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ਗੁਰੂ ਵਿਟਹੁ ਹਉ ਵਾਰਿਆ ਜਿਸੁ ਮਿਲਿ ਸਚੁ ਸੁਆਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरू विटहु हउ वारिआ जिसु मिलि सचु सुआउ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं अपने गुरु के प्रति पूर्णतः समर्पित हूं, जिनसे मिलकर मुझे जीवन का वास्तविक उद्देश्य, भगवान् के नाम का ध्यान प्राप्त हुआ है। १॥ रहाउ॥
ਸਗੁਨ ਅਪਸਗੁਨ ਤਿਸ ਕਉ ਲਗਹਿ ਜਿਸੁ ਚੀਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥
सगुन अपसगुन तिस कउ लगहि जिसु चीति न आवै ॥
जिसे प्रभु याद नहीं आते उसे ही शुभ-अशुभ शगुन प्रभावित करते हैं।
ਤਿਸੁ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਜੋ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਭਾਵੈ ॥੨॥
तिसु जमु नेड़ि न आवई जो हरि प्रभि भावै ॥२॥
जो मनुष्य हरि-प्रभु को भला लगता है, यमदूत उसके निकट नहीं आते ॥ २॥
ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਜਪ ਤਪ ਜੇਤੇ ਸਭ ਊਪਰਿ ਨਾਮੁ ॥
पुंन दान जप तप जेते सभ ऊपरि नामु ॥
दान-पुण्य, जप-तप इत्यादि जितने भी शुभ कर्म हैं,इन सभी में सर्वश्रेष्ठ कर्म ईश्वर का नाम है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਜੋ ਜਪੈ ਤਿਸੁ ਪੂਰਨ ਕਾਮੁ ॥੩॥
हरि हरि रसना जो जपै तिसु पूरन कामु ॥३॥
जो प्राणी अपनी रसना से परमेश्वर के नाम का जाप करता है उसके सभी कार्य पूर्ण हो जाते हैं।॥ ३॥
ਭੈ ਬਿਨਸੇ ਭ੍ਰਮ ਮੋਹ ਗਏ ਕੋ ਦਿਸੈ ਨ ਬੀਆ ॥
भै बिनसे भ्रम मोह गए को दिसै न बीआ ॥
उसका भय, दुविधा एवं मोह सभी नष्ट हो गए हैं और प्रभु के बिना वह किसी दूसरे को नहीं देखता।
ਨਾਨਕ ਰਾਖੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਥੀਆ ॥੪॥੧੮॥੧੨੦॥
नानक राखे पारब्रहमि फिरि दूखु न थीआ ॥४॥१८॥१२०॥
हे नानक ! यदि पारब्रह्म स्वयं रक्षा करे तो फिर मनुष्य को कोई दुःख नहीं सताता ॥४॥१८॥१२०॥
ਆਸਾ ਘਰੁ ੯ ਮਹਲਾ ੫
आसा घरु ९ महला ५
राग आसा, नौवीं ताल, पाँचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਚਿਤਵਉ ਚਿਤਵਿ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਵਉ ਆਗੈ ਭਾਵਉ ਕਿ ਨ ਭਾਵਉ ॥
चितवउ चितवि सरब सुख पावउ आगै भावउ कि न भावउ ॥
मैं अपने चित्त में प्रभु का सिमरन करता रहता हूँ और उसका सिमरन करके सर्व सुख पाता हूँ। मैं नहीं जानता कि आगे मैं उसको अच्छा लगूंगा अथवा नहीं।
ਏਕੁ ਦਾਤਾਰੁ ਸਗਲ ਹੈ ਜਾਚਿਕ ਦੂਸਰ ਕੈ ਪਹਿ ਜਾਵਉ ॥੧॥
एकु दातारु सगल है जाचिक दूसर कै पहि जावउ ॥१॥
सब जीवों के दाता एक प्रभु ही है और शेष सभी उसके याचक हैं। मैं प्रभु के अतिरिक्त किसके पास माँगने के लिए जाऊँ॥ १॥
ਹਉ ਮਾਗਉ ਆਨ ਲਜਾਵਉ ॥
हउ मागउ आन लजावउ ॥
प्रभु के अतिरिक्त किसी दूसरे से माँगने पर मुझे लज्जा आती है।
ਸਗਲ ਛਤ੍ਰਪਤਿ ਏਕੋ ਠਾਕੁਰੁ ਕਉਨੁ ਸਮਸਰਿ ਲਾਵਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल छत्रपति एको ठाकुरु कउनु समसरि लावउ ॥१॥ रहाउ ॥
एक परमात्मा ही सृष्टि के छत्रपति राजा है, किसी दूसरे को उसके बराबर का सोच नहीं सकता ॥१॥ रहाउ ॥
ਊਠਉ ਬੈਸਉ ਰਹਿ ਭਿ ਨ ਸਾਕਉ ਦਰਸਨੁ ਖੋਜਿ ਖੋਜਾਵਉ ॥
ऊठउ बैसउ रहि भि न साकउ दरसनु खोजि खोजावउ ॥
उठते-बैठते मैं उसके बिना रह भी नहीं सकता, उसके दर्शनों हेतु मैं बार-बार खोज करता हूँ।
ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਸਨਕਾਦਿਕ ਸਨਕ ਸਨੰਦਨ ਸਨਾਤਨ ਸਨਤਕੁਮਾਰ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਉ ਮਹਲੁ ਦੁਲਭਾਵਉ ॥੨॥
ब्रहमादिक सनकादिक सनक सनंदन सनातन सनतकुमार तिन्ह कउ महलु दुलभावउ ॥२॥
ब्रह्मा जैसे बड़े-बड़े देवता, सनक, सनंदन, सनातन एवं सनत कुमार जैसे ऋषि (जो ब्रह्मा के पुत्र कहलाए) प्रभु का महल तो उनके लिए भी दुर्लभ रहा ॥ २ ॥
ਅਗਮ ਅਗਮ ਆਗਾਧਿ ਬੋਧ ਕੀਮਤਿ ਪਰੈ ਨ ਪਾਵਉ ॥
अगम अगम आगाधि बोध कीमति परै न पावउ ॥
प्रभु अगम्य, अनन्त एवं अगाध बोध वाला है। उसकी उपमा का मूल्यांकन नहीं हो सकता।
ਤਾਕੀ ਸਰਣਿ ਸਤਿ ਪੁਰਖ ਕੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਧਿਆਵਉ ॥੩॥
ताकी सरणि सति पुरख की सतिगुरु पुरखु धिआवउ ॥३॥
मैंने उस सद्पुरुष की शरण ली है और उस महापुरुष सतगुरु को ही स्मरण करता हूँ॥ ३॥
ਭਇਓ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਦਇਆਲੁ ਪ੍ਰਭੁ ਠਾਕੁਰੁ ਕਾਟਿਓ ਬੰਧੁ ਗਰਾਵਉ ॥
भइओ क्रिपालु दइआलु प्रभु ठाकुरु काटिओ बंधु गरावउ ॥
मेरा ठाकुर-प्रभु मुझ पर कृपालु एवं दयालु हो गया है, उसने मेरे गले से मोह-माया की फाँसी काट दी है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਜਉ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਾਇਓ ਤਉ ਫਿਰਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵਉ ॥੪॥੧॥੧੨੧॥
कहु नानक जउ साधसंगु पाइओ तउ फिरि जनमि न आवउ ॥४॥१॥१२१॥
नानक कहते हैं कि, अब जब मुझे संतों की संगति प्राप्त हो गई है, तो मैं जन्म और मृत्यु के चक्र में नहीं उलझूंगा। ॥ ४॥ १॥ १२१॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅੰਤਰਿ ਗਾਵਉ ਬਾਹਰਿ ਗਾਵਉ ਗਾਵਉ ਜਾਗਿ ਸਵਾਰੀ ॥
अंतरि गावउ बाहरि गावउ गावउ जागि सवारी ॥
मैं अपने हृदय-घर में प्रभु का गुणानुवाद करता रहता हूँ और हृदय-घर से बाहर भी उनका ही यशोगान करता हूँ। सोते-जागते भी मैं उनका ही गुणगान करता हूँ।
ਸੰਗਿ ਚਲਨ ਕਉ ਤੋਸਾ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ਗੋਬਿੰਦ ਨਾਮ ਕੇ ਬਿਉਹਾਰੀ ॥੧॥
संगि चलन कउ तोसा दीन्हा गोबिंद नाम के बिउहारी ॥१॥
मैं गोविन्द के नाम का व्यापारी हूँ। मेरे साथ चलने हेतु उसने मुझे अपने नाम का यात्रा-खर्च दिया है॥ १॥
ਅਵਰ ਬਿਸਾਰੀ ਬਿਸਾਰੀ ॥
अवर बिसारी बिसारी ॥
भगवान् के अतिरिक्त दूसरी सभी वस्तुएँ मैंने भुला दी हैं।
ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੀਓ ਮੈ ਏਹੋ ਆਧਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम दानु गुरि पूरै दीओ मै एहो आधारी ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु ने मुझे प्रभु-नाम का दान दिया है और यह नाम ही मेरा जीवन का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਦੂਖਨਿ ਗਾਵਉ ਸੁਖਿ ਭੀ ਗਾਵਉ ਮਾਰਗਿ ਪੰਥਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ॥
दूखनि गावउ सुखि भी गावउ मारगि पंथि सम्हारी ॥
दुःख में भी मैं प्रभु का गुणगान करता हूँ, सुख में भी मैं उसका ही यशोगान करता हूँ और मार्ग पर चलते हुए यात्रा में भी मैं उसको ही याद करता हूँ।
ਨਾਮ ਦ੍ਰਿੜੁ ਗੁਰਿ ਮਨ ਮਹਿ ਦੀਆ ਮੋਰੀ ਤਿਸਾ ਬੁਝਾਰੀ ॥੨॥
नाम द्रिड़ु गुरि मन महि दीआ मोरी तिसा बुझारी ॥२॥
गुरु ने मेरे मन में नाम को बसा दिया है और मेरी प्यास बुझा दी है॥ २॥
ਦਿਨੁ ਭੀ ਗਾਵਉ ਰੈਨੀ ਗਾਵਉ ਗਾਵਉ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਰਸਨਾਰੀ ॥
दिनु भी गावउ रैनी गावउ गावउ सासि सासि रसनारी ॥
मैं दिन में भी प्रभु की गुणस्तुति करता हूँ और रात को भी उनका ही गुणानुवाद करता हूँ और अपनी रसना से मैं उनको श्वास-श्वास से याद करता हूँ।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਮਹਿ ਬਿਸਾਸੁ ਹੋਇ ਹਰਿ ਜੀਵਤ ਮਰਤ ਸੰਗਾਰੀ ॥੩॥
सतसंगति महि बिसासु होइ हरि जीवत मरत संगारी ॥३॥
सत्संगति में रहने से यह विश्वास स्थिर हो जाता है कि प्रभु जीवन एवं मृत्यु में भी हमारे साथ रहते है ॥३॥
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਇਹੁ ਦਾਨੁ ਦੇਹੁ ਪ੍ਰਭ ਪਾਵਉ ਸੰਤ ਰੇਨ ਉਰਿ ਧਾਰੀ ॥
जन नानक कउ इहु दानु देहु प्रभ पावउ संत रेन उरि धारी ॥
हे प्रभु ! अपने दास नानक को यह दान दीजिए कि वह संतों की चरण-धूलि प्राप्त करके आपकी स्मृति को अपने मन में बसाकर रखे।
ਸ੍ਰਵਨੀ ਕਥਾ ਨੈਨ ਦਰਸੁ ਪੇਖਉ ਮਸਤਕੁ ਗੁਰ ਚਰਨਾਰੀ ॥੪॥੨॥੧੨੨॥
स्रवनी कथा नैन दरसु पेखउ मसतकु गुर चरनारी ॥४॥२॥१२२॥
मैं अपने कानों से आपकी ही कथा सुनु अपने नयनों से आपके ही दर्शन करूँ और अपना माथा गुरु के चरणों पर रखूं ॥ ४॥२॥ १२२॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਆਸਾ ਘਰੁ ੧੦ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा घरु १० महला ५ ॥
राग आसा, दसवीं ताल, पाँचवें गुरु:५ ॥
ਜਿਸ ਨੋ ਤੂੰ ਅਸਥਿਰੁ ਕਰਿ ਮਾਨਹਿ ਤੇ ਪਾਹੁਨ ਦੋ ਦਾਹਾ ॥
जिस नो तूं असथिरु करि मानहि ते पाहुन दो दाहा ॥
हे मानव ! यह शरीर जिसे तू शाश्वत मानता है, वह तो केवल दो दिनों का अतिथि है।