Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 292

Page 292

ਕੋਊ ਨਰਕ ਕੋਊ ਸੁਰਗ ਬੰਛਾਵਤ ॥ कोई नरक में जाने लगा और कोई स्वर्ग की अभिलाषा करने लगा।
ਆਲ ਜਾਲ ਮਾਇਆ ਜੰਜਾਲ ॥ ईश्वर ने सांसारिक विवाद, धन-दौलत के जंजाल,
ਹਉਮੈ ਮੋਹ ਭਰਮ ਭੈ ਭਾਰ ॥ अहंकार, मोह, दुविधा एवं भय के भार बना दिए।
ਦੂਖ ਸੂਖ ਮਾਨ ਅਪਮਾਨ ॥ दुःख-सुख, मान-अपमान
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੀਓ ਬਖ੍ਯ੍ਯਾਨ ॥ अनेक प्रकार से वर्णन होने प्रारम्भ हो गए।
ਆਪਨ ਖੇਲੁ ਆਪਿ ਕਰਿ ਦੇਖੈ ॥ अपनी लीला प्रभु स्वयं ही रचता और देखता हैं।
ਖੇਲੁ ਸੰਕੋਚੈ ਤਉ ਨਾਨਕ ਏਕੈ ॥੭॥ हे नानक ! जब परमात्मा अपनी लीला को समेट लेता है तो केवल वही रह जाता है ॥७॥
ਜਹ ਅਬਿਗਤੁ ਭਗਤੁ ਤਹ ਆਪਿ ॥ जहाँ पर अनन्त परमात्मा है, वहीं उसका भक्त है, जहाँ पर भक्त है, वहीं परमात्मा स्वयं है।
ਜਹ ਪਸਰੈ ਪਾਸਾਰੁ ਸੰਤ ਪਰਤਾਪਿ ॥ जहाँ कहीं वह रचना का प्रसार करता है, वह उसके संत के प्रताप के लिए है।
ਦੁਹੂ ਪਾਖ ਕਾ ਆਪਹਿ ਧਨੀ ॥ दोनों पक्षों का वह स्वयं ही मालिक है।
ਉਨ ਕੀ ਸੋਭਾ ਉਨਹੂ ਬਨੀ ॥ उसकी शोभा केवल उसी को ही शोभा देती है।
ਆਪਹਿ ਕਉਤਕ ਕਰੈ ਅਨਦ ਚੋਜ ॥ भगवान स्वयं ही लीला एवं खेल करता है।
ਆਪਹਿ ਰਸ ਭੋਗਨ ਨਿਰਜੋਗ ॥ वह स्वयं ही आनंद भोगता है और फिर भी निर्लिप्त रहता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਆਪਨ ਨਾਇ ਲਾਵੈ ॥ जिस किसी को वह चाहता है, उसको अपने नाम के साथ लगा लेता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਖੇਲ ਖਿਲਾਵੈ ॥ जिस किसी को वह चाहता है, उसको संसार का खेल खिलाता है।
ਬੇਸੁਮਾਰ ਅਥਾਹ ਅਗਨਤ ਅਤੋਲੈ ॥ नानक का कथन है कि हे अनन्त ! हे अथाह ! हे गणना-रहित, अतुलनीय परमात्मा !
ਜਿਉ ਬੁਲਾਵਹੁ ਤਿਉ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਬੋਲੈ ॥੮॥੨੧॥ जैसे तुम अपने सेवक को निर्देशित करते हो, वैसे ही यह दास बोलता है ॥८॥२१॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਕੇ ਠਾਕੁਰਾ ਆਪੇ ਵਰਤਣਹਾਰ ॥ हे जीव-जन्तुओं के पालनहार परमेश्वर ! तू स्वयं ही सर्वव्यापक है।
ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਪਸਰਿਆ ਦੂਜਾ ਕਹ ਦ੍ਰਿਸਟਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! एक ईश्वर ही सर्वत्र व्यापक है। इसके अलावा दूसरा कोई कहाँ दिखाई देता है॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी ॥
ਆਪਿ ਕਥੈ ਆਪਿ ਸੁਨਨੈਹਾਰੁ ॥ वह स्वयं ही वक्ता है और स्वयं ही श्रोता है।
ਆਪਹਿ ਏਕੁ ਆਪਿ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥ वह स्वयं ही एक है और स्वयं ही उसका विस्तार है।
ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਏ ॥ जब उसे भला लगता है तो वह सृष्टि की रचना कर देता है।
ਆਪਨੈ ਭਾਣੈ ਲਏ ਸਮਾਏ ॥ अपनी इच्छानुसार वह इसे स्वयं में लीन कर देता है।
ਤੁਮ ਤੇ ਭਿੰਨ ਨਹੀ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥ हे परमात्मा ! तुम्हारे बिना कुछ भी किया नहीं जा सकता।
ਆਪਨ ਸੂਤਿ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਪਰੋਇ ॥ तूने सारे जगत् को एक सूत्र में पिरोया हुआ है।
ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਜੀਉ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥ जिसे पूज्य परमेश्वर स्वयं ज्ञान देता है,
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ॥ वह मनुष्य सत्यनाम प्राप्त कर लेता है।
ਸੋ ਸਮਦਰਸੀ ਤਤ ਕਾ ਬੇਤਾ ॥ वह समदर्शी तथा तत्वज्ञाता है।
ਨਾਨਕ ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਕਾ ਜੇਤਾ ॥੧॥ हे नानक ! वह समस्त जगत् को विजयी करने वाला है ॥१॥
ਜੀਅ ਜੰਤ੍ਰ ਸਭ ਤਾ ਕੈ ਹਾਥ ॥ समस्त जीव-जन्तु उस परमात्मा के वश में हैं।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਅਨਾਥ ਕੋ ਨਾਥੁ ॥ वह दीनदयाल, अनाथों का नाथ है।
ਜਿਸੁ ਰਾਖੈ ਤਿਸੁ ਕੋਇ ਨ ਮਾਰੈ ॥ जिसकी परमात्मा रक्षा करता है, उसे कोई भी मार नहीं सकता।
ਸੋ ਮੂਆ ਜਿਸੁ ਮਨਹੁ ਬਿਸਾਰੈ ॥ जिसे वह अपने हृदय से विस्मृत कर देता है, वह पूर्व ही मृत है।
ਤਿਸੁ ਤਜਿ ਅਵਰ ਕਹਾ ਕੋ ਜਾਇ ॥ उसे छोड़कर कोई मनुष्य दूसरे के पास क्यों जाए?
ਸਭ ਸਿਰਿ ਏਕੁ ਨਿਰੰਜਨ ਰਾਇ ॥ सबके सिर पर एक निरंजन प्रभु है।
ਜੀਅ ਕੀ ਜੁਗਤਿ ਜਾ ਕੈ ਸਭ ਹਾਥਿ ॥ जिसके वश में प्राणी की समस्त युक्तियां हैं
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਜਾਨਹੁ ਸਾਥਿ ॥ समझ ले कि वह भीतर एवं बाहर तेरे साथ है।
ਗੁਨ ਨਿਧਾਨ ਬੇਅੰਤ ਅਪਾਰ ॥ उस गुणों के भण्डार, अनंत एवं अपार परमात्मा पर
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਬਲਿਹਾਰ ॥੨॥ दास नानक सदैव बलिहारी जाता है॥ २॥
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹੇ ਦਇਆਲ ॥ दयालु परमात्मा हर जगह पर उपस्थित है और
ਸਭ ਊਪਰਿ ਹੋਵਤ ਕਿਰਪਾਲ ॥ समस्त जीवों पर कृपालु होता है।
ਅਪਨੇ ਕਰਤਬ ਜਾਨੈ ਆਪਿ ॥ अपनी लीला वह स्वयं ही जानता है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਰਹਿਓ ਬਿਆਪਿ ॥ अन्तर्यामी प्रभु सबमें समाया हुआ है।
ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ਜੀਅਨ ਬਹੁ ਭਾਤਿ ॥ वह अनेक विधियों से जीवों का पोषण करता है।
ਜੋ ਜੋ ਰਚਿਓ ਸੁ ਤਿਸਹਿ ਧਿਆਤਿ ॥ जिस किसी की भी उसने उत्पत्ति की है, वह उसका ध्यान करता रहता है।
ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਲਏ ਮਿਲਾਇ ॥ जो कोई भी भगवान को भला लगता है, उसे वह अपने साथ मिला लेता है।
ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥ ऐसा भक्त हरि-प्रभु की भक्ति एवं गुणस्तुति करता है।
ਮਨ ਅੰਤਰਿ ਬਿਸ੍ਵਾਸੁ ਕਰਿ ਮਾਨਿਆ ॥ हे नानक ! जिसने मन में श्रद्धा धारण करके भगवान को माना है,
ਕਰਨਹਾਰੁ ਨਾਨਕ ਇਕੁ ਜਾਨਿਆ ॥੩॥ उसने एक सृष्टिकर्ता प्रभु को ही जाना है॥ ३॥
ਜਨੁ ਲਾਗਾ ਹਰਿ ਏਕੈ ਨਾਇ ॥ जो भक्त भगवान् के एक नाम में लगा है,
ਤਿਸ ਕੀ ਆਸ ਨ ਬਿਰਥੀ ਜਾਇ ॥ उसकी आशा व्यर्थ नहीं जाती।
ਸੇਵਕ ਕਉ ਸੇਵਾ ਬਨਿ ਆਈ ॥ सेवक को सेवा करनी ही शोभा देती है।
ਹੁਕਮੁ ਬੂਝਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਈ ॥ प्रभु की आज्ञा का पालन करके वह परम पद (मोक्ष) प्राप्त कर लेता है।
ਇਸ ਤੇ ਊਪਰਿ ਨਹੀ ਬੀਚਾਰੁ ॥ उसे इससे ऊपर और कोई भी विचार नहीं आता
ਜਾ ਕੈ ਮਨਿ ਬਸਿਆ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥ जिसके हृदय में निरंकार प्रभु बसता है।
ਬੰਧਨ ਤੋਰਿ ਭਏ ਨਿਰਵੈਰ ॥ वह अपने बन्धन तोड़कर निर्वैर हो जाता है
ਅਨਦਿਨੁ ਪੂਜਹਿ ਗੁਰ ਕੇ ਪੈਰ ॥ और दिन-रात गुरु के चरणों की पूजा-अर्चना करता है।
ਇਹ ਲੋਕ ਸੁਖੀਏ ਪਰਲੋਕ ਸੁਹੇਲੇ ॥ वह इहलोक में सुखी एवं परलोक में आनंद-प्रसन्न होता है।
error: Content is protected !!
Scroll to Top
https://s2pbio.fkip.uns.ac.id/stats/demoslot/ https://s2pbio.fkip.uns.ac.id/wp-content/plugins/sbo/ https://ijwem.ulm.ac.id/pages/demo/ situs slot gacor https://bppkad.mamberamorayakab.go.id/wp-content/modemo/ http://mesin-dev.ft.unesa.ac.id/mesin/demo-slot/ http://gsgs.lingkungan.ft.unand.ac.id/includes/demo/ https://kemahasiswaan.unand.ac.id/plugins/actionlog/ https://bappelitbangda.bangkatengahkab.go.id/storage/images/x-demo/
https://jackpot-1131.com/ https://mainjp1131.com/ https://triwarno-banyuurip.purworejokab.go.id/template-surat/kk/kaka-sbobet/
https://s2pbio.fkip.uns.ac.id/stats/demoslot/ https://s2pbio.fkip.uns.ac.id/wp-content/plugins/sbo/ https://ijwem.ulm.ac.id/pages/demo/ situs slot gacor https://bppkad.mamberamorayakab.go.id/wp-content/modemo/ http://mesin-dev.ft.unesa.ac.id/mesin/demo-slot/ http://gsgs.lingkungan.ft.unand.ac.id/includes/demo/ https://kemahasiswaan.unand.ac.id/plugins/actionlog/ https://bappelitbangda.bangkatengahkab.go.id/storage/images/x-demo/
https://jackpot-1131.com/ https://mainjp1131.com/ https://triwarno-banyuurip.purworejokab.go.id/template-surat/kk/kaka-sbobet/