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ਧਾਵਤੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਿਆ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਦਸਵਾ ਦੁਆਰੁ ਪਾਇਆ ॥
सच्चे गुरु से मिलकर दुविधाओं में भटकता हुआ मन टिक जाता है और दशम द्वार (सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति) में प्रवेश कर लेता है।
ਤਿਥੈ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਭੋਜਨੁ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੈ ਜਿਤੁ ਸਬਦਿ ਜਗਤੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਿ ਰਹਾਇਆ ॥
उस आध्यात्मिक अवस्था में दिव्य संगीत निरंतर गूंजता रहता है, जो आत्मा के लिए अमृत के समान पोषण है; और गुरु के वचनों से प्रेरित होकर मन संसारिक आकर्षणों से निर्लिप्त रहता है।
ਤਹ ਅਨੇਕ ਵਾਜੇ ਸਦਾ ਅਨਦੁ ਹੈ ਸਚੇ ਰਹਿਆ ਸਮਾਏ ॥
वहाँ सदैव आनंद बना रहता है और अनेक प्रकार के बाजे बजते है, व्यक्ति की सुरति प्रभु में समाई रहती है।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਧਾਵਤੁ ਥੰਮ੍ਹ੍ਹਿਆ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਆਏ ॥੪॥
नानक इस तरह कहते हैं कि सच्चे गुरु को मिलने से मोह-माया की दुविधाओं में भटकता मन टिक जाता है और आकर प्रभु-चरणों में निवास कर लेता है॥ ४
ਮਨ ਤੂੰ ਜੋਤਿ ਸਰੂਪੁ ਹੈ ਆਪਣਾ ਮੂਲੁ ਪਛਾਣੁ ॥
हे मेरे मन ! तू ज्योति स्वरूप है, इसलिए अपने मूल (प्रभु-ज्योति) को पहचान।
ਮਨ ਹਰਿ ਜੀ ਤੇਰੈ ਨਾਲਿ ਹੈ ਗੁਰਮਤੀ ਰੰਗੁ ਮਾਣੁ ॥
हे मेरे मन ! भगवान् तेरे साथ रहते हैंं, गुरु की मति द्वारा उसके प्रेम का आनंद प्राप्त कर।
ਮੂਲੁ ਪਛਾਣਹਿ ਤਾਂ ਸਹੁ ਜਾਣਹਿ ਮਰਣ ਜੀਵਣ ਕੀ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
यदि तुम अपने मूल को पहचान लो तो तुम अपने प्रभु को जान लोगे और जीवन मृत्यु की तुझे सूझ हो जाएगी।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਏਕੋ ਜਾਣਹਿ ਤਾਂ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਨ ਹੋਈ ॥
गुरु की कृपा से यदि तुम एक ईश्वर को समझ लो तो तुम्हारी मोह-माया की अभिलाषा मिट जाएगी।
ਮਨਿ ਸਾਂਤਿ ਆਈ ਵਜੀ ਵਧਾਈ ਤਾ ਹੋਆ ਪਰਵਾਣੁ ॥
मेरे मन में शांति आ गई है और शुभकामना के वाद्ययन्त्र बजने लग गए हैं और मैं प्रभु-दरबार में स्वीकृत हो गया हूँ।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮਨ ਤੂੰ ਜੋਤਿ ਸਰੂਪੁ ਹੈ ਅਪਣਾ ਮੂਲੁ ਪਛਾਣੁ ॥੫॥
नानक इस तरह कहते हैं कि हे मेरे मन ! तू ज्योति स्वरूप (भगवान का अंश) है और अपने मूल को पहचान ॥ ५ ॥
ਮਨ ਤੂੰ ਗਾਰਬਿ ਅਟਿਆ ਗਾਰਬਿ ਲਦਿਆ ਜਾਹਿ ॥
हे मन ! तुम अहंकार से भरे हुए हो और अहंकार से भरे ही चले जाओगे।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਣੀ ਮੋਹਿਆ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਭਵਾਹਿ ॥
मोहिनी माया ने तुझे मुग्ध किया हुआ है और बार-बार तुम योनियों में भटकते रहते हो।
ਗਾਰਬਿ ਲਾਗਾ ਜਾਹਿ ਮੁਗਧ ਮਨ ਅੰਤਿ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਵਹੇ ॥
हे मूर्ख मन ! अहंकार से भरे हुए तुम चलते फिरते हो और अंत में संसार से जाते समय पश्चाताप करोगे।
ਅਹੰਕਾਰੁ ਤਿਸਨਾ ਰੋਗੁ ਲਗਾ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਵਹੇ ॥
तुझे अहंकार एवं तृष्णा का रोग लगा हुआ है और तुम अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा रहे हो।
ਮਨਮੁਖ ਮੁਗਧ ਚੇਤਹਿ ਨਾਹੀ ਅਗੈ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਵਹੇ ॥
स्वेच्छाचारी मूर्ख प्रभु को याद नहीं करता और परलोक को जाते हुए पश्चाताप करता है।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਮਨ ਤੂੰ ਗਾਰਬਿ ਅਟਿਆ ਗਾਰਬਿ ਲਦਿਆ ਜਾਵਹੇ ॥੬॥
नानक इस तरह कहते हैं कि हे मन ! तुम अहंकार से भरे हुए हो और अहंकार से लदे ही चले जाओगे॥ ६॥
ਮਨ ਤੂੰ ਮਤ ਮਾਣੁ ਕਰਹਿ ਜਿ ਹਉ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਮਾਣਾ ਹੋਹੁ ॥
हे मन ! तुम इस बात का घमण्ड मत करना कि तुम कुछ जानते हो अपितु गुरुमुख एवं विनीत बन जाना।
ਅੰਤਰਿ ਅਗਿਆਨੁ ਹਉ ਬੁਧਿ ਹੈ ਸਚਿ ਸਬਦਿ ਮਲੁ ਖੋਹੁ ॥
तेरे भीतर अज्ञानता एवं बुद्धि का अहंकार है इसलिए गुरु के सच्चे शब्द से इसकी मैल को स्वच्छ कर ले।
ਹੋਹੁ ਨਿਮਾਣਾ ਸਤਿਗੁਰੂ ਅਗੈ ਮਤ ਕਿਛੁ ਆਪੁ ਲਖਾਵਹੇ ॥
सच्चे गुरु के समक्ष विनीत बन और स्वयं पर गर्व मत करना कि मैं महान हूँ।
ਆਪਣੈ ਅਹੰਕਾਰਿ ਜਗਤੁ ਜਲਿਆ ਮਤ ਤੂੰ ਆਪਣਾ ਆਪੁ ਗਵਾਵਹੇ ॥
अपने अहंकार में यह जगत जल रहा है, इसलिए तू भी अपने आपको इस तरह नष्ट मत कर लेना।
ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਕਰਹਿ ਕਾਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਭਾਣੈ ਲਾਗਿ ਰਹੁ ॥
सच्चे गुरु की इच्छानुसार अपना कार्य कर और सच्चे गुरु की इच्छा के साथ लगा रह।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਆਪੁ ਛਡਿ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ਮਨ ਨਿਮਾਣਾ ਹੋਇ ਰਹੁ ॥੭॥
नानक इस तरह कहते हैं कि हे मन ! तू अपना अहंकार छोड़ दे और विनीत बना रहे, इस तरह तुझे सुख प्राप्त होगा।॥ ७॥
ਧੰਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਸੋ ਸਹੁ ਚਿਤਿ ਆਇਆ ॥
वह समय बड़ा धन्य है, जब मुझे सतगुरु मिले और मुझे परमात्मा याद आए।
ਮਹਾ ਅਨੰਦੁ ਸਹਜੁ ਭਇਆ ਮਨਿ ਤਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
मेरे अन्तर्मन में सहज ही महा-आनंद अनुभव हुआ और मन-तन में सुख प्राप्त हो गया।
ਸੋ ਸਹੁ ਚਿਤਿ ਆਇਆ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ਅਵਗਣ ਸਭਿ ਵਿਸਾਰੇ ॥
मैंने उस पति-प्रभु को याद किया है, उसे अपने मन में बसाया है और सभी अवगुण भुला दिए हैं।
ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਣਾ ਗੁਣ ਪਰਗਟ ਹੋਏ ਸਤਿਗੁਰ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ॥
जब प्रभु को अच्छा लगा तो मुझ में गुण प्रगट हो गए, और सतगुरु ने आप मुझे संवार दिया है।
ਸੇ ਜਨ ਪਰਵਾਣੁ ਹੋਏ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਇਕੁ ਨਾਮੁ ਦਿੜਿਆ ਦੁਤੀਆ ਭਾਉ ਚੁਕਾਇਆ ॥
जिन्होंने एक नाम को अपने मन में बसाया है और पराया मोह-प्यार त्याग दिया है, वे प्रभु के दरबार में स्वीकृत हो गए हैं।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਧੰਨੁ ਸੁ ਵੇਲਾ ਜਿਤੁ ਮੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਸੋ ਸਹੁ ਚਿਤਿ ਆਇਆ ॥੮॥
नानक कहते हैं कि वह समय धन्य है जब मुझे सतगुरु मिले और उस प्रभु-पति को याद किया ॥ ८ ॥
ਇਕਿ ਜੰਤ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਤਿਨਿ ਸਹਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ॥
कुछ लोग मोह-माया की दुविधा में कुमार्गगामी हो गए हैं और उन्हें प्रभु-पति ने स्वयं ही कुमार्गगामी कर दिया है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਫਿਰਹਿ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਏ ॥
वे द्वैतभाव के प्रेम में भटकते हैं और अहंकार में अपना कर्म करते हैं।
ਤਿਨਿ ਸਹਿ ਆਪਿ ਭੁਲਾਏ ਕੁਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ਤਿਨ ਕਾ ਕਿਛੁ ਨ ਵਸਾਈ ॥
उनके वश में भी कुछ नहीं क्योंकि प्रभु ने स्वयं ही उन्हें भुलाकर कुमार्ग लगाया है।
ਤਿਨ ਕੀ ਗਤਿ ਅਵਗਤਿ ਤੂੰਹੈ ਜਾਣਹਿ ਜਿਨਿ ਇਹ ਰਚਨ ਰਚਾਈ ॥
हे परमपिता ! उन जीवों की अच्छी-बुरी गति आप ही जानते हैं, क्योंकि आपने स्वयं ही यह दुनिया की रचना रची है।
ਹੁਕਮੁ ਤੇਰਾ ਖਰਾ ਭਾਰਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਸੈ ਬੁਝਾਏ ॥
आपके आदेश का अनुसरण करना बहुत कठिन है, लेकिन गुरुमुख बनकर कोई विरला पुरुष ही आदेश को समझता है।
ਇਉ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਕਿਆ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੇ ਜਾ ਤੁਧੁ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਏ ॥੯॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु! बेचारे जीव क्या कर सकते हैं, जब आपने स्वयं ही उन्हें भ्रम में डालकर कुमार्गगामी किया हुआ है॥ ६॥