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ਕਿਛੁ ਕਿਛੁ ਨ ਚਾਹੀ ॥੨॥
किछु किछु न चाही ॥२॥
इनमें से मुझे कुछ भी नहीं चाहिए॥ २॥
ਚਰਨਨ ਸਰਨਨ ਸੰਤਨ ਬੰਦਨ ॥ ਸੁਖੋ ਸੁਖੁ ਪਾਹੀ ॥
चरनन सरनन संतन बंदन ॥ सुखो सुखु पाही ॥
प्रभु-चरणों की शरण एवं संतों की-वन्दना इनमें ही मैं सुख और शांति अनुभव करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਤਪਤਿ ਹਰੀ ॥ ਮਿਲੇ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਰੀ ॥੩॥੩॥੧੪੩॥
नानक तपति हरी ॥ मिले प्रेम पिरी ॥३॥३॥१४३॥
हे नानक ! जब प्रिय परमात्मा का प्रेम हृदय में उतरता है, तब मन से समस्त सांसारिक वासनाओं और इच्छाओं की पीड़ा स्वतः दूर हो जाती है। ।॥३॥३॥१४३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਰਹਿ ਦਿਖਾਇਓ ਲੋਇਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरहि दिखाइओ लोइना ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु ने मुझे इन नेत्रों से भगवान् के दर्शन करवा दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਈਤਹਿ ਊਤਹਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਤੂੰਹੀ ਤੂੰਹੀ ਮੋਹਿਨਾ ॥੧॥
ईतहि ऊतहि घटि घटि घटि घटि तूंही तूंही मोहिना ॥१॥
हे मोहन ! लोक-परलोक, प्रत्येक शरीर एवं मन में सर्वत्र आप ही दिखाई दे रहे हैं॥ १॥
ਕਾਰਨ ਕਰਨਾ ਧਾਰਨ ਧਰਨਾ ਏਕੈ ਏਕੈ ਸੋਹਿਨਾ ॥੨॥
कारन करना धारन धरना एकै एकै सोहिना ॥२॥
हे सुन्दर स्वामी ! एक आप ही सृष्टि के मूल रचयिता है और एक आप ही समूचे जगत को आधार देने वाला है॥ २॥
ਸੰਤਨ ਪਰਸਨ ਬਲਿਹਾਰੀ ਦਰਸਨ ਨਾਨਕ ਸੁਖਿ ਸੁਖਿ ਸੋਇਨਾ ॥੩॥੪॥੧੪੪॥
संतन परसन बलिहारी दरसन नानक सुखि सुखि सोइना ॥३॥४॥१४४॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! मैं आपके संतजनों के चरण स्पर्श करता हूँ, उनके दर्शनों पर बलिहारी जाता हूँ और पूर्ण सुखपूर्वक सोता हूँ॥ ३॥ ४ ॥ १४४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਾ ॥
हरि हरि नामु अमोला ॥
हरि-प्रभु का नाम बड़ा अनमोल है।
ਓਹੁ ਸਹਜਿ ਸੁਹੇਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ओहु सहजि सुहेला ॥१॥ रहाउ ॥
जिसे हरि-नाम मिल जाता है, वह सहज ही सुखपूर्वक रहता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਈ ਓਹੁ ਅਗਹ ਅਤੋਲਾ ॥੧॥
संगि सहाई छोडि न जाई ओहु अगह अतोला ॥१॥
भगवान् का नाम सर्वदा उसके साथ रहता है और उसे छोड़कर कहीं नहीं जाता। वह अथाह एवं अतुलनीय है॥ १॥
ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਭਾਈ ਬਾਪੁ ਮੋਰੋ ਮਾਈ ਭਗਤਨ ਕਾ ਓਲ੍ਹ੍ਹਾ ॥੨॥
प्रीतमु भाई बापु मोरो माई भगतन का ओल्हा ॥२॥
वह प्रभु ही मेरा प्रियतम, भाई, पिता एवं मेरी माता है और भक्तों (के जीवन) का आधार है॥ २ ॥
ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਇਹੁ ਹਰਿ ਕਾ ਚੋਲ੍ਹ੍ਹਾ ॥੩॥੫॥੧੪੫॥
अलखु लखाइआ गुर ते पाइआ नानक इहु हरि का चोल्हा ॥३॥५॥१४५॥
हे नानक ! वह अतुलनीय ईश्वर केवल गुरु की कृपा से ही जाना और अनुभव किया जा सकता है। यही उसकी अद्भुत और अपार लीला है। ॥३॥५॥१४५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਆਪੁਨੀ ਭਗਤਿ ਨਿਬਾਹਿ ॥ ਠਾਕੁਰ ਆਇਓ ਆਹਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आपुनी भगति निबाहि ॥ ठाकुर आइओ आहि ॥१॥ रहाउ ॥
हे ठाकुर जी ! मेरी भक्ति को अंत तक निभा दो, मैं बड़ी आशा से आपकी शरण में आया हूँ। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਹੋਇ ਸਕਾਰਥੁ ਹਿਰਦੈ ਚਰਨ ਬਸਾਹਿ ॥੧॥
नामु पदारथु होइ सकारथु हिरदै चरन बसाहि ॥१॥
नाम-पदार्थ पाकर मेरा जन्म साकार हो जाए, अपने चरण-कमल मेरे हृदय में वसा दो॥ १॥
ਏਹ ਮੁਕਤਾ ਏਹ ਜੁਗਤਾ ਰਾਖਹੁ ਸੰਤ ਸੰਗਾਹਿ ॥੨॥
एह मुकता एह जुगता राखहु संत संगाहि ॥२॥
मेरे लिए यही मोक्ष है और यही जीवन युक्ति है कि मुझे संत-महापुरुषों की संगति में रखो॥ २॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਉ ਸਹਜਿ ਸਮਾਵਉ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਹਿ ॥੩॥੬॥੧੪੬॥
नामु धिआवउ सहजि समावउ नानक हरि गुन गाहि ॥३॥६॥१४६॥
नानक वन्दना करते हैं कि हे हरि ! मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं निरंतर आपके गुणगान में रमा रहूं और आपके पावन नाम का ध्यान करते हुए दिव्य शांति में लीन हो जाऊं।॥ ३॥ ६॥ १४६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਠਾਕੁਰ ਚਰਣ ਸੁਹਾਵੇ ॥
ठाकुर चरण सुहावे ॥
ठाकुर जी के चरण अति सुन्दर हैं।
ਹਰਿ ਸੰਤਨ ਪਾਵੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि संतन पावे ॥१॥ रहाउ ॥
हरि के संतजनों ने उन्हें प्राप्त किया है।॥ १॥ रहाउ॥
ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ਸੇਵ ਕਮਾਇਆ ਗੁਨ ਰਸਿ ਰਸਿ ਗਾਵੇ ॥੧॥
आपु गवाइआ सेव कमाइआ गुन रसि रसि गावे ॥१॥
वह अपना अहंत्व दूर कर देते हैं, प्रभु की सेवा करते हैं और प्रेम में भीगकर उसकी गुणस्तुति करते हैं। १॥
ਏਕਹਿ ਆਸਾ ਦਰਸ ਪਿਆਸਾ ਆਨ ਨ ਭਾਵੇ ॥੨॥
एकहि आसा दरस पिआसा आन न भावे ॥२॥
उनको एक ईश्वर की ही आशा है, उनको प्रभु दर्शनों की प्यास है और अन्य कुछ भी उन्हें अच्छा नहीं लगता॥ २॥
ਦਇਆ ਤੁਹਾਰੀ ਕਿਆ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੀ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਵੇ ॥੩॥੭॥੧੪੭॥
दइआ तुहारी किआ जंत विचारी नानक बलि बलि जावे ॥३॥७॥१४७॥
हे प्रभु! यह सब आपकी दया है। बेचारे जीवों के वश में क्या है? नानक तुझ पर बलिहारी जाता है॥ ३॥ ७॥ १४७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਏਕੁ ਸਿਮਰਿ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एकु सिमरि मन माही ॥१॥ रहाउ ॥
अपने मन में एक प्रभु को ही याद करते रहो॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਰਿਦੈ ਬਸਾਵਹੁ ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਕੋ ਨਾਹੀ ॥੧॥
नामु धिआवहु रिदै बसावहु तिसु बिनु को नाही ॥१॥
भगवान् के नाम का ध्यान करो और उसे अपने हृदय में बसाओ, उसके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं।॥ १॥
ਪ੍ਰਭ ਸਰਨੀ ਆਈਐ ਸਰਬ ਫਲ ਪਾਈਐ ਸਗਲੇ ਦੁਖ ਜਾਹੀ ॥੨॥
प्रभ सरनी आईऐ सरब फल पाईऐ सगले दुख जाही ॥२॥
प्रभु की शरण में आने से सर्व फल प्राप्त हो जाते हैं और सारे दुःख-संताप मिट जाते हैं।॥ २॥
ਜੀਅਨ ਕੋ ਦਾਤਾ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ਨਾਨਕ ਘਟਿ ਘਟਿ ਆਹੀ ॥੩॥੮॥੧੪੮॥
जीअन को दाता पुरखु बिधाता नानक घटि घटि आही ॥३॥८॥१४८॥
हे नानक ! विधाता सब जीवों का दाता है और प्रत्येक हृदय में विद्यमान है॥ ३॥ ८ ॥ १४८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਬਿਸਰਤ ਸੋ ਮੂਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि बिसरत सो मूआ ॥१॥ रहाउ ॥
जिस मनुष्य ने हरि को भुला दिया है वह मृतक है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ਸਰਬ ਫਲ ਪਾਵੈ ਸੋ ਜਨੁ ਸੁਖੀਆ ਹੂਆ ॥੧॥
नामु धिआवै सरब फल पावै सो जनु सुखीआ हूआ ॥१॥
जो नाम का ध्यान करता है, उसे सभी फल मिल जाते हैं और ऐसा व्यक्ति सुखी हो गया है॥ १॥
ਰਾਜੁ ਕਹਾਵੈ ਹਉ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ਬਾਧਿਓ ਨਲਿਨੀ ਭ੍ਰਮਿ ਸੂਆ ॥੨॥
राजु कहावै हउ करम कमावै बाधिओ नलिनी भ्रमि सूआ ॥२॥
जो स्वयं को राजा समझकर अहंकार में डूबा रहता है और गर्वपूर्ण कर्म करता है, वह अंततः अपने ही कर्मों के जाल में ऐसा फँसता है, जैसे कोई तोता फंदे में फँस जाए। २॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਸੋ ਜਨੁ ਨਿਹਚਲੁ ਥੀਆ ॥੩॥੯॥੧੪੯॥
कहु नानक जिसु सतिगुरु भेटिआ सो जनु निहचलु थीआ ॥३॥९॥१४९॥
हे नानक ! जिस मनुष्य को सतगुरु मिल जात हैं, वह अटल हो जाता है ॥३॥६॥१४६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੪
आसा महला ५ घरु १४
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ घरु १४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਓਹੁ ਨੇਹੁ ਨਵੇਲਾ ॥
ओहु नेहु नवेला ॥
वह प्रेम सदैव ही नवीन है
ਅਪੁਨੇ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਿਉ ਲਾਗਿ ਰਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपुने प्रीतम सिउ लागि रहै ॥१॥ रहाउ ॥
जो प्रियतम प्रभु के साथ बना रहता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵੈ ॥
जो प्रभ भावै जनमि न आवै ॥
जो जीव प्रभु को भला लगता है, वह दोबारा जन्म नहीं लेता।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰਚੈ ॥੧॥
हरि प्रेम भगति हरि प्रीति रचै ॥१॥
वह हरि की प्रेम-भक्ति एवं उसकी प्रीति में लीन रहता है।॥ १॥