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ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਅਹੰਕਾਰੁ ਗਾਖਰੋ ਸੰਜਮਿ ਕਉਨ ਛੁਟਿਓ ਰੀ ॥
किस संयम के माध्यम से तुझे दुःखदायी काम, क्रोध एवं अहंकार से छुटकारा मिल गया है ?"
ਸੁਰਿ ਨਰ ਦੇਵ ਅਸੁਰ ਤ੍ਰੈ ਗੁਨੀਆ ਸਗਲੋ ਭਵਨੁ ਲੁਟਿਓ ਰੀ ॥੧॥
हे बहन ! भद्रपुरुष, देव, दैत्य समस्त त्रिगुणात्मक जीव-समूचा संसार ही इन्होंने लूट लिया है॥ १॥
ਦਾਵਾ ਅਗਨਿ ਬਹੁਤੁ ਤ੍ਰਿਣ ਜਾਲੇ ਕੋਈ ਹਰਿਆ ਬੂਟੁ ਰਹਿਓ ਰੀ ॥
हे सखी ! जब जंगल को अग्नि लगती है तो बहुत सारा घास-फूस जल जाता है, कोई विरला ही हरित पौधा बचता है।
ਐਸੋ ਸਮਰਥੁ ਵਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਤਾ ਕੀ ਉਪਮਾ ਜਾਤ ਨ ਕਹਿਓ ਰੀ ॥੨॥
मैं उस दुर्लभ और आध्यात्मिक रूप से दृढ़ आत्मा की महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हूँ, जो संसारिक इच्छाओं की जलती अग्नि से स्वयं को अछूता रखता है। ॥ २॥
ਕਾਜਰ ਕੋਠ ਮਹਿ ਭਈ ਨ ਕਾਰੀ ਨਿਰਮਲ ਬਰਨੁ ਬਨਿਓ ਰੀ ॥
हे मेरे मित्र, इस कालिख से भरे अंधकारमय संसार में रहते हुए भी मैंने अपना आचरण शुद्ध बनाए रखा।
ਮਹਾ ਮੰਤ੍ਰੁ ਗੁਰ ਹਿਰਦੈ ਬਸਿਓ ਅਚਰਜ ਨਾਮੁ ਸੁਨਿਓ ਰੀ ॥੩॥
गुरु का महामंत्र (हरि-मंत्र) मेरे हृदय में बस गया है और मैंने आश्चर्यजनक नाम श्रवण किया है॥ ३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਨਦਰਿ ਅਵਲੋਕਨ ਅਪੁਨੈ ਚਰਣਿ ਲਗਾਈ ॥
प्रभु ने अपनी कृपा करके मुझ पर दया-दृष्टि की है और मुझे अपने चरणों से लगा लिया है।
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਸਮਾਈ ॥੪॥੧੨॥੫੧॥
हे नानक ! प्रेम भक्ति से मैंने साधुओं की संगति में बने रहने से सुख प्राप्त किया है॥ ४॥ १२॥ ५१॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੭ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, सातवीं ताल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਲਾਲੁ ਚੋਲਨਾ ਤੈ ਤਨਿ ਸੋਹਿਆ ॥
तेरे शरीर पर लाल रंग का वस्त्र बड़ा सुन्दर लगता है।
ਸੁਰਿਜਨ ਭਾਨੀ ਤਾਂ ਮਨੁ ਮੋਹਿਆ ॥੧॥
जब तू साजन प्रभु को अच्छी लगने लग गई तो उसका मन मोहित हो गया।॥ १॥
ਕਵਨ ਬਨੀ ਰੀ ਤੇਰੀ ਲਾਲੀ ॥
तेरे मुख पर यह लालीमा कैसे छाई है ?
ਕਵਨ ਰੰਗਿ ਤੂੰ ਭਈ ਗੁਲਾਲੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
किस रंग के प्रभाव से तू गुलाल के रंग की तरह लाल हो चुकी है॥ १॥ रहाउ॥
ਤੁਮ ਹੀ ਸੁੰਦਰਿ ਤੁਮਹਿ ਸੁਹਾਗੁ ॥
तू बहुत सुन्दर है और तू ही सुहागिन है।
ਤੁਮ ਘਰਿ ਲਾਲਨੁ ਤੁਮ ਘਰਿ ਭਾਗੁ ॥੨॥
तेरे हृदय घर में प्रियतम-प्रभु बस गए हैं और तेरे हृदय घर के भाग्य उदय हो गए हैं।॥ २॥
ਤੂੰ ਸਤਵੰਤੀ ਤੂੰ ਪਰਧਾਨਿ ॥
तुम सत्यवती हो और तुम ही सर्वश्रेष्ठ हो।
ਤੂੰ ਪ੍ਰੀਤਮ ਭਾਨੀ ਤੁਹੀ ਸੁਰ ਗਿਆਨਿ ॥੩॥
तुम अपने प्रियतम-प्रभु को अच्छी लगती हो और तुम सर्वश्रेष्ठ ज्ञान वाली हो।॥ ३॥
ਪ੍ਰੀਤਮ ਭਾਨੀ ਤਾਂ ਰੰਗਿ ਗੁਲਾਲ ॥
(जीव रूपी नारी कहती है) मैं प्रियतम-प्रभु को भली लगती हूँ इसलिए मैं गहरे प्रेम रंग में रंग गई हूँ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਭ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨਿਹਾਲ ॥੪॥
हे भक्त नानक ! परमेश्वर ने मुझे दया-दृष्टि से देखा है।
ਸੁਨਿ ਰੀ ਸਖੀ ਇਹ ਹਮਰੀ ਘਾਲ ॥
हे मेरी सखी ! सुन, केवल यही मेरी साधना है।
ਪ੍ਰਭ ਆਪਿ ਸੀਗਾਰਿ ਸਵਾਰਨਹਾਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥੫੨॥
प्रभु स्वयं ही श्रृंगारने वाला एवं संवारने वाले हैं॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥ ५२ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਦੂਖੁ ਘਨੋ ਜਬ ਹੋਤੇ ਦੂਰਿ ॥
हे सखी ! जब मैं हरि-चरणों से दूर थी तो मुझे बहुत दुःख होता था।
ਅਬ ਮਸਲਤਿ ਮੋਹਿ ਮਿਲੀ ਹਦੂਰਿ ॥੧॥
अब मालिक की उपस्थिति में मुझे नाम का उपदेश मिला है॥ १॥
ਚੁਕਾ ਨਿਹੋਰਾ ਸਖੀ ਸਹੇਰੀ ॥ ਭਰਮੁ ਗਇਆ ਗੁਰਿ ਪਿਰ ਸੰਗਿ ਮੇਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे मेरी सखियों एवं सहेलियों; गुरु ने मुझे मेरे प्रियतम-प्रभु से मिला दिया है,अब मेरी सारी शिकायत और दुविधा दूर हो गई है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਨਿਕਟਿ ਆਨਿ ਪ੍ਰਿਅ ਸੇਜ ਧਰੀ ॥
मेरे प्रियतम-प्रभु ने समीप आकर मुझे सेज पर बिठा दिया है और
ਕਾਣਿ ਕਢਨ ਤੇ ਛੂਟਿ ਪਰੀ ॥੨॥
मैं लोगों के आश्रय से मुक्त हो गई हूँ॥ २॥
ਮੰਦਰਿ ਮੇਰੈ ਸਬਦਿ ਉਜਾਰਾ ॥
मेरे मन मन्दिर में ब्रह्म-शब्द का उजाला है।
ਅਨਦ ਬਿਨੋਦੀ ਖਸਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥੩॥
मेरा पति-प्रभु आनंद विनोदी है॥ ३॥
ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੁ ਮੈ ਪਿਰੁ ਘਰਿ ਆਇਆ ॥
मेरे माथे पर भाग्य होने के कारण मेरा पति-प्रभु मेरे हृदय-घर में आ गए हैं।
ਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਪਾਇਆ ॥੪॥੨॥੫੩
हे नानक ! मुझे अटल सुहाग मिल गया है॥ ४॥ २॥ ५३॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਸਾਚਿ ਨਾਮਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਲਾਗਾ ॥
मेरा मन सत्यनाम में लग गया है।
ਲੋਗਨ ਸਿਉ ਮੇਰਾ ਠਾਠਾ ਬਾਗਾ ॥੧॥
दुनिया के लोगों के साथ मेरा उतना ही मेल-मिलाप है जितने व्यवहार की जरुरत है॥ १॥
ਬਾਹਰਿ ਸੂਤੁ ਸਗਲ ਸਿਉ ਮਉਲਾ ॥
बाह्य रूप से, मेरे सभी के साथ अच्छे संबंध हैं;
ਅਲਿਪਤੁ ਰਹਉ ਜੈਸੇ ਜਲ ਮਹਿ ਕਉਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसे कमल का फूल जल में निर्लिप्त रहता है वैसे ही मैं संसार से निर्लिप्त रहता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਮੁਖ ਕੀ ਬਾਤ ਸਗਲ ਸਿਉ ਕਰਤਾ ॥
मुख द्वारा मैं सबके साथ बातचीत करता हूँ।
ਜੀਅ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪੁਨਾ ਧਰਤਾ ॥੨॥
परन्तु अपने प्रभु को मैं अपने हृदय से लगाकर रखता हूँ॥ २॥
ਦੀਸਿ ਆਵਤ ਹੈ ਬਹੁਤੁ ਭੀਹਾਲਾ ॥
चाहे लोगों को मेरा मन शुष्क दिखाई देता है परन्तु
ਸਗਲ ਚਰਨ ਕੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਰਾਲਾ ॥੩॥
मेरा मन सबकी चरण-धूलि बना रहता है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਜਨਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥
हे नानक ! इस सेवक को पूर्ण गुरु की प्राप्ति हो गई है।