Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 400

Page 400

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਮਹਲੁ ਪਾਈਐ ਜਗੁ ਦੁਤਰੁ ਤਰੀਐ ॥੨॥ गुर सेवा महलु पाईऐ जगु दुतरु तरीऐ ॥२॥ गुरु की सेवा करने से (प्रभु-चरणों में) निवास मिल जाता है और इस विषम जगत-समुद्र से पार हुआ जाता है॥ २॥
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤੇਰੀ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਮਨ ਮਾਹਿ ਨਿਧਾਨਾ ॥ द्रिसटि तेरी सुखु पाईऐ मन माहि निधाना ॥ हे भगवान् ! आपकी दया-दृष्टि से आत्मिक सुख उपलब्ध होता है और नाम का भण्डार हृदय में बस जाता है।
ਜਾ ਕਉ ਤੁਮ ਕਿਰਪਾਲ ਭਏ ਸੇਵਕ ਸੇ ਪਰਵਾਨਾ ॥੩॥ जा कउ तुम किरपाल भए सेवक से परवाना ॥३॥ जिस पर आपकी कृपा हो जाती है वह सेवक आपके दरबार में स्वीकार हो जाता है।॥ ३॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੋ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਪੀਵੈ ॥ अम्रित रसु हरि कीरतनो को विरला पीवै ॥ हरि का कीर्तन अमृत रस है, पर कोई विरला ही इस रस को पीता है।
ਵਜਹੁ ਨਾਨਕ ਮਿਲੈ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵੈ ॥੪॥੧੪॥੧੧੬॥ वजहु नानक मिलै एकु नामु रिद जपि जपि जीवै ॥४॥१४॥११६॥ हे नानक ! यदि मुझ गोविन्द के चाकर को वैतन के रूप में उसका एक नाम मिल जाए तो मैं अपने हृदय में नाम जप-जप कर जीवन जीता रहूँ॥ ४॥ १४॥ ११६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਹਉ ਚੇਰੁਲੀ ਸੋ ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ॥ जा प्रभ की हउ चेरुली सो सभ ते ऊचा ॥ हे सखियो ! मैं जिस परमात्मा की सेविका हूँ वह सबसे ऊँचा है।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਾ ਕਾ ਕਾਂਢੀਐ ਥੋਰਾ ਅਰੁ ਮੂਚਾ ॥੧॥ सभु किछु ता का कांढीऐ थोरा अरु मूचा ॥१॥ मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत है, उसका दिया हुआ ही कहलाता है॥१॥
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਨ ਮੇਰਾ ਧਨੋ ਸਾਹਿਬ ਕੀ ਮਨੀਆ ॥ जीअ प्रान मेरा धनो साहिब की मनीआ ॥ हे सखियो ! यह शरीर, प्राण एवं धन इत्यादि प्रभु की दी हुई देन मानती हूँ।
ਨਾਮਿ ਜਿਸੈ ਕੈ ਊਜਲੀ ਤਿਸੁ ਦਾਸੀ ਗਨੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ नामि जिसै कै ऊजली तिसु दासी गनीआ ॥१॥ रहाउ ॥ जिसके नाम से मैं उज्ज्वल हुई हूँ, मैं स्वयं को उसकी सेविका ही गिनती हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਅਨੰਦ ਮੈ ਨਾਉ ਮਾਣਕ ਹੀਰਾ ॥ वेपरवाहु अनंद मै नाउ माणक हीरा ॥ हे स्वामी ! आप बेपरवाह एवं आनंदमय है। आपका नाम मेरे लिए माणिक एवं हीरा है।
ਰਜੀ ਧਾਈ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਜਾ ਕਾ ਤੂੰ ਮੀਰਾ ॥੨॥ रजी धाई सदा सुखु जा का तूं मीरा ॥२॥ जिस जीव-स्त्री के आप स्वामी हैं, वह हमेशा संतुष्ट रहती है और सदा सुख मानती है॥२॥
ਸਖੀ ਸਹੇਰੀ ਸੰਗ ਕੀ ਸੁਮਤਿ ਦ੍ਰਿੜਾਵਉ ॥ सखी सहेरी संग की सुमति द्रिड़ावउ ॥ हे मेरी संगी सखी-सहेलियो ! मैं आपको एक सुमति समझाती हूँ।
ਸੇਵਹੁ ਸਾਧੂ ਭਾਉ ਕਰਿ ਤਉ ਨਿਧਿ ਹਰਿ ਪਾਵਉ ॥੩॥ सेवहु साधू भाउ करि तउ निधि हरि पावउ ॥३॥ आप श्रद्धा से साधुओं की सेवा करो व नाम रूपी निधि हरि को पा लो॥ ३॥
ਸਗਲੀ ਦਾਸੀ ਠਾਕੁਰੈ ਸਭ ਕਹਤੀ ਮੇਰਾ ॥ सगली दासी ठाकुरै सभ कहती मेरा ॥ सब जीव-स्त्रियाँ ठाकुर जी की दासियाँ हैं और सब उसे मेरा मालिक कहती हैं।
ਜਿਸਹਿ ਸੀਗਾਰੇ ਨਾਨਕਾ ਤਿਸੁ ਸੁਖਹਿ ਬਸੇਰਾ ॥੪॥੧੫॥੧੧੭॥ जिसहि सीगारे नानका तिसु सुखहि बसेरा ॥४॥१५॥११७॥ हे नानक ! परमेश्वर जिस जीवात्मा का जीवन सुन्दर बना देते हैं, उनका बसेरा सदैव सुखद है॥ ४॥ १५ ॥ ११७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸੰਤਾ ਕੀ ਹੋਇ ਦਾਸਰੀ ਏਹੁ ਅਚਾਰਾ ਸਿਖੁ ਰੀ ॥ संता की होइ दासरी एहु अचारा सिखु री ॥ हे सुन्दर आत्मा ! तू यह आचरण सीख ले कि तू संतजनों की दासी बनी रहे।
ਸਗਲ ਗੁਣਾ ਗੁਣ ਊਤਮੋ ਭਰਤਾ ਦੂਰਿ ਨ ਪਿਖੁ ਰੀ ॥੧॥ सगल गुणा गुण ऊतमो भरता दूरि न पिखु री ॥१॥ समस्त गुणों में सर्वोत्तम गुण यही है कि तू अपने प्राणनाथ को कहीं दूर मत देख॥ १॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਸੁੰਦਰਿ ਆਪਣਾ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਮਜੀਠੈ ਰੰਗਿ ਰੀ ॥ इहु मनु सुंदरि आपणा हरि नामि मजीठै रंगि री ॥ हे सुन्दरी ! तू अपने इस सुन्दर मन को मजीठ जैसे पक्के हरि-नाम के रंग से रंग ले।
ਤਿਆਗਿ ਸਿਆਣਪ ਚਾਤੁਰੀ ਤੂੰ ਜਾਣੁ ਗੁਪਾਲਹਿ ਸੰਗਿ ਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तिआगि सिआणप चातुरी तूं जाणु गुपालहि संगि री ॥१॥ रहाउ ॥ अपने अन्तर्मन से बुद्धिमता एवं चतुराई को छोड़कर जगत पालक प्रभु को अपने साथ समझ ॥ १॥ रहाउ॥
ਭਰਤਾ ਕਹੈ ਸੁ ਮਾਨੀਐ ਏਹੁ ਸੀਗਾਰੁ ਬਣਾਇ ਰੀ ॥ भरता कहै सु मानीऐ एहु सीगारु बणाइ री ॥ हे आत्मा ! प्राणनाथ प्रभु जो हुक्म करता है, उसे मानना चाहिए। इसे ही अपना श्रृंगार बना।
ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਵਿਸਾਰੀਐ ਏਹੁ ਤੰਬੋਲਾ ਖਾਇ ਰੀ ॥੨॥ दूजा भाउ विसारीऐ एहु त्मबोला खाइ री ॥२॥ प्रभु के अतिरिक्त दूसरा प्रेम भूल जा। तू यह पान खाया कर॥ २॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਰਿ ਦੀਪਕੋ ਇਹ ਸਤ ਕੀ ਸੇਜ ਬਿਛਾਇ ਰੀ ॥ गुर का सबदु करि दीपको इह सत की सेज बिछाइ री ॥ हे आत्मा ! गुरु के शब्द को अपना दीपक बना। इस सत्य की सेज बिछा।
ਆਠ ਪਹਰ ਕਰ ਜੋੜਿ ਰਹੁ ਤਉ ਭੇਟੈ ਹਰਿ ਰਾਇ ਰੀ ॥੩॥ आठ पहर कर जोड़ि रहु तउ भेटै हरि राइ री ॥३॥ जो जीव-स्त्री हाथ जोड़कर आठ पहर प्रभु के सम्मुख खड़ी रहती है, उसे जगत् के स्वामी हरि मिल जाते हैं।॥ ३॥
ਤਿਸ ਹੀ ਚਜੁ ਸੀਗਾਰੁ ਸਭੁ ਸਾਈ ਰੂਪਿ ਅਪਾਰਿ ਰੀ ॥ तिस ही चजु सीगारु सभु साई रूपि अपारि री ॥ केवल उसके पास ही शुभ-आचरण एवं सभी श्रृंगार हैं और वही अपार रूपवान है।
ਸਾਈ ਸੋੁਹਾਗਣਿ ਨਾਨਕਾ ਜੋ ਭਾਣੀ ਕਰਤਾਰਿ ਰੀ ॥੪॥੧੬॥੧੧੮॥ साई सोहागणि नानका जो भाणी करतारि री ॥४॥१६॥११८॥ हे नानक ! वही जीवात्मा सुहागिन है, जो प्रभु को प्यारी लगती है॥ ४॥ १६ ॥ ११८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਡੀਗਨ ਡੋਲਾ ਤਊ ਲਉ ਜਉ ਮਨ ਕੇ ਭਰਮਾ ॥ डीगन डोला तऊ लउ जउ मन के भरमा ॥ जब तक मेरे मन में भ्रम बने रहे, तब तक विकारों में गिरता और मोह में फंसकर डावांडोल होता रहा।
ਭ੍ਰਮ ਕਾਟੇ ਗੁਰਿ ਆਪਣੈ ਪਾਏ ਬਿਸਰਾਮਾ ॥੧॥ भ्रम काटे गुरि आपणै पाए बिसरामा ॥१॥ जब गुरु ने मेरे भ्रम निवृत्त कर दिए तो मुझे सुख उपलब्ध हो गया ॥ १॥
ਓਇ ਬਿਖਾਦੀ ਦੋਖੀਆ ਤੇ ਗੁਰ ਤੇ ਹੂਟੇ ॥ ओइ बिखादी दोखीआ ते गुर ते हूटे ॥ वे विवादास्पद कामादिक वैरी, सभी गुरु की कृपा से मुझ से दूर हो गए हैं।
ਹਮ ਛੂਟੇ ਅਬ ਉਨ੍ਹ੍ਹਾ ਤੇ ਓਇ ਹਮ ਤੇ ਛੂਟੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हम छूटे अब उन्हा ते ओइ हम ते छूटे ॥१॥ रहाउ ॥ मैंने अब उनसे मुक्ति प्राप्त कर ली है, वे सब हमारा पीछा छोड़ गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੇਰਾ ਤੇਰਾ ਜਾਨਤਾ ਤਬ ਹੀ ਤੇ ਬੰਧਾ ॥ मेरा तेरा जानता तब ही ते बंधा ॥ जब तक मैं भेदभाव की वृति को अपनाता रहा तो विकारों के बन्धन में फँसता रहा।
ਗੁਰਿ ਕਾਟੀ ਅਗਿਆਨਤਾ ਤਬ ਛੁਟਕੇ ਫੰਧਾ ॥੨॥ गुरि काटी अगिआनता तब छुटके फंधा ॥२॥ लेकिन जब गुरु ने अज्ञानता मिटा दी तो मााया के बन्धनों से मुक्ति मिल गई॥ २॥
ਜਬ ਲਗੁ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝਤਾ ਤਬ ਹੀ ਲਉ ਦੁਖੀਆ ॥ जब लगु हुकमु न बूझता तब ही लउ दुखीआ ॥ जब तक मैं प्रभु के आदेश को नहीं समझता था, तब तक मैं बहुत दुःखी होता रहा।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਤਬ ਹੀ ਤੇ ਸੁਖੀਆ ॥੩॥ गुर मिलि हुकमु पछाणिआ तब ही ते सुखीआ ॥३॥ जब से गुरु को मिलकर मैंने उसके आदेश को पहचान लिया है, तब से मैं सुखी हूँ॥ ३॥
ਨਾ ਕੋ ਦੁਸਮਨੁ ਦੋਖੀਆ ਨਾਹੀ ਕੋ ਮੰਦਾ ॥ ना को दुसमनु दोखीआ नाही को मंदा ॥ मेरा कोई दुश्मन अथवा बुरा चाहने वाला नहीं, न ही कोई मुझे बुरा लगता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੇਵਕੋ ਨਾਨਕ ਖਸਮੈ ਬੰਦਾ ॥੪॥੧੭॥੧੧੯॥ गुर की सेवा सेवको नानक खसमै बंदा ॥४॥१७॥११९॥ हे नानक ! जो सेवक गुरु की श्रद्धा से सेवा करता है, वह प्रभु का जीव है॥ ४॥ १७ ॥ ११६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨਦੁ ਘਣਾ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਉ ॥ सूख सहज आनदु घणा हरि कीरतनु गाउ ॥ मैं हरि का भजन-कीर्तन गाता रहता हूँ, जिससे मेरे मन में सहज सुख एवं आनंद बना रहता है।
ਗਰਹ ਨਿਵਾਰੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਦੇ ਅਪਣਾ ਨਾਉ ॥੧॥ गरह निवारे सतिगुरू दे अपणा नाउ ॥१॥ गुरु ने अपना नाम देकर नौ ग्रहों के संकट को दूर कर दिया है॥ १॥
ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਸਦ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ बलिहारी गुर आपणे सद सद बलि जाउ ॥ मैं अपने गुरु पर सदा बलिहारी जाता हूँ।


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