Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 408

Page 408

ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਮਿਲੀਜੈ ਇਹੁ ਮਨੁ ਦੀਜੈ ॥ अपना यह मन प्रभु के समक्ष पूर्ण रूप से समर्पित करने से ही उससे मिला जा सकता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਅਪਨੀ ਦਇਆ ਕਰਹੁ ॥੨॥੧॥੧੫੦॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु जी ! अपनी दया करो ताकि मुझे आपका नाम मिल जाए॥२॥१॥१५०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਿਲੁ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ਤੁਮ ਬਿਨੁ ਧੀਰਜੁ ਕੋ ਨ ਕਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे प्यारे राम ! मुझे आकर मिलो, आपके अतिरिक्त मुझे कोई धैर्य नहीं दे सकता ॥ १॥ रहाउ॥
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ੍ਰ ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਏ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰੇ ਦਰਸ ਬਿਨੁ ਸੁਖੁ ਨਾਹੀ ॥੧॥ हे प्रभु! जिन लोगों ने स्मृतियाँ एवं शास्त्र पढ़े हैं और बहुत धर्म-कर्म किए हैं, उन्हें भी आपके दर्शनों के बिना कोई सुख उपलब्ध नहीं हुआ ॥ १॥
ਵਰਤ ਨੇਮ ਸੰਜਮ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਸਰਨਿ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਵਸੈ ॥੨॥੨॥੧੫੧॥ हे नानक ! मनुष्य व्रत, संकल्प, संयम करते हुए थक गए हैं। साधुओं की शरण में जाने से ही जीव प्रभु के साथ जा बसता है॥२॥२॥१५१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੫ ਪੜਤਾਲ राग आसा, पन्द्रहवीं ताल, पारताल, पांचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਬਿਕਾਰ ਮਾਇਆ ਮਾਦਿ ਸੋਇਓ ਸੂਝ ਬੂਝ ਨ ਆਵੈ ॥ मनुष्य विकारों एवं माया के नशे में सोया हुआ है और उसे कोई सूझबूझ नहीं आती।
ਪਕਰਿ ਕੇਸ ਜਮਿ ਉਠਾਰਿਓ ਤਦ ਹੀ ਘਰਿ ਜਾਵੈ ॥੧॥ जब यमदूत उसे बालों से पकड़ कर उठाता है तो तभी उसे अपने वास्तविक घर की होश आती है॥ १॥
ਲੋਭ ਬਿਖਿਆ ਬਿਖੈ ਲਾਗੇ ਹਿਰਿ ਵਿਤ ਚਿਤ ਦੁਖਾਹੀ ॥ जो मनुष्य लोभ एवं विषय-विकारों के विष से लगा हुआ है, वह पराया धन चुराकर दूसरों को कष्ट पहुँचाते हैं।
ਖਿਨ ਭੰਗੁਨਾ ਕੈ ਮਾਨਿ ਮਾਤੇ ਅਸੁਰ ਜਾਣਹਿ ਨਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ऐसे क्रूर और अज्ञानी लोग यह नहीं समझते कि वे केवल क्षणिक सांसारिक धन के घमंड में मदमस्त हैं। ॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਦ ਸਾਸਤ੍ਰ ਜਨ ਪੁਕਾਰਹਿ ਸੁਨੈ ਨਾਹੀ ਡੋਰਾ ॥ वेद, शास्त्र एवं संतजन पुकार-पुकार कर उपदेश करते हैं परन्तु माया के नशे के कारण बहरा मनुष्य सुनता ही नहीं।
ਨਿਪਟਿ ਬਾਜੀ ਹਾਰਿ ਮੂਕਾ ਪਛੁਤਾਇਓ ਮਨਿ ਭੋਰਾ ॥੨॥ जब जीवन की बाजी खत्म हो जाती है और इसे हार कर वह मर जाता है तो मूर्ख मनुष्य अपने मन में पश्चाताप करता है॥ २॥
ਡਾਨੁ ਸਗਲ ਗੈਰ ਵਜਹਿ ਭਰਿਆ ਦੀਵਾਨ ਲੇਖੈ ਨ ਪਰਿਆ ॥ ऐसे लोगों के द्वारा किया गया परोपकार केवल जुर्माने के समान है इसलिए ईश्वर के दरबार में उसे कोई वास्तविक पुण्य या श्रेय नहीं प्राप्त होता।
ਜੇਂਹ ਕਾਰਜਿ ਰਹੈ ਓਲ੍ਹ੍ਹਾ ਸੋਇ ਕਾਮੁ ਨ ਕਰਿਆ ॥੩॥ जिस कर्म से उसके पापों पर पर्दा पड़ना था, वह कर्म उसने किया ही नहीं ॥ ३॥
ਐਸੋ ਜਗੁ ਮੋਹਿ ਗੁਰਿ ਦਿਖਾਇਓ ਤਉ ਏਕ ਕੀਰਤਿ ਗਾਇਆ ॥ जब गुरु ने मुझे ऐसा जगत दिखा दिया तो मैं एक ईश्वर का ही भजन-कीर्तन करने लग गया।
ਮਾਨੁ ਤਾਨੁ ਤਜਿ ਸਿਆਨਪ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕੁ ਆਇਆ ॥੪॥੧॥੧੫੨॥ अपने गर्व एवं बल का अभिमान छोड़कर नानक ने प्रभु की शरण ली है॥ ४॥ १॥ १५२॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬਾਪਾਰਿ ਗੋਵਿੰਦ ਨਾਏ ॥ मैं गोविंद के नाम का व्यापार करता हूँ।
ਸਾਧ ਸੰਤ ਮਨਾਏ ਪ੍ਰਿਅ ਪਾਏ ਗੁਨ ਗਾਏ ਪੰਚ ਨਾਦ ਤੂਰ ਬਜਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु की कृपा प्राप्त कर जो प्रभु-गुणों का गायक बनता है, वह अंततः प्रभु से एकाकार हो जाता है। तब उसकी आत्मा आनंद से झंकृत हो उठती है, मानो उसके भीतर में पंच वाद्यों की मधुर स्वर-लहरियाँ बह रही हों। ॥ १॥ रहाउ॥
ਕਿਰਪਾ ਪਾਏ ਸਹਜਾਏ ਦਰਸਾਏ ਅਬ ਰਾਤਿਆ ਗੋਵਿੰਦ ਸਿਉ ॥ जब मुझ पर प्रभु की कृपा हुई तो मुझे सहज ही उसके दर्शन प्राप्त हो गए और अब मैं गोविंद के प्रेम से रंगा हुआ हूँ।
ਸੰਤ ਸੇਵਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਾਥ ਰੰਗੁ ਲਾਲਨ ਲਾਏ ॥੧॥ संतों की सेवा करने से मुझे अपने नाथ की प्रीति प्राप्त हो गई॥ १॥
ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਮਨਿ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਰਹਸਾਏ ਨਹੀ ਆਏ ਸਹਜਾਏ ਮਨਿ ਨਿਧਾਨੁ ਪਾਏ ॥ जो गुरु के ज्ञान को मन में दृढ़ता से धारण करता है, वह आनंद को पाता है, पुनर्जन्म के आवागमन से मुक्त होकर, नाम रूपी दिव्य खजाने का अनुभव करता है।
ਸਭ ਤਜੀ ਮਨੈ ਕੀ ਕਾਮ ਕਰਾ ॥ वह अपने मन की सभी कामनाओं को छोड़ देता है।
ਚਿਰੁ ਚਿਰੁ ਚਿਰੁ ਚਿਰੁ ਭਇਆ ਮਨਿ ਬਹੁਤੁ ਪਿਆਸ ਲਾਗੀ ॥ हे हरि !आपकी झलक पाए युग बीत गए; अब हृदय में आपके दर्शन की तीव्र तृषा जाग उठी है।
ਹਰਿ ਦਰਸਨੋ ਦਿਖਾਵਹੁ ਮੋਹਿ ਤੁਮ ਬਤਾਵਹੁ ॥ आप मुझे अपने दर्शन दीजिए और स्वयं ही मेरा मार्गदर्शन कीजिए।
ਨਾਨਕ ਦੀਨ ਸਰਣਿ ਆਏ ਗਲਿ ਲਾਏ ॥੨॥੨॥੧੫੩॥ नानक कहते हैं कि हम दीन तेरी शरण में आए हैं, हमें अपने गले से लगा लो ॥ २ ॥ २॥ १५३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕੋਊ ਬਿਖਮ ਗਾਰ ਤੋਰੈ ॥ कोई विरला पुरुष ही मोह-माया के विषम किले को ध्वस्त करता है
ਆਸ ਪਿਆਸ ਧੋਹ ਮੋਹ ਭਰਮ ਹੀ ਤੇ ਹੋਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ और अपने मन को आशा, प्यास, छल, मोह एवं भ्रम से रोकता है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮਾਨ ਇਹ ਬਿਆਧਿ ਛੋਰੈ ॥੧॥ काम, क्रोध, लोभ, अभिमान के इस रोग को कोई विरला ही दूर कर सकता है॥ १॥
ਸੰਤਸੰਗਿ ਨਾਮ ਰੰਗਿ ਗੁਨ ਗੋਵਿੰਦ ਗਾਵਉ ॥ मैं संतों की संगति में मिलकर नाम-रंग में लीन होकर गोविंद के गुण गाता रहता हूँ।
ਅਨਦਿਨੋ ਪ੍ਰਭ ਧਿਆਵਉ ॥ मैं हर रोज प्रभु का ध्यान करता रहता हूँ ताकि
ਭ੍ਰਮ ਭੀਤਿ ਜੀਤਿ ਮਿਟਾਵਉ ॥ भ्रम की दीवार को जीतकर मिटा दूँ।
ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਮੋਰੈ ॥੨॥੩॥੧੫੪॥ हे नानक ! इस भ्रम की दीवार को तोड़ने के पश्चात् नाम-निधि मेरी हो जाएगी ॥ २ ॥ ३॥ १५४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਲੋਭੁ ਤਿਆਗੁ ॥ हे भाई ! कामवासना, क्रोध एवं लालच को त्याग कर
ਮਨਿ ਸਿਮਰਿ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਮ ॥ अपने मन में गोविन्द का नाम याद करते रहो।
ਹਰਿ ਭਜਨ ਸਫਲ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि का भजन करने से सारे कार्य सफल हो जाते हैं। १ ॥ रहाउ ॥


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