Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 371

Page 371

ਜਜਿ ਕਾਜਿ ਪਰਥਾਇ ਸੁਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जजि काजि परथाइ सुहाई ॥१॥ रहाउ ॥ पूजा, शादी-विवाह इत्यादि शुभ कार्यों में सर्वत्र यह बहुत सुन्दर लगती है॥ १॥ रहाउ
ਜਿਚਰੁ ਵਸੀ ਪਿਤਾ ਕੈ ਸਾਥਿ ॥ जिचरु वसी पिता कै साथि ॥ जब तक भक्ति रूपी पतिव्रता नारी अपने पिता अर्थात् गुरु के साथ रहती है,"
ਤਿਚਰੁ ਕੰਤੁ ਬਹੁ ਫਿਰੈ ਉਦਾਸਿ ॥ तिचरु कंतु बहु फिरै उदासि ॥ भक्ति के अभाव में मनुष्य निराश होकर इधर-उधर भटकता रहता है।
ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸਤ ਪੁਰਖੁ ਮਨਾਇਆ ॥ करि सेवा सत पुरखु मनाइआ ॥ परंतु जब वह गुरु की शिक्षाओं का पालन कर भगवान को प्रसन्न करता है,
ਗੁਰਿ ਆਣੀ ਘਰ ਮਹਿ ਤਾ ਸਰਬ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ॥੨॥ गुरि आणी घर महि ता सरब सुख पाइआ ॥२॥ गुरु जब उसके हृदय में भक्ति रूपी नारी का संचार करते हैं, तब उसे शांति और आत्मिक सुख की अनुभूति होती है।॥ २॥
ਬਤੀਹ ਸੁਲਖਣੀ ਸਚੁ ਸੰਤਤਿ ਪੂਤ ॥ बतीह सुलखणी सचु संतति पूत ॥ यह भक्ति रूपी नारी लज्जा, नम्रता, दया, संतोष, सौन्दर्य एवं प्रेम इत्यादि बत्तीस शुभ लक्षणों वाली है, सत्य रूपी पुत्र इसकी संतान है।
ਆਗਿਆਕਾਰੀ ਸੁਘੜ ਸਰੂਪ ॥ आगिआकारी सुघड़ सरूप ॥ यह आज्ञाकारिणी, चतुर एवं रूपवती है,"
ਇਛ ਪੂਰੇ ਮਨ ਕੰਤ ਸੁਆਮੀ ॥ इछ पूरे मन कंत सुआमी ॥ वह अपने कंत (स्वामी) की प्रत्येक इच्छा को पूरी करती है।
ਸਗਲ ਸੰਤੋਖੀ ਦੇਰ ਜੇਠਾਨੀ ॥੩॥ सगल संतोखी देर जेठानी ॥३॥ इसने अपनी देवरानी (आशा) एवं जेठानी (तृष्णा) को हर प्रकार से संतुष्ट कर लिया है॥ ३॥
ਸਭ ਪਰਵਾਰੈ ਮਾਹਿ ਸਰੇਸਟ ॥ सभ परवारै माहि सरेसट ॥ समूचे परिवार में भक्ति रूपी नारी श्रेष्ठ है।
ਮਤੀ ਦੇਵੀ ਦੇਵਰ ਜੇਸਟ ॥ मती देवी देवर जेसट ॥ वह अपने देवर एवं जेठ को सुमति देने वाली है।
ਧੰਨੁ ਸੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਜਿਤੁ ਪ੍ਰਗਟੀ ਆਇ ॥ धंनु सु ग्रिहु जितु प्रगटी आइ ॥ हृदय रूपी वह घर धन्य है, जहाँ वह प्रगट हुई है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸੁਖੇ ਸੁਖਿ ਵਿਹਾਇ ॥੪॥੩॥ जन नानक सुखे सुखि विहाइ ॥४॥३॥ हे नानक ! जिस जीव के हृदय घर में भक्ति प्रगट हुई है, उसका समय सुखी एवं हर्षपूर्वक व्यतीत होता है॥ ४ ॥ ३ ॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਤਾ ਕਰਉ ਸੋ ਪਕਨਿ ਨ ਦੇਈ ॥ मता करउ सो पकनि न देई ॥ मैं जो भी संकल्प करता हूँ उसे माया सफल नहीं होने देती।
ਸੀਲ ਸੰਜਮ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਖਲੋਈ ॥ सील संजम कै निकटि खलोई ॥ वह अच्छाई और आत्म-अनुशासन के मार्ग को बाधित करती है।
ਵੇਸ ਕਰੇ ਬਹੁ ਰੂਪ ਦਿਖਾਵੈ ॥ वेस करे बहु रूप दिखावै ॥ यह अनेक वेष धारण करती है और बहुत रूप दिखाती है।
ਗ੍ਰਿਹਿ ਬਸਨਿ ਨ ਦੇਈ ਵਖਿ ਵਖਿ ਭਰਮਾਵੈ ॥੧॥ ग्रिहि बसनि न देई वखि वखि भरमावै ॥१॥ वह मेरे मन को स्थिर नहीं रहने देती और उसे विभिन्न दिशाओं में भटकने के लिए विवश कर देती है।॥ १॥
ਘਰ ਕੀ ਨਾਇਕਿ ਘਰ ਵਾਸੁ ਨ ਦੇਵੈ ॥ घर की नाइकि घर वासु न देवै ॥ यह हृदय घर की स्वामिनी बन बैठी है और मुझे शांति में निवास नहीं करने देती।
ਜਤਨ ਕਰਉ ਉਰਝਾਇ ਪਰੇਵੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जतन करउ उरझाइ परेवै ॥१॥ रहाउ ॥ यदि मैं रहने का प्रयास करता हूँ तो अधिकतर उलझनें उत्पन्न करती है॥ १॥ रहाउ॥
ਧੁਰ ਕੀ ਭੇਜੀ ਆਈ ਆਮਰਿ ॥ धुर की भेजी आई आमरि ॥ आरंभ में भगवान् ने माया को, एक सहायक के रूप में भेजा था।
ਨਉ ਖੰਡ ਜੀਤੇ ਸਭਿ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰ ॥ नउ खंड जीते सभि थान थनंतर ॥ लेकिन इसने नवखण्डों वाली समूची पृथ्वी जीत ली है।
ਤਟਿ ਤੀਰਥਿ ਨ ਛੋਡੈ ਜੋਗ ਸੰਨਿਆਸ ॥ तटि तीरथि न छोडै जोग संनिआस ॥ वह नदियों के तटों, धार्मिक स्थलों, योगियों एवं संन्यासियों को भी नहीं छोड़ती।
ਪੜਿ ਥਾਕੇ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ਅਭਿਆਸ ॥੨॥ पड़ि थाके सिम्रिति बेद अभिआस ॥२॥ स्मृतियाँ पढ़-पढ़कर एवं वेदों का अभ्यास करने वाले पण्डित भी माया के समक्ष नतमस्तक हो गए हैं।॥ २ ॥
ਜਹ ਬੈਸਉ ਤਹ ਨਾਲੇ ਬੈਸੈ ॥ जह बैसउ तह नाले बैसै ॥ जहाँ भी मैं विराजमान होता हूँ, वहाँ यह मेरे साथ बैठती है।
ਸਗਲ ਭਵਨ ਮਹਿ ਸਬਲ ਪ੍ਰਵੇਸੈ ॥ सगल भवन महि सबल प्रवेसै ॥ पृथ्वी, आकाश, पाताल समूचे भवनों में इसने सबल प्रवेश किया है।
ਹੋਛੀ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਰਹਣੁ ਨ ਪਾਈ ॥ होछी सरणि पइआ रहणु न पाई ॥ किसी निर्बल की शरण लेने से मैं अपने आपको इससे बचा नहीं सकता।
ਕਹੁ ਮੀਤਾ ਹਉ ਕੈ ਪਹਿ ਜਾਈ ॥੩॥ कहु मीता हउ कै पहि जाई ॥३॥ हे मेरे मित्र ! बता, शरण लेने हेतु मैं किसके पास जाऊँ॥ ३॥
ਸੁਣਿ ਉਪਦੇਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਪਹਿ ਆਇਆ ॥ सुणि उपदेसु सतिगुर पहि आइआ ॥ सत्संगी मित्र से उपदेश सुनकर मैं सतगुरु के पास आया हूँ।
ਗੁਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੋਹਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥ गुरि हरि हरि नामु मोहि मंत्रु द्रिड़ाइआ ॥ गुरु ने हरि-नाम रूपी मंत्र मेरे अन्तर्मन में बसा दिया है।
ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਸਿਆ ਗੁਣ ਗਾਇ ਅਨੰਤਾ ॥ निज घरि वसिआ गुण गाइ अनंता ॥ अब मुझे अनंत भगवान् की स्तुति द्वारा ऐसी शांति प्राप्त होती है, जैसे मैं अपने ही अंतरात्मा के घर में निवास कर रहा हूँ।
ਪ੍ਰਭੁ ਮਿਲਿਓ ਨਾਨਕ ਭਏ ਅਚਿੰਤਾ ॥੪॥ प्रभु मिलिओ नानक भए अचिंता ॥४॥ हे नानक ! अब मुझे ईश्वर मिल गए हैं और मैं निश्चिन्त हो गया हूँ॥ ४॥
ਘਰੁ ਮੇਰਾ ਇਹ ਨਾਇਕਿ ਹਮਾਰੀ ॥ घरु मेरा इह नाइकि हमारी ॥ अब मेरा अपना घर बन गया है और यह स्वामिनी माया भी हमारी बन गई है।
ਇਹ ਆਮਰਿ ਹਮ ਗੁਰਿ ਕੀਏ ਦਰਬਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੪॥੪॥ इह आमरि हम गुरि कीए दरबारी ॥१॥ रहाउ दूजा ॥४॥४॥ गुरु ने इसे मेरी सेविका बना दिया है और मुझे प्रभु का दरबारी बना दिया है॥ ॥१॥ रहाउ दूजा ॥४॥४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आसा महला ५ ॥ राग आसा, पांचवें गुरु : ५ ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਮਤਾ ਜਿ ਪਤ੍ਰੀ ਚਲਾਵਉ ॥ प्रथमे मता जि पत्री चलावउ ॥ सर्वप्रथम मुझे यह सलाह दी गई कि हमला करने आ रहे सुलही खां को पत्र लिखकर भेजा जाए।
ਦੁਤੀਏ ਮਤਾ ਦੁਇ ਮਾਨੁਖ ਪਹੁਚਾਵਉ ॥ दुतीए मता दुइ मानुख पहुचावउ ॥ द्वितीय मुझे यह सलाह दी गई कि सन्धि करने के लिए दो व्यक्ति भेजे जाएँ।
ਤ੍ਰਿਤੀਏ ਮਤਾ ਕਿਛੁ ਕਰਉ ਉਪਾਇਆ ॥ त्रितीए मता किछु करउ उपाइआ ॥ तृतीय सलाह यह मिली कि कुछ उपाय कर लिया जाए।
ਮੈ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਛੋਡਿ ਪ੍ਰਭ ਤੁਹੀ ਧਿਆਇਆ ॥੧॥ मै सभु किछु छोडि प्रभ तुही धिआइआ ॥१॥ लेकिन, हे प्रभु ! सबकुछ छोड़कर मैंने आपका ही ध्यान किया है॥ १॥
ਮਹਾ ਅਨੰਦ ਅਚਿੰਤ ਸਹਜਾਇਆ ॥ महा अनंद अचिंत सहजाइआ ॥ सिमरन करने से मुझे महा आनंद प्राप्त हो गया है, मैं सहज ही चिंता रहित हो गया हूँ।
ਦੁਸਮਨ ਦੂਤ ਮੁਏ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दुसमन दूत मुए सुखु पाइआ ॥१॥ रहाउ ॥ समस्त वैरी एवं शत्रु नाश हो गए हैं और मुझे सुख प्राप्त हो गया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਦੀਆ ਉਪਦੇਸੁ ॥ सतिगुरि मो कउ दीआ उपदेसु ॥ सतगुरु ने मुझे यह उपदेश दिया है कि
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਹਰਿ ਕਾ ਦੇਸੁ ॥ जीउ पिंडु सभु हरि का देसु ॥ यह शरीर एवं प्राण ईश्वर का निवास स्थान है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੀ ਸੁ ਤੇਰਾ ਤਾਣੁ ॥ जो किछु करी सु तेरा ताणु ॥ इसलिए मैं जो कुछ भी करता हूँ, आपका बल लेकर करता हूँ।
ਤੂੰ ਮੇਰੀ ਓਟ ਤੂੰਹੈ ਦੀਬਾਣੁ ॥੨॥ तूं मेरी ओट तूंहै दीबाणु ॥२॥ हे प्रभु ! आप ही मेरी ओट एवं आप ही मेरा सहारा है॥ २॥
ਤੁਧਨੋ ਛੋਡਿ ਜਾਈਐ ਪ੍ਰਭ ਕੈਂ ਧਰਿ ॥ तुधनो छोडि जाईऐ प्रभ कैं धरि ॥ हे प्रभु ! आपको छोड़कर मैं किसके पास जाऊँ ?
ਆਨ ਨ ਬੀਆ ਤੇਰੀ ਸਮਸਰਿ ॥ आन न बीआ तेरी समसरि ॥ क्योंकि दूसरा कोई भी आपके तुल्य नहीं है।
ਤੇਰੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਕਿਸ ਕੀ ਕਾਣਿ ॥ तेरे सेवक कउ किस की काणि ॥ आपका सेवक और किस पर निर्भर रहे ?
ਸਾਕਤੁ ਭੂਲਾ ਫਿਰੈ ਬੇਬਾਣਿ ॥੩॥ साकतु भूला फिरै बेबाणि ॥३॥ शाक्त मनुष्य कुमार्गगामी होकर भयानक जंगल में भटकता रहता है॥ ३॥
ਤੇਰੀ ਵਡਿਆਈ ਕਹੀ ਨ ਜਾਇ ॥ तेरी वडिआई कही न जाइ ॥ हे प्रभु ! आपकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਜਹ ਕਹ ਰਾਖਿ ਲੈਹਿ ਗਲਿ ਲਾਇ ॥ जह कह राखि लैहि गलि लाइ ॥ आप सर्वत्र अपने गले लगाकर मेरी रक्षा करते हो।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥ नानक दास तेरी सरणाई ॥ दास नानक तो आपकी ही शरण में है (हे भाई !)
ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖੀ ਪੈਜ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥੪॥੫॥ प्रभि राखी पैज वजी वाधाई ॥४॥५॥ प्रभु ने मेरी मान-प्रतिष्ठा बचा ली है और मुझे शुभ कामनाएँ मिल रही हैं।॥ ४॥ ५ ॥


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