Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 409

Page 409

ਤਜਿ ਮਾਨ ਮੋਹ ਵਿਕਾਰ ਮਿਥਿਆ ਜਪਿ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ॥ तजि मान मोह विकार मिथिआ जपि राम राम राम ॥ अपना अभिमान, मोह, पाप एवं झूठ को छोड़कर राम-नाम का जाप किया करो।
ਮਨ ਸੰਤਨਾ ਕੈ ਚਰਨਿ ਲਾਗੁ ॥੧॥ मन संतना कै चरनि लागु ॥१॥ हे मन ! संतों के चरणों से लग जाओ॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਗੋਪਾਲ ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਹਰਿ ਚਰਣ ਸਿਮਰਿ ਜਾਗੁ ॥ प्रभ गोपाल दीन दइआल पतित पावन पारब्रहम हरि चरण सिमरि जागु ॥ हे भाई ! गोपाल प्रभु बड़ा दीनदयाल, पतित पावन एवं पारब्रह्म है। इसलिए निद्रा से जागकर हरि-चरणों की आराधना करो।
ਕਰਿ ਭਗਤਿ ਨਾਨਕ ਪੂਰਨ ਭਾਗੁ ॥੨॥੪॥੧੫੫॥ करि भगति नानक पूरन भागु ॥२॥४॥१५५॥ हे नानक ! प्रभु की भक्ति करो, तेरा भाग्य पूर्ण उदय हो जायेगा ॥२॥४॥१५५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਖ ਸੋਗ ਬੈਰਾਗ ਅਨੰਦੀ ਖੇਲੁ ਰੀ ਦਿਖਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरख सोग बैराग अनंदी खेलु री दिखाइओ ॥१॥ रहाउ ॥ हे मित्र, आनंद स्वरूप भगवान ने मुझे यह संसार-लीला दिखाई है, जहाँ सुख, दुःख और वैराग्य की स्थितियाँ निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं। ॥ १॥ रहाउ॥
ਖਿਨਹੂੰ ਭੈ ਨਿਰਭੈ ਖਿਨਹੂੰ ਖਿਨਹੂੰ ਉਠਿ ਧਾਇਓ ॥ खिनहूं भै निरभै खिनहूं खिनहूं उठि धाइओ ॥ एक क्षण में ही मनुष्य भयभीत हो जाता है, एक क्षण में ही निडर एवं एक क्षण में ही वह उठकर दौड़ जाता है।
ਖਿਨਹੂੰ ਰਸ ਭੋਗਨ ਖਿਨਹੂੰ ਖਿਨਹੂ ਤਜਿ ਜਾਇਓ ॥੧॥ खिनहूं रस भोगन खिनहूं खिनहू तजि जाइओ ॥१॥ एक क्षण में ही वह रस भोगता है और एक क्षण एवं पल में ही वह छोड़कर चला जाता है। १॥
ਖਿਨਹੂੰ ਜੋਗ ਤਾਪ ਬਹੁ ਪੂਜਾ ਖਿਨਹੂੰ ਭਰਮਾਇਓ ॥ खिनहूं जोग ताप बहु पूजा खिनहूं भरमाइओ ॥ एक क्षण में ही योग, तपस्या एवं बहुत प्रकार की पूजा करता है और एक क्षण में ही वह भ्रम में भटकता है।
ਖਿਨਹੂੰ ਕਿਰਪਾ ਸਾਧੂ ਸੰਗ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਇਓ ॥੨॥੫॥੧੫੬॥ खिनहूं किरपा साधू संग नानक हरि रंगु लाइओ ॥२॥५॥१५६॥ हे नानक ! एक क्षण में ही प्रभु अपनी कृपा द्वारा मनुष्य को सत्संगति में रखकर अपने रंग में लगा लेते हैं॥ २ ॥ ५॥ १५६॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੭ ਆਸਾਵਰੀ रागु आसा महला ५ घरु १७ आसावरी राग आसा, आसावरी, सत्रहवीं ताल, पाँचवें गुरु:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਗੋਬਿੰਦ ਗੋਬਿੰਦ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥ गोबिंद गोबिंद करि हां ॥ हे मेरी सखी ! मैं गोबिंद-गोबिंद ही करती हूँ और
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਪਿਆਰਿ ਹਾਂ ॥ हरि हरि मनि पिआरि हां ॥ अपने मन में हरि-नाम से प्यार करती हूँ।
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਸੁ ਚਿਤਿ ਧਰਿ ਹਾਂ ॥ गुरि कहिआ सु चिति धरि हां ॥ गुरु ने जो कुछ कहा है, उसे मैं अपने चित्त में धारण करती हूँ,
ਅਨ ਸਿਉ ਤੋਰਿ ਫੇਰਿ ਹਾਂ ॥ अन सिउ तोरि फेरि हां ॥ मैं दूसरों से अपने प्रेम को तोड़कर अपने मन को उनकी तरफ से हटा रही हूँ।
ਐਸੇ ਲਾਲਨੁ ਪਾਇਓ ਰੀ ਸਖੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ऐसे लालनु पाइओ री सखी ॥१॥ रहाउ ॥ इस तरह मैंने प्रियतम-प्रभु को पा लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੰਕਜ ਮੋਹ ਸਰਿ ਹਾਂ ॥ पंकज मोह सरि हां ॥ संसार-सरोवर में मोह रूपी कीचड़ विद्यमान है।
ਪਗੁ ਨਹੀ ਚਲੈ ਹਰਿ ਹਾਂ ॥ पगु नही चलै हरि हां ॥ मनुष्य के चरण इसलिए हरि की ओर नहीं चलते।
ਗਹਡਿਓ ਮੂੜ ਨਰਿ ਹਾਂ ॥ गहडिओ मूड़ नरि हां ॥ मूर्ख मनुष्य इस मोह के कीचड़ में फँसा हुआ है।
ਅਨਿਨ ਉਪਾਵ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥ अनिन उपाव करि हां ॥ कोई दूसरा समाधान नहीं करता।
ਤਉ ਨਿਕਸੈ ਸਰਨਿ ਪੈ ਰੀ ਸਖੀ ॥੧॥ तउ निकसै सरनि पै री सखी ॥१॥ हे सखी ! यदि मैं प्रभु की शरण में जाऊँगी तभी संसार-सरोवर के मोह रूपी कीचड़ से बाहर निकलूंगी॥ १॥
ਥਿਰ ਥਿਰ ਚਿਤ ਥਿਰ ਹਾਂ ॥ थिर थिर चित थिर हां ॥ इस तरह मेरा हृदय अटल एवं दृढ़ है।
ਬਨੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਸਮਸਰਿ ਹਾਂ ॥ बनु ग्रिहु समसरि हां ॥ जंगल एवं घर मेरे लिए एक समान हैं।
ਅੰਤਰਿ ਏਕ ਪਿਰ ਹਾਂ ॥ अंतरि एक पिर हां ॥ मेरे अन्तर्मन में एक प्रियतम प्रभु ही बसते हैं।
ਬਾਹਰਿ ਅਨੇਕ ਧਰਿ ਹਾਂ ॥ बाहरि अनेक धरि हां ॥ बाहरी स्तर पर मैं भले ही अनेक सांसारिक कार्य करती रहूँ।
ਰਾਜਨ ਜੋਗੁ ਕਰਿ ਹਾਂ ॥ राजन जोगु करि हां ॥ इस प्रकार, सांसारिक सुखों का भोग करते हुए भी ईश्वर से मिलन के दिव्य आनंद का अनुभव करो।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਲੋਗ ਅਲੋਗੀ ਰੀ ਸਖੀ ॥੨॥੧॥੧੫੭॥ कहु नानक लोग अलोगी री सखी ॥२॥१॥१५७॥ नानक कहते हैं कि हे सखी ! सुन, यही उपाय है कि संसार में रहते हुए भी उससे अलिप्त रहा जाए। ॥ २॥ १॥ १५७॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसावरी महला ५ ॥ राग आसावरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਨਸਾ ਏਕ ਮਾਨਿ ਹਾਂ ॥ मनसा एक मानि हां ॥ हे मन ! केवल एक ईश्वर की ही अभिलाषा करो।
ਗੁਰ ਸਿਉ ਨੇਤ ਧਿਆਨਿ ਹਾਂ ॥ गुर सिउ नेत धिआनि हां ॥ नित्य गुरु के चरणों में ध्यान लगाकर रखो।
ਦ੍ਰਿੜੁ ਸੰਤ ਮੰਤ ਗਿਆਨਿ ਹਾਂ ॥ द्रिड़ु संत मंत गिआनि हां ॥ संतों के मंत्र के ज्ञान को अपने हृदय में बसाओ।
ਸੇਵਾ ਗੁਰ ਚਰਾਨਿ ਹਾਂ ॥ सेवा गुर चरानि हां ॥ गुरु के चरणों की श्रद्धापूर्वक सेवा करो।
ਤਉ ਮਿਲੀਐ ਗੁਰ ਕ੍ਰਿਪਾਨਿ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तउ मिलीऐ गुर क्रिपानि मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे मन ! तभी गुरु की कृपा से तुम अपने स्वामी से मिल जाओगे ॥ १॥ रहाउ॥
ਟੂਟੇ ਅਨ ਭਰਾਨਿ ਹਾਂ ॥ टूटे अन भरानि हां ॥ मेरे सारे भ्रम समाप्त हो गए हैं।
ਰਵਿਓ ਸਰਬ ਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥ रविओ सरब थानि हां ॥ अब मुझे हर जगह पर भगवान् विद्यमान दिखते हैं।
ਲਹਿਓ ਜਮ ਭਇਆਨਿ ਹਾਂ ॥ लहिओ जम भइआनि हां ॥ अब मौत का डर मेरे मन से दूर हो गया है।
ਪਾਇਓ ਪੇਡ ਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥ पाइओ पेड थानि हां ॥ जब इस जगत रूपी पेड़ के मूल नाम को पा लिया
ਤਉ ਚੂਕੀ ਸਗਲ ਕਾਨਿ ॥੧॥ तउ चूकी सगल कानि ॥१॥ तब व्यक्ति की सभी निर्भरताएँ समाप्त हो जाती हैं ॥ १॥
ਲਹਨੋ ਜਿਸੁ ਮਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥ लहनो जिसु मथानि हां ॥ केवल वही प्रभु नाम को पाता है जिस मनुष्य के मस्तक पर भाग्य उदय हो जाता है और
ਭੈ ਪਾਵਕ ਪਾਰਿ ਪਰਾਨਿ ਹਾਂ ॥ भै पावक पारि परानि हां ॥ वह भयानक अग्नि सागर से पार हो जाता है।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਤਿਸਹਿ ਥਾਨਿ ਹਾਂ ॥ निज घरि तिसहि थानि हां ॥ वह अपने आत्मस्वरूप में बसेरा प्राप्त कर लेता है और
ਹਰਿ ਰਸ ਰਸਹਿ ਮਾਨਿ ਹਾਂ ॥ हरि रस रसहि मानि हां ॥ हरि रस के रस का आनंद प्राप्त करता है।
ਲਾਥੀ ਤਿਸ ਭੁਖਾਨਿ ਹਾਂ ॥ लाथी तिस भुखानि हां ॥ उसकी भूख-प्यास मिट जाती है।
ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਓ ਰੇ ਮਨਾ ॥੨॥੨॥੧੫੮॥ नानक सहजि समाइओ रे मना ॥२॥२॥१५८॥ नानक कहते हैं कि हे मेरे मन ! वह प्रभु में सहज ही समा जाता है॥ २॥ २॥ १५८ ॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसावरी महला ५ ॥ राग आसावरी, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਨੀ ਹਾਂ ॥ हरि हरि हरि गुनी हां ॥ हे मेरे मन ! गुणों के भण्डार परमात्मा का नाम
ਜਪੀਐ ਸਹਜ ਧੁਨੀ ਹਾਂ ॥ जपीऐ सहज धुनी हां ॥ सहज ही मधुर ध्वनि में जपते रहना चाहिए।
ਸਾਧੂ ਰਸਨ ਭਨੀ ਹਾਂ ॥ साधू रसन भनी हां ॥ साधुओं की ही रसना प्रभु नाम का जाप करती रहती है।
ਛੂਟਨ ਬਿਧਿ ਸੁਨੀ ਹਾਂ ॥ छूटन बिधि सुनी हां ॥ मैंने सुना है कि मुक्ति पाने का एकमात्र यही मार्ग है।
ਪਾਈਐ ਵਡ ਪੁਨੀ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पाईऐ वड पुनी मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥ लेकिन बड़े पुण्य-कर्म करने से ही यह मार्ग प्राप्त होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਖੋਜਹਿ ਜਨ ਮੁਨੀ ਹਾਂ ॥ खोजहि जन मुनी हां ॥ मुनिजन भी उसे खोजते हैं।
ਸ੍ਰਬ ਕਾ ਪ੍ਰਭ ਧਨੀ ਹਾਂ ॥ स्रब का प्रभ धनी हां ॥ जो सबका स्वामी है
ਦੁਲਭ ਕਲਿ ਦੁਨੀ ਹਾਂ ॥ दुलभ कलि दुनी हां ॥ कलियुगी दुनिया में प्रभु को प्राप्त करना बड़ा दुर्लभ है।
ਦੂਖ ਬਿਨਾਸਨੀ ਹਾਂ ॥ दूख बिनासनी हां ॥ वह दुःख नाशक है।
ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਨ ਆਸਨੀ ਮੇਰੇ ਮਨਾ ॥੧॥ प्रभ पूरन आसनी मेरे मना ॥१॥ हे मेरे मन ! प्रभु सभी आशाएँ पूर्ण करने वाला है॥ १॥
ਮਨ ਸੋ ਸੇਵੀਐ ਹਾਂ ॥ मन सो सेवीऐ हां ॥ हे मेरे मन ! उस प्रभु की सेवा करो।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top