Page 266
ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਕਰਿ ਤ੍ਰਿਸਨ ਨਾ ਧ੍ਰਾਪੈ ॥
अनिक जतन करि त्रिसन ना ध्रापै ॥
अनेक यत्न करने से भी सांसारिक इच्छाओं की तृष्णा की अग्नि नहीं बुझती।
ਭੇਖ ਅਨੇਕ ਅਗਨਿ ਨਹੀ ਬੁਝੈ ॥
भेख अनेक अगनि नही बुझै ॥
अनेकों धार्मिक वेष बदलने से (तृष्णा की) अग्नि नहीं बुझती।
ਕੋਟਿ ਉਪਾਵ ਦਰਗਹ ਨਹੀ ਸਿਝੈ ॥
कोटि उपाव दरगह नही सिझै ॥
(ऐसे) करोड़ों ही उपायों द्वारा मनुष्य प्रभु के दरबार में मुक्त नहीं होता।
ਛੂਟਸਿ ਨਾਹੀ ਊਭ ਪਇਆਲਿ ॥
छूटसि नाही ऊभ पइआलि ॥
वह चाहे आकाश में चले जाएँ अथवा पाताल में चले जाएँ, उनकी मुक्ति नहीं होती,
ਮੋਹਿ ਬਿਆਪਹਿ ਮਾਇਆ ਜਾਲਿ ॥
मोहि बिआपहि माइआ जालि ॥
जो व्यक्ति मोह के कारण माया के जाल में फँसते हैं।
ਅਵਰ ਕਰਤੂਤਿ ਸਗਲੀ ਜਮੁ ਡਾਨੈ ॥
अवर करतूति सगली जमु डानै ॥
अन्य सभी प्रयासों को यमदूत द्वारा दंडित किया जाता है,
ਗੋਵਿੰਦ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਮਾਨੈ ॥
गोविंद भजन बिनु तिलु नही मानै ॥
(लेकिन) गोविन्द के भजन के बिना मृत्यु तनिकमात्र भी परवाह नहीं करती।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥
हरि का नामु जपत दुखु जाइ ॥
भगवान् के नाम का जाप करने से हर प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं
ਨਾਨਕ ਬੋਲੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥੪॥
नानक बोलै सहजि सुभाइ ॥४॥
नानक सहज स्वभाव यही कहते हैं ।॥ ४॥
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਜੇ ਕੋ ਮਾਗੈ ॥
चारि पदारथ जे को मागै ॥
यदि कोई व्यक्ति चार पदार्थों-धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का अभिलाषी हो
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੀ ਸੇਵਾ ਲਾਗੈ ॥
साध जना की सेवा लागै ॥
तो उसे संतजनों की सेवा में लगना चाहिए।
ਜੇ ਕੋ ਆਪੁਨਾ ਦੂਖੁ ਮਿਟਾਵੈ ॥
जे को आपुना दूखु मिटावै ॥
यदि कोई व्यक्ति अपना दुःख मिटाना चाहता है तो
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਸਦ ਗਾਵੈ ॥
हरि हरि नामु रिदै सद गावै ॥
उसे अपने हृदय में हरि-परमेश्वर का नाम सदैव स्मरण करना चाहिए।
ਜੇ ਕੋ ਅਪੁਨੀ ਸੋਭਾ ਲੋਰੈ ॥
जे को अपुनी सोभा लोरै ॥
यदि कोई व्यक्ति अपनी शोभा चाहता हो तो
ਸਾਧਸੰਗਿ ਇਹ ਹਉਮੈ ਛੋਰੈ ॥
साधसंगि इह हउमै छोरै ॥
वह संतों की संगति में रहकर अपने अहंकार को त्याग दे।
ਜੇ ਕੋ ਜਨਮ ਮਰਣ ਤੇ ਡਰੈ ॥
जे को जनम मरण ते डरै ॥
यदि कोई व्यक्ति जन्म-मरण के दुःख से डरता है,
ਸਾਧ ਜਨਾ ਕੀ ਸਰਨੀ ਪਰੈ ॥
साध जना की सरनी परै ॥
तो उसे संतजनों की शरण लेनी चाहिए।
ਜਿਸੁ ਜਨ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸ ਪਿਆਸਾ ॥
जिसु जन कउ प्रभ दरस पिआसा ॥
जिस व्यक्ति को परमात्मा के दर्शनों की तीव्र लालसा है,
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਸਾ ॥੫॥
नानक ता कै बलि बलि जासा ॥५॥
हे नानक ! मैं उस पर सदा बलिहारी जाता हूँ॥ ५॥
ਸਗਲ ਪੁਰਖ ਮਹਿ ਪੁਰਖੁ ਪ੍ਰਧਾਨੁ ॥
सगल पुरख महि पुरखु प्रधानु ॥
समस्त पुरुषों में वहीं पुरुष प्रधान है
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਾ ਕਾ ਮਿਟੈ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
साधसंगि जा का मिटै अभिमानु ॥
जिस पुरुष का सत्संग में रहकर अभिमान मिट जाता है।
ਆਪਸ ਕਉ ਜੋ ਜਾਣੈ ਨੀਚਾ ॥
आपस कउ जो जाणै नीचा ॥
जो पुरुष अपने आपको निम्न (विनीत) जानता है,
ਸੋਊ ਗਨੀਐ ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ॥
सोऊ गनीऐ सभ ते ऊचा ॥
वह सबसे भला (ऊँचा) समझा जाता है।
ਜਾ ਕਾ ਮਨੁ ਹੋਇ ਸਗਲ ਕੀ ਰੀਨਾ ॥
जा का मनु होइ सगल की रीना ॥
जिस पुरुष का मन बहुत विनम्र है,
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਤਿਨਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਚੀਨਾ ॥
हरि हरि नामु तिनि घटि घटि चीना ॥
वह हरि-परमेश्वर के नाम को प्रत्येक हृदय में देखता है।
ਮਨ ਅਪੁਨੇ ਤੇ ਬੁਰਾ ਮਿਟਾਨਾ ॥
मन अपुने ते बुरा मिटाना ॥
जो अपने मन से बुराई को मिटा देता है,
ਪੇਖੈ ਸਗਲ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਾਜਨਾ ॥
पेखै सगल स्रिसटि साजना ॥
वह सारी सृष्टि को अपना मित्र देखता है।
ਸੂਖ ਦੂਖ ਜਨ ਸਮ ਦ੍ਰਿਸਟੇਤਾ ॥
सूख दूख जन सम द्रिसटेता ॥
हे नानक ! जो पुरुष सुख-दुःख को एक समान देखता है,
ਨਾਨਕ ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਨਹੀ ਲੇਪਾ ॥੬॥
नानक पाप पुंन नही लेपा ॥६॥
वह पाप-पुण्य से निर्लिप्त रहता है॥ ६॥
ਨਿਰਧਨ ਕਉ ਧਨੁ ਤੇਰੋ ਨਾਉ ॥
निरधन कउ धनु तेरो नाउ ॥
हे नाथ ! निर्धन के लिए आपका नाम ही धन-दौलत है।
ਨਿਥਾਵੇ ਕਉ ਨਾਉ ਤੇਰਾ ਥਾਉ ॥
निथावे कउ नाउ तेरा थाउ ॥
निराश्रित को आपके नाम का ही आश्रय है।
ਨਿਮਾਨੇ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੋ ਮਾਨੁ ॥
निमाने कउ प्रभ तेरो मानु ॥
हे प्रभु ! आप अपमानितों का सम्मान है।
ਸਗਲ ਘਟਾ ਕਉ ਦੇਵਹੁ ਦਾਨੁ ॥
सगल घटा कउ देवहु दानु ॥
आप ही समस्त प्राणियों को दान देते हैं।
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨਹਾਰ ਸੁਆਮੀ ॥
करन करावनहार सुआमी ॥
हे जगत् के स्वामी ! आप स्वयं ही सब कुछ करते एवं स्वयं ही जीवो से करवाते हो।
ਸਗਲ ਘਟਾ ਕੇ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥
सगल घटा के अंतरजामी ॥
आप अन्तर्यामी है।
ਅਪਨੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਜਾਨਹੁ ਆਪੇ ॥
अपनी गति मिति जानहु आपे ॥
हे ठाकुर ! अपनी गति एवं अपनी मर्यादा आप स्वयं ही जानते हो।
ਆਪਨ ਸੰਗਿ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭ ਰਾਤੇ ॥
आपन संगि आपि प्रभ राते ॥
हे प्रभु ! आप स्वयंसिद्ध हैं, स्वयं में लीन, अनंत और निर्विकार।
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਉਸਤਤਿ ਤੁਮ ਤੇ ਹੋਇ ॥
तुम्हरी उसतति तुम ते होइ ॥
हे ईश्वर ! अपनी महिमा केवल आप ही कर सकते हो।
ਨਾਨਕ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਨਸਿ ਕੋਇ ॥੭॥
नानक अवरु न जानसि कोइ ॥७॥
हे नानक ! कोई दूसरा आपकी महिमा को नहीं जानता॥ ७॥
ਸਰਬ ਧਰਮ ਮਹਿ ਸ੍ਰੇਸਟ ਧਰਮੁ ॥
सरब धरम महि स्रेसट धरमु ॥
समस्त धर्मों में सर्वोपरि धर्म,
ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਨਿਰਮਲ ਕਰਮੁ ॥
हरि को नामु जपि निरमल करमु ॥
ईश्वर के नाम का जाप करना एवं पवित्र कर्म करना है।
ਸਗਲ ਕ੍ਰਿਆ ਮਹਿ ਊਤਮ ਕਿਰਿਆ ॥
सगल क्रिआ महि ऊतम किरिआ ॥
समस्त धार्मिक क्रियाओं में सर्वश्रेष्ठ क्रिया,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਦੁਰਮਤਿ ਮਲੁ ਹਿਰਿਆ ॥
साधसंगि दुरमति मलु हिरिआ ॥
सत्संग में मिलकर दुर्बुद्धि की मैल को धो फेंकना।
ਸਗਲ ਉਦਮ ਮਹਿ ਉਦਮੁ ਭਲਾ ॥
सगल उदम महि उदमु भला ॥
समस्त प्रयासों में उत्तम प्रयास यही है कि
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਜੀਅ ਸਦਾ ॥
हरि का नामु जपहु जीअ सदा ॥
सदा मन में हरि के नाम का जाप करते रहो।
ਸਗਲ ਬਾਨੀ ਮਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਾਨੀ ॥
सगल बानी महि अम्रित बानी ॥
समस्त वाणियों में अमृत वाणी है कि
ਹਰਿ ਕੋ ਜਸੁ ਸੁਨਿ ਰਸਨ ਬਖਾਨੀ ॥
हरि को जसु सुनि रसन बखानी ॥
ईश्वर की महिमा सुनो एवं इसको जिह्वा से उच्चारण करो ।
ਸਗਲ ਥਾਨ ਤੇ ਓਹੁ ਊਤਮ ਥਾਨੁ ॥
सगल थान ते ओहु ऊतम थानु ॥
हे नानक ! समस्त स्थानों में वह स्थान उत्तम है,
ਨਾਨਕ ਜਿਹ ਘਟਿ ਵਸੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ॥੮॥੩॥
नानक जिह घटि वसै हरि नामु ॥८॥३॥
जिसमें ईश्वर का नाम निवास करता है॥ ८ ॥ ३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਨਿਰਗੁਨੀਆਰ ਇਆਨਿਆ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਮਾਲਿ ॥
निरगुनीआर इआनिआ सो प्रभु सदा समालि ॥
हे गुणविहीन एवं मूर्ख जीव ! उस ईश्वर को सदैव स्मरण कर।
ਜਿਨਿ ਕੀਆ ਤਿਸੁ ਚੀਤਿ ਰਖੁ ਨਾਨਕ ਨਿਬਹੀ ਨਾਲਿ ॥੧॥
जिनि कीआ तिसु चीति रखु नानक निबही नालि ॥१॥
हे नानक ! जिसने तुझे उत्पन्न किया है, उसको अपने ह्रदय में बसा, केवल ईश्वर ही तेरा साथ देगा ॥ १॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥
असटपदी ॥
अष्टपदी॥
ਰਮਈਆ ਕੇ ਗੁਨ ਚੇਤਿ ਪਰਾਨੀ ॥
रमईआ के गुन चेति परानी ॥
हे नश्वर प्राणी ! सर्वव्यापक राम के गुण स्मरण कर।
ਕਵਨ ਮੂਲ ਤੇ ਕਵਨ ਦ੍ਰਿਸਟਾਨੀ ॥
कवन मूल ते कवन द्रिसटानी ॥
किस मूल पदार्थ से प्रभु ने इस सुन्दर शरीर की रचना की है।
ਜਿਨਿ ਤੂੰ ਸਾਜਿ ਸਵਾਰਿ ਸੀਗਾਰਿਆ ॥
जिनि तूं साजि सवारि सीगारिआ ॥
जिसने तुझे रचा, संवारा एवं सुशोभित किया है,
ਗਰਭ ਅਗਨਿ ਮਹਿ ਜਿਨਹਿ ਉਬਾਰਿਆ ॥
गरभ अगनि महि जिनहि उबारिआ ॥
जिसने तेरी गर्भ की अग्नि में रक्षा की है,
ਬਾਰ ਬਿਵਸਥਾ ਤੁਝਹਿ ਪਿਆਰੈ ਦੂਧ ॥
बार बिवसथा तुझहि पिआरै दूध ॥
जिसने तुझे बाल्यावस्था में पीने के लिए दूध दिया है,
ਭਰਿ ਜੋਬਨ ਭੋਜਨ ਸੁਖ ਸੂਧ ॥
भरि जोबन भोजन सुख सूध ॥
जिसने तुझे यौवन में भोजन, सुख एवं सूझ दी
ਬਿਰਧਿ ਭਇਆ ਊਪਰਿ ਸਾਕ ਸੈਨ ॥
बिरधि भइआ ऊपरि साक सैन ॥
और जिसने जब तू बूढ़ा हुआ तो, सगे-संबंधी एवं मित्र