Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 439

Page 439

ਓਹੁ ਜੇਵ ਸਾਇਰ ਦੇਇ ਲਹਰੀ ਬਿਜੁਲ ਜਿਵੈ ਚਮਕਏ ॥ वह फल ऐसे है जैसे समुद्र की लहरें उत्पन्न होती हैं और बिजली की चमक की भाँति अस्थिर होता है।
ਹਰਿ ਬਾਝੁ ਰਾਖਾ ਕੋਇ ਨਾਹੀ ਸੋਇ ਤੁਝਹਿ ਬਿਸਾਰਿਆ ॥ तुमने उस हरि भुला दिया है, जिनके अतिरिक्त दूसरा कोई रखवाला नहीं है।
ਸਚੁ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਚੇਤਿ ਰੇ ਮਨ ਮਰਹਿ ਹਰਣਾ ਕਾਲਿਆ ॥੧॥ हे काले मृग रूपी मन ! नानक तुझसे सत्य कहते हैं, मेरी बात याद रख, भगवान् को याद कर ले तेरी मृत्यु अटल है॥ १॥
ਭਵਰਾ ਫੂਲਿ ਭਵੰਤਿਆ ਦੁਖੁ ਅਤਿ ਭਾਰੀ ਰਾਮ ॥ हे भंवरे रूपी मन ! जैसे सुगन्धि लेने के लिए फूलों पर मंडराने पर भंवरे को बहुत दुःख सहना पड़ता है, वैसे ही जगत-पदार्थों के स्वाद भोगने से तुझे भारी दुःख भोगना पड़ेगा।
ਮੈ ਗੁਰੁ ਪੂਛਿਆ ਆਪਣਾ ਸਾਚਾ ਬੀਚਾਰੀ ਰਾਮ ॥ अपने गुरु से पूछने के बाद, मैंने वास्तविक स्थिति पर विचार किया है।
ਬੀਚਾਰਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੁਝੈ ਪੂਛਿਆ ਭਵਰੁ ਬੇਲੀ ਰਾਤਓ ॥ मैंने गुरु से पूछा है कि इस चंचल मन का क्या होगा, जो सांसारिक सुखों में उसी तरह उलझा है जैसे भंवरा फूलों में उलझ जाती है।
ਸੂਰਜੁ ਚੜਿਆ ਪਿੰਡੁ ਪੜਿਆ ਤੇਲੁ ਤਾਵਣਿ ਤਾਤਓ ॥ "(गुरु ने मुझे बताया है कि) जब सूर्योदय होता है अर्थात जीवन की रात्रि बीत जाती है तो यह शरीर गिरकर मिट्टी बन जाता है एवं इसे उस तेल की भाँति तपाया जाता है, जिसे कड़ाही में गर्म किया जाता है।
ਜਮ ਮਗਿ ਬਾਧਾ ਖਾਹਿ ਚੋਟਾ ਸਬਦ ਬਿਨੁ ਬੇਤਾਲਿਆ ॥ यह भगवान् के नाम के बिना बेताल बना हुआ जीव यम के मार्ग पर बांधा जाएगा और बहुत चोटें खाएगा।
ਸਚੁ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਚੇਤਿ ਰੇ ਮਨ ਮਰਹਿ ਭਵਰਾ ਕਾਲਿਆ ॥੨॥ नानक सत्य कहते हैं, हे मन रूपी काले भैवरे ! प्रभु को याद कर ले अन्यथा तुम मर जाओगे॥ २॥
ਮੇਰੇ ਜੀਅੜਿਆ ਪਰਦੇਸੀਆ ਕਿਤੁ ਪਵਹਿ ਜੰਜਾਲੇ ਰਾਮ ॥ हे मेरी परदेसी जीवात्मा ! तू इस जगत के जंजाल में क्यों फँस रही है ?
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਕੀ ਫਾਸਹਿ ਜਮ ਜਾਲੇ ਰਾਮ ॥ जब सच्चा मालिक तेरे मन में बसते हैं तो तू क्यों यम के जाल में फँसेगी ?
ਮਛੁਲੀ ਵਿਛੁੰਨੀ ਨੈਣ ਰੁੰਨੀ ਜਾਲੁ ਬਧਿਕਿ ਪਾਇਆ ॥ जब शिकारी जाल फैलाता है और मछली जाल में फँसकर जल से बिछुड़ जाती है तो आँखें भरकर रोती है।
ਸੰਸਾਰੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਮੀਠਾ ਅੰਤਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥ संसार को माया का मोह मीठा लगता है परन्तु अन्त में यह भ्रम दूर हो जाता है।
ਭਗਤਿ ਕਰਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ਹਰਿ ਸਿਉ ਛੋਡਿ ਮਨਹੁ ਅੰਦੇਸਿਆ ॥ हे मेरी आत्मा ! चित लगाकर हरि की भक्ति करो और अपने मन की चिन्ताएँ छोड़ दे।
ਸਚੁ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਚੇਤਿ ਰੇ ਮਨ ਜੀਅੜਿਆ ਪਰਦੇਸੀਆ ॥੩॥ नानक तुझे सत्य कहता है - हे मेरी परदेसी आत्मा ! हे मन ! मेरी बात को याद रख और परमात्मा का ध्यान कर ॥ ३॥
ਨਦੀਆ ਵਾਹ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ਮੇਲਾ ਸੰਜੋਗੀ ਰਾਮ ॥ नदी से अलग हुई धाराएँ संयोगवश ही फिर मिलती हैं;उसी प्रकार, ईश्वर से बिछड़ी आत्माएँ केवल उसकी कृपा से ही फिर उससे मिलती हैं।
ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਮੀਠਾ ਵਿਸੁ ਭਰੇ ਕੋ ਜਾਣੈ ਜੋਗੀ ਰਾਮ ॥ युग-युग में माया का मोह जीवों को मीठा लगता है पर यह मोह विकारों के विष से भरा हुआ है। कोई विरला योगी ही इस तथ्य को समझता है।
ਕੋਈ ਸਹਜਿ ਜਾਣੈ ਹਰਿ ਪਛਾਣੈ ਸਤਿਗੁਰੂ ਜਿਨਿ ਚੇਤਿਆ ॥ जिसने सतगुरु को याद किया होता है, ऐसा विरला जीव ही सहजावस्था को जानता है और भगवान् को पहचानता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਭਰਮਿ ਭੂਲੇ ਪਚਹਿ ਮੁਗਧ ਅਚੇਤਿਆ ॥ हरि के नाम के बिना लापरवाह, मूर्ख जीव माया के भ्रम में पड़कर भटकते हैं और नष्ट हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਭਗਤਿ ਨ ਰਿਦੈ ਸਾਚਾ ਸੇ ਅੰਤਿ ਧਾਹੀ ਰੁੰਨਿਆ ॥ जो प्राणी हरिनाम याद नहीं करते, भगवान् की भक्ति नहीं करते, अपने हृदय में सत्य को नहीं बसाते, वे अन्ततः फूट-फूटकर अश्रु बहाते हैं।
ਸਚੁ ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਸਬਦਿ ਸਾਚੈ ਮੇਲਿ ਚਿਰੀ ਵਿਛੁੰਨਿਆ ॥੪॥੧॥੫॥ नानक सत्य कहते हैं कि शब्द द्वारा चिरकाल से बिछुड़े हुए प्राणी प्रभु के साथ मिल जाते हैं।॥ ४॥ १॥ ५॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਛੰਤ ਘਰੁ ੧ ॥ राग आसा, तृतीय गुरु; छंट, प्रथम ताल : १ ॥
ਹਮ ਘਰੇ ਸਾਚਾ ਸੋਹਿਲਾ ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ਰਾਮ ॥ हमारे हृदय-घर में सत्य का स्तुतिगान हो रहा है और सच्चे शब्द द्वारा हमारा हृदय-घर सुहावना बन गया है।
ਧਨ ਪਿਰ ਮੇਲੁ ਭਇਆ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥ जीव-स्त्री का पति-परमेश्वर से मिलन हो गया है और यह प्रभु ने स्वयं ही मिलन किया है।
ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ਸਚੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ਕਾਮਣਿ ਸਹਜੇ ਮਾਤੀ ॥ जीव-स्त्री सहजता से मस्त हुई है, क्योंकि उसने सत्य अपने मन में बसाया है और प्रभु ने उसे अपने साथ मिला लिया है।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸੀਗਾਰੀ ਸਚਿ ਸਵਾਰੀ ਸਦਾ ਰਾਵੇ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ॥ गुरु के शब्द का उस जीव-स्त्री ने श्रृंगार किया है और सत्य ने उसे सुन्दर बनाया है और प्रेम के साथ रंग कर वह सदा अपने प्रियतम के साथ रमण करती है।
ਆਪੁ ਗਵਾਏ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਏ ਤਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥ जब अपने अहंकार को मिटा कर उसने हरि को वर के रूप में पा लिया तब हरि रस उसके हृदय में बस गया।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰੀ ਸਫਲਿਉ ਜਨਮੁ ਸਬਾਇਆ ॥੧॥ हे नानक ! जो जीवात्मा गुरु के शब्द से संवरी हुई है, उसका समूचा जीवन सफल हो गया है॥ १॥
ਦੂਜੜੈ ਕਾਮਣਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲੀ ਹਰਿ ਵਰੁ ਨ ਪਾਏ ਰਾਮ ॥ जो जीव-स्त्री द्वैतभाव एवं अहं में कुमार्गगामी हो जाती है, उसे हरि अपने वर के रूप में प्राप्त नहीं होता।
ਕਾਮਣਿ ਗੁਣੁ ਨਾਹੀ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਏ ਰਾਮ ॥ जिस जीव-स्त्री में कोई भी गुण विद्यमान नहीं, वह अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा लेती है।
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਏ ਮਨਮੁਖਿ ਇਆਣੀ ਅਉਗਣਵੰਤੀ ਝੂਰੇ ॥ स्वेच्छाचारिणी मूर्ख एवं अवगुणी नारी अपना जन्म व्यर्थ गंवा लेती है और अंतः अवगुणों से भरी रहने के कारण पीड़ित रहती है।
ਆਪਣਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਤਾ ਪਿਰੁ ਮਿਲਿਆ ਹਦੂਰੇ ॥ जब जीव-स्त्री अपने सतगुरु की सेवा करती है तो उसे सदैव सुख प्राप्त होता है और तब उसका प्रियतम उसे प्रत्यक्ष ही मिल जाता है।
ਦੇਖਿ ਪਿਰੁ ਵਿਗਸੀ ਅੰਦਰਹੁ ਸਰਸੀ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਏ ॥ अपने पति-प्रभु को देख कर वह फूल की तरह खिल जाती है और सच्चे शब्द द्वारा उसका हृदय सहज ही आनंद से भरपूर हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕਾਮਣਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੀ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੨॥ हे नानक ! नाम के बिना जीव रूपी कामिनी भ्रम में पड़कर भटकती रहती है और तदुपरांत अपने प्रियतम से मिल कर सुख प्राप्त करती है॥ २॥


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