Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 370

Page 370

ਰਾਖੁ ਸਰਣਿ ਜਗਦੀਸੁਰ ਪਿਆਰੇ ਮੋਹਿ ਸਰਧਾ ਪੂਰਿ ਹਰਿ ਗੁਸਾਈ ॥ हे प्रभु! मुझे अपनी पावन शरण में ले लीजिए और मेरे मन की यह प्रबल लालसा पूर्ण कीजिए कि मैं आपके दर्शन कर सकूं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੈ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਹੋਤ ਹੈ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਨਿਮਖ ਦਿਖਾਈ ॥੨॥੩੯॥੧੩॥੧੫॥੬੭॥ हे भगवान, जब आप केवल एक क्षण के लिए भी अपनी कृपा-दृष्टि डालते हैं, तो भक्त नानक का मन परमानंद से भर जाता है। ॥२॥३९॥१३॥१५॥६७॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੨ ਮਹਲਾ ੫ राग आसा, दूसरा ताल, पांचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਿਨਿ ਲਾਈ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸੋਈ ਫਿਰਿ ਖਾਇਆ ॥ जिसने भी माया के साथ प्रेम लगाया है, यह अंततः उसे ही खा गई है।
ਜਿਨਿ ਸੁਖਿ ਬੈਠਾਲੀ ਤਿਸੁ ਭਉ ਬਹੁਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ जो व्यक्ति माया को सावधानी से संजोता है, माया ही अंततः उसे पूरी तरह भयभीत कर देती है।"
ਭਾਈ ਮੀਤ ਕੁਟੰਬ ਦੇਖਿ ਬਿਬਾਦੇ ॥ माया के प्रभाव में आकर भाई-बहन, मित्र और संबंधी आपसी कलह में उलझ जाते हैं।
ਹਮ ਆਈ ਵਸਗਤਿ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੇ ॥੧॥ परन्तु गुरु की कृपा से यह मेरे अधीन हो गई है॥ १॥
ਐਸਾ ਦੇਖਿ ਬਿਮੋਹਿਤ ਹੋਏ ॥ इसे ऐसा मीठा देखकर सभी मुग्ध हो जाते हैं।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਸੁਰਦੇਵ ਮਨੁਖਾ ਬਿਨੁ ਸਾਧੂ ਸਭਿ ਧ੍ਰੋਹਨਿ ਧ੍ਰੋਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु, साधक,सिद्ध, देवता एवं मनुष्य के अतिरिक्त यह माया संसार के सभी मनुष्यों को छलने में सफल हो जाती है।॥ १॥ रहाउ॥
ਇਕਿ ਫਿਰਹਿ ਉਦਾਸੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕਾਮਿ ਵਿਆਪੈ ॥ कई उदासी बन कर भटकते फिरते हैं परन्तु कामवासना उन्हें दुःखी करती है।
ਇਕਿ ਸੰਚਹਿ ਗਿਰਹੀ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਹੋਇ ਨ ਆਪੈ ॥ कई गृहस्थी बनकर माया-धन को संचित करते हैं परन्तु यह उनकी अपनी नहीं बनती।
ਇਕਿ ਸਤੀ ਕਹਾਵਹਿ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹ ਬਹੁਤੁ ਕਲਪਾਵੈ ॥ जो अपने आपको दानी कहलवाते हैं यह उनको भी बहुत सताती है।
ਹਮ ਹਰਿ ਰਾਖੇ ਲਗਿ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਵੈ ॥੨॥ लेकिन ईश्वर ने मुझे सतगुरु के चरणों से लगाकर इससे बचा लिया है॥ २॥
ਤਪੁ ਕਰਤੇ ਤਪਸੀ ਭੂਲਾਏ ॥ तपस्यारत तपस्वी भी इसके कारण कुमार्गगामी हो जाते हैं।
ਪੰਡਿਤ ਮੋਹੇ ਲੋਭਿ ਸਬਾਏ ॥ माया समस्त पंडितों तक को अपने लालच में फंसा लेती है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੋਹੇ ਮੋਹਿਆ ਆਕਾਸੁ ॥ जो भी प्राणी तीन गुणों (तमस, रजस और सत्व)के अधीन हैं, चाहे वे मनुष्य हों या देवदूत, वे सभी माया के प्रभाव में मोहित हो जाते हैं।
ਹਮ ਸਤਿਗੁਰ ਰਾਖੇ ਦੇ ਕਰਿ ਹਾਥੁ ॥੩॥ लेकिन सतगुरु ने अपना हाथ देकर हमारी रक्षा की है॥ ३॥
ਗਿਆਨੀ ਕੀ ਹੋਇ ਵਰਤੀ ਦਾਸਿ ॥ यह माया ब्रह्मज्ञानी के समक्ष दासी जैसा व्यवहार करती है।
ਕਰ ਜੋੜੇ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਅਰਦਾਸਿ ॥ वह हाथ जोड़कर उनकी सेवा करती है और प्रार्थना करती कि
ਜੋ ਤੂੰ ਕਹਹਿ ਸੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵਾ ॥ जो आप आज्ञा करेंगे मैं वही कार्य करूँगी।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਾ ॥੪॥੧॥ हे नानक ! माया कहती है कि मैं गुरुमुख के निकट नहीं आउंगी ॥ ४ ॥ १॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु:५ ॥
ਸਸੂ ਤੇ ਪਿਰਿ ਕੀਨੀ ਵਾਖਿ ॥ पति-परमेश्वर ने माया रूपी सास से मुझे अलग कर दिया है।
ਦੇਰ ਜਿਠਾਣੀ ਮੁਈ ਦੂਖਿ ਸੰਤਾਪਿ ॥ मेरी देवरानी (आशा) एवं जेठानी (तृष्णा) दुःख एवं संताप से मर गई हैं।
ਘਰ ਕੇ ਜਿਠੇਰੇ ਕੀ ਚੂਕੀ ਕਾਣਿ ॥ घर के जेठ (धर्मराज) की भी मैंने मोहताजी छोड़ दी है।
ਪਿਰਿ ਰਖਿਆ ਕੀਨੀ ਸੁਘੜ ਸੁਜਾਣਿ ॥੧॥ मेरे चतुर एवं सर्वज्ञ पति-प्रभु ने मुझे बचा लिया है॥ १॥
ਸੁਨਹੁ ਲੋਕਾ ਮੈ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥ हे लोगो ! सुनो, मुझे प्रेम रस प्राप्त हो गया है।
ਦੁਰਜਨ ਮਾਰੇ ਵੈਰੀ ਸੰਘਾਰੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿਵਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिससे सतगुरु ने मुझे हरि का नाम दिलवाया है। मैंने दुर्जनों को मार दिया है और कामादिक शत्रुओं का भी संहार कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਤਿਆਗੀ ਹਉਮੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥ सर्वप्रथम मैंने अहंकार का प्रेम त्याग दिया है।
ਦੁਤੀਆ ਤਿਆਗੀ ਲੋਗਾ ਰੀਤਿ ॥ द्वितीय मैंने सांसारिक प्रपंचों की रस्मों को छोड़ दिया है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਤਿਆਗਿ ਦੁਰਜਨ ਮੀਤ ਸਮਾਨੇ ॥ त्रिगुणों का त्याग करने से अब दुष्ट एवं मित्र एक समान लगने लगे हैं।
ਤੁਰੀਆ ਗੁਣੁ ਮਿਲਿ ਸਾਧ ਪਛਾਨੇ ॥੨॥ संत रूपी गुरु को मिलकर मैंने तुरीय (चौथी अवस्था)अवस्था के गुणों को पहचान लिया है॥ २ ॥
ਸਹਜ ਗੁਫਾ ਮਹਿ ਆਸਣੁ ਬਾਧਿਆ ॥ मैंने परमानंद की गुफा में आसन लगा लिया है।
ਜੋਤਿ ਸਰੂਪ ਅਨਾਹਦੁ ਵਾਜਿਆ ॥ ज्योतिस्वरूप परमात्मा ने अनहद नाद बजाया है।
ਮਹਾ ਅਨੰਦੁ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥ गुरु-शब्द का चिंतन करने से मुझे महा आनंद प्राप्त हुआ है।
ਪ੍ਰਿਅ ਸਿਉ ਰਾਤੀ ਧਨ ਸੋਹਾਗਣਿ ਨਾਰਿ ॥੩॥ जो जीव स्त्री अपने प्रियतम के प्रेम रंग में लीन हो गई है वह सुहागिन नारी धन्य है॥ ३॥
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਬੋਲੇ ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ॥ भक्त नानक दिव्य ज्ञान के विचार कह रहे हैं।
ਜੋ ਸੁਣੇ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਉਤਰੈ ਪਾਰਿ ॥ जो इसे श्रवण करेगा और इसकी साधना करेगा, वह संसार-सागर से पार हो जाएगा।
ਜਨਮਿ ਨ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਨ ਜਾਇ ॥ न ही वह जन्मता है और न ही मरता है, वह (सृष्टि में बार-बार) न आता है और न ही जाता है।
ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਓਹੁ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੪॥੨॥ वह सदैव हरि की स्मृति में लीन हुआ रहता है॥ ४॥ २॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਨਿਜ ਭਗਤੀ ਸੀਲਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ॥ भगवान् की भक्ति वह शीलवान नारी है,"
ਰੂਪਿ ਅਨੂਪ ਪੂਰੀ ਆਚਾਰਿ ॥ जो अनुपम रूपवती एवं पूर्ण आचरणयुक्त है।
ਜਿਤੁ ਗ੍ਰਿਹਿ ਵਸੈ ਸੋ ਗ੍ਰਿਹੁ ਸੋਭਾਵੰਤਾ ॥ जिस घर में वह रहती है, वह घर शोभावान हो जाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਜੰਤਾ ॥੧॥ किसी विरले गुरुमुख को ही ऐसी नारी प्राप्त हुई है॥ १॥
ਸੁਕਰਣੀ ਕਾਮਣਿ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਹਮ ਪਾਈ ॥ गुरु से मिलकर मुझे शुभ कर्मों वाली (भक्ति रूपी) नारी प्राप्त हुई


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