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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਘਰੁ ੮ ਕੇ ਕਾਫੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, राग काफी, आठवां प्रहर, चौथे गुरु: ४ ॥
ਆਇਆ ਮਰਣੁ ਧੁਰਾਹੁ ਹਉਮੈ ਰੋਈਐ ॥
हे भाई ! मृत्यु तो जन्म से ही लिखी हुई है। किसी की मृत्यु पर लोग अपने अहंकार के कारण ही रोते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਅਸਥਿਰੁ ਹੋਈਐ ॥੧॥
गुरुमुख बनकर प्रभु का ध्यान करने से जीव सदैव स्थिर हो जाता है॥ १॥
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਸਾਬਾਸਿ ਚਲਣੁ ਜਾਣਿਆ ॥
गुरु उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिन्होंने यह सत्य जान लिया है कि मृत्यु अनिवार्य है।
ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਸੁ ਸਾਰੁ ਸਬਦਿ ਸਮਾਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो व्यक्ति उत्तम नाम का लाभ प्राप्त करते हैं वे ब्रह्म-शब्द में लीन हो जाते हैं। १॥ रहाउ॥
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖੇ ਡੇਹ ਸਿ ਆਏ ਮਾਇਆ ॥
हे मेरी माता ! पूर्व जन्म के लिखे कर्मों अनुसार मनुष्य जीवन के दिन प्राप्त कर संसार में आते हैं।
ਚਲਣੁ ਅਜੁ ਕਿ ਕਲ੍ਹ੍ਹਿ ਧੁਰਹੁ ਫੁਰਮਾਇਆ ॥੨॥
आज अथवा कल मनुष्य ने अवश्य ही इहलोक से चले जाना है जैसा कि आदि से परमेश्वर का आदेश है॥ २॥
ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਤਿਨਾ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥
जिन्होंने प्रभु-नाम को विस्मृत कर दिया है, उनका जन्म व्यर्थ है।
ਜੂਐ ਖੇਲਣੁ ਜਗਿ ਕਿ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹਾਰਿਆ ॥੩॥
इस संसार में आकर उन्होंने जीवन को एक जुए की तरह खेला है और इस खेल में अपना विवेक भी पराजित कर दिया ॥ ३॥
ਜੀਵਣਿ ਮਰਣਿ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥
जिन मनुष्यों को गुरु प्राप्त हुए हैं, वे जन्म-मरण में भी सुख की अनुभूति करते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਚਿ ਸਮਾਇਆ ॥੪॥੧੨॥੬੪॥
हे नानक ! सत्यवादी जीव सत्य के कारण परम सत्य में ही समा जाते हैं।॥ ४॥ १२॥ ६४॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसा, चौथे गुरु: ४ ॥
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
जिसने बहुमूल्य मनुष्य जन्म प्राप्त करके प्रभु-नाम का ध्यान किया है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝਿ ਸਚਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥
गुरु की कृपा से (मनुष्य-जन्म के) मनोरथ को समझकर वह सत्य में ही समा गया है॥ १॥
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਤਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਨਾਮੁ ਕਮਾਇਆ ॥
केवल वही आत्माएँ प्रभु-स्मरण में लगती हैं, जिन्हें स्वयं भगवान् ने पूर्व से ही चुना है।
ਦਰਿ ਸਚੈ ਸਚਿਆਰ ਮਹਲਿ ਬੁਲਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उन सत्यवादियों को सच्चे परमात्मा ने अपने महल में आमंत्रित कर लिया है॥ १॥ रहाउ ॥
ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਈਐ ॥
हमारे अन्तर्मन में नाम निधि विद्यमान है परन्तु यह गुरु गुरु की शिक्षाओं का पूर्ण पालनकरने से मिलता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ॥੨॥
रात-दिन हरि नाम का ध्यान करते रहना चाहिए और हरि का स्तुतिगान करना चाहिए॥ २॥
ਅੰਤਰਿ ਵਸਤੁ ਅਨੇਕ ਮਨਮੁਖਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ॥
ईश्वर के अनंत और अमूल्य गुण प्रत्येक प्राणी के भीतर विद्यमान हैं, परंतु स्वार्थ से ग्रस्त मनमुख जीव उन्हें जान नहीं पाता।
ਹਉਮੈ ਗਰਬੈ ਗਰਬੁ ਆਪਿ ਖੁਆਈਐ ॥੩॥
अहंकार के कारण स्वेच्छाचारी मनुष्य अभिमान करता है और अपने आपको नष्ट कर लेता है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਆਪੇ ਆਪਿ ਆਪਿ ਖੁਆਈਐ ॥
हे नानक ! अपने कर्मों के कारण मनुष्य अपने आप का विनाश कर लेता है
ਗੁਰਮਤਿ ਮਨਿ ਪਰਗਾਸੁ ਸਚਾ ਪਾਈਐ ॥੪॥੧੩॥੬੫॥
लेकिन गुरु की मति से मन में ज्ञान का प्रकाश हो जाता है और सत्य (परमेश्वर) मिल जाते हैं। ४॥ १३॥ ६५ ॥
ਰਾਗੁ ਆਸਾਵਰੀ ਘਰੁ ੧੬ ਕੇ ੨ ਮਹਲਾ ੪ ਸੁਧੰਗ
राग आसावरी, सोलहवीं ताल में दो शब्द, चौथे गुरु, सुधंग:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਹਉ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕੀਰਤਨੁ ਕਰਉ ॥
मैं निशदिन हरि-नाम का भजन करता रहता हूँ।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਬਤਾਇਆ ਹਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतगुरु ने मुझे हरि-नाम का भेद बताया है। इसलिए अब मैं हरि के बिना एक क्षण अथवा पल भर भी नहीं रह सकता॥ १॥ रहाउ॥
ਹਮਰੈ ਸ੍ਰਵਣੁ ਸਿਮਰਨੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਹਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ਹਉ ਇਕੁ ਖਿਨੁ ॥
हरि का भजन सुनना और उसका सिमरन करना ही मेरे पास है। हरि के बिना मैं एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकता।
ਜੈਸੇ ਹੰਸੁ ਸਰਵਰ ਬਿਨੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕੈ ਤੈਸੇ ਹਰਿ ਜਨੁ ਕਿਉ ਰਹੈ ਹਰਿ ਸੇਵਾ ਬਿਨੁ ॥੧॥
जैसे राजहंस सरोवर के बिना नहीं रह सकता, वैसे ही हरि का भक्त हरि की भक्ति के बिना कैसे रह सकता है ?॥ १॥
ਕਿਨਹੂੰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਰਿਦ ਧਾਰਿ ਕਿਨਹੂੰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਮੋਹ ਅਪਮਾਨ ॥
कई मनुष्य द्वैतभाव से प्रेम करते तथा इसे अपने हृदय में बसाते हैं। कई मनुष्य मोह-माया एवं अभिमान से प्रीति लगाकर रखते हैं।
ਹਰਿ ਜਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਹਰਿ ਨਿਰਬਾਣ ਪਦ ਨਾਨਕ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਗਵਾਨ ॥੨॥੧੪॥੬੬॥
हे नानक, सच्चे भक्त भगवान् से प्रेम करते हैं; वे इच्छाओं से मुक्त होकर हर क्षण उसका ध्यान करते हैं।॥ २ ॥ १४ ॥ ६६ ॥
ਆਸਾਵਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग आसावरी, चौथे गुरु : ४ ॥
ਮਾਈ ਮੋਰੋ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਰਾਮੁ ਬਤਾਵਹੁ ਰੀ ਮਾਈ ॥
हे मेरी माता! मुझे मेरे प्रियतम राम के बारे में कुछ बताओ।
ਹਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਖਿਨੁ ਪਲੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕਉ ਜੈਸੇ ਕਰਹਲੁ ਬੇਲਿ ਰੀਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मैं वैसे ही हरि के बिना एक क्षण पल भर के लिए भी रह नहीं सकता, जैसे ऊँट बेलों को देखकर रीझता है और सदैव खुश होता है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਮਰਾ ਮਨੁ ਬੈਰਾਗ ਬਿਰਕਤੁ ਭਇਓ ਹਰਿ ਦਰਸਨ ਮੀਤ ਕੈ ਤਾਈ ॥
हरि रूपी मित्र के दर्शन हेतु मेरा मन वैरागी एवं विरक्त हो गया है।
ਜੈਸੇ ਅਲਿ ਕਮਲਾ ਬਿਨੁ ਰਹਿ ਨ ਸਕੈ ਤੈਸੇ ਮੋਹਿ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਰਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥
जैसे भवराँ कमल के फूल बिना नहीं रह सकता वैसे ही मैं भी हरि के बिना रह नहीं सकता ॥ १॥