Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 383

Page 383

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु : ५ ॥
ਆਗੈ ਹੀ ਤੇ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੂਆ ਅਵਰੁ ਕਿ ਜਾਣੈ ਗਿਆਨਾ ॥ आगै ही ते सभु किछु हूआ अवरु कि जाणै गिआना ॥ सबकुछ पहले से ही नियत (किया) हुआ है। सोच-विचार, ज्ञान के द्वारा इससे अधिक क्या जाना जा सकता है ?
ਭੂਲ ਚੂਕ ਅਪਨਾ ਬਾਰਿਕੁ ਬਖਸਿਆ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਭਗਵਾਨਾ ॥੧॥ भूल चूक अपना बारिकु बखसिआ पारब्रहम भगवाना ॥१॥ पारब्रह्म भगवान् ने अपने बालक की भूल-चूक को क्षमा कर दिया है॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸਦਾ ਦਇਆਲਾ ਮੋਹਿ ਦੀਨ ਕਉ ਰਾਖਿ ਲੀਆ ॥ सतिगुरु मेरा सदा दइआला मोहि दीन कउ राखि लीआ ॥ मेरे सतगुरु मुझ पर सदैव ही दयालु है। उन्होंने मुझ दीन को आध्यात्मिक पतन से बचा लिया है।
ਕਾਟਿਆ ਰੋਗੁ ਮਹਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਦੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ काटिआ रोगु महा सुखु पाइआ हरि अम्रितु मुखि नामु दीआ ॥१॥ रहाउ ॥ सच्चे गुरु ने जब मुझे भगवान् के नाम का अमृत दिया, तब मेरे भीतर के दुर्गुणों की व्याधि समाप्त हो गई और आत्मा को दिव्य शांति का वरदान मिला। ॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਪਾਪ ਮੇਰੇ ਪਰਹਰਿਆ ਬੰਧਨ ਕਾਟੇ ਮੁਕਤ ਭਏ ॥ अनिक पाप मेरे परहरिआ बंधन काटे मुकत भए ॥ हे बन्धु! सतगुरु ने मेरे अनेक पाप काट दिए हैं, मेरे विकारों के बन्धन काट दिए हैं और मुझे मोक्ष मिल गया है।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਾ ਘੋਰ ਤੇ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਗੁਰਿ ਕਾਢਿ ਲੀਏ ॥੨॥ अंध कूप महा घोर ते बाह पकरि गुरि काढि लीए ॥२॥ गुरु ने मेरी भुजा पकड़कर मुझे मोह-माया के महा भयानक गहरे अंधकूप से बाहर निकाल लिया है। ॥ २॥
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਸਗਲ ਭਉ ਮਿਟਿਆ ਰਾਖੇ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥ निरभउ भए सगल भउ मिटिआ राखे राखनहारे ॥ ईश्वर, मेरे रक्षक ने मुझे सभी बुराइयों से सुरक्षित रखा है; माया के प्रहार से मेरा भय मिट गया है और अब मैं पूर्णतः निर्भय हो गया हूँ।
ਐਸੀ ਦਾਤਿ ਤੇਰੀ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਕਾਰਜ ਸਗਲ ਸਵਾਰੇ ॥੩॥ ऐसी दाति तेरी प्रभ मेरे कारज सगल सवारे ॥३॥ हे मेरे प्रभु ! मुझ पर आपकी ऐसी अनुकंपा हुई है कि मेरे सभी आध्यात्मिक कार्य सम्पूर्ण हो गए हैं।॥ ३॥
ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਸਾਹਿਬ ਮਨਿ ਮੇਲਾ ॥ गुण निधान साहिब मनि मेला ॥ हे नानक ! गुणनिधान प्रभु का मेरे हदय में मिलन हो गया है और
ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਨਾਨਕ ਸੋੁਹੇਲਾ ॥੪॥੯॥੪੮॥ सरणि पइआ नानक सोहेला ॥४॥९॥४८॥ उसकी शरण लेने से मैं सुखी हो गया हूँ॥ ४॥ ६॥ ४८ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਤੂੰ ਵਿਸਰਹਿ ਤਾਂ ਸਭੁ ਕੋ ਲਾਗੂ ਚੀਤਿ ਆਵਹਿ ਤਾਂ ਸੇਵਾ ॥ तूं विसरहि तां सभु को लागू चीति आवहि तां सेवा ॥ हे जगत् के रचयिता ! जब आपको भूल जाता है तो हर कोई मेरा शत्रु बन जाता है परन्तु जब मैं आपका नाम याद करता हूँ तो सभी मेरी सेवा-सत्कार करते हैं।
ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਊ ਦੂਜਾ ਸੂਝੈ ਸਾਚੇ ਅਲਖ ਅਭੇਵਾ ॥੧॥ अवरु न कोऊ दूजा सूझै साचे अलख अभेवा ॥१॥ हे सत्य के पुंज, अलक्ष्य, अभेद परमात्मा ! आपके बिना मैं किसी को नहीं जानता ॥ १॥
ਚੀਤਿ ਆਵੈ ਤਾਂ ਸਦਾ ਦਇਆਲਾ ਲੋਗਨ ਕਿਆ ਵੇਚਾਰੇ ॥ चीति आवै तां सदा दइआला लोगन किआ वेचारे ॥ हे साहिब! जब भी मैं आपको हृदय में स्मरण करता हूँ, आपको सदैव दयालु और कृपालु ही पाता हूँ। ऐसे में दीन-दुर्बल लोग मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं?
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਕਹੁ ਕਿਸ ਨੋ ਕਹੀਐ ਸਗਲੇ ਜੀਅ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ बुरा भला कहु किस नो कहीऐ सगले जीअ तुम्हारे ॥१॥ रहाउ ॥ जब सभी जीव आपके ही पैदा किए हुए हैं तो फिर बतलाओ मैं किसे बुरा अथवा किसे भला कह सकता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਤੇਰੀ ਟੇਕ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰਾ ਹਾਥ ਦੇਇ ਤੂੰ ਰਾਖਹਿ ॥ तेरी टेक तेरा आधारा हाथ देइ तूं राखहि ॥ हे स्वामी ! आपका ही आश्रय है, आप ही मेरा आधार है। अपना हाथ देकर आप मेरी रक्षा करते हो।
ਜਿਸੁ ਜਨ ਊਪਰਿ ਤੇਰੀ ਕਿਰਪਾ ਤਿਸ ਕਉ ਬਿਪੁ ਨ ਕੋਊ ਭਾਖੈ ॥੨॥ जिसु जन ऊपरि तेरी किरपा तिस कउ बिपु न कोऊ भाखै ॥२॥ जिस भक्त पर आपकी कृपा है, उसे कोई दुःख-क्लेश निगल नहीं सकता॥ २॥
ਓਹੋ ਸੁਖੁ ਓਹਾ ਵਡਿਆਈ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥ ओहो सुखु ओहा वडिआई जो प्रभ जी मनि भाणी ॥ हे प्रभु जी ! जो बात आपक अपने मन में अच्छी लगती है, वही मेरे लिए सुख है, वही मेरे लिए मान-प्रतिष्ठा है।
ਤੂੰ ਦਾਨਾ ਤੂੰ ਸਦ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀ ॥੩॥ तूं दाना तूं सद मिहरवाना नामु मिलै रंगु माणी ॥३॥ हे मालिक ! आप चतुर हो, आप सदैव ही दयावान हो। आपका नाम प्राप्त करके मैं सुख भोगता हूँ॥ ३ ॥
ਤੁਧੁ ਆਗੈ ਅਰਦਾਸਿ ਹਮਾਰੀ ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ॥ तुधु आगै अरदासि हमारी जीउ पिंडु सभु तेरा ॥ आपके समक्ष मेरी यही प्रार्थना है मेरे प्राण एवं शरीर सभी आपकी ही देन हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਭ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਕੋਈ ਨਾਉ ਨ ਜਾਣੈ ਮੇਰਾ ॥੪॥੧੦॥੪੯॥ कहु नानक सभ तेरी वडिआई कोई नाउ न जाणै मेरा ॥४॥१०॥४९॥ नानक कहते हैं कि हे प्रभु! आपके बिना तो कोई मेरा नाम तक नहीं जानता। इसलिए जो भी मान-सम्मान मुझे मिलता है, वह सब आपकी ही महिमा है। ॥ ४॥ १०॥ ४६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ॥ करि किरपा प्रभ अंतरजामी साधसंगि हरि पाईऐ ॥ हे अन्तर्यामी प्रभु ! ऐसी कृपा करो तांकि साधसंगत में रहने से हरि मिल जाए।
ਖੋਲਿ ਕਿਵਾਰ ਦਿਖਾਲੇ ਦਰਸਨੁ ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਈਐ ॥੧॥ खोलि किवार दिखाले दरसनु पुनरपि जनमि न आईऐ ॥१॥ यदि अज्ञानता के कपाट खोलकर प्रभु अपना दर्शन कराते हैं तो प्राणी दोबारा जन्मों के चक्र में नहीं पड़ता॥ १॥
ਮਿਲਉ ਪਰੀਤਮ ਸੁਆਮੀ ਅਪੁਨੇ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਹਰਉ ਰੇ ॥ मिलउ परीतम सुआमी अपुने सगले दूख हरउ रे ॥ यदि प्रियतम स्वामी से मिलन हो जाए तो अपने सभी दुःख दूर कर लूं।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਿ ਰਿਦੈ ਅਰਾਧਿਆ ਤਾ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰਉ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पारब्रहमु जिन्हि रिदै अराधिआ ता कै संगि तरउ रे ॥१॥ रहाउ ॥ जिन्होंने अपने हृदय में परमात्मा की आराधना की है, उनकी संगति करने से शायद में भी भवसागर से पार हो जाऊँ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਹਾ ਉਦਿਆਨ ਪਾਵਕ ਸਾਗਰ ਭਏ ਹਰਖ ਸੋਗ ਮਹਿ ਬਸਨਾ ॥ महा उदिआन पावक सागर भए हरख सोग महि बसना ॥ यह संसार एक महा भयानक जंगल एवं अग्नि का सागर है, जिसमें प्राणी हमेशा हर्ष-शोक में बसते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿ ਭਇਆ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਜਪਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ॥੨॥ सतिगुरु भेटि भइआ मनु निरमलु जपि अम्रितु हरि रसना ॥२॥ सतगुरु को मिलने से मन निर्मल हो गया है और रसना हरि-नामामृत का जाप करती है॥ २॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਥਾਪਿ ਕੀਓ ਸਭੁ ਅਪਨਾ ਕੋਮਲ ਬੰਧਨ ਬਾਂਧਿਆ ॥ तनु धनु थापि कीओ सभु अपना कोमल बंधन बांधिआ ॥ हे भाई ! इस तन एवं धन को अपना मानकर मनुष्य (मोह-माया के) मधुर-मीठे बन्धनों में बंधे रहते हैं।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਭਏ ਜਨ ਮੁਕਤੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿਆ ॥੩॥ गुर परसादि भए जन मुकते हरि हरि नामु अराधिआ ॥३॥ लेकिन जिन लोगों ने हरि-परमेश्वर के नाम की आराधना की है, वे गुरु की दया से बन्धनों से मुक्ति प्राप्त कर गए हैं।॥ ३॥
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖਨਹਾਰੈ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਅਪੁਨੇ ਭਾਣੇ ॥ राखि लीए प्रभि राखनहारै जो प्रभ अपुने भाणे ॥ रक्षक प्रभु उनकी रक्षा करते हैं, जो अपने प्रभु को भले लगते हैं।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰਾ ਦਾਤੇ ਨਾਨਕ ਸਦ ਕੁਰਬਾਣੇ ॥੪॥੧੧॥੫੦॥ जीउ पिंडु सभु तुम्हरा दाते नानक सद कुरबाणे ॥४॥११॥५०॥ नानक कहते हैं कि हे दाता प्रभु ! यह आत्मा एवं शरीर सब आपका दिया हुआ है, मैं आप पर सदैव बलिहारी हूँ॥ ४॥ ११॥ ५०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮੋਹ ਮਲਨ ਨੀਦ ਤੇ ਛੁਟਕੀ ਕਉਨੁ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਭਇਓ ਰੀ ॥ मोह मलन नीद ते छुटकी कउनु अनुग्रहु भइओ री ॥ हे जीव रूपी नारी ! तुझ पर कौन-सी करुणा-दृष्टि हुई है कि तू मन को मैला करने वाली मोह की नींद से छूट गई है।
ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਤੁਧੁ ਨ ਵਿਆਪੈ ਤੇਰਾ ਆਲਸੁ ਕਹਾ ਗਇਓ ਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ महा मोहनी तुधु न विआपै तेरा आलसु कहा गइओ री ॥१॥ रहाउ ॥ महा मोहिनी तुझे प्रभावित नहीं करती, तेरा आलस्य किधर चला गया है ? ॥ १॥ रहाउ॥


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