Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 265

Page 265

ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਨ ਕਉ ਭੋਗ ਜੋਗ ॥ भगवान् का नाम ही भक्त के लिए योग (साधन) एवं गृहस्थी का माया-भोग है।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਕਛੁ ਨਾਹਿ ਬਿਓਗੁ ॥ भगवान् के नाम का जाप करने से उसे कोई दुःख-क्लेश नहीं होता।
ਜਨੁ ਰਾਤਾ ਹਰਿ ਨਾਮ ਕੀ ਸੇਵਾ ॥ भगवान् का भक्त उसके नाम की सेवा में ही मग्न रहता है।
ਨਾਨਕ ਪੂਜੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦੇਵਾ ॥੬॥ हे नानक ! (भक्त सदैव) प्रभुदेवा परमेश्वर की ही पूजा करता है॥ ६ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਨ ਕੈ ਮਾਲੁ ਖਜੀਨਾ ॥ हरि-परमेश्वर का नाम भक्त के लिए धन का भण्डार है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਜਨ ਕਉ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭਿ ਦੀਨਾ ॥ हरि नाम रूपी धन प्रभु ने स्वयं अपने भक्त को दिया है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਨ ਕੈ ਓਟ ਸਤਾਣੀ ॥ हरि-परमेश्वर का नाम उसके भक्त का सशक्त सहारा है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰਤਾਪਿ ਜਨ ਅਵਰ ਨ ਜਾਣੀ ॥ हरि के प्रताप से भक्तजन किसी दूसरे को नहीं जानता।
ਓਤਿ ਪੋਤਿ ਜਨ ਹਰਿ ਰਸਿ ਰਾਤੇ ॥ ताने-बाने की भाँति प्रभु का भक्त हरि-रस में मग्न रहता है।
ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਨਾਮ ਰਸ ਮਾਤੇ ॥ शून्य समाधि में लीन वह नाम-रस में मस्त रहता है।
ਆਠ ਪਹਰ ਜਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੈ ॥ भक्त दिन के आठ पहर हरि-परमेश्वर के नाम का ही जाप करता रहता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਭਗਤੁ ਪ੍ਰਗਟ ਨਹੀ ਛਪੈ ॥ हरि का भक्त दुनिया में लोकप्रिय हो जाता है, छिपा नहीं रहता।
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਮੁਕਤਿ ਬਹੁ ਕਰੇ ॥ भगवान् की भक्ति अनेकों को मोक्ष प्रदान करती है।
ਨਾਨਕ ਜਨ ਸੰਗਿ ਕੇਤੇ ਤਰੇ ॥੭॥ हे नानक ! भक्तों की संगति में कितने ही भवसागर से पार हो जाते हैं॥ ७ ॥
ਪਾਰਜਾਤੁ ਇਹੁ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮ ॥ हरि का नाम ही कल्पवृक्ष है।
ਕਾਮਧੇਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਮ ॥ हरि-परमेश्वर के नाम का यशोगान करना ही कामधेनु है।
ਸਭ ਤੇ ਊਤਮ ਹਰਿ ਕੀ ਕਥਾ ॥ हरि की कथा सबसे उत्तम है।
ਨਾਮੁ ਸੁਨਤ ਦਰਦ ਦੁਖ ਲਥਾ ॥ भगवान् का नाम सुनने से दुःख-दर्द दूर हो जाते हैं।
ਨਾਮ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਸੰਤ ਰਿਦ ਵਸੈ ॥ नाम की महिमा संतों के हृदय में निवास करती है।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਤਾਪਿ ਦੁਰਤੁ ਸਭੁ ਨਸੈ ॥ संतों के तेज प्रताप से समस्त पाप नाश हो जाते हैं।
ਸੰਤ ਕਾ ਸੰਗੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਈਐ ॥ संतों की संगति सौभाग्य से ही प्राप्त होती है।
ਸੰਤ ਕੀ ਸੇਵਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥ संतों की सेवा से नाम-स्मरण किया जाता है।
ਨਾਮ ਤੁਲਿ ਕਛੁ ਅਵਰੁ ਨ ਹੋਇ ॥ ईश्वर के नाम के तुल्य कोई दूसरा नहीं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਾਵੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥੮॥੨॥ हे नानक ! कोई विरला गुरमुख ही नाम को प्राप्त करता है॥ ८ ॥ २॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਬਹੁ ਸਾਸਤ੍ਰ ਬਹੁ ਸਿਮ੍ਰਿਤੀ ਪੇਖੇ ਸਰਬ ਢਢੋਲਿ ॥ बहुत सारे शास्त्र एवं बहुत सारी स्मृतियाँ देखी हैं और उन सबकी (भलीभाँति) खोज की है।
ਪੂਜਸਿ ਨਾਹੀ ਹਰਿ ਹਰੇ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਅਮੋਲ ॥੧॥ (लेकिन) यह ईश्वर के नाम की बराबरी नहीं कर सकते। हे नानक ! हरि-परमेश्वर का नाम अमूल्य है॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥ अष्टपदी ॥
ਜਾਪ ਤਾਪ ਗਿਆਨ ਸਭਿ ਧਿਆਨ ॥ जप, तपस्या, समस्त ज्ञान एवं ध्यान,
ਖਟ ਸਾਸਤ੍ਰ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਵਖਿਆਨ ॥ छ : शास्त्रों के ग्रंथ एवं स्मृतियों का वर्णन,
ਜੋਗ ਅਭਿਆਸ ਕਰਮ ਧ੍ਰਮ ਕਿਰਿਆ ॥ योग का साधन एवं धार्मिक कर्म-काण्डों का करना,
ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਬਨ ਮਧੇ ਫਿਰਿਆ ॥ प्रत्येक वस्तु को त्याग देना एवं वन में भटकना,
ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕੀਏ ਬਹੁ ਜਤਨਾ ॥ अनेक प्रकार के बहुत से यत्न करे,
ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਹੋਮੇ ਬਹੁ ਰਤਨਾ ॥ दान-पुण्य, होम यज्ञ एवं अत्याधिक दान करना,
ਸਰੀਰੁ ਕਟਾਇ ਹੋਮੈ ਕਰਿ ਰਾਤੀ ॥ शरीर को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटना एवं उनकी अग्नि में आहुति देना,
ਵਰਤ ਨੇਮ ਕਰੈ ਬਹੁ ਭਾਤੀ ॥ अनेक प्रकार के व्रत एवं नियमों की पालना,
ਨਹੀ ਤੁਲਿ ਰਾਮ ਨਾਮ ਬੀਚਾਰ ॥ लेकिन यह सभी राम के नाम की आराधना के तुल्य नहीं हैं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਇਕ ਬਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! (चाहे) यह नाम एक बार ही गुरु की शरण में जपा जाए॥ १॥
ਨਉ ਖੰਡ ਪ੍ਰਿਥਮੀ ਫਿਰੈ ਚਿਰੁ ਜੀਵੈ ॥ मनुष्य चाहे पृथ्वी के नौ खण्डों पर भ्रमण करे, चिरकाल (लम्बी आयु) तक जीता रहे,
ਮਹਾ ਉਦਾਸੁ ਤਪੀਸਰੁ ਥੀਵੈ ॥ वह महा निर्वाण एवं तपस्वी हो जाए और
ਅਗਨਿ ਮਾਹਿ ਹੋਮਤ ਪਰਾਨ ॥ अपने शरीर को अग्नि में होम कर दे,
ਕਨਿਕ ਅਸ੍ਵ ਹੈਵਰ ਭੂਮਿ ਦਾਨ ॥ वह सोना, घोड़े एवं भूमिदान कर दें,
ਨਿਉਲੀ ਕਰਮ ਕਰੈ ਬਹੁ ਆਸਨ ॥ वह निउली कर्म (योगासन का रूप) और बहुत सारे योगासन करें,
ਜੈਨ ਮਾਰਗ ਸੰਜਮ ਅਤਿ ਸਾਧਨ ॥ वह जैनियों के मार्ग पर चलकर अत्यंत कठिन साधन तथा तपस्या करें,
ਨਿਮਖ ਨਿਮਖ ਕਰਿ ਸਰੀਰੁ ਕਟਾਵੈ ॥ वह अपने शरीर को छोटा-छोटा करके कटना दे,
ਤਉ ਭੀ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਨ ਜਾਵੈ ॥ तो भी उसके अहंकार की मैल दूर नहीं होती।
ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਸਮਸਰਿ ਕਛੁ ਨਾਹਿ ॥ भगवान् के नाम के बराबर कोई वस्तु नहीं।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਗਤਿ ਪਾਹਿ ॥੨॥ हे नानक ! गुरु के माध्यम से भगवान् के नाम का जाप करने से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती है।॥ २॥
ਮਨ ਕਾਮਨਾ ਤੀਰਥ ਦੇਹ ਛੁਟੈ ॥ कुछ लोगों की मनोकामना होती है कि किसी तीर्थ-स्थान पर शरीर त्यागा जाए
ਗਰਬੁ ਗੁਮਾਨੁ ਨ ਮਨ ਤੇ ਹੁਟੈ ॥ परन्तु (फिर भी) मनुष्य का अहंकार एवं अभिमान मन से दूर नहीं होते।
ਸੋਚ ਕਰੈ ਦਿਨਸੁ ਅਰੁ ਰਾਤਿ ॥ चाहे मनुष्य दिन-रात पवित्रता करता है
ਮਨ ਕੀ ਮੈਲੁ ਨ ਤਨ ਤੇ ਜਾਤਿ ॥ परन्तु मन की मैल उसके शरीर से दूर नहीं होती।
ਇਸੁ ਦੇਹੀ ਕਉ ਬਹੁ ਸਾਧਨਾ ਕਰੈ ॥ चाहे मनुष्य अपने शरीर से बहुत संयम-साधना करता है,
ਮਨ ਤੇ ਕਬਹੂ ਨ ਬਿਖਿਆ ਟਰੈ ॥ फिर भी माया के बुरे विकार उसके मन को नहीं त्यागते।
ਜਲਿ ਧੋਵੈ ਬਹੁ ਦੇਹ ਅਨੀਤਿ ॥ चाहे मनुष्य इस नश्वर शरीर को कई बार पानी से शुद्ध करता है,
ਸੁਧ ਕਹਾ ਹੋਇ ਕਾਚੀ ਭੀਤਿ ॥ तो भी (यह शरीर रूपी) कच्ची दीवार कहीं पवित्र हो सकती हैं?
ਮਨ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਮ ਕੀ ਮਹਿਮਾ ਊਚ ॥ हे मेरे मन ! हरि के नाम की महिमा बहुत ऊँची है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਉਧਰੇ ਪਤਿਤ ਬਹੁ ਮੂਚ ॥੩॥ हे नानक ! (प्रभु के ) नाम से बहुत सारे पापी मुक्त हो गए हैं॥ ३॥
ਬਹੁਤੁ ਸਿਆਣਪ ਜਮ ਕਾ ਭਉ ਬਿਆਪੈ ॥ अधिक चतुराई के कारण मनुष्य को मृत्यु का भय आ दबोचता है।
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