Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 293

Page 293

ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਹਿ ਮੇਲੇ ॥੪॥ हे नानक ! हरि-प्रभु उसे अपने साथ मिला लेता है॥ ४॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਕਰਹੁ ਅਨੰਦ ॥ साध संगत में मिलकर परम आनंद को प्राप्त करो।
ਗੁਨ ਗਾਵਹੁ ਪ੍ਰਭ ਪਰਮਾਨੰਦ ॥ और परमानन्द देने वाले प्रभु की गुणस्तुति करते रहो।
ਰਾਮ ਨਾਮ ਤਤੁ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥ राम-नाम के तत्व का विचार करो।
ਦ੍ਰੁਲਭ ਦੇਹ ਕਾ ਕਰਹੁ ਉਧਾਰੁ ॥ इस तरह दुर्लभ मानव शरीर का कल्याण कर लो।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਉ ॥ परमेश्वर की महिमा के अमृत वचन गायन करो।
ਪ੍ਰਾਨ ਤਰਨ ਕਾ ਇਹੈ ਸੁਆਉ ॥ अपनी आत्मा का कल्याण करने की यही विधि है।
ਆਠ ਪਹਰ ਪ੍ਰਭ ਪੇਖਹੁ ਨੇਰਾ ॥ आठ पहर प्रभु को निकट देखो।
ਮਿਟੈ ਅਗਿਆਨੁ ਬਿਨਸੈ ਅੰਧੇਰਾ ॥ (इससे) अज्ञान मिट जाएगा और अन्धकार का नाश हो जाएगा।
ਸੁਨਿ ਉਪਦੇਸੁ ਹਿਰਦੈ ਬਸਾਵਹੁ ॥ गुरु का उपदेश सुनकर इसे अपने हृदय में बसाओ।
ਮਨ ਇਛੇ ਨਾਨਕ ਫਲ ਪਾਵਹੁ ॥੫॥ हे नानक ! इस तरह तुझे मनोवांछित फल प्राप्त होगा ॥५॥
ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਦੁਇ ਲੇਹੁ ਸਵਾਰਿ ॥ लोक एवं परलोक दोनों को संवार लो
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਅੰਤਰਿ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥ राम के नाम को अपने हृदय में बसाओ ।
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਪੂਰੀ ਦੀਖਿਆ ॥ पूर्ण गुरु का पूर्ण उपदेश है।
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਬਸੈ ਤਿਸੁ ਸਾਚੁ ਪਰੀਖਿਆ ॥ जिसके हृदय में यह रहता है, वह सत्य का निरीक्षण कर लेता है।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥ अपने मन एवं तन से वृति लगाकर प्रभु के नाम का जाप करो।
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਮਨ ਤੇ ਭਉ ਜਾਇ ॥ इस तरह दुःख-दर्द एवं भय मन से निवृत्त हो जाएँगे।
ਸਚੁ ਵਾਪਾਰੁ ਕਰਹੁ ਵਾਪਾਰੀ ॥ हे व्यापारी ! तू सच्चा व्यापार कर।
ਦਰਗਹ ਨਿਬਹੈ ਖੇਪ ਤੁਮਾਰੀ ॥ तेरा सौदा ईश्वर के दरबार में सुरक्षित पहुँच जाएगा।
ਏਕਾ ਟੇਕ ਰਖਹੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥ एक ईश्वर का सहारा अपने हृदय में कायम कर।
ਨਾਨਕ ਬਹੁਰਿ ਨ ਆਵਹਿ ਜਾਹਿ ॥੬॥ हे नानक ! तेरा आवागमन (जन्म-मरण का चक्र) पुनः नहीं होगा।॥ ६ ॥
ਤਿਸ ਤੇ ਦੂਰਿ ਕਹਾ ਕੋ ਜਾਇ ॥ उससे दूर कोई मनुष्य कहाँ जा सकता है ?
ਉਬਰੈ ਰਾਖਨਹਾਰੁ ਧਿਆਇ ॥ रक्षक परमात्मा का चिन्तन करने से मनुष्य बच जाता है।
ਨਿਰਭਉ ਜਪੈ ਸਗਲ ਭਉ ਮਿਟੈ ॥ उस निर्भय प्रभु का जाप करने से सब भय मिट जाते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਪ੍ਰਾਣੀ ਛੁਟੈ ॥ प्रभु की कृपा से जीव की मुक्ति हो जाती है।
ਜਿਸੁ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਖੈ ਤਿਸੁ ਨਾਹੀ ਦੂਖ ॥ जिसकी ईश्वर रक्षा करता है, उसे कोई दुःख नहीं लगता।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨਿ ਹੋਵਤ ਸੂਖ ॥ नाम की आराधना करने से मन को सुख प्राप्त हो जाता है।
ਚਿੰਤਾ ਜਾਇ ਮਿਟੈ ਅਹੰਕਾਰੁ ॥ उससे चिन्ता दूर हो जाती है और अहंकार मिट जाता है।
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਕੋਇ ਨ ਪਹੁਚਨਹਾਰੁ ॥ उस प्रभु के भक्त की कोई समानता नहीं कर सकता।
ਸਿਰ ਊਪਰਿ ਠਾਢਾ ਗੁਰੁ ਸੂਰਾ ॥ हे नानक ! जिसके सिर पर शूरवीर गुरु खड़ा हो,
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੇ ਕਾਰਜ ਪੂਰਾ ॥੭॥ उसके सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।॥७॥
ਮਤਿ ਪੂਰੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਜਾ ਕੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ॥ जिस (गुरु) की बुद्धि पूर्ण है और जिसकी दृष्टि से अमृत बरसता रहता है,
ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਉਧਰਤ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ॥ उनके दर्शन करके दुनिया का कल्याण हो जाता है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਜਾ ਕੇ ਅਨੂਪ ॥ उनके चरण कमल अनूप हैं।
ਸਫਲ ਦਰਸਨੁ ਸੁੰਦਰ ਹਰਿ ਰੂਪ ॥ उनके दर्शन सफल हैं और परमेश्वर जैसा अति सुन्दर उनका रूप है।
ਧੰਨੁ ਸੇਵਾ ਸੇਵਕੁ ਪਰਵਾਨੁ ॥ उनकी सेवा धन्य है एवं उनका सेवक स्वीकृत है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪੁਰਖੁ ਪ੍ਰਧਾਨੁ ॥ वह (गुरु) अंतर्यामी एवं प्रधान पुरुष है।
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਬਸੈ ਸੁ ਹੋਤ ਨਿਹਾਲੁ ॥ जिसके हृदय में गुरु निवास करते हैं, वह कृतार्थ हो जाता है।
ਤਾ ਕੈ ਨਿਕਟਿ ਨ ਆਵਤ ਕਾਲੁ ॥ काल (मृत्यु) उसके निकट नहीं आता।
ਅਮਰ ਭਏ ਅਮਰਾ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ॥ वे अमर हो गए हैं और अमर पद प्राप्त कर लिया है
ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥੮॥੨੨॥ हे नानक ! जिन्होंने साधुओं की संगति में भगवान का ध्यान किया है ॥ ८ ॥ २२ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ਅਗਿਆਨ ਅੰਧੇਰ ਬਿਨਾਸੁ ॥ गुरु ने ज्ञान रूपी सुरमा प्रदान किया है, जिससे अज्ञान के अंधेरे का नाश हो गया है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਸੰਤ ਭੇਟਿਆ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਪਰਗਾਸੁ ॥੧॥ हे नानक ! भगवान की कृपा से संत-गुरु मिला है, जिससे मन में ज्ञान का प्रकाश हो गया है॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी।॥
ਸੰਤਸੰਗਿ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਡੀਠਾ ॥ संतों की संगति में अन्तर्मन में ही प्रभु के दर्शन कर लिए हैं।
ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਭੂ ਕਾ ਲਾਗਾ ਮੀਠਾ ॥ प्रभु का नाम मुझे मधुर मीठा लगा है।
ਸਗਲ ਸਮਿਗ੍ਰੀ ਏਕਸੁ ਘਟ ਮਾਹਿ ॥ समस्त सृष्टि एक परमात्मा के स्वरूप में है,
ਅਨਿਕ ਰੰਗ ਨਾਨਾ ਦ੍ਰਿਸਟਾਹਿ ॥ जिसके विभिन्न प्रकार के अनेक रंग दिखाई दे रहे हैं।
ਨਉ ਨਿਧਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਮੁ ॥ प्रभु का अमृत नाम नवनिधि है।
ਦੇਹੀ ਮਹਿ ਇਸ ਕਾ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥ मानव शरीर में ही इसका निवास है।
ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਅਨਹਤ ਤਹ ਨਾਦ ॥ वहाँ शून्य समाधि में अनहद शब्द होता है।
ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ਅਚਰਜ ਬਿਸਮਾਦ ॥ इस तरह के एक अद्भुत उत्साह का आनंद वर्णित नहीं किया जा सकता है।
ਤਿਨਿ ਦੇਖਿਆ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਦਿਖਾਏ ॥ जिसको ईश्वर स्वयं दिखाता है, वही इसको देखता है।
ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਜਨ ਸੋਝੀ ਪਾਏ ॥੧॥ हे नानक ! ऐसा पुरुष ज्ञान प्राप्त कर लेता है॥ १॥
ਸੋ ਅੰਤਰਿ ਸੋ ਬਾਹਰਿ ਅਨੰਤ ॥ वह अनन्त परमात्मा अन्तर्मन में भी है और बाहर भी विद्यमान है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਿਆਪਿ ਰਹਿਆ ਭਗਵੰਤ ॥ भगवान कण-कण में व्याप्त है।
ਧਰਨਿ ਮਾਹਿ ਆਕਾਸ ਪਇਆਲ ॥ वह धरती, गगन एवं पाताल में विद्यमान है।
ਸਰਬ ਲੋਕ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥ समस्त लोकों का वह पूर्ण पालनहार है।
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