Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 635

Page 635

ਜਿਨ ਚਾਖਿਆ ਸੇਈ ਸਾਦੁ ਜਾਣਨਿ ਜਿਉ ਗੁੰਗੇ ਮਿਠਿਆਈ ॥ जिन चाखिआ सेई सादु जाणनि जिउ गुंगे मिठिआई ॥ भगवान् के नाम का रस केवल वही जान सकते हैं जिन्होंने उसे चखा है; पर उस अनुभव को शब्दों में वर्णन करना वैसे ही असंभव है, जैसे कोई गूंगा व्यक्ति मिठाई का स्वाद समझा नहीं सकता।
ਅਕਥੈ ਕਾ ਕਿਆ ਕਥੀਐ ਭਾਈ ਚਾਲਉ ਸਦਾ ਰਜਾਈ ॥ अकथै का किआ कथीऐ भाई चालउ सदा रजाई ॥ हे भाई ! अकथनीय परमात्मा का मैं क्या कथन कर सकता हूँ, अतः मैं तो हमेशा उसकी इच्छानुसार ही चलता हूँ।
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਮੇਲੇ ਤਾ ਮਤਿ ਹੋਵੈ ਨਿਗੁਰੇ ਮਤਿ ਨ ਕਾਈ ॥ गुरु दाता मेले ता मति होवै निगुरे मति न काई ॥ यदि दाता गुरु से मिलन करवा दे तो ही सुमति प्राप्त होती है और गुरु विहीन को तो कोई सूझ नहीं होती।
ਜਿਉ ਚਲਾਏ ਤਿਉ ਚਾਲਹ ਭਾਈ ਹੋਰ ਕਿਆ ਕੋ ਕਰੇ ਚਤੁਰਾਈ ॥੬॥ जिउ चलाए तिउ चालह भाई होर किआ को करे चतुराई ॥६॥ हे भाई ! जैसे प्रभु हमें चलाते हैं, हमें वैसे ही चलना चाहिए, मनुष्य अन्य कौन-सी चतुराई कर सकता है ॥६॥
ਇਕਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ਇਕਿ ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਅਪਾਰਾ ॥ इकि भरमि भुलाए इकि भगती राते तेरा खेलु अपारा ॥ हे परमेश्वर ! आपकी लीला अपरंपार है, चूंकि कई जीव भ्रम में ही भटकते रहते हैं और कई आपकी भक्ति में मग्न रहते हैं।
ਜਿਤੁ ਤੁਧੁ ਲਾਏ ਤੇਹਾ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਤੂ ਹੁਕਮਿ ਚਲਾਵਣਹਾਰਾ ॥ जितु तुधु लाए तेहा फलु पाइआ तू हुकमि चलावणहारा ॥ जिधर आप लोगों को लगाते हैं, वे वैसा ही फल प्राप्त करते हैं और सब कुछ आपकी ही आज्ञा से होता है।
ਸੇਵਾ ਕਰੀ ਜੇ ਕਿਛੁ ਹੋਵੈ ਅਪਣਾ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥ सेवा करी जे किछु होवै अपणा जीउ पिंडु तुमारा ॥ यदि मेरा कुछ अपना हो तो ही मैं आपकी सेवा करूं, मेरी यह आत्मा एवं शरीर तो आपका ही है।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਕਿਰਪਾ ਕੀਨੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰਾ ॥੭॥ सतिगुरि मिलिऐ किरपा कीनी अम्रित नामु अधारा ॥७॥ जो सतगुरु से मिल जाता है, भगवान् उस पर कृपा करते हैं और नामामृत ही उसका आधार बन जाता है॥ ७ ॥
ਗਗਨੰਤਰਿ ਵਾਸਿਆ ਗੁਣ ਪਰਗਾਸਿਆ ਗੁਣ ਮਹਿ ਗਿਆਨ ਧਿਆਨੰ ॥ गगनंतरि वासिआ गुण परगासिआ गुण महि गिआन धिआनं ॥ जब गुरु ने मन में गुणों का प्रकाश कर दिया तो मन दशम द्वार में जा बसा। अब मन गुणों व ज्ञान में ही ध्यान लगाता है।
ਨਾਮੁ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਕਹੈ ਕਹਾਵੈ ਤਤੋ ਤਤੁ ਵਖਾਨੰ ॥ नामु मनि भावै कहै कहावै ततो ततु वखानं ॥ नाम ही मन को अच्छा लगता है, नाम ही जपता और दूसरों से जपाता हूँ और परम तत्व का ही वर्णन करता हूँ।
ਸਬਦੁ ਗੁਰ ਪੀਰਾ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨੰ ॥ सबदु गुर पीरा गहिर ग्मभीरा बिनु सबदै जगु बउरानं ॥ शब्द गुरु ही हम सभी का पीर है, जो बड़ा गहन एवं गंभीर है। शब्द के बिना तो सारी दुनिया ही पागलों की तरह आचरण करती है।
ਪੂਰਾ ਬੈਰਾਗੀ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਗੀ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਮਾਨੰ ॥੮॥੧॥ पूरा बैरागी सहजि सुभागी सचु नानक मनु मानं ॥८॥१॥ हे नानक ! जिसका मन सत्य नाम से निहाल हुआ है, वही पूर्ण वैरागी एवं सहज सौभाग्यशाली है ॥८॥१॥
ਸੋਰਠਿ ਮਹਲਾ ੧ ਤਿਤੁਕੀ ॥ सोरठि महला १ तितुकी ॥ राग सोरठ, प्रथम गुरु, तीन पंक्तियाँ: ॥
ਆਸਾ ਮਨਸਾ ਬੰਧਨੀ ਭਾਈ ਕਰਮ ਧਰਮ ਬੰਧਕਾਰੀ ॥ आसा मनसा बंधनी भाई करम धरम बंधकारी ॥ हे भाई ! आशा एवं मनसा तो मात्र बन्धन ही हैं और धर्म-कर्म भी जीव को बन्धनों में फँसाने वाले हैं।
ਪਾਪਿ ਪੁੰਨਿ ਜਗੁ ਜਾਇਆ ਭਾਈ ਬਿਨਸੈ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰੀ ॥ पापि पुंनि जगु जाइआ भाई बिनसै नामु विसारी ॥ पाप एवं पुण्य के कारण ही लोग दुनिया में जन्म लेते हैं लेकिन नाम को विस्मृत करने से मनुष्य का नाश हो जाता है।
ਇਹ ਮਾਇਆ ਜਗਿ ਮੋਹਣੀ ਭਾਈ ਕਰਮ ਸਭੇ ਵੇਕਾਰੀ ॥੧॥ इह माइआ जगि मोहणी भाई करम सभे वेकारी ॥१॥ हे भाई ! यह माया तो दुनिया में लोगों को मोहित करने वाली ही है और माया के पीछे लगकर किए गए सभी कर्म पापपूर्ण हैं।॥ १॥
ਸੁਣਿ ਪੰਡਿਤ ਕਰਮਾ ਕਾਰੀ ॥ सुणि पंडित करमा कारी ॥ हे कर्मकाण्डी पण्डित ! मेरी बात ध्यानपूर्वक सुन;
ਜਿਤੁ ਕਰਮਿ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਭਾਈ ਸੁ ਆਤਮ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥ जितु करमि सुखु ऊपजै भाई सु आतम ततु बीचारी ॥ रहाउ ॥ जिस कर्म से सुख उत्पन्न होता है, वह कर्म आत्मतत्व का चिंतन करना है॥ रहाउ ॥
ਸਾਸਤੁ ਬੇਦੁ ਬਕੈ ਖੜੋ ਭਾਈ ਕਰਮ ਕਰਹੁ ਸੰਸਾਰੀ ॥ सासतु बेदु बकै खड़ो भाई करम करहु संसारी ॥ तू खड़ा होकर शास्त्रों एवं वेदों का पाठ करता है परन्तु हे भाई ! स्वयं तो तुम सांसारिक कर्म ही करते हो।
ਪਾਖੰਡਿ ਮੈਲੁ ਨ ਚੂਕਈ ਭਾਈ ਅੰਤਰਿ ਮੈਲੁ ਵਿਕਾਰੀ ॥ पाखंडि मैलु न चूकई भाई अंतरि मैलु विकारी ॥ तेरे मन में तो विकारों की मैल भरी हुई है और यह मैल पाखण्ड करने से दूर नहीं हो सकती।
ਇਨ ਬਿਧਿ ਡੂਬੀ ਮਾਕੁਰੀ ਭਾਈ ਊਂਡੀ ਸਿਰ ਕੈ ਭਾਰੀ ॥੨॥ इन बिधि डूबी माकुरी भाई ऊंडी सिर कै भारी ॥२॥ इस तरह ही मकड़ी भी जाला बुनकर सिर के बल ही नष्ट हो जाती है॥ २॥
ਦੁਰਮਤਿ ਘਣੀ ਵਿਗੂਤੀ ਭਾਈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਖੁਆਈ ॥ दुरमति घणी विगूती भाई दूजै भाइ खुआई ॥ दुर्मति के कारण ही बहुत सारे लोग नष्ट हो गए हैं; हे भाई ! प्रभु के अतिरिक्त द्वैतभाव में पड़कर लोग दुःखी ही हुए हैं।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਈਐ ਭਾਈ ਬਿਨੁ ਨਾਮੈ ਭਰਮੁ ਨ ਜਾਈ ॥ बिनु सतिगुर नामु न पाईऐ भाई बिनु नामै भरमु न जाई ॥ सतगुरु के बिना नाम प्राप्त नहीं होता और नाम के बिना भ्रम दूर नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਭਾਈ ਆਵਣੁ ਜਾਣੁ ਰਹਾਈ ॥੩॥ सतिगुरु सेवे ता सुखु पाए भाई आवणु जाणु रहाई ॥३॥ हे भाई ! यदि सतगुरु की सेवा की जाए तो ही सुख की उपलब्धि होती है और मनुष्य का जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है॥ ३॥
ਸਾਚੁ ਸਹਜੁ ਗੁਰ ਤੇ ਊਪਜੈ ਭਾਈ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸਾਚਿ ਸਮਾਈ ॥ साचु सहजु गुर ते ऊपजै भाई मनु निरमलु साचि समाई ॥ हे भाई ! सच्चा सुख तो गुरु से ही प्राप्त होता है और मन निर्मल होकर परम सत्य में समा जाता है।
ਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸੋ ਬੂਝੈ ਭਾਈ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਮਗੁ ਨ ਪਾਈ ॥ गुरु सेवे सो बूझै भाई गुर बिनु मगु न पाई ॥ जो व्यक्ति गुरु की निष्काम सेवा करता है, उसे ही सन्मार्ग सूझता है और गुरु के बिना मार्ग नहीं मिलता।
ਜਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਲੋਭੁ ਕਿ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ਭਾਈ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਈ ॥੪॥ जिसु अंतरि लोभु कि करम कमावै भाई कूड़ु बोलि बिखु खाई ॥४॥ जिसके हृदय में मात्र लोभ ही भरा हुआ है, वह क्या शुभ कर्म कर सकता है? झूठ बोलकर तो वह विष ही खाता है॥ ४॥
ਪੰਡਿਤ ਦਹੀ ਵਿਲੋਈਐ ਭਾਈ ਵਿਚਹੁ ਨਿਕਲੈ ਤਥੁ ॥ पंडित दही विलोईऐ भाई विचहु निकलै तथु ॥ हे पण्डित ! यदि दही का मंथन किया जाए तो इस में से मक्खन ही निकलता है।
ਜਲੁ ਮਥੀਐ ਜਲੁ ਦੇਖੀਐ ਭਾਈ ਇਹੁ ਜਗੁ ਏਹਾ ਵਥੁ ॥ जलु मथीऐ जलु देखीऐ भाई इहु जगु एहा वथु ॥ यदि जल का मंथन किया जाए तो जल ही दिखाई देगा; यह जगत् भी जल की तरह ही वस्तु है।
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਭਰਮਿ ਵਿਗੂਚੀਐ ਭਾਈ ਘਟਿ ਘਟਿ ਦੇਉ ਅਲਖੁ ॥੫॥ गुर बिनु भरमि विगूचीऐ भाई घटि घटि देउ अलखु ॥५॥ हे भाई ! गुरु के बिना मनुष्य दुविधा में ही नष्ट हो जाता है और घट-घट में विद्यमान अलक्ष्य प्रभु से अलग ही रहता है ॥५॥
ਇਹੁ ਜਗੁ ਤਾਗੋ ਸੂਤ ਕੋ ਭਾਈ ਦਹ ਦਿਸ ਬਾਧੋ ਮਾਇ ॥ इहु जगु तागो सूत को भाई दह दिस बाधो माइ ॥ हे भाई ! यह नश्वर दुनिया तो सूत के धागे की भांति है, जिसे माया ने (अपने आकर्षण में) दसों दिशाओं में बाँध कर रखा हुआ है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਗਾਠਿ ਨ ਛੂਟਈ ਭਾਈ ਥਾਕੇ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥ बिनु गुर गाठि न छूटई भाई थाके करम कमाइ ॥ गुरु के बिना माया की गांठ नहीं खुलती और लोग कर्मकाण्ड करते हुए ही थक जाते हैं।
ਇਹੁ ਜਗੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ਭਾਈ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥੬॥ इहु जगु भरमि भुलाइआ भाई कहणा किछू न जाइ ॥६॥ हे भाई ! इस दुनिया को तो भ्रमों ने ही भटकाया हुआ है और इस बारे कुछ भी वर्णन नहीं किया जा सकता ॥६॥
ਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਭਉ ਮਨਿ ਵਸੈ ਭਾਈ ਭੈ ਮਰਣਾ ਸਚੁ ਲੇਖੁ ॥ गुर मिलिऐ भउ मनि वसै भाई भै मरणा सचु लेखु ॥ हे भाई ! गुरु को मिलने से ही प्रभु का भय-प्रेम मन में निवास करता है और उस भय प्रेम में मरना ही सच्चा लेख है।
ਮਜਨੁ ਦਾਨੁ ਚੰਗਿਆਈਆ ਭਾਈ ਦਰਗਹ ਨਾਮੁ ਵਿਸੇਖੁ ॥ मजनु दानु चंगिआईआ भाई दरगह नामु विसेखु ॥ स्नान, दान-पुण्य एवं अन्य शुभ कर्मों से तो नाम ही भगवान् के दरबार में सर्वोत्तम साधन है।


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