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ਪੁਤ੍ਰ ਕਲਤ੍ਰ ਗ੍ਰਿਹ ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਸਭ ਮਿਥਿਆ ਅਸਨਾਹਾ ॥੧॥
पुत्र कलत्र ग्रिह सगल समग्री सभ मिथिआ असनाहा ॥१॥
पुत्र, पत्नी और सांसारिक संपत्ति का प्रेम मिथ्या और क्षणभंगुर है। ॥ १॥
ਰੇ ਮਨ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਹੈ ਹਾ ਹਾ ॥
रे मन किआ करहि है हा हा ॥
हे मन ! तू इस समस्त दृश्य को देखकर व्यर्थ ही क्यों विचलित हो रहा है?
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਦੇਖੁ ਜੈਸੇ ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਇਕੁ ਰਾਮ ਭਜਨੁ ਲੈ ਲਾਹਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
द्रिसटि देखु जैसे हरिचंदउरी इकु राम भजनु लै लाहा ॥१॥ रहाउ ॥
अपने नेत्रों से देख कि यह समस्त वस्तुएँ राजा हरिश्चंद्र के नगर के समान ही क्षणिक और माया-मात्र हैं; अतः एकमात्र श्रीराम के भजन का लाभ प्राप्त कर ले। ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੈਸੇ ਬਸਤਰ ਦੇਹ ਓਢਾਨੇ ਦਿਨ ਦੋਇ ਚਾਰਿ ਭੋਰਾਹਾ ॥
जैसे बसतर देह ओढाने दिन दोइ चारि भोराहा ॥
हे मन ! जैसे शरीर पर पहने हुए वस्त्र दो-चार दिनों में पुराने हो जाते हैं, वैसे ही यह शरीर है।
ਭੀਤਿ ਊਪਰੇ ਕੇਤਕੁ ਧਾਈਐ ਅੰਤਿ ਓਰਕੋ ਆਹਾ ॥੨॥
भीति ऊपरे केतकु धाईऐ अंति ओरको आहा ॥२॥
कोई व्यक्ति दीवार पर कितनी देर दौड़ सकता है? अंततः उसे रुकना ही पड़ता है। इसी प्रकार, एक दिन हम भी अपनी पूर्व-निर्धारित श्वासों की अंतिम सीमा तक पहुँच जाते हैं।॥ २॥
ਜੈਸੇ ਅੰਭ ਕੁੰਡ ਕਰਿ ਰਾਖਿਓ ਪਰਤ ਸਿੰਧੁ ਗਲਿ ਜਾਹਾ ॥
जैसे अंभ कुंड करि राखिओ परत सिंधु गलि जाहा ॥
हे मन ! जैसे कुण्ड में रखे हुए जल में गिर कर नमक गल जाता है, वैसे ही यह शरीर है।
ਆਵਗਿ ਆਗਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਉਠਿ ਜਾਸੀ ਮੁਹਤ ਚਸਾਹਾ ॥੩॥
आवगि आगिआ पारब्रहम की उठि जासी मुहत चसाहा ॥३॥
जब पारब्रह्म की आज्ञा आती है तो एक क्षण एवं पल में ही प्राणी दुनिया छोड़ कर चला जाता है॥ ३॥
ਰੇ ਮਨ ਲੇਖੈ ਚਾਲਹਿ ਲੇਖੈ ਬੈਸਹਿ ਲੇਖੈ ਲੈਦਾ ਸਾਹਾ ॥
रे मन लेखै चालहि लेखै बैसहि लेखै लैदा साहा ॥
हे मन ! तुम अपनी गिनी-चुनी सांसों के भीतर ही संसार में चलते-फिरते हो और भगवान् के लिखे लेख अनुसार ही तुम सांस लेते हो।
ਸਦਾ ਕੀਰਤਿ ਕਰਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਉਬਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣ ਓਟਾਹਾ ॥੪॥੧॥੧੨੩॥
सदा कीरति करि नानक हरि की उबरे सतिगुर चरण ओटाहा ॥४॥१॥१२३॥
हे नानक ! सदैव ही भगवान् की कीर्ति करो। जिन्होंने सच्चे गुरु की शरण ली है, वे भवसागर में डूबने से बच गए हैं।॥ ४॥ १॥ १२३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅਪੁਸਟ ਬਾਤ ਤੇ ਭਈ ਸੀਧਰੀ ਦੂਤ ਦੁਸਟ ਸਜਨਈ ॥
अपुसट बात ते भई सीधरी दूत दुसट सजनई ॥
मेरे द्वारा किए गए सभी भूलें भी ईश्वर की कृपा से सही दिशा में परिणत हो गईं, और मेरे कामादि सभी शत्रु अब मेरे मित्र बन गए हैं।
ਅੰਧਕਾਰ ਮਹਿ ਰਤਨੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿਓ ਮਲੀਨ ਬੁਧਿ ਹਛਨਈ ॥੧॥
अंधकार महि रतनु प्रगासिओ मलीन बुधि हछनई ॥१॥
मेरे मन के अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान रूपी रत्न आलोकित हो गया है और मलिन बुद्धि भी अब निर्मल हो गई है॥ १ ॥
ਜਉ ਕਿਰਪਾ ਗੋਬਿੰਦ ਭਈ ॥
जउ किरपा गोबिंद भई ॥
जब जगतपालक गोबिन्द कृपालु हो गए तो
ਸੁਖ ਸੰਪਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਫਲ ਪਾਏ ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सुख स्मपति हरि नाम फल पाए सतिगुर मिलई ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु से मिलकर मुझे सुख, सम्पति एवं हरि-नाम का फल प्राप्त हो गए॥ १॥ रहाउ॥
ਮੋਹਿ ਕਿਰਪਨ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਜਾਨਤ ਸਗਲ ਭਵਨ ਪ੍ਰਗਟਈ ॥
मोहि किरपन कउ कोइ न जानत सगल भवन प्रगटई ॥
मुझ कृपण को कोई नहीं जानता था लेकिन अब मैं सभी लोकों में लोकप्रिय हो गया हूँ।
ਸੰਗਿ ਬੈਠਨੋ ਕਹੀ ਨ ਪਾਵਤ ਹੁਣਿ ਸਗਲ ਚਰਣ ਸੇਵਈ ॥੨॥
संगि बैठनो कही न पावत हुणि सगल चरण सेवई ॥२॥
पहले कोई भी मुझे अपने पास बैठने नहीं देता था परन्तु अब सारा संसार मेरे चरणों की सेवा करता है॥ २॥
ਆਢ ਆਢ ਕਉ ਫਿਰਤ ਢੂੰਢਤੇ ਮਨ ਸਗਲ ਤ੍ਰਿਸਨ ਬੁਝਿ ਗਈ ॥
आढ आढ कउ फिरत ढूंढते मन सगल त्रिसन बुझि गई ॥
पहले मैं आधे-आधे पैसे की खोज में भटकता रहता था परन्तु अब मेरे मन की तृष्णा बुझ गई है।
ਏਕੁ ਬੋਲੁ ਭੀ ਖਵਤੋ ਨਾਹੀ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਸੀਤਲਈ ॥੩॥
एकु बोलु भी खवतो नाही साधसंगति सीतलई ॥३॥
पहले मैं किसी का एक कटु बचन भी सहन नहीं कर पाता था, पर अब सत्संगति के प्रभाव से सहनशील हो गया हूँ॥ ३॥
ਏਕ ਜੀਹ ਗੁਣ ਕਵਨ ਵਖਾਨੈ ਅਗਮ ਅਗਮ ਅਗਮਈ ॥
एक जीह गुण कवन वखानै अगम अगम अगमई ॥
प्रभु के कौन-कौन से गुण एक जिह्वा से व्यक्त करूँ? क्योंकि वह तो अगम्य एवं अपरंपार है।
ਦਾਸੁ ਦਾਸ ਦਾਸ ਕੋ ਕਰੀਅਹੁ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਸਰਣਈ ॥੪॥੨॥੧੨੪॥
दासु दास दास को करीअहु जन नानक हरि सरणई ॥४॥२॥१२४॥
नानक एक-यही प्रार्थना करता है कि हे हरि ! मैं आपकी शरण में आया हूँ, इसलिए मुझे अपने दासों का दास बना दे ॥ ४ ॥ २ ॥ १२४ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਰੇ ਮੂੜੇ ਲਾਹੇ ਕਉ ਤੂੰ ਢੀਲਾ ਢੀਲਾ ਤੋਟੇ ਕਉ ਬੇਗਿ ਧਾਇਆ ॥
रे मूड़े लाहे कउ तूं ढीला ढीला तोटे कउ बेगि धाइआ ॥
हे मूर्ख ! तू प्रभु-नाम जैसे आत्मिक धन को कमाने में तो आलसी है, परंतु बुराइयों में पड़कर उसे खोने में कितनी तेजी दिखाता है!
ਸਸਤ ਵਖਰੁ ਤੂੰ ਘਿੰਨਹਿ ਨਾਹੀ ਪਾਪੀ ਬਾਧਾ ਰੇਨਾਇਆ ॥੧॥
ससत वखरु तूं घिंनहि नाही पापी बाधा रेनाइआ ॥१॥
हे पापी ! तू परमात्मा के नाम जैसे अनमोल धन को छोड़कर, वासनाओं और विकारों के कर्ज़ में क्यों जकड़ गया है?॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇਰੀ ਆਸਾਇਆ ॥
सतिगुर तेरी आसाइआ ॥
हे मेरे सतगुरु ! मुझे आपकी ही आशा है।
ਪਤਿਤ ਪਾਵਨੁ ਤੇਰੋ ਨਾਮੁ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮੈ ਏਹਾ ਓਟਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पतित पावनु तेरो नामु पारब्रहम मै एहा ओटाइआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे पारब्रह्म ! आपका नाम पतितों को पावन करने वाला है। केवल यही मेरी ओट है॥ १॥ रहाउ ॥
ਗੰਧਣ ਵੈਣ ਸੁਣਹਿ ਉਰਝਾਵਹਿ ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਅਲਕਾਇਆ ॥
गंधण वैण सुणहि उरझावहि नामु लैत अलकाइआ ॥
हे मूर्ख ! अश्लील गीत सुनकर तुम मस्त हो जाते हो परन्तुं प्रभु का नाम-स्मरण करने में तुम आलस्य करते हो।
ਨਿੰਦ ਚਿੰਦ ਕਉ ਬਹੁਤੁ ਉਮਾਹਿਓ ਬੂਝੀ ਉਲਟਾਇਆ ॥੨॥
निंद चिंद कउ बहुतु उमाहिओ बूझी उलटाइआ ॥२॥
किसी की निंदा की कल्पना से तुम बहुत प्रसन्न होते हो परन्तु तेरी यह बुद्धि विपरीत है॥ २॥
ਪਰ ਧਨ ਪਰ ਤਨ ਪਰ ਤੀ ਨਿੰਦਾ ਅਖਾਧਿ ਖਾਹਿ ਹਰਕਾਇਆ ॥
पर धन पर तन पर ती निंदा अखाधि खाहि हरकाइआ ॥
हे मूर्ख! तू पागल हो गया है क्योंकि तू निरर्थक, स्वादहीन भोजन करता है, दूसरों की निंदा में लगा रहता है, और परधन व परस्त्री पर कुदृष्टि डालता है।
ਸਾਚ ਧਰਮ ਸਿਉ ਰੁਚਿ ਨਹੀ ਆਵੈ ਸਤਿ ਸੁਨਤ ਛੋਹਾਇਆ ॥੩॥
साच धरम सिउ रुचि नही आवै सति सुनत छोहाइआ ॥३॥
हे मूर्ख ! सच्चे धर्म के साथ तुम्हारी कोई रुचि नहीं और सत्य को सुनकर तुम क्रुद्ध हो जाते हो ॥ ३॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰਭ ਠਾਕੁਰ ਭਗਤ ਟੇਕ ਹਰਿ ਨਾਇਆ ॥
दीन दइआल क्रिपाल प्रभ ठाकुर भगत टेक हरि नाइआ ॥
हे दीन दयाल ! हे कृपालु प्रभु-ठाकुर ! आपके भक्तों को आपका हरि नाम का ही सहारा है।
ਨਾਨਕ ਆਹਿ ਸਰਣ ਪ੍ਰਭ ਆਇਓ ਰਾਖੁ ਲਾਜ ਅਪਨਾਇਆ ॥੪॥੩॥੧੨੫॥
नानक आहि सरण प्रभ आइओ राखु लाज अपनाइआ ॥४॥३॥१२५॥
हे प्रभु ! नानक ने बड़ी आशा से आपकी शरण ली है, उसे अपना बनाकर उसकी लाज रख लो॥ ४॥ ३ ॥ १२५ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਿਥਿਆ ਸੰਗਿ ਸੰਗਿ ਲਪਟਾਏ ਮੋਹ ਮਾਇਆ ਕਰਿ ਬਾਧੇ ॥
मिथिआ संगि संगि लपटाए मोह माइआ करि बाधे ॥
मनुष्य नश्वर पदार्थों तथा कुसंगति में लिपटा हुआ है। वह माया के मोह में फँसा रहता है।
ਜਹ ਜਾਨੋ ਸੋ ਚੀਤਿ ਨ ਆਵੈ ਅਹੰਬੁਧਿ ਭਏ ਆਂਧੇ ॥੧॥
जह जानो सो चीति न आवै अह्मबुधि भए आंधे ॥१॥
जहाँ उसने जाना है, उसे वह स्मरण ही नहीं करता। वह अपनी अहंबुद्धि के कारण अन्धा बना रहता है॥ १॥
ਮਨ ਬੈਰਾਗੀ ਕਿਉ ਨ ਅਰਾਧੇ ॥
मन बैरागी किउ न अराधे ॥
हे मेरे वैरागी मन ! तू प्रभु का सिमरन क्यों नहीं करता ?
ਕਾਚ ਕੋਠਰੀ ਮਾਹਿ ਤੂੰ ਬਸਤਾ ਸੰਗਿ ਸਗਲ ਬਿਖੈ ਕੀ ਬਿਆਧੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
काच कोठरी माहि तूं बसता संगि सगल बिखै की बिआधे ॥१॥ रहाउ ॥
तू काया रूपी कच्ची कोठरी में रहता है। तेरे साथ तमाम पापों के रोग लिपटे हुए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਤ ਦਿਨੁ ਰੈਨਿ ਬਿਹਾਵੈ ਪਲੁ ਖਿਨੁ ਛੀਜੈ ਅਰਜਾਧੇ ॥
मेरी मेरी करत दिनु रैनि बिहावै पलु खिनु छीजै अरजाधे ॥
मेरा-मेरा करते-करते दिन-रात बीत जाते हैं। प्रत्येक पल एवं क्षण तेरी उम्र बीतती जा रही है ।