Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 282

Page 282

ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਗਲ ਮਹਿ ਆਪਿ ॥ सब कुछ वह अपने आप से ही है। वह स्वयं ही सब (जीव-जन्तुओं) में विद्यमान है।
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਰਚਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥ अनेक युक्तियों द्वारा वह सृष्टि की रचना करता एवं उसका नाश भी करता है।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਖੰਡ ॥ लेकिन अनश्वर परमात्मा का कुछ भी नाश नहीं होता।
ਧਾਰਣ ਧਾਰਿ ਰਹਿਓ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ॥ वह ब्रह्माण्ड को सहारा दे रहा है।
ਅਲਖ ਅਭੇਵ ਪੁਰਖ ਪਰਤਾਪ ॥ प्रभु का तेज-प्रताप अलक्ष्य एवं भेद रहित है।
ਆਪਿ ਜਪਾਏ ਤ ਨਾਨਕ ਜਾਪ ॥੬॥ हे नानक ! यदि वह अपना जाप मनुष्य से स्वयं करवाए तो ही वह जाप करता है ॥६॥
ਜਿਨ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ਸੁ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥ जो प्रभु को जानते हैं, वे शोभायमान हैं।
ਸਗਲ ਸੰਸਾਰੁ ਉਧਰੈ ਤਿਨ ਮੰਤ ॥ समस्त संसार उनके मंत्र (उपदेश) द्वारा बच जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਸਗਲ ਉਧਾਰਨ ॥ प्रभु के सेवक सबका कल्याण कर देते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਦੂਖ ਬਿਸਾਰਨ ॥ प्रभु के सेवकों की संगति द्वारा दुःख भूल जाता है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਕਿਰਪਾਲ ॥ कृपालु प्रभु उनको अपने साथ मिला लेता है।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਜਪਿ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥ गुरु के शब्द का जाप करने से वह कृतार्थ हो जाते हैं।
ਉਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋਈ ਲਾਗੈ ॥ केवल वही सौभाग्यशाली उनकी सेवा में लगता है,
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਬਡਭਾਗੈ ॥ जिस पर प्रभु कृपा धारण करता है।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਪਾਵਹਿ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥ जो प्रभु के नाम का जाप करते हैं, वे सुख पाते हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਪੁਰਖ ਕਉ ਊਤਮ ਕਰਿ ਮਾਨੁ ॥੭॥ हे नानक ! उन पुरुषों को महान समझो ॥ ७॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੁ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥ वह जो कुछ करता है, प्रभु की आज्ञा में करता है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਬਸੈ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ॥ वह हमेशा के लिए प्रभु के साथ रहता है।
ਸਹਜ ਸੁਭਾਇ ਹੋਵੈ ਸੋ ਹੋਇ ॥ जो कुछ होता है, वह सहज स्वभाव ही होता है।
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਪਛਾਣੈ ਸੋਇ ॥ वह उस सृजनहार प्रभु को ही पहचानता है।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਕੀਆ ਜਨ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ॥ प्रभु का किया उसके सेवकों को मीठा लगता है।
ਜੈਸਾ ਸਾ ਤੈਸਾ ਦ੍ਰਿਸਟਾਨਾ ॥ जैसा प्रभु है, वैसा ही उसको दिखाई देता है।
ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜੇ ਤਿਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਏ ॥ वह उसमें लीन हो जाता है, जिससे वह उत्पन्न हुआ था।
ਓਇ ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਉਨਹੂ ਬਨਿ ਆਏ ॥ वह सुखों का भण्डार है। यह प्रतिष्ठा केवल उसको ही शोभा देती है।
ਆਪਸ ਕਉ ਆਪਿ ਦੀਨੋ ਮਾਨੁ ॥ अपने सेवक को प्रभु ने स्वयं ही शोभा प्रदान की है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਜਨੁ ਏਕੋ ਜਾਨੁ ॥੮॥੧੪॥ हे नानक ! समझो कि प्रभु एवं उसका सेवक एक समान ही हैं ॥८॥१४॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक।
ਸਰਬ ਕਲਾ ਭਰਪੂਰ ਪ੍ਰਭ ਬਿਰਥਾ ਜਾਨਨਹਾਰ ॥ प्रभु सर्वकला सम्पूर्ण है और हमारे दु:खों को जानने वाला है।
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਉਧਰੀਐ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! जिसका सिमरन करने से मनुष्य का उद्धार हो जाता है, मैं उस पर बलिहार जाता हूँ ॥१॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी॥
ਟੂਟੀ ਗਾਢਨਹਾਰ ਗੋੁਪਾਲ ॥ जगतपालक गोपाल टूटों को जोड़ने वाला है।
ਸਰਬ ਜੀਆ ਆਪੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥ वह स्वयं ही समस्त प्राणियों का पालन-पोषण करता है।
ਸਗਲ ਕੀ ਚਿੰਤਾ ਜਿਸੁ ਮਨ ਮਾਹਿ जिसके मन में सब की चिन्ता है,
ਤਿਸ ਤੇ ਬਿਰਥਾ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥ उससे कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता।
ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥ हे मेरे मन ! सदा ही परमात्मा का जाप कर।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥ अनश्वर प्रभु सब कुछ स्वयं ही है।
ਆਪਨ ਕੀਆ ਕਛੂ ਨ ਹੋਇ ॥ प्राणी के अपने करने से कुछ नहीं हो सकता,
ਜੇ ਸਉ ਪ੍ਰਾਨੀ ਲੋਚੈ ਕੋਇ ॥ चाहे वह सैकड़ों बार इसकी इच्छा करे।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਤੇਰੈ ਕਿਛੁ ਕਾਮ ॥ उसके अतिरिक्त कुछ भी तेरे काम का नहीं।
ਗਤਿ ਨਾਨਕ ਜਪਿ ਏਕ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥੧॥ हे नानक ! एक ईश्वर के नाम का जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ॥१॥
ਰੂਪਵੰਤੁ ਹੋਇ ਨਾਹੀ ਮੋਹੈ ॥ यदि प्राणी अति सुन्दर है तो अपने आप वह दूसरों को मोहित नहीं करता।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਜੋਤਿ ਸਗਲ ਘਟ ਸੋਹੈ ॥ प्रभु की ज्योति ही समस्त शरीरों में सुन्दर लगती है।
ਧਨਵੰਤਾ ਹੋਇ ਕਿਆ ਕੋ ਗਰਬੈ ॥ धनवान होकर कोई पुरुष क्या अभिमान करे,
ਜਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕਾ ਦੀਆ ਦਰਬੈ ॥ जब समस्त धन उसका दिया हुआ है।
ਅਤਿ ਸੂਰਾ ਜੇ ਕੋਊ ਕਹਾਵੈ ॥ यदि कोई पुरुष अपने आपको महान शूरवीर कहलवाता हो,
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਕਲਾ ਬਿਨਾ ਕਹ ਧਾਵੈ ॥ प्रभु की कला (शक्ति) बिना वह क्या प्रयास कर सकता है?
ਜੇ ਕੋ ਹੋਇ ਬਹੈ ਦਾਤਾਰੁ ॥ यदि कोई पुरुष दानी बन बैठे
ਤਿਸੁ ਦੇਨਹਾਰੁ ਜਾਨੈ ਗਾਵਾਰੁ ॥ तो दाता प्रभु उसको मूर्ख समझता है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੂਟੈ ਹਉ ਰੋਗੁ ॥ गुरु की कृपा से जिसके अहंकार का रोग दूर होता है,
ਨਾਨਕ ਸੋ ਜਨੁ ਸਦਾ ਅਰੋਗੁ ॥੨॥ हे नानक ! वह मनुष्य सदैव स्वस्थ है॥ २ ॥
ਜਿਉ ਮੰਦਰ ਕਉ ਥਾਮੈ ਥੰਮਨੁ ॥ जैसे मन्दिर को एक सतम्भ (खम्भा) सहारा देता है,
ਤਿਉ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਮਨਹਿ ਅਸਥੰਮਨੁ ॥ वैसे ही गुरु का शब्द मन को सहारा देता है।
ਜਿਉ ਪਾਖਾਣੁ ਨਾਵ ਚੜਿ ਤਰੈ ॥ जैसे नाव में रखा पत्थर पार हो जाता है,
ਪ੍ਰਾਣੀ ਗੁਰ ਚਰਣ ਲਗਤੁ ਨਿਸਤਰੈ ॥ वैसे ही प्राणी गुरु के चरणों से लगकर भवसागर से पार हो जाता है।
ਜਿਉ ਅੰਧਕਾਰ ਦੀਪਕ ਪਰਗਾਸੁ ॥ जैसे दीपक अन्धेरे में प्रकाश कर देता है,
ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਮਨਿ ਹੋਇ ਬਿਗਾਸੁ ॥ वैसे ही गुरु के दर्शन करके मन प्रफुल्लित हो जाता है।
ਜਿਉ ਮਹਾ ਉਦਿਆਨ ਮਹਿ ਮਾਰਗੁ ਪਾਵੈ ॥ जैसे मनुष्य को महा जंगल में पथ मिल जाता है,
ਤਿਉ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਜੋਤਿ ਪ੍ਰਗਟਾਵੈ ॥ वैसे ही सत्संगति में रहने से प्रभु की ज्योति मनुष्य के भीतर प्रकट हो जाती है।
ਤਿਨ ਸੰਤਨ ਕੀ ਬਾਛਉ ਧੂਰਿ ॥ मैं उन संतों के चरणों की धूलि मांगता हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਹਰਿ ਲੋਚਾ ਪੂਰਿ ॥੩॥ हे ईश्वर ! नानक की आकांक्षा पूर्णं करो॥ ३॥
ਮਨ ਮੂਰਖ ਕਾਹੇ ਬਿਲਲਾਈਐ ॥ हे मूर्ख मन ! क्यों विलाप करते हो !
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