Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 382

Page 382

ਸੋਈ ਅਜਾਣੁ ਕਹੈ ਮੈ ਜਾਨਾ ਜਾਨਣਹਾਰੁ ਨ ਛਾਨਾ ਰੇ ॥ सोई अजाणु कहै मै जाना जानणहारु न छाना रे ॥ जो यह कहता है कि उसने ईश्वर को जान लिया है, वह वास्तव में अब भी अज्ञान में है;सच्चा ज्ञानी तो स्वयं कुछ नहीं कहता, लेकिन उसकी अनुभूति अधिक देर तक छिपी नहीं रहती।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਅਮਿਉ ਪੀਆਇਆ ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਬਿਗਸਾਨਾ ਰੇ ॥੪॥੫॥੪੪॥ कहु नानक गुरि अमिउ पीआइआ रसकि रसकि बिगसाना रे ॥४॥५॥४४॥ हे नानक ! गुरु ने मुझे अमृतरस पिलाया है। प्रभु के प्रेम-रस में भीगकर अब मैं आनंदित हो गया हूँ॥ ४॥ ५॥ ४४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਬਿਸਾਰੇ ਅਉਗਨ ਅਪਨਾ ਬਿਰਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਰਿਆ ॥ बंधन काटि बिसारे अउगन अपना बिरदु सम्हारिआ ॥ परमात्मा ने मेरे (माया संबंधी) बन्धन काट दिए हैं, मेरे अवगुण भुला दिए हैं और इस प्रकार अपने विरद् की पालना की है।
ਹੋਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਮਾਤ ਪਿਤ ਨਿਆਈ ਬਾਰਿਕ ਜਿਉ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰਿਆ ॥੧॥ होए क्रिपाल मात पित निआई बारिक जिउ प्रतिपारिआ ॥१॥ वह माता-पिता की भाँति मुझ पर कृपालु हुए हैं और उन्होंने अपनी संतान की भाँति मेरा पालन-पोषण किया है॥ १॥
ਗੁਰਸਿਖ ਰਾਖੇ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਿ ॥ गुरसिख राखे गुर गोपालि ॥ गुरु-परमेश्वर ने अपने सिक्खों की रक्षा की है और
ਕਾਢਿ ਲੀਏ ਮਹਾ ਭਵਜਲ ਤੇ ਅਪਨੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ काढि लीए महा भवजल ते अपनी नदरि निहालि ॥१॥ रहाउ ॥ अपनी दया-दृष्टि से उन्हें विषम संसार-सागर में से बाहर निकाल लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਜਮ ਤੇ ਛੁਟੀਐ ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥ जा कै सिमरणि जम ते छुटीऐ हलति पलति सुखु पाईऐ ॥ जिस परमात्मा का सिमरन करने से हमें मृत्यु से मुक्ति मिल जाती है और लोक-परलोक में सुख मिलता है,"
ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਜਪਹੁ ਜਪੁ ਰਸਨਾ ਨੀਤ ਨੀਤ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ॥੨॥ सासि गिरासि जपहु जपु रसना नीत नीत गुण गाईऐ ॥२॥ हे भाई ! प्रत्येक सांस एवं ग्रास द्वारा प्रभु नाम का रसना से जाप जपते रहना चाहिए और नित्य ही उसका गुणगान करना चाहिए॥ २॥
ਭਗਤਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਸਾਧਸੰਗਿ ਦੁਖ ਨਾਠੇ ॥ भगति प्रेम परम पदु पाइआ साधसंगि दुख नाठे ॥ प्रभु की प्रेम-भक्ति से मुझे परम पद मिल गया है और साधु की संगति से दुःख दूर हो गए हैं।
ਛਿਜੈ ਨ ਜਾਇ ਕਿਛੁ ਭਉ ਨ ਬਿਆਪੇ ਹਰਿ ਧਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਗਾਠੇ ॥੩॥ छिजै न जाइ किछु भउ न बिआपे हरि धनु निरमलु गाठे ॥३॥ मैंने निर्मल हरि नाम रूपी धन अपनी गांठ में बांध लिया है। इस हरि नाम रूपी धन का कभी नाश नहीं होता, न ही यह कहीं गुम होता है और न ही इसे चोर इत्यादि का डर होता है॥ ३॥
ਅੰਤਿ ਕਾਲ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਸਹਾਈ ਇਤ ਉਤ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥ अंति काल प्रभ भए सहाई इत उत राखनहारे ॥ लोक-परलोक में रक्षा करने वाले प्रभु अन्तकाल तक सहायक होता है।
ਪ੍ਰਾਨ ਮੀਤ ਹੀਤ ਧਨੁ ਮੇਰੈ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੇ ॥੪॥੬॥੪੫॥ प्रान मीत हीत धनु मेरै नानक सद बलिहारे ॥४॥६॥४५॥ हे नानक ! प्रभु ही मेरे प्राण, मित्र, शुभचिंतक एवं धन-दौलत है। मैं सदा ही उन पर बलिहारी जाता हूँ॥ ४॥ ६॥ ४५॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਤੂੰ ਸਾਹਿਬੁ ਤਾ ਭਉ ਕੇਹਾ ਹਉ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਕਿਸੁ ਸਾਲਾਹੀ ॥ जा तूं साहिबु ता भउ केहा हउ तुधु बिनु किसु सालाही ॥ हे परमपिता ! जब आप मेरे मालिक हैं तो फिर मुझे डर कैसा ? आपके अतिरिक्त मैं किसकी स्तुति करूँ?
ਏਕੁ ਤੂੰ ਤਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੈ ਮੈ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ॥੧॥ एकु तूं ता सभु किछु है मै तुधु बिनु दूजा नाही ॥१॥ जब एकआप ही मेरे हैं, तो मेरे पास सब कुछ है आपके अतिरिक्त मेरा अन्य कोई नहीं॥ १॥
ਬਾਬਾ ਬਿਖੁ ਦੇਖਿਆ ਸੰਸਾਰੁ ॥ बाबा बिखु देखिआ संसारु ॥ हे बाबा ! मैंने देख लिया है कि यह संसार विष रूप है।
ਰਖਿਆ ਕਰਹੁ ਗੁਸਾਈ ਮੇਰੇ ਮੈ ਨਾਮੁ ਤੇਰਾ ਆਧਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ रखिआ करहु गुसाई मेरे मै नामु तेरा आधारु ॥१॥ रहाउ ॥ हे गुसाई ! मेरी रक्षा कीजिए, आपका नाम ही मेरे जीवन का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾਣਹਿ ਬਿਰਥਾ ਸਭਾ ਮਨ ਕੀ ਹੋਰੁ ਕਿਸੁ ਪਹਿ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ॥ जाणहि बिरथा सभा मन की होरु किसु पहि आखि सुणाईऐ ॥ हे नाथ ! आप मेरे मन की प्रत्येक अवस्था जानते हो। इसलिए, मैं किसके पास जाकर इसे कहूँ एवं सुनाऊँ ?"
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਜਗੁ ਬਉਰਾਇਆ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥੨॥ विणु नावै सभु जगु बउराइआ नामु मिलै सुखु पाईऐ ॥२॥ नाम के बिना समूचा जगत बावला हो गया है। यदि प्रभु नाम मिल जाए तो यह सुख पाता है॥ २॥
ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਕਿਸੁ ਆਖਿ ਸੁਣਾਈਐ ਜਿ ਕਹਣਾ ਸੁ ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਪਾਸਿ ॥ किआ कहीऐ किसु आखि सुणाईऐ जि कहणा सु प्रभ जी पासि ॥ मैं क्या कहूँ? मैं अपनी अवस्था किसे बताऊँ ? जो कुछ मैं कहना चाहता हूँ, वह मैं अपने प्रभु जी के पास कहता हूँ।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਕੀਤਾ ਤੇਰਾ ਵਰਤੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੇਰੀ ਆਸ ॥੩॥ सभु किछु कीता तेरा वरतै सदा सदा तेरी आस ॥३॥ हे प्रभु! जो कुछ भी संसार में घटता है, वह आपके ही संकल्प से होता है। मैं सदा आपकी कृपा की आशा में जीवित हूँ। ३॥
ਜੇ ਦੇਹਿ ਵਡਿਆਈ ਤਾ ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਇਤ ਉਤ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਉ ॥ जे देहि वडिआई ता तेरी वडिआई इत उत तुझहि धिआउ ॥ यदि आप मान-प्रतिष्ठा प्रदान करते हो तो यह आपकी मान-प्रतिष्ठा है। लोक-परलोक में मैं आपको ही याद करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤੇ ਮੈ ਤਾਣੁ ਤੇਰਾ ਇਕੁ ਨਾਉ ॥੪॥੭॥੪੬॥ नानक के प्रभ सदा सुखदाते मै ताणु तेरा इकु नाउ ॥४॥७॥४६॥ नानक का प्रभु सदैव ही सुखदाता है। आपका नाम ही मेरा बल है॥ ४॥ ७॥ ४६ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਠਾਕੁਰ ਏਹੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਜਨਹਿ ਪੀਓ ॥ अम्रितु नामु तुम्हारा ठाकुर एहु महा रसु जनहि पीओ ॥ हे मेरे ठाकुर ! आपका नाम अमृत है और यह महा रस आपके सेवक ने पान किया है।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਚੂਕੇ ਭੈ ਭਾਰੇ ਦੁਰਤੁ ਬਿਨਾਸਿਓ ਭਰਮੁ ਬੀਓ ॥੧॥ जनम जनम चूके भै भारे दुरतु बिनासिओ भरमु बीओ ॥१॥ मेरे जन्म-जन्मांतरों के पापों का भयानक बोझ नष्ट हो गया है और द्वैतवाद की दुविधा भी चली गई है॥ १॥
ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਮੈ ਜੀਓ ॥ दरसनु पेखत मै जीओ ॥ हे मालिक !आपके दर्शन करके मैं जीवित रहता हूँ।
ਸੁਨਿ ਕਰਿ ਬਚਨ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਨੁ ਤਨੁ ਮੇਰਾ ਠਾਰੁ ਥੀਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सुनि करि बचन तुम्हारे सतिगुर मनु तनु मेरा ठारु थीओ ॥१॥ रहाउ ॥ हे मेरे सच्चे गुरु ! आपके वचन सुनने से मेरा मन एवं तन शीतल हो गए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਭਇਓ ਸਾਧਸੰਗੁ ਏਹੁ ਕਾਜੁ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਆਪਿ ਕੀਓ ॥ तुम्हरी क्रिपा ते भइओ साधसंगु एहु काजु तुम्ह आपि कीओ ॥ हे परमेश्वर ! आपकी कृपा से मुझे साधसंगत मिली है और यह शुभ कार्य आपने स्वयं ही किया है।
ਦਿੜੁ ਕਰਿ ਚਰਣ ਗਹੇ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੇ ਸਹਜੇ ਬਿਖਿਆ ਭਈ ਖੀਓ ॥੨॥ दिड़ु करि चरण गहे प्रभ तुम्हरे सहजे बिखिआ भई खीओ ॥२॥ मैंने आपके चरण कसकर पकड़ लिए हैं और माया का विष सहज ही दूर हो गया है॥ २॥
ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਰਾ ਏਹੁ ਅਬਿਨਾਸੀ ਮੰਤ੍ਰੁ ਲੀਓ ॥ सुख निधान नामु प्रभ तुमरा एहु अबिनासी मंत्रु लीओ ॥ हे प्रभु! आपका नाम सुखों का भण्डार है। यह अमर मंत्र मैंने गुरदेव से प्राप्त किया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੋਹਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਨਾ ਤਾਪੁ ਸੰਤਾਪੁ ਮੇਰਾ ਬੈਰੁ ਗੀਓ ॥੩॥ करि किरपा मोहि सतिगुरि दीना तापु संतापु मेरा बैरु गीओ ॥३॥ अपनी कृपा करके सतगुरु ने मुझे यह (मंत्र) प्रदान किया है और मेरा ताप-संताप एवं शत्रु नाश हो गए हैं।॥ ३॥
ਧੰਨੁ ਸੁ ਮਾਣਸ ਦੇਹੀ ਪਾਈ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪਨੈ ਮੇਲਿ ਲੀਓ ॥ धंनु सु माणस देही पाई जितु प्रभि अपनै मेलि लीओ ॥ यह मानव-शरीर जो मुझे मिला है वह धन्य है, क्योंकि इसकी बदौलत ही मेरे प्रभु ने मुझे अपने साथ मिला लिया है।
ਧੰਨੁ ਸੁ ਕਲਿਜੁਗੁ ਸਾਧਸੰਗਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੀਓ ॥੪॥੮॥੪੭॥ धंनु सु कलिजुगु साधसंगि कीरतनु गाईऐ नानक नामु अधारु हीओ ॥४॥८॥४७॥ हे नानक ! यह कलियुग का समय धन्य है जिसमें साधसंगत में प्रभु का भजन किया जाता है। प्रभु का नाम ही मेरे हृदय का आधार है॥ ४ ॥ ८॥ ४७ ॥


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