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ਪਿਰੁ ਸੰਗਿ ਕਾਮਣਿ ਜਾਣਿਆ ਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ਰਾਮ ॥
गुरु ने जिस जीव-स्त्री को अपनी संगति में मिला कर प्रभु से मिला दिया है, उसने जान लिया है कि उसका पति-प्रभु तो उसके साथ ही रहता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦਿ ਮਿਲੀ ਸਹਜੇ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ਰਾਮ ॥
गुरु के वचन के माध्यम से जब वह भगवान् से जुड़ गया, तो उसके भीतर भगवान् से वियोग की पीड़ा स्वतः शांत हो गई।
ਸਬਦਿ ਤਪਤਿ ਬੁਝਾਈ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ॥
शब्द द्वारा उसकी जलन बुझ गई है, अब उसकी अन्तरात्मा में शांति आ गई है और उसने सहज ही हरि रस को चख लिया है।
ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਪਣੇ ਸਦਾ ਰੰਗੁ ਮਾਣੇ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਖਿਆ ॥
अपने प्रियतम से मिलकर वह सदा उसके प्रेम का आनंद प्राप्त करती है और सच्चे शब्द द्वारा सुन्दर वाणी बोलती है।
ਪੜਿ ਪੜਿ ਪੰਡਿਤ ਮੋਨੀ ਥਾਕੇ ਭੇਖੀ ਮੁਕਤਿ ਨ ਪਾਈ ॥
पण्डित पढ़-पढ़कर और मौन धारण करने वाले ऋषि-मुनि समाधि लगाकर थक गए हैं। धार्मिक वेष धारण करने वाले साधुओं ने मुक्ति प्राप्त नहीं की।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਭਗਤੀ ਜਗੁ ਬਉਰਾਨਾ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਈ ॥੩॥
हे नानक ! प्रभु-भक्ति के बिना दुनिया बावली हो गई है। लेकिन सच्चे शब्द से जीव-स्त्री प्रभु से मिल जाती है॥ ३॥
ਸਾ ਧਨ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੇਲਿ ਪਿਆਰੇ ਰਾਮ ॥
जिस जीव-स्त्री को हरि-प्रभु अपने चरणों में मिला लेते हैं तो उसके मन में आनंद उत्पन्न हो जाता है।
ਸਾ ਧਨ ਹਰਿ ਕੈ ਰਸਿ ਰਸੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਅਪਾਰੇ ਰਾਮ ॥
गुरु के अपार शब्द द्वारा जीव-स्त्री हरि रस में लीन रहती है।
ਸਬਦਿ ਅਪਾਰੇ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰੇ ਸਦਾ ਗੁਣ ਸਾਰੇ ਮਨਿ ਵਸੇ ॥
गुरु के अपार शब्द से वह अपने प्यारे-प्रभु से मिल जाती है और वह उसके गुणों को अपने मन में सदा याद करती एवं बसाती है।
ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਜਾ ਪਿਰਿ ਰਾਵੀ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਵਗਣ ਨਸੇ ॥
जिस हृदय में आत्मा अपने पति-परमेश्वर का आनंद लेती है, वह सुशोभित हो जाता है; और प्रिय प्रभु के मिलन से उसके सभी विकार दूर हो जाते हैं।
ਜਿਤੁ ਘਰਿ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਸਦਾ ਧਿਆਈਐ ਸੋਹਿਲੜਾ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ॥
जिस हृदय-घर में सदा हरि-नाम का सिमरन होता है वहाँ चारों युगों में मंगल गीत गाए जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਅਨਦੁ ਹੈ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਕਾਰਜ ਸਾਰੇ ॥੪॥੧॥੬॥
हे नानक ! प्रभु नाम में अनुरक्त होने से जीव हमेशा आनंद में रहता है। हरि-प्रभु को मिलने से उसके सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।॥ ४॥ १॥६॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਛੰਤ ਘਰੁ ੩ ॥
राग आसा, तीसरे गुरु: छंद, तीसरा ताल:३ ॥
ਸਾਜਨ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮਹੁ ਤੁਮ ਸਹ ਕੀ ਭਗਤਿ ਕਰੇਹੋ ॥
हे मेरे प्रिय सज्जनो ! तुम भगवान् की भक्ति करते रहो।
ਗੁਰੁ ਸੇਵਹੁ ਸਦਾ ਆਪਣਾ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਲੇਹੋ ॥
हमेशा अपने गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करो एवं उससे नाम का धन प्राप्त करो।
ਭਗਤਿ ਕਰਹੁ ਤੁਮ ਸਹੈ ਕੇਰੀ ਜੋ ਸਹ ਪਿਆਰੇ ਭਾਵਏ ॥
तुम अपने भगवान् की ऐसी भक्ति करो, जो भक्ति प्रभु को अच्छी लगती है।
ਆਪਣਾ ਭਾਣਾ ਤੁਮ ਕਰਹੁ ਤਾ ਫਿਰਿ ਸਹ ਖੁਸੀ ਨ ਆਵਏ ॥
यदि तुम अपनी मनमर्जी करोगे तो फिर प्रभु तुम पर प्रसन्न नहीं होगें।
ਭਗਤਿ ਭਾਵ ਇਹੁ ਮਾਰਗੁ ਬਿਖੜਾ ਗੁਰ ਦੁਆਰੈ ਕੋ ਪਾਵਏ ॥
इस भक्ति-भाव का मार्ग बहुत कठिन है, लेकिन गुरु के द्वार पर आने से कोई विरला पुरुष ही इसे पाता है।
ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਿਸੁ ਕਰੇ ਕਿਰਪਾ ਸੋ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਵਏ ॥੧॥
हे नानक ! जिस मनुष्य पर प्रभु कृपा करते हैं, वह हरि की भक्ति को अपने चित्त से लगाता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਬੈਰਾਗੀਆ ਤੂੰ ਬੈਰਾਗੁ ਕਰਿ ਕਿਸੁ ਦਿਖਾਵਹਿ ॥
हे मेरे वैरागी मन ! तुम वैरागी बन कर किसे दिखाते हो ?
ਹਰਿ ਸੋਹਿਲਾ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਸਦ ਸਦਾ ਜੋ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ॥
जो मनुष्य हरि का गुणगान करते हैं, वे सदैव ही हरि की प्रसन्नता में रहते हैं।
ਕਰਿ ਬੈਰਾਗੁ ਤੂੰ ਛੋਡਿ ਪਾਖੰਡੁ ਸੋ ਸਹੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣਏ ॥
इसलिए तू पाखंड को छोड़ कर वैराग्य धारण कर क्योंकि प्रभु सब कुछ जानता है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਏਕੋ ਸੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਏ ॥
एक ईश्वर ही जल, थल, पृथ्वी एवं गगन में सर्वत्र बसा हुआ है, गुरुमुख मनुष्य प्रभु के आदेश को पहचानते हैं।
ਜਿਨਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਤਾ ਹਰੀ ਕੇਰਾ ਸੋਈ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਏ ॥
जो व्यक्ति प्रभु के आदेश को पहचानता है वही सर्व सुख प्राप्त करता है।
ਇਵ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸੋ ਬੈਰਾਗੀ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਵਏ ॥੨॥
नानक इस तरह कहते हैं कि वास्तव में वैरागी वही है, जो रात-दिन हरि की लगन में लीन रहता है।॥ २॥
ਜਹ ਜਹ ਮਨ ਤੂੰ ਧਾਵਦਾ ਤਹ ਤਹ ਹਰਿ ਤੇਰੈ ਨਾਲੇ ॥
हे मेरे मन ! जहाँ-जहाँ तू दौड़ता है, वहाँ वहाँ ही हरि तेरे साथ है।
ਮਨ ਸਿਆਣਪ ਛੋਡੀਐ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਮਾਲੇ ॥
हे मेरे मन ! तू अपनी चतुराई छोड़ दे और गुरु के शब्द का मनन कर।
ਸਾਥਿ ਤੇਰੈ ਸੋ ਸਹੁ ਸਦਾ ਹੈ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲਹੇ ॥
वह मालिक प्रभु सदैव तेरे साथ रहता है, इसलिए तू एक क्षण भर के लिए ही हरि का नाम याद कर लिया कर।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਤੇਰੇ ਪਾਪ ਕਟੇ ਅੰਤਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਵਹੇ ॥
तेरे जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाएँगे और अंततः परमगति प्राप्त हो जाएगी।
ਸਾਚੇ ਨਾਲਿ ਤੇਰਾ ਗੰਢੁ ਲਾਗੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਮਾਲੇ ॥
गुरुमुख बनकर सदैव ही उसको याद कर, इस तरह तेरा सच्चे प्रभु के साथ अटूट प्रेम बन जाएगा।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਜਹ ਮਨ ਤੂੰ ਧਾਵਦਾ ਤਹ ਹਰਿ ਤੇਰੈ ਸਦਾ ਨਾਲੇ ॥੩॥
नानक इस तरह कहते हैं कि हे मेरे मन ! जहाँ कहीं भी तू दौड़ता है, वहाँ हरि-प्रभु तेरे साथ रहते हैं॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਧਾਵਤੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਿਆ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਆਏ ॥
यदि सतगुरु मिल जाएं तो मोह-माया की ओर दौड़ता मन टिक जाता है और आकर अपने सच्चे घर प्रभु-चरणों में बस जाता है।
ਨਾਮੁ ਵਿਹਾਝੇ ਨਾਮੁ ਲਏ ਨਾਮਿ ਰਹੇ ਸਮਾਏ ॥
तब यह नाम को खरीदता है, नाम का जाप करता है और नाम में ही समाया रहता है।