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ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਮਿਲੀਜੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ॥
प्रभ संगि मिलीजै इहु मनु दीजै ॥
अपना यह मन प्रभु के समक्ष पूर्ण रूप से समर्पित करने से ही उससे मिला जा सकता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਅਪਨੀ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ॥੨॥੧॥੧੫੦॥
नानक नामु मिलै अपनी दइआ करहु ॥२॥१॥१५०॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु जी ! अपनी दया करो ताकि मुझे आपका नाम मिल जाए॥२॥१॥१५०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਿਲੁ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ਤੁਮ ਬਿਨੁ ਧੀਰਜੁ ਕੋ ਨ ਕਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मिलु राम पिआरे तुम बिनु धीरजु को न करै ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे प्यारे राम ! मुझे आकर मिलो, आपके अतिरिक्त मुझे कोई धैर्य नहीं दे सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਏ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੇ ਦਰਸ ਬਿਨੁ ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ॥੧॥
सिम्रिति सासत्र बहु करम कमाए प्रभ तुमरे दरस बिनु सुखु नाही ॥१॥
हे प्रभु! जिन लोगों ने स्मृतियाँ एवं शास्त्र पढ़े हैं और बहुत धर्म-कर्म किए हैं, उन्हें भी आपके दर्शनों के बिना कोई सुख उपलब्ध नहीं हुआ ॥ १॥
ਵਰਤ ਨੇਮ ਸੰਜਮ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਸਰਨਿ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਵਸੈ ॥੨॥੨॥੧੫੧॥
वरत नेम संजम करि थाके नानक साध सरनि प्रभ संगि वसै ॥२॥२॥१५१॥
हे नानक ! मनुष्य व्रत, संकल्प, संयम करते हुए थक गए हैं। साधुओं की शरण में जाने से ही जीव प्रभु के साथ जा बसता है॥२॥२॥१५१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੫ ਪੜਤਾਲ
आसा महला ५ घरु १५ पड़ताल
राग आसा, पन्द्रहवीं ताल, पारताल, पांचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬਿਕਾਰ ਮਾਇਆ ਮਾਦਿ ਸੋਇਓ ਸੂਝ ਬੂਝ ਨ ਆਵੈ ॥
बिकार माइआ मादि सोइओ सूझ बूझ न आवै ॥
मनुष्य विकारों एवं माया के नशे में सोया हुआ है और उसे कोई सूझबूझ नहीं आती।
ਪਕਰਿ ਕੇਸ ਜਮਿ ਉਠਾਰਿਓ ਤਦ ਹੀ ਘਰਿ ਜਾਵੈ ॥੧॥
पकरि केस जमि उठारिओ तद ही घरि जावै ॥१॥
जब यमदूत उसे बालों से पकड़ कर उठाता है तो तभी उसे अपने वास्तविक घर की होश आती है॥ १॥
ਲੋਭ ਬਿਖਿਆ ਬਿਖੈ ਲਾਗੇ ਹਿਰਿ ਵਿਤ ਚਿਤ ਦੁਖਾਹੀ ॥
लोभ बिखिआ बिखै लागे हिरि वित चित दुखाही ॥
जो मनुष्य लोभ एवं विषय-विकारों के विष से लगा हुआ है, वह पराया धन चुराकर दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं।
ਖਿਨ ਭੰਗੁਨਾ ਕੈ ਮਾਨਿ ਮਾਤੇ ਅਸੁਰ ਜਾਣਹਿ ਨਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
खिन भंगुना कै मानि माते असुर जाणहि नाही ॥१॥ रहाउ ॥
ऐसे क्रूर और अज्ञानी लोग यह नहीं समझते कि वे केवल क्षणिक सांसारिक धन के घमंड में मदमस्त हैं। ॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਦ ਸਾਸਤ੍ਰ ਜਨ ਪੁਕਾਰਹਿ ਸੁਨੈ ਨਾਹੀ ਡੋਰਾ ॥
बेद सासत्र जन पुकारहि सुनै नाही डोरा ॥
वेद, शास्त्र एवं संतजन पुकार-पुकार कर उपदेश करते हैं परन्तु माया के नशे के कारण बहरा मनुष्य सुनता ही नहीं।
ਨਿਪਟਿ ਬਾਜੀ ਹਾਰਿ ਮੂਕਾ ਪਛੁਤਾਇਓ ਮਨਿ ਭੋਰਾ ॥੨॥
निपटि बाजी हारि मूका पछुताइओ मनि भोरा ॥२॥
जब जीवन की बाजी खत्म हो जाती है और इसे हार कर वह मर जाता है तो मूर्ख मनुष्य अपने मन में पश्चाताप करता है॥ २॥
ਡਾਨੁ ਸਗਲ ਗੈਰ ਵਜਹਿ ਭਰਿਆ ਦੀਵਾਨ ਲੇਖੈ ਨ ਪਰਿਆ ॥
डानु सगल गैर वजहि भरिआ दीवान लेखै न परिआ ॥
ऐसे लोगों के द्वारा किया गया परोपकार केवल जुर्माने के समान है इसलिए ईश्वर के दरबार में उसे कोई वास्तविक पुण्य या श्रेय नहीं प्राप्त होता।
ਜੇਂਹ ਕਾਰਜਿ ਰਹੈ ਓਲ੍ਹ੍ਹਾ ਸੋਇ ਕਾਮੁ ਨ ਕਰਿਆ ॥੩॥
जेंह कारजि रहै ओल्हा सोइ कामु न करिआ ॥३॥
जिस कर्म से उसके पापों पर पर्दा पड़ना था, वह कर्म उसने किया ही नहीं ॥ ३॥
ਐਸੋ ਜਗੁ ਮੋਹਿ ਗੁਰਿ ਦਿਖਾਇਓ ਤਉ ਏਕ ਕੀਰਤਿ ਗਾਇਆ ॥
ऐसो जगु मोहि गुरि दिखाइओ तउ एक कीरति गाइआ ॥
जब गुरु ने मुझे ऐसा जगत दिखा दिया तो मैं एक ईश्वर का ही भजन-कीर्तन करने लग गया।
ਮਾਨੁ ਤਾਨੁ ਤਜਿ ਸਿਆਨਪ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕੁ ਆਇਆ ॥੪॥੧॥੧੫੨॥
मानु तानु तजि सिआनप सरणि नानकु आइआ ॥४॥१॥१५२॥
अपने गर्व एवं बल का अभिमान छोड़कर नानक ने प्रभु की शरण ली है॥ ४॥ १॥ १५२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬਾਪਾਰਿ ਗੋਵਿੰਦ ਨਾਏ ॥
बापारि गोविंद नाए ॥
मैं गोविंद के नाम का व्यापार करता हूँ।
ਸਾਧ ਸੰਤ ਮਨਾਏ ਪ੍ਰਿਅ ਪਾਏ ਗੁਨ ਗਾਏ ਪੰਚ ਨਾਦ ਤੂਰ ਬਜਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साध संत मनाए प्रिअ पाए गुन गाए पंच नाद तूर बजाए ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की कृपा प्राप्त कर जो प्रभु-गुणों का गायक बनता है, वह अंततः प्रभु से एकाकार हो जाता है। तब उसकी आत्मा आनंद से झंकृत हो उठती है, मानो उसके भीतर में पंच वाद्यों की मधुर स्वर-लहरियाँ बह रही हों। ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਰਪਾ ਪਾਏ ਸਹਜਾਏ ਦਰਸਾਏ ਅਬ ਰਾਤਿਆ ਗੋਵਿੰਦ ਸਿਉ ॥
किरपा पाए सहजाए दरसाए अब रातिआ गोविंद सिउ ॥
जब मुझ पर प्रभु की कृपा हुई तो मुझे सहज ही उसके दर्शन प्राप्त हो गए और अब मैं गोविंद के प्रेम से रंगा हुआ हूँ।
ਸੰਤ ਸੇਵਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਾਥ ਰੰਗੁ ਲਾਲਨ ਲਾਏ ॥੧॥
संत सेवि प्रीति नाथ रंगु लालन लाए ॥१॥
संतों की सेवा करने से मुझे अपने नाथ की प्रीति प्राप्त हो गई॥ १॥
ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਮਨਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਰਹਸਾਏ ਨਹੀ ਆਏ ਸਹਜਾਏ ਮਨਿ ਨਿਧਾਨੁ ਪਾਏ ॥
गुर गिआनु मनि द्रिड़ाए रहसाए नही आए सहजाए मनि निधानु पाए ॥
जो गुरु के ज्ञान को मन में दृढ़ता से धारण करता है, वह आनंद को पाता है, पुनर्जन्म के आवागमन से मुक्त होकर, नाम रूपी दिव्य खजाने का अनुभव करता है।
ਸਭ ਤਜੀ ਮਨੈ ਕੀ ਕਾਮ ਕਰਾ ॥
सभ तजी मनै की काम करा ॥
वह अपने मन की सभी कामनाओं को छोड़ देता है।
ਚਿਰੁ ਚਿਰੁ ਚਿਰੁ ਚਿਰੁ ਭਇਆ ਮਨਿ ਬਹੁਤੁ ਪਿਆਸ ਲਾਗੀ ॥
चिरु चिरु चिरु चिरु भइआ मनि बहुतु पिआस लागी ॥
हे हरि !आपकी झलक पाए युग बीत गए; अब हृदय में आपके दर्शन की तीव्र तृषा जाग उठी है।
ਹਰਿ ਦਰਸਨੋ ਦਿਖਾਵਹੁ ਮੋਹਿ ਤੁਮ ਬਤਾਵਹੁ ॥
हरि दरसनो दिखावहु मोहि तुम बतावहु ॥
आप मुझे अपने दर्शन दीजिए और स्वयं ही मेरा मार्गदर्शन कीजिए।
ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਸਰਣਿ ਆਏ ਗਲਿ ਲਾਏ ॥੨॥੨॥੧੫੩॥
नानक दीन सरणि आए गलि लाए ॥२॥२॥१५३॥
नानक कहते हैं कि हम दीन तेरी शरण में आए हैं, हमें अपने गले से लगा लो ॥ २ ॥ २॥ १५३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕੋਊ ਬਿਖਮ ਗਾਰ ਤੋਰੈ ॥
कोऊ बिखम गार तोरै ॥
कोई विरला पुरुष ही मोह-माया के विषम किले को ध्वस्त करता है
ਆਸ ਪਿਆਸ ਧੋਹ ਮੋਹ ਭਰਮ ਹੀ ਤੇ ਹੋਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आस पिआस धोह मोह भरम ही ते होरै ॥१॥ रहाउ ॥
और अपने मन को आशा, प्यास, छल, मोह एवं भ्रम से रोकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮਾਨ ਇਹ ਬਿਆਧਿ ਛੋਰੈ ॥੧॥
काम क्रोध लोभ मान इह बिआधि छोरै ॥१॥
काम, क्रोध, लोभ, अभिमान के इस रोग को कोई विरला ही दूर कर सकता है॥ १॥
ਸੰਤਸੰਗਿ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਗੁਨ ਗੋਵਿੰਦ ਗਾਵਉ ॥
संतसंगि नाम रंगि गुन गोविंद गावउ ॥
मैं संतों की संगति में मिलकर नाम-रंग में लीन होकर गोविंद के गुण गाता रहता हूँ।
ਅਨਦਿਨੋ ਪ੍ਰਭ ਧਿਆਵਉ ॥
अनदिनो प्रभ धिआवउ ॥
मैं हर रोज प्रभु का ध्यान करता रहता हूँ ताकि
ਭ੍ਰਮ ਭੀਤਿ ਜੀਤਿ ਮਿਟਾਵਉ ॥
भ्रम भीति जीति मिटावउ ॥
भ्रम की दीवार को जीतकर मिटा दूँ।
ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਮੋਰੈ ॥੨॥੩॥੧੫੪॥
निधि नामु नानक मोरै ॥२॥३॥१५४॥
हे नानक ! इस भ्रम की दीवार को तोड़ने के पश्चात् नाम-निधि मेरी हो जाएगी ॥ २ ॥ ३॥ १५४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਤਿਆਗੁ ॥
कामु क्रोधु लोभु तिआगु ॥
हे भाई ! कामवासना, क्रोध एवं लालच को त्याग कर
ਮਨਿ ਸਿਮਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਮ ॥
मनि सिमरि गोबिंद नाम ॥
अपने मन में गोविन्द का नाम याद करते रहो।
ਹਰਿ ਭਜਨ ਸਫਲ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि भजन सफल काम ॥१॥ रहाउ ॥
हरि का भजन करने से सारे कार्य सफल हो जाते हैं। १ ॥ रहाउ ॥