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ਅਲਖ ਅਭੇਵੀਐ ਹਾਂ ॥
अलख अभेवीऐ हां ॥
वह, जो असीम है और जिसकी गहराई को बुद्धि से नहीं जाना जा सकता।
ਤਾਂ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥
तां सिउ प्रीति करि हां ॥
उसके साथ तू अपना प्रेम लगा।
ਬਿਨਸਿ ਨ ਜਾਇ ਮਰਿ ਹਾਂ ॥
बिनसि न जाइ मरि हां ॥
उसका कभी नाश नहीं होता और वह जन्म-मरण से रहित है।
ਗੁਰ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ਹਾਂ ॥
गुर ते जानिआ हां ॥
जिसने गुरु की शिक्षा के माध्यम से परमात्मा का साक्षात्कार कर लिया है
ਨਾਨਕ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੨॥੩॥੧੫੯॥
नानक मनु मानिआ मेरे मना ॥२॥३॥१५९॥
नानक कहते हैं कि हे मेरे मन, वही भीतर से पूर्ण संतुष्टि अनुभव करता है। ॥२॥३॥१५९॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसावरी महला ५ ॥
राग आसावरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਏਕਾ ਓਟ ਗਹੁ ਹਾਂ ॥
एका ओट गहु हां ॥
हे मेरे मन ! एक ईश्वर का आश्रय लो,
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਹੁ ਹਾਂ ॥
गुर का सबदु कहु हां ॥
सदैव गुरु का शब्द उच्चारण करो।
ਆਗਿਆ ਸਤਿ ਸਹੁ ਹਾਂ ॥
आगिआ सति सहु हां ॥
भगवान् की आज्ञा को सत्य मानकर सहर्ष स्वीकार करो।
ਮਨਹਿ ਨਿਧਾਨੁ ਲਹੁ ਹਾਂ ॥
मनहि निधानु लहु हां ॥
सभी दिव्य गुणों के भंडार परमेश्वर को अपने अंत:करण में साक्षात अनुभव करें।
ਸੁਖਹਿ ਸਮਾਈਐ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुखहि समाईऐ मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥
इस तरह तुम सहज सुख में समाहित हो जाओगे॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਵਤ ਜੋ ਮਰੈ ਹਾਂ ॥
जीवत जो मरै हां ॥
हे मेरे मन ! जो व्यक्ति सांसारिक कार्य करता हुआ मोह-माया से निर्लिप्त रहता है,
ਦੁਤਰੁ ਸੋ ਤਰੈ ਹਾਂ ॥
दुतरु सो तरै हां ॥
वह भयानक संसार सागर से पार हो जाता है।
ਸਭ ਕੀ ਰੇਨੁ ਹੋਇ ਹਾਂ
सभ की रेनु होइ हां ॥
जो सबकी चरण-धूलि हो जाता है,
ਨਿਰਭਉ ਕਹਉ ਸੋਇ ਹਾਂ ॥
निरभउ कहउ सोइ हां ॥
तू उसे ही निर्भय कह।
ਮਿਟੇ ਅੰਦੇਸਿਆ ਹਾਂ ॥
मिटे अंदेसिआ हां ॥
उसके मन की समस्त चिंताएँ विलीन हो जाती हैं।
ਸੰਤ ਉਪਦੇਸਿਆ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥
संत उपदेसिआ मेरे मना ॥१॥
हे मेरे मन ! संतों के उपदेश से, ।॥ १॥
ਜਿਸੁ ਜਨ ਨਾਮ ਸੁਖੁ ਹਾਂ ॥
जिसु जन नाम सुखु हां ॥
जिस मनुष्य के पास प्रभु नाम का सुख है,
ਤਿਸੁ ਨਿਕਟਿ ਨ ਕਦੇ ਦੁਖੁ ਹਾਂ ॥
तिसु निकटि न कदे दुखु हां ॥
उसके पास कोई दुःख नहीं आता।
ਜੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੁਨੇ ਹਾਂ ॥
जो हरि हरि जसु सुने हां ॥
जो मनुष्य परमात्मा का यशोगान सुनते हैं,
ਸਭੁ ਕੋ ਤਿਸੁ ਮੰਨੇ ਹਾਂ ॥
सभु को तिसु मंने हां ॥
दुनिया के सभी लोग उसका मान-सन्मान करते हैं।
ਸਫਲੁ ਸੁ ਆਇਆ ਹਾਂ ॥ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੨॥੪॥੧੬੦॥
सफलु सु आइआ हां ॥ नानक प्रभ भाइआ मेरे मना ॥२॥४॥१६०॥
नानक कहते हैं कि, हे मेरे मन ! इस संसार में उसी व्यक्ति का जीवन सफल और सार्थक है, जिसने ईश्वर को प्रसन्न कर लिया है।॥ २॥ ४ ॥ १६० ॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसावरी महला ५ ॥
राग आसावरी, पांचवें गुरु:५ ॥
ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਈਐ ਹਾਂ ॥
मिलि हरि जसु गाईऐ हां ॥
आओ हम मिलकर हरि का यशोगान करें
ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈਐ ਹਾਂ ॥
परम पदु पाईऐ हां ॥
एवं परम पद प्राप्त करें।
ਉਆ ਰਸ ਜੋ ਬਿਧੇ ਹਾਂ ॥
उआ रस जो बिधे हां ॥
जो इस रस को पाते हैं वे
ਤਾ ਕਉ ਸਗਲ ਸਿਧੇ ਹਾਂ ॥
ता कउ सगल सिधे हां ॥
समस्त ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ प्राप्त कर लेते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਿਆ ਹਾਂ ॥
अनदिनु जागिआ हां ॥
जो जीव रात-दिन (विकारों से) सचेत रहता है,"
ਨਾਨਕ ਬਡਭਾਗਿਆ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नानक बडभागिआ मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥
नानक कहते हैं कि, हे मेरे मन ! वह बड़ा भाग्यशाली है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤ ਪਗ ਧੋਈਐ ਹਾਂ ॥ ਦੁਰਮਤਿ ਖੋਈਐ ਹਾਂ ॥
संत पग धोईऐ हां ॥ दुरमति खोईऐ हां ॥
आओ, हम मिलकर संतों के चरण धोएं और अपनी दुर्मति को शुद्ध करें।
ਦਾਸਹ ਰੇਨੁ ਹੋਇ ਹਾਂ ॥ ਬਿਆਪੈ ਦੁਖੁ ਨ ਕੋਇ ਹਾਂ ॥
दासह रेनु होइ हां ॥ बिआपै दुखु न कोइ हां ॥
प्रभु के सेवकों की चरण-धूलि होने से मनुष्य को कोई दु:ख नहीं सताता।
ਭਗਤਾਂ ਸਰਨਿ ਪਰੁ ਹਾਂ ॥ ਜਨਮਿ ਨ ਕਦੇ ਮਰੁ ਹਾਂ ॥
भगतां सरनि परु हां ॥ जनमि न कदे मरु हां ॥
भक्तजनों की शरण लेने से मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
ਅਸਥਿਰੁ ਸੇ ਭਏ ਹਾਂ ॥ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਜਪਿ ਲਏ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥
असथिरु से भए हां ॥ हरि हरि जिन्ह जपि लए मेरे मना ॥१॥
हे मेरे मन ! जो मनुष्य हरि-नाम का जाप करते हैं वे स्थिर हो जाते हैं ।॥ १॥
ਸਾਜਨੁ ਮੀਤੁ ਤੂੰ ਹਾਂ ॥
साजनु मीतु तूं हां ॥
हे पूज्य परमेश्वर ! आप ही मेरे साजन एवं मित्र है।
ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇ ਮੂੰ ਹਾਂ ॥
नामु द्रिड़ाइ मूं हां ॥
मेरे मन में अपना नाम बसा दो।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ਹਾਂ ॥ ਮਨਹਿ ਅਰਾਧਿ ਸੋਇ ਹਾਂ ॥
तिसु बिनु नाहि कोइ हां ॥ मनहि अराधि सोइ हां ॥
आपके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं। इसलिए अपने मन में मैं उसकी आराधना करता हूँ।
ਨਿਮਖ ਨ ਵੀਸਰੈ ਹਾਂ ॥
निमख न वीसरै हां ॥
एक निमिष मात्र भी मैं उसे विस्मृत नहीं करता।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਸਰੈ ਹਾਂ ॥
तिसु बिनु किउ सरै हां ॥
उसके अतिरिक्त मेरा किस तरह निर्वाह हो सकता है ?
ਗੁਰ ਕਉ ਕੁਰਬਾਨੁ ਜਾਉ ਹਾਂ ॥ ਨਾਨਕੁ ਜਪੇ ਨਾਉ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੨॥੫॥੧੬੧॥
गुर कउ कुरबानु जाउ हां ॥ नानकु जपे नाउ मेरे मना ॥२॥५॥१६१॥
हे मेरे मन ! में अपने गुरु पर बलिहारी जाता हूँ। नानक तो परमात्मा का नाम ही जपता रहता है। ॥२॥५॥१६१॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसावरी महला ५ ॥
राग आसावरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਾਰਨ ਕਰਨ ਤੂੰ ਹਾਂ ॥
कारन करन तूं हां ॥
हे प्रभु ! एक आप ही जग का रचयिता है,
ਅਵਰੁ ਨਾ ਸੁਝੈ ਮੂੰ ਹਾਂ ॥
अवरु ना सुझै मूं हां ॥
आपके अतिरिक्त मुझे अन्य कोई नहीं सूझता।
ਕਰਹਿ ਸੁ ਹੋਈਐ ਹਾਂ ॥
करहि सु होईऐ हां ॥
जो कुछ आप दुनिया में करते हैं, वही होता है।
ਸਹਜਿ ਸੁਖਿ ਸੋਈਐ ਹਾਂ ॥
सहजि सुखि सोईऐ हां ॥
मैं इसलिए सहज सुख में सोता हूँ।
ਧੀਰਜ ਮਨਿ ਭਏ ਹਾਂ ॥ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਦਰਿ ਪਏ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
धीरज मनि भए हां ॥ प्रभ कै दरि पए मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मन ! जब से मैंने प्रभु के द्वार की शरण ली है, मेरे मन में धैर्य हो गया है ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਾਧੂ ਸੰਗਮੇ ਹਾਂ ॥
साधू संगमे हां ॥
मैं साधुओं की संगति से जुड़ गया हूँ,
ਪੂਰਨ ਸੰਜਮੇ ਹਾਂ ॥
पूरन संजमे हां ॥
मेरी ज्ञानेन्द्रियाँ पूर्णतया मेरे वश में हैं।
ਜਬ ਤੇ ਛੁਟੇ ਆਪ ਹਾਂ ॥
जब ते छुटे आप हां ॥
जब से मैंने अहंत्व से छुटकारा पा लिया है,
ਤਬ ਤੇ ਮਿਟੇ ਤਾਪ ਹਾਂ ॥
तब ते मिटे ताप हां ॥
तब से मेरे दुःख-संताप मिट गए हैं।
ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀਆ ਹਾਂ ॥ ਪਤਿ ਰਖੁ ਬਨਵਾਰੀਆ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥
किरपा धारीआ हां ॥ पति रखु बनवारीआ मेरे मना ॥१॥
हे मेरे मन ! प्रभु ने मुझ पर कृपा की है। हे जग के स्वामी ! मुझ शरण में आए की लाज रखो॥ १॥
ਇਹੁ ਸੁਖੁ ਜਾਨੀਐ ਹਾਂ ॥ ਹਰਿ ਕਰੇ ਸੁ ਮਾਨੀਐ ਹਾਂ ॥
इहु सुखु जानीऐ हां ॥ हरि करे सु मानीऐ हां ॥
हे मेरे मन ! भगवान् जो कुछ करते हैं, उसे सहर्ष मानना चाहिए। केवल उसे ही सुख समझना चाहिए।
ਮੰਦਾ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ਹਾਂ ॥ ਸੰਤ ਕੀ ਰੇਨ ਹੋਇ ਹਾਂ ॥
मंदा नाहि कोइ हां ॥ संत की रेन होइ हां ॥
हे मन! जो मनुष्य संत जनों की चरण-धूल बनता है उसको (जगत में) कोई बुरा नहीं दिखता।
ਆਪੇ ਜਿਸੁ ਰਖੈ ਹਾਂ ॥ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸੋ ਚਖੈ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੨॥
आपे जिसु रखै हां ॥ हरि अम्रितु सो चखै मेरे मना ॥२॥
हे मेरे मन ! जिस व्यक्ति की परमात्मा स्वयं रक्षा करते हैं, वही हरि नाम रूपी अमृत चखता है॥ २॥
ਜਿਸ ਕਾ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ਹਾਂ ॥
जिस का नाहि कोइ हां ॥
जिस मनुष्य का कोई नहीं,
ਤਿਸ ਕਾ ਪ੍ਰਭੂ ਸੋਇ ਹਾਂ ॥
तिस का प्रभू सोइ हां ॥
उसका वह प्रभु है।
ਅੰਤਰਗਤਿ ਬੁਝੈ ਹਾਂ ॥
अंतरगति बुझै हां ॥
प्रभु सबके अन्तर्मन की अवस्था को समझते हैं।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸੁ ਸੁਝੈ ਹਾਂ ॥
सभु किछु तिसु सुझै हां ॥
वह सभी बातों को जानते हैं।
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਿ ਲੇਹੁ ਹਾਂ ॥ ਨਾਨਕ ਅਰਦਾਸਿ ਏਹੁ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੩॥੬॥੧੬੨॥
पतित उधारि लेहु हां ॥ नानक अरदासि एहु मेरे मना ॥३॥६॥१६२॥
हे नानक, मेरा मन ईश्वर से विनती करता है कि वह हम पापियों को विकारों से रक्षा प्रदान करे। ३॥ ६ ॥ १६२॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ਇਕਤੁਕਾ ॥
आसावरी महला ५ इकतुका ॥
राग आसावरी, इक-तुक, पाँचवें गुरु: ॥
ਓਇ ਪਰਦੇਸੀਆ ਹਾਂ ॥
ओइ परदेसीआ हां ॥
हे जीव ! इस दुनिया में तू परदेसी है,
ਸੁਨਤ ਸੰਦੇਸਿਆ ਹਾਂ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुनत संदेसिआ हां ॥१॥ रहाउ ॥
यह सन्देश ध्यानपूर्वक सुन ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਾ ਸਿਉ ਰਚਿ ਰਹੇ ਹਾਂ ॥
जा सिउ रचि रहे हां ॥
जिस माया के साथ तुम मोहित हुए हो,