉ ਬਹੁਤੁ ਜਤਨੁ ਮੈ ਕੀਨਉ ॥
मैंने अनेक यत्न किए हैं परन्तु यह मन कुत्ते की पूंछ की तरह टेढ़ा ही रहता है और सीधा नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਲਾਜ ਬਿਰਦ ਕੀ ਰਾਖਹੁ ਨਾਮੁ ਤੁਹਾਰਉ ਲੀਨਉ ॥੩॥੯॥
नानक का कथन है कि हे ईश्वर ! अपने विरद् की लाज रखो; चूंकि मैं तो तुम्हारा ही नाम-सिमरन करता हूँ ॥३॥६॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਮਨ ਰੇ ਗਹਿਓ ਨ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ॥
हे मन ! तूने गुरु के उपदेश को तो ग्रहण नहीं किया,
ਕਹਾ ਭਇਓ ਜਉ ਮੂਡੁ ਮੁਡਾਇਓ ਭਗਵਉ ਕੀਨੋ ਭੇਸੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
फिर सिर मुंडवा कर भगवा वेष धारण करने का क्या अभिप्राय है? ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਚ ਛਾਡਿ ਕੈ ਝੂਠਹ ਲਾਗਿਓ ਜਨਮੁ ਅਕਾਰਥੁ ਖੋਇਓ ॥
सत्य को छोड़कर झूठ के साथ लगकर तूने अकारण ही अपना अमूल्य जीवन बर्बाद कर दिया है।
ਕਰਿ ਪਰਪੰਚ ਉਦਰ ਨਿਜ ਪੋਖਿਓ ਪਸੁ ਕੀ ਨਿਆਈ ਸੋਇਓ ॥੧॥
तू अनेक छल-कपट करके अपने पेट का पोषण करता है और पशु की भांति सोता है ॥१॥
ਰਾਮ ਭਜਨ ਕੀ ਗਤਿ ਨਹੀ ਜਾਨੀ ਮਾਇਆ ਹਾਥਿ ਬਿਕਾਨਾ ॥
तूने राम भजन के महत्व को नहीं समझा और स्वयं को माया के हाथ बेच दिया है।
ਉਰਝਿ ਰਹਿਓ ਬਿਖਿਅਨ ਸੰਗਿ ਬਉਰਾ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਬਿਸਰਾਨਾ ॥੨॥
यह बावला मन तो विषय-विकारों में ही फंसा रहा है और नाम-रत्न को भुला दिया है॥ २॥
ਰਹਿਓ ਅਚੇਤੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਗੋਬਿੰਦ ਬਿਰਥਾ ਅਉਧ ਸਿਰਾਨੀ ॥
यह अचेत रहता है और भगवान को स्मरण नहीं करता और अपना जन्म व्यर्थ ही बिता दिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਬਿਰਦੁ ਪਛਾਨਉ ਭੂਲੇ ਸਦਾ ਪਰਾਨੀ ॥੩॥੧੦॥
नानक का कथन है कि हे भगवान ! तू अपने विरद् को पहचानते हुए सब का कल्याण कर, चूंकि प्राणी तो हमेशा ही भूल-चूक करने वाला है॥ ३॥ १०॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सोरठि महला ९ ॥
ਜੋ ਨਰੁ ਦੁਖ ਮੈ ਦੁਖੁ ਨਹੀ ਮਾਨੈ ॥
जो पुरुष दुःख में भी दु:ख नहीं मानता अर्थात् दुःख से विचलित नहीं होता,
ਸੁਖ ਸਨੇਹੁ ਅਰੁ ਭੈ ਨਹੀ ਜਾ ਕੈ ਕੰਚਨ ਮਾਟੀ ਮਾਨੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसे सुख के साथ किसी प्रकार का कोई स्नेह नहीं और जिसे किसी प्रकार का कोई भय नहीं और जो स्वर्ण को भी मिट्टी की भांति समझता है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਹ ਨਿੰਦਿਆ ਨਹ ਉਸਤਤਿ ਜਾ ਕੈ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥
जो न ही किसी की निन्दा करता है, न ही प्रशंसा की परवाह करता है और जिसे कोई लोभ, मोह एवं अभिमान नहीं,
ਹਰਖ ਸੋਗ ਤੇ ਰਹੈ ਨਿਆਰਉ ਨਾਹਿ ਮਾਨ ਅਪਮਾਨਾ ॥੧॥
जो हर्ष एवं शोक से भी निर्लिप्त रहता है और जो न ही मान एवं न ही अपमान की ओर ध्यान देता है॥ १॥
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਸਗਲ ਤਿਆਗੈ ਜਗ ਤੇ ਰਹੈ ਨਿਰਾਸਾ ॥
जो आशा एवं अभिलाषा सबको त्याग देता है, जो दुनिया में इच्छा-रहित ही रहता है,
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਜਿਹ ਪਰਸੈ ਨਾਹਨਿ ਤਿਹ ਘਟਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਨਿਵਾਸਾ ॥੨॥
जिसे कामवासना एवं गुस्सा जरा भी स्पर्श नहीं करते, वास्तव में उसके अन्तर्मन में ही भगवान का निवास है॥ २॥
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਜਿਹ ਨਰ ਕਉ ਕੀਨੀ ਤਿਹ ਇਹ ਜੁਗਤਿ ਪਛਾਨੀ ॥
जिस पुरुष पर गुरु ने अपनी कृपा की है, वही इस युक्ति से परिचित होता है।
ਨਾਨਕ ਲੀਨ ਭਇਓ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿਉ ਜਿਉ ਪਾਨੀ ਸੰਗਿ ਪਾਨੀ ॥੩॥੧੧॥
हे नानक ! ऐसा पुरुष भगवान के साथ यू विलीन हो जाता है, जैसे जल, जल में लीन हो जाता है ॥३॥११॥